इंसान अपनी परेशानियों से कितना घबराया रहता है........जबकि जानता है कि यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं............और जो होना है उस पर कोई वश नहीं...........जो मिलना है उससे कोई वंचित नहीं रहता.......फिर भी परेशां ???????
अपनी डायरी के पन्ने पलटते हुए अक्सर मैंने पाया कि कई दिन मैंने उन परेशानियों की फिक्र करते गुज़ारे जो कभी आयीं ही नहीं........................
अपनी डायरी के पन्ने पलटते हुए अक्सर मैंने पाया कि कई दिन मैंने उन परेशानियों की फिक्र करते गुज़ारे जो कभी आयीं ही नहीं........................
अब तक जैसे कटता आया,
आगे भी कट जाएगा
जो चलता है...चलते-चलते
एक रोज गुजर ही जायेगा...
लोभी मन की अभिलाषायें
मन गढ़ ढेरों जिज्ञासाएँ
इन उलझी को सुलझाने में
भव-सागर तर जाएगा...
फूलों की हो सेज पे चलना
या काँटों से दामन छिलना
जो लिखा हुआ हो भाग में तेरे
मिलता है,मिल जाएगा...
हर दिन सूरज के संग उगता
दिन भर धूप की आग में तपता
सूरज के संग इक दिन तू भी
अस्ताचल को जाएगा.....
जो चलता है...चलते चलते
इक दिन तो गुजर ही जाएगा...
बस माटी में मिल जाएगा ...
अनु ..
आगे भी कट जाएगा
जो चलता है...चलते-चलते
एक रोज गुजर ही जायेगा...
लोभी मन की अभिलाषायें
मन गढ़ ढेरों जिज्ञासाएँ
इन उलझी को सुलझाने में
भव-सागर तर जाएगा...
फूलों की हो सेज पे चलना
या काँटों से दामन छिलना
जो लिखा हुआ हो भाग में तेरे
मिलता है,मिल जाएगा...
हर दिन सूरज के संग उगता
दिन भर धूप की आग में तपता
सूरज के संग इक दिन तू भी
अस्ताचल को जाएगा.....
जो चलता है...चलते चलते
इक दिन तो गुजर ही जाएगा...
बस माटी में मिल जाएगा ...
अनु ..
हर दिन सूरज के संग उगता
ReplyDeleteदिन भर धूप की आग में तपता
सूरज के संग इक दिन तू भी
अस्ताचल को जाएगा.....
गहन भाव लिए ...गहरी कविता ...
शुभकामनायें
जो चलता है...चलते चलते
ReplyDeleteइक दिन तो गुजर ही जाएगा...
बस माटी में मिल जाएगा
इन पंक्तियों को पढ़ कर मुकेश जी का गाना याद आ गया--"एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल...."
बेहतरीन रचना।
सादर
बहुत खूबसूरत रचना |
ReplyDeleteअज्ञात आगत का भय और परिवेशीय घटनाएँ यूँ ही परेशान करती हैं , फिर वक़्त के साथ कई बार अपनी सोच पर हम खुद ही हँसते हैं
ReplyDeleteवक़्त हमेशा से हर चोट का मरहम रहा है...लेकिन वही वक़्त उलझनों और परेशानियों का बायस भी है....शायद ऐसे में नियति की समझ ही हमें उबार सकती है ....जो जो जब जब होना है , तो तो तब तब होवेगा
ReplyDeletewell analysed!
ReplyDeleteRegards,
यही विडम्बना है ...इंसान भूत और भविष्य की बातें सोच कर उलझता रहता है ...वर्तमान में जो है उसे नहीं भोगता .... हर अच्छा बुरा वक़्त बीत ही जाता है ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब।
ReplyDeleteहोनी तो होकर रहे
ReplyDeleteअनहोनी न होए
बस!हर दिन यही सोच कर कटता जाता है...
जो चलता है...चलते चलते
ReplyDeleteइक दिन तो गुजर ही जाएगा...
बस माटी में मिल जाएगा ...bahut khoob...
आपका बहुत शुक्रिया यशवंत...
ReplyDeleteआप सभी को हमारी ओर से ढेरों शुभकामनाएं....
अच्छा है जितनी जल्दी इस नश्वरता को हम समझ लें !
ReplyDeleteजी हाँ ....यही सत्य है ..सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteधूप छांव तो होगी ही पथ में / हम अपने कर्म पथ पर अग्रसर हो . जीवन की क्षणभंगुरता तो अटल सत्य है .
ReplyDeletekai baar bura vaKt chakar bhi sath nahi chodta
ReplyDelete्सफलता का सारा सार चलते रहने में छिपा है। कुछ पंक्तियां समर्पित हैं
ReplyDeleteहो इरादों में हक़ीक़त,
हौसलों में ज़लज़ला।
आसमां झुककर तुम्हारे पांव तक आ जायेगा,
देख लेना क़िनारा, नाव तक आ जायेगा।
इन्हीं बातों को ओशो सिद्धार्थ इन शब्दों में कहते हैं-
ReplyDeleteअपने होने का लेते निरन्तर मज़ा
राज़ी रहते हैं जो भी हो उसकी रज़ा
yu hi chlta rhe ye jeevan chakr....bahut hi badhiya...
ReplyDeletejeevan ki gati chalne me hai jo vartmaan hai use khoob jio.
ReplyDeletegahan bhaav samete hue hai prastuti,bahut achchi.
रचना अच्छी है लेकिन समझ नहीं पा रहा हूं कि इसके अंदर का स्वर भाग्यवाद का है या कर्मयोग का.
ReplyDeleteजीवन भाग्य और कर्म दोनों के सामंजस्य से चलता है........
Deleteयाने अपना कर्म तो आपको करना ही है....बाकी ईश्वर पर छोड़ दें....चिंतामुक्त जीवन जीने में ही सार्थकता है..
सादर.
बहुत खुबसूरत रचना..नव संवत्सर की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteलोभी मन की अभिलाषायें
ReplyDeleteमन गढ़ ढेरों जिज्ञासाएँ
इन उलझी को सुलझाने में
भव-सागर तर जाएगा...
....इसी तरह जीवन कट जाता है...बहुत सुंदर प्रस्तुति..
इन उलझी को सुलझाने में
ReplyDeleteभव-सागर तर जाएगा...
बहुत सुंदर प्रस्तुति..
खुबसूरत रचना
ReplyDeleteनव संवत्सर की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ मेरा मार्ग दर्शन करे
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
इस जीवन का एक अनमोल मंत्र... सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteताकत
आल्हा के दीवानगी
बहुत सुन्दर रचना है।
ReplyDelete" इन उलझी को सुलझाने में
ReplyDeleteभव-सागर तर जाएगा... "
बहुत उम्दा पंक्तियाँ अनुजी, शुभकामनाएं.
सादर
very good.....
ReplyDeleteआपकी तुकबंदी में लिखीं और रचनाओं का इन्तेजार रहेगा , ये भी बहुत अच्छी हैं |
ReplyDeleteसादर
-आकाश