कई प्रसिद्द आत्मकथाए पढ़ने के बाद ख़याल आया कि क्यूँ ना मैं भी आत्म कथा लिखूं.......क्या पता भाग्य में इसी तरह प्रसिद्ध होना लिखा हो.......... कोशिश करने में क्या हर्ज है.........मगर जब लिखने बैठी तो एहसास हुआ कि आसान नहीं है आत्मकथा लिखना क्योंकि आसान नहीं है सच कहना.......क्यूंकि सच की अकसर बड़ी कीमत चुकानी पडती है.......और कहीं ऐसा न हो कि मुझे महंगा पड़ जाये ये प्रसिद्धी का चस्का.........
सो ये विचार तो ताक पर रख दिया...और मन बनाया कहानी लिखने का......जो दरअसल मेरी ही कहानी थी मगर चूँकि कहानी थी इसलिए सत्यता की कोई गारंटी भी नहीं थी.......ना मेरी कोई नैतिक ज़िम्मेदारी ही बनती थी.....सो तय ये हुआ कि कहानी में जो हिस्सा हसीन होगा उसे सत्य मान लिया जाये.....और जो ऐसे-वैसे/अनैतिक/अभद्र/स्तरहीन से लगें, वे तो फिर कहानी का हिस्सा हैं ही...
अब कोई पाठक इसको पढ़े ही क्यूँ??? तो सोचिये कि आप कोई कथा पढ़ रहे हैं......जिसमे हर समय ये रहस्य बना रहे कि ये सच है या नहीं????और सभी मसाले तो होंगे ही..... कहिये पढेंगे ना????
बस अब समेटती हूँ अपनी डायरी के पन्ने और गढती हूँ एक कहानी.....कुछ खट्टी ,कुछ मीठी...कुछ सच्ची कुछ झूटी...
बस पढते जाइए आप!!!!!!
तुमसे मिली.......जुदा हुई.........भीड़ में भी मैं तनहा हुई...अब तुम्हारा ज़िक्र करूंगी अपनी कहानियों में.....बेनक़ाब कर दूँगी तुमको ज़माने में.....-अनु
तुमसे मिली.......जुदा हुई.........भीड़ में भी मैं तनहा हुई...अब तुम्हारा ज़िक्र करूंगी अपनी कहानियों में.....बेनक़ाब कर दूँगी तुमको ज़माने में.....
ReplyDeletewaah kya baat hai ,
aap bhi likhiye apni atm katha, kahani to hi gyi............hume intejar rahega
वाह... हौसला बना रहे
ReplyDeleteजब आग जलेगी... तो धुआँ उठेगा ही...?
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर
बहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
वाह
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया बात कही है आपने..
सुन्दर प्रस्तुति..
:-)
होली है होलो हुलस, हाजिर हफ्ता-हाट ।
ReplyDeleteचर्चित चर्चा-मंच पर, रविकर जोहे बाट ।
रविवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
शुक्रिया रविकर जी...
Deleteआपका बहुत आभार....
अच्छा है,
ReplyDeleteजरूर कहानी लिखिए।
मगर जब लिखने बैठी तो एहसास हुआ कि आसान नहीं है आत्मकथा लिखना क्योंकि आसान नहीं है सच कहना......सच जो काम जितना सरल दिखता है वह करने पर पता चलता है की वह कितना सरल है..
ReplyDelete...बढ़िया प्रस्तुति
कथा लिखने के भूमिका अच्छी लगी।
ReplyDeleteसभी पाठकों/रचनाकारों का शुक्रिया...कि मेरा पागलपन भी आपने सराहा...
ReplyDeleteह्रदय से आभार...
बहुत अच्छी भूमिका....कहानी भी जीवन से कहाँ अलग हो पाती है...इंतज़ार है इस कहानी का
ReplyDeleteतुमसे मिली.......जुदा हुई.........भीड़ में भी मैं तनहा हुई...अब तुम्हारा ज़िक्र करूंगी अपनी कहानियों में.....बेनक़ाब कर दूँगी तुमको ज़माने में.....
ReplyDeleteआत्म कथा लिखने से अच्छा है दुसरे को ही बेनकाब करना..
पहली बार आप के ब्लॉग में आया हूँ पढ़ कर बहुत सुख की अनुभूति हुई..
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत आभार!
होलीकोत्सव की शुभकामनाएँ।
behtreen suruaat...jajba bana rahe...
ReplyDeleteसच है अपने सत्य को कभी कभी खुद झेलना भी मुश्किल हो जाता है ... तो आत्मकथा लिखना आसान नहीं है ...
ReplyDeleteवाह ...अनुपम भाव लिए बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteहौसला कम न हो ... आत्मकथा लिखना सच ही सहज नहीं .... आज कल मैत्रेयी पुष्पा की आत्मकथा पढ़ रही हूँ .... मनु भण्डारी की कुछ दिन पूर्व पढ़ी थी ... नारियों की एक सी स्थिति क्यों होती है ये सोचती रह जाती हूँ ...
ReplyDeleteसही कहा आपने.... महिलाएं कितनी ही उचाइयां छू ले..... पर उनकी मनःस्तिथि एकसमान ही होती है......
Deleteयह द्रश्य बदल तो रहा है..... पर उसके लिए लोगों की सोच बदलना बहुत जरुरी है.....
इस पुरुष प्रधान समाज में नारी की एक पहचान और सम्मान बहुत जरुरी है.....
लिख डालिए कथा सत्य हो या कहानी , अभिव्यक्ति तो आपकी चेरी सदृश प्रतीत होती है
ReplyDeleteशुक्रिया :-)
Deleteक्या कहने अनु जी ....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...
शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चाआज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
ReplyDeleteसूचनार्थ
बेनकाब कर दूँगी , तुमको जमाने में |
ReplyDeleteगजब दुश्मनी है भाई |
:)
सादर
-आकाश