क्या है मेरे पास
सिवा मेरे सपनों के...
सिवा मेरे सपनों के...
बिछा दिये हैं मैंने,
सभी तुम्हारे क़दमों में
सभी तुम्हारे क़दमों में
ज़रा आहिस्ता चलना
कहीं कुचल ना जाएँ..
कहीं कुचल ना जाएँ..
ये प्यार का पागलपन ही तो है जो इतनी हिम्मत देता है कि आप अपने अनमोल सपने किसी के क़दमों में डाल देते हैं, फिर इन्तेज़ार करते हैं कि वो उन्हें उठा कर आपकी पलकों पर सजा दे या यूँ ही गुजर जाये उन पर से, मानों कुछ हुआ ही न हो........
फिर चाहे आप बटोरते रहें किरचें सारी उम्र.........बेमकसद............क्यूंकि उन किरचों को जोड़ कर सपने दोबारा बनाने का हौसला कहाँ बचता है!!! बस कर बैठते हैं अपनी उंगलियां लहुलुहान......और फिर उस खून से लिखी जाती हैं डायरियां..........रंगे जाते हैं पन्ने........शायद यूँ ही होता है नज्मो/ग़ज़लों/कविताओं का सृजन.............
रोशनाई से लिखी इबारतों में कहाँ वो कशिश होती है...........
रोशनाई से लिखी इबारतों में कहाँ वो कशिश होती है.....मन की गहराई तक उतरी यह बात ....
ReplyDeletesach kaha.
ReplyDeletemera email id : Anamika7577@gmail.com
सपने उतने ही देखें
ReplyDeleteजो अपनी छोटी आँखों में समां जाएँ,
किरचें बनकर न बिखर जाएँ !
apne sapno ko aise hi kisi anjaan k liye kurbaan kar dena bhi bevkoofi hai....
ReplyDeleteहाथ की भी छाप है, दो लोग बैठे हैं ।
ReplyDeleteध्यान दे देखो जरा, किस कद्र ऐंठे हैं ।
खून क्यूँ बहता, कर कद्र सपनों की,
आती हुई दीखे, पदचाप अपनों की ।।
"वियोगी होगा पहला कवि , आह से उपजा होगा गान".. बढ़िया चिंतन
ReplyDeleteभावुक कर दिया..
ReplyDeleteजो सपने देखने का हौसला रखते हैं , वे हर बार सपना देखते हैं .... लहुलुहान सपनों से ही आदर्श इमारत बनती है
ReplyDeletewaah anu ji ghayal hi jane aghyal ki gati ............jamane gujarne ke baad bhi
ReplyDeleteashq na bahe .sapno ko hawa dete rahen .......gujara jamana vapis nahi aata , ///////.............:))))) man ko phir se ghayal kar diya
aah......
ReplyDeleteBahut Sundar
ReplyDeleteविना दर्द के जीना भी कोई जीना है..
ReplyDeleteक्या बात है.....
ReplyDeleteसादर
"क्या है मेरे पास .....................सिवा मेरे सपनों के.
ReplyDeleteबिछा दिये हैं मैंने, सभी तुम्हारे क़दमों में.....
ज़रा आहिस्ता चलना..कहीं कुचल ना जाएँ.."
क्या नाज़ुक अहसास हैं ! बहुत सुन्दर !
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ReplyDeletethanks reena.....i got ur compliment dear..by mistake the content has been removed..
Delete:-)
anu
भावमय करते शब्दों का संगम ... आभार ।
ReplyDeleteआप अपने अनमोल सपने किसी के क़दमों में डाल देते हैं, फिर इन्तेज़ार करते हैं कि वो उन्हें उठा कर आपकी पलकों पर सजा दे या यूँ ही गुजर जाये उन पर से, मानों कुछ हुआ ही न हो........
ReplyDeleteयही तो बात है..फिर बिखरे किरचें समेटने का क्या फायदा...
किरचों से लहूलुहान उँगलियाँ की पीड़ा का अहसास डायरी की दिशा में ले जाता है. शायद यही दिशा पीड़ा को कम करती महसूस होती है. सुंदर रचना.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट कल 22/3/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा - 826:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
शुक्रिया दिलबाग जी.
Deleteआभार आपका.
bhawpoorn.....sunder.
ReplyDeleteबस एक शब्द ... अद्भुत!!
ReplyDeleteजब होता है सपनों का खून
ReplyDeleteतब उससे कविता उभरती है..!
"स्वप्न" ? गीत हैं और कवि ?
ReplyDeleteघायल एक परिंदा है
नस नस में है रक्त विचरता
गीत तभी तो ज़िंदा है
ज़रा आहिस्ता चलना..कहीं कुचल ना जाएँ..
ReplyDeleteक्या बात है.... वाह!
भावनाओं का सागर आपकी लिखाई में झलकता है.... हर कविता सामने एक चित्र खड़ा कर देती है.... जीवन का...
ReplyDeleteबहुत भावुक रचना.....
pain is the part of life .sad but nicely said di
ReplyDeleteहम क्या बनाएँ बीती बातों का फ़साना
ReplyDeleteआखिर कब लौटा है कोई गुज़रा ज़माना...
पूरी पोस्ट की जान हैं ये पंक्तियाँ |
सादर
-आकाश
सपने की टूटी किरचें कब जुडती हैं ...
ReplyDeleteभावुक कर दिया इस रचना ने !
dard ko roop deti rachana ....lajavab..
ReplyDeletesundar bhaaw
ReplyDeleteशायद....सपने होते ही हैं....पलकों पर चुभने के लिए ! जो सच हो जाएँ...वो सपने कहाँ...
ReplyDeleteसही बात है गुज़रा हुआ ज़माना आता नहीं दोबारा... लेकिन ये भी सच है ना है सबसे मधुर वो गीत जिसे हम दर्द के सुर में गाते हैं...
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