इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Friday, March 30, 2012

व्यथा

मुझे तलाश है
एक कविता की,
जो प्रवाहित हो
निर्बाध,
ह्रदय से मेरे...
बुझा दे तृष्णा मेरी 
बुझा दे तृष्णा तेरी.....

तलाश है मुझे उस सरिता की....

ना जाने क्यों
इन दिनों
शब्द नहीं सूझते...
भावों के दलदल से
पार निकलने को
बस गीत रहे जूझते...

ना प्रभु वंदन लिख पाऊं
ना मन का कोई
क्रंदन लिख पाऊं...
महका दे कागज़
ऐसा ना चन्दन लिख पाऊं !
न राग-अनुराग
न ह्रदय की कोई
अनबन लिख पाऊं..
न काशी न मथुरा
न मन का वृन्दावन लिख पाऊं !

बंजर हो चली है
ह्रदय  की भूमि....
सूखे  रक्त से
शब्दों  की सरिता कैसे बहाऊं???
कोलाहल है भीतर....
ऐसे में  भाव कैसे उपजाऊं .......
व्यथित मन की तृष्णा कैसे मिटाऊं........


-अनु 

49 comments:

  1. मन कि व्यथा कहती उत्कृष्ट रचना ...!!
    बहुत सुंदर शब्दों का चयन और प्रयोग ...चित्र भी सुंदर ...
    शुभकामनायें ...अनु जी ...

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  2. ....बहुत सुन्दर लिखा है आपने अनु जी !!!

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  3. गजब की अभिव्यक्ति ।।
    तब भी आप शिकायत करते हैं --

    क्षमा सहित --

    तृष्णा मिटती है नहीं, अंतर-मन बेचैन ।

    शब्दों पर ढीली पकड़, नहीं प्रस्फुटित बैन ।

    नहीं प्रस्फुटित बैन, भटकते गोकुल मथुरा ।

    सोच हुई अति गहन, मूस-मन काया कुतरा ।

    रविकर कम संताप, मिले हैं जबसे कृष्णा ।

    साक्षातकारी होय, मिटेगी कृष्णा-तृष्णा ।।

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  4. मन की व्यथा का उत्कृष्ट स्वरूप..सुन्दर अभिव्यक्ति ..बधाई अनु...

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  5. कभी कभी यह व्यथा बहुत सालती है मन को .... लेखन निर्बाध गति से चले ... शुभकामनायें

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  6. बहुत ही बढ़िया



    सादर

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  7. बिलकुल ऐसाइच 'मूड' चाहिए कबिताई के लिए.....!

    बाकी मन के सारे भाव प्रवाह से निकल पड़ें,वही कविता है !

    आप बहुत आगे तक जाएँगी.....!!

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  8. कोलाहल है भीतर....
    ऐसे में भाव कैसे उपजाऊं .......
    व्यथित मन की तृष्णा कैसे मिटाऊं......bahut accha yahi kolahal ik din
    badli bn baras jayegi......

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  9. मुझे तलाश है
    एक कविता की,
    जो प्रवाहित हो
    निर्बाध,
    ह्रदय से मेरे...
    बुझा दे तृष्णा मेरी.....!

    aur ytalaash ant tak
    jari rahti hai....!!
    bas likhte rahen ham
    ek ke baad doosari kavita...
    yah soch kar ki vo de payegi
    sukun thoda hi sahi....!
    bahut sundar...!!

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  10. एक पल दो खुद को सिर्फ खुद को .... सब कस्तूरी से मिल जायेंगे

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  11. व्यथा ने ही ...आप से सुंदर कविता लिखवा ली....
    शुभकामनाएँ!

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  12. मन की व्यथा का बहुत ही सुन्दर चित्रण..
    बहुत ही सुन्दर भाव अभियक्ति.....

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  13. atisundar post mere blog par svagat hae aabhar.

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  14. वाह ! ! ! ! ! बहुत खूब सुंदर रचना,बेहतरीन भाव प्रस्तुति,..

    MY RECENT POST ...फुहार....: बस! काम इतना करें....

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  15. "बंजर हो चली है
    ह्रदय की भूमि....
    सूखे रक्त से
    शब्दों की सरिता कैसे बहाऊं???
    कोलाहल है भीतर....
    ऐसे में भाव कैसे उपजाऊं .......
    व्यथित मन की तृष्णा कैसे मिटाऊं.".......
    vaah ! सुन्दर , अति सुन्दर ... मनभावन ब्यथा ...

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  16. Absolutely wonderful Anu! Beautiful emotions expressed through very meaningful Hindi words. I'm delighted!

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  17. मन की व्यथा की सुन्दर अभिव्यक्ति --------बहुत सुन्दर भाव

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  18. ऐसे में भाव कैसे उपजाऊं
    व्यथित मन की तृष्णा कैसे मिटाऊं...
    अंतर के भावों को बहुत सुन्दर ढंग से रखा है आपने.

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  19. bahut sunder rachna ......abhar sweekarein

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  20. ना जाने क्यों
    इन दिनों
    शब्द नहीं सूझते...
    भावों के दलदल से
    पार निकलने को
    बस गीत रहे जूझते.........waah bahut khoob anu ji .. aisa laga jaisa sabhi lekhak ke saath hota ho . sach me kabhi kabhi shabd hi gum ho jate hai air geet jhoojhte rah jate hai . hardik badhai , behad sunder . dil me utarti hui rachna ,

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  21. अक्सर ऐसा ही होता है जनाब! हर कवि जीवन में बस एक कविता लिखना चाहता है जो उसके ह्रदय के तमाम भावों को अभिव्यक्त कर दे लेकिन मन की तृष्णा शांत नहीं होती और उस एक कविता की तलाश में रचना यात्रा लम्बी होती जाती है. कभी थोडा संतोष होता भी है तो थोड़ी ही देर बाद असंतोष और भी गहरा हो जाता है.

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  22. व्यथित मन का शानदार उद्गार...बेहद खूबसूरत अनु!

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  23. बहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  24. स्वयं पर गौर करें और मन की शांति तथा हृदय की गहराई को बढ़ जाने दें। उसके बाद जो शब्द उतरेंगे,वही सहज होंगे और उन्हीं से दोनों की तृप्ति होगी।

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  25. आर्त ह्रदय की सुन्दर पुकार..

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  26. मानस सागर में है उठता ,जिन भावो का स्पंदन.
    तिरोहित होकर वो शब्दों में, चमके जैसे कुंदन.

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  27. व्‍यथित मन के भावों को बहुत ही खूबसूरती से प्रस्‍तु‍त किया है आपने ...आभार

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  28. ना प्रभु वंदन लिख पाऊं
    ना मन का कोई
    क्रंदन लिख पाऊं.............सुंदर अभिव्यक्ति ................

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  29. अनु जी, तृष्णा व्यथा की है...क्यूंकी कविता की निर्बाध सरिता आज कल इतनी कलुषित हो गयी है की उससे अपनी प्यास बुझाने की कल्पना भी न कीजिएगा...बाकी जो मिलता है वो रेडीमेड बोतल बंद पानी सा....मशवरा यही की तलाश छोरकर खुद ही सरिता बहाने का प्रयास कीजिये...शायद हमें खुद की प्यास मिटाने का मौका मिल जाए...बहुत अच्छा लिखतहैं...साधुवाद आपको।

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  30. तलाश सफल हो सुखकर हो ..... शुभकामनाये ...

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    1. thanks for appreciation anu ji ... your comment has been marked as spam automatically ... It is showing now ..
      please keep visiting .

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  31. This comment has been removed by the author.

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  32. कभी पहचान तो कभी अभिव्यक्ति का संकट कविता में मुखर हुआ है .भाव और अर्थ अच्छ्टा(अर्थ -छटा ) में एक नयापन लिए हुए है यह कविता .

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  33. बंजर हो चली है
    ह्रदय की भूमि....
    सूखे रक्त से
    शब्दों की सरिता कैसे बहाऊं???


    बहुत अच्छी रचना .....

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  34. बहुत सुन्दर
    तृषित मन ही तृष्णा का एहसास कर पाता है

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  35. बंजर हो चली है
    ह्रदय की भूमि....
    सूखे रक्त से
    शब्दों की सरिता कैसे बहाऊं???
    कोलाहल है भीतर....
    ऐसे में भाव कैसे उपजाऊं .......
    व्यथित मन की तृष्णा कैसे मिटाऊं.....
    अनु जी बहुत ही सुन्दर मूल भाव,,कोमल जीवन दर्शन ..खूबसूरत ....सारे विराग मिटें ..मन की तृष्णा मिट जाए तो आनंद और आये
    राम नवमी की हार्दिक शुभ कामनाएं इस जहां की सारी खुशियाँ आप को मिलें आप सौभाग्यशाली हों गुल और गुलशन खिला रहे मन मिला रहे प्यार बना रहे दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति होती रहे ...सब मंगलमय हो --भ्रमर५

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  36. "बंजर हो चली है
    ह्रदय की भूमि....
    सूखे रक्त से
    शब्दों की सरिता कैसे बहाऊं?"
    सुंदर अभिव्यक्ति ...

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  37. ना जाने क्यों
    इन दिनों
    शब्द नहीं सूझते...
    भावों के दलदल से
    पार निकलने को
    बस गीत रहे जूझते...

    क्या लिखूं कहते-कहते आपने एक अच्छी कविता की रचना कर ही ली।
    सुंदर भावोद्गार।

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  38. बंजर हो चली है
    ह्रदय की भूमि....
    सूखे रक्त से
    शब्दों की सरिता कैसे बहाऊं???
    कोलाहल है भीतर....
    ऐसे में भाव कैसे उपजाऊं .......

    कोमल भावों का प्रवाह सीधे दिल से हुआ लगता है आपकी इस प्रस्तुति में. बहुत सुंदर.

    बधाई और शुभकामनायें.

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  39. मन की पीड़ा को शब्द दिये हो जैसे ... बहुत गहरी अभिव्यक्ति ..

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  40. आपकी तलाश जल्‍द पूरी हो।

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  41. hello Anu !!
    thanks 4 visiting me and giving me the opportunity to land here :)

    Lovely blog u have..
    Awesome expressions in above lines :)
    loved it..

    Wish to c more :)

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  42. सुन्दर अभाव-भाव...जब शब्द न मिले तो यह आगाज़ है तो शब्द मिलने पर क्या होगा....

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  43. अन्दर जितने भाव होते हैं...उतने शब्द नहीं मिलते...

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  44. Gr8 expressions...keep writing

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  45. लो भैया , ये अजीब है , कविता नहीं लिख पा रहीं हैं इसी पर कविता लिख डाली , :)

    सादर
    -आकाश

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  46. अनु बस यही मन कर रहा है कि ,तुम्हारे सर पर स्नेह दे कर सारी पीड़ा हर लूँ ....

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