मेरी डायरी के पन्ने नीम की डालियाँ हो गए है तुम्हारी वजह से..........इतनी कड़वाहट आखिर क्यूँ भर दी?? नन्हा सा प्यार का पौधा रोपा था मैंने.........तब कहाँ जानती थी कि ये नीम का है.........पीला रसीला फल खाया तब जाकर एहसास हुआ.........काश कि कोंपलें ही चख लेती......और तभी जान जाती तो शायद जड़ें गहरी होने से पहले ही उखाड देती........
मुझे ऐतबार नहीं रहा तुम्हारा.
तुम्हारी वजह से
अब नहीं रहा ऐतबार
किसी का भी...................
अब अपनी चाहत का
कोई हिस्सा-बाँट नहीं करती.
करती हूँ मोहब्ब्त खुदी से
खुद से ही रूठा करती हूँ
खुद के मनाने से झट
मान भी जाया करती हूँ मैं.
गले लगाती हूँ खुद को ही......
किसी गैर को ये हक़ मैं दे नहीं सकती.
अब ऐतबार जो नहीं रहा
किसी पर भी,
तुम्हारी वजह से.................
-अनु
मुझे ऐतबार नहीं रहा तुम्हारा.
तुम्हारी वजह से
अब नहीं रहा ऐतबार
किसी का भी...................
अब अपनी चाहत का
कोई हिस्सा-बाँट नहीं करती.
करती हूँ मोहब्ब्त खुदी से
खुद से ही रूठा करती हूँ
खुद के मनाने से झट
मान भी जाया करती हूँ मैं.
गले लगाती हूँ खुद को ही......
किसी गैर को ये हक़ मैं दे नहीं सकती.
अब ऐतबार जो नहीं रहा
किसी पर भी,
तुम्हारी वजह से.................
-अनु
उड़ी मुहब्बत की हँसी, गई हसीना रूठ ।
ReplyDeleteकरती पहली मर्तबा, निश्चय विकट अनूठ ।
निश्चय विकट अनूठ, दर्द यह अब न सहना ।
खुद से करना नेह, नहीं भावों में बहना ।
होकर के निश्चिन्त, गुजारे अपना हर पल ।
खींची लक्ष्मण रेख, करे अब रावण क्या छल ??
किसी गैर को ये हक़ मैं दे नहीं सकती.
ReplyDeleteअब ऐतबार जो नहीं रहा
किसी पर भी,
तुम्हारी वजह से.................waah anu jee bahut khoob likha hai .
करती हूँ मोहब्ब्त खुदी से
ReplyDeleteखुद से ही रूठा करती हूँ
खुद के मनाने से झट
मान भी जाया करती हूँ मैं.
गले लगाती हूँ खुद को ही......
बहुत ही सुन्दर कृति ......
एक दिन हम ये सब सीख ही लेते हैं.....
किसी गैर को ये हक़ मैं दे नहीं सकती.
ReplyDeleteअब ऐतबार जो नहीं रहा
किसी पर भी,
तुम्हारी वजह से.................
सुंदर एहसास .......
अनुपम भाव संयोजन के साथ उत्कृष्ट लेखन ।
ReplyDeleteयादेँ ,,ये डायरी के पन्ने !इनको नीम के पत्तों ने दीमक से बचाया है ...
ReplyDeleteये हमेशा जवां रहेगे और साथ देंगे ...दर्द और खुशी का संगम हैं ये
यादेँ!
शुभकामनाएँ!
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......
ReplyDeleteकिसी गैर को ये हक़ मैं दे नहीं सकती.
अब ऐतबार जो नहीं रहा
किसी पर भी,
तुम्हारी वजह से.................
MY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
एतबार पे तो एतबार रखिये ,खुद से तकरार आँखें चार करिए ,
ReplyDeleteआईनों पे एतबार रखिये .
भावो का सुन्दर अहसास..
ReplyDeleteवाह!.....बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
किसी गैर को ये हक़ मैं दे नहीं सकती.
ReplyDeleteअब ऐतबार जो नहीं रहा
किसी पर भी,
तुम्हारी वजह से.................
ऐसा होता है अक्सर ...जिसे बुत मानो, वह निकलता है पत्थर !
किसी गैर को ये हक़ मैं दे नहीं सकती.
ReplyDeleteअब ऐतबार जो नहीं रहा
किसी पर भी,
तुम्हारी वजह से.................
ऐसा होता है अक्सर ...जिसे बुत मानो, वह निकलता है पत्थर !
अविश्वास की छाया के साथ मनुष्य खुद भी विभ्रम में जीता है .जटिल से एहसास को सुँदर शब्द दिये आपने
ReplyDeleteThe best way to love is to love yourself...
ReplyDeletekhudi se gila karo,
khudi se mila karo ,
pyar hai khushbu liye,
uss phool sa bas khila karo...
bahut achha Anu...likhti raho...
सारी समस्या चाहत का हिस्सा बंट जाने के गम से उपजी मालूम पड़ती है। प्रेम तो अपने को मिटाकर ही मिल पाता है।
ReplyDeleteकिसी गैर को ये हक़ मैं दे नहीं सकती.
ReplyDeleteअब ऐतबार जो नहीं रहा
किसी पर भी,
तुम्हारी वजह से.................
BAS YAHI AITBAR HAI.
खुबसूरत रचना...
ReplyDeleteसुंदर भाव अभिव्यक्ति...........
ReplyDeleteएतबार नहीं रहता तो किसी पर भी भरोसा करने का मन नहीं होता ...बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteतुम्हें चाहने के बाद
ReplyDeleteतुम से
ऐतबार से
प्यार से
भरोसा उठ गया है,
सबक यूँ मिल गया है !!
इस टीप पर फेसबुक में काफ़ी विमर्श हुआ है...!
Deletehttp://www.facebook.com/santosh.trivedi/posts/3472148288206?notif_t=like
रची उत्कृष्ट |
ReplyDeleteचर्चा मंच की दृष्ट --
पलटो पृष्ट ||
बुधवारीय चर्चामंच
charchamanch.blogspot.com
कलात्मक रचना मनभावन व प्रभावशाली है बधाईयाँ जी /
ReplyDeleteकिसी गैर को ये हक़ मैं दे नहीं सकती
ReplyDeleteअब ऐतबार जो नहीं रहा
किसी पर भी,
तुम्हारी वजह से...........
....बहुत भावपूर्ण आभिव्यक्ति...
किसी गैर को ये हक़ मैं दे नहीं सकती
ReplyDeleteअब ऐतबार जो नहीं रहा
किसी पर भी,
तुम्हारी वजह से...........
किसी गैर को ये हक़ मैं दे नहीं सकती.
ReplyDeleteअब ऐतबार जो नहीं रहा
किसी पर भी,
तुम्हारी वजह से................. :( ;(
Very sad :( :(
समय रहते सब जान जाएँ तो मुश्किलें ही न आयें.... ऐसा होता कहाँ है...? सुंदर लिखा
ReplyDelete...very beautiful:)
ReplyDeletebahut khoob anu ji ......
ReplyDeleteउसका छोड़कर जाना , कसका तो बहुत ,
ReplyDeleteपर जिंदगी उससे पहले भी थी ,
उसके बाद भी है | :)
सदर
-आकाश