क्यूँ तेज भाग रहे हो तुम ??
इतनी रफ्तार क्यूँ?
हार का भय है............
गिरने का भय नहीं ???
कितना बटोर रहे हो तुम ??
इतना लोभ क्यूँ?
कमी का भय है..........
पाकर खोने का नहीं????
कितना बड़ा बनना है तुम्हें ??
इतनी तृष्णा क्यूँ?
विपन्नता का भय है...........
नीचता का नहीं ???
कितना ऊंचा उठना है तुम्हें ??
इतनी उड़ान क्यूँ?
ज़मीन से भय है...........
मिट्टी में मिल जाने का नहीं???
कितना आगे जाना है तुम्हें??
इतनी प्रतिस्पर्धा क्यूँ?
पीछे रह जाने का भय है.......
खुद से बिछड़ जाने का नहीं????
बस करो !!!! ठहरो ज़रा !!!!! थोडा जी भी लो...............
इतनी रफ्तार क्यूँ?
हार का भय है............
गिरने का भय नहीं ???
कितना बटोर रहे हो तुम ??
इतना लोभ क्यूँ?
कमी का भय है..........
पाकर खोने का नहीं????
कितना बड़ा बनना है तुम्हें ??
इतनी तृष्णा क्यूँ?
विपन्नता का भय है...........
नीचता का नहीं ???
कितना ऊंचा उठना है तुम्हें ??
इतनी उड़ान क्यूँ?
ज़मीन से भय है...........
मिट्टी में मिल जाने का नहीं???
कितना आगे जाना है तुम्हें??
इतनी प्रतिस्पर्धा क्यूँ?
पीछे रह जाने का भय है.......
खुद से बिछड़ जाने का नहीं????
बस करो !!!! ठहरो ज़रा !!!!! थोडा जी भी लो...............
आगे आने के लिए प्रतिस्पर्धा जरूरी है,...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, बेहतरीन प्रस्तुति.......
MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...
आपकी इस कविता सहित पाँच रचनाएं देख लीं । लगा कि कुछ उम्दा पढने मिला । जो बहुत कम मिलता है ।
ReplyDeleteआपकी इस कविता सहित पाँच रचनाएं देख लीं । लगा कि कुछ उम्दा पढने मिला । जो बहुत कम मिलता है ।
ReplyDeleteकई सटीक सवाल छोड़े हैं आपने अपनी रचना के ज़रिये.पढ़कर अच्छा लगा.लिखते रहें यूँ ही.
ReplyDeleteहार का भय है............
ReplyDeleteगिरने का भय नहीं ???
वाह कितनी गहरी बात कह दी ....
अच्छा है हम चादर देख कर पैर फैलाएं ....
बहुत खूब ....
बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteआपका ब्लॉग फोल्लो कर रही हूँ..
kalamdaan.blogspot.in
अब आगे से नहीं दौडूंगा,
ReplyDeleteमगर इस मन का क्या करूँ जो मुझसे आगे-आगे चलता है ??
भागमभाग मेन आज सच ही कोई जी नहीं रहा बस दौड़ रहा है ...सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteजीवन के कई अनसुलझे सवाल प्रभावी तरीके से रखें हैं ...
ReplyDeleteजीवन की सच्चाई ...
बस खुद से खुद का मिल जाने का भय ........क्यूँ कि हम खुद को सबसे अच्छे से समझते हैं और वही भय ..हमको जीने नहीं देता ....
ReplyDeleteआप तो सचमुच आप ही हैं.
ReplyDelete'Vidya' या अनु क्या फर्क पड़ता है.
आपका लेखन पढकर मन मुग्ध हो जाता है.
भगवद्गीता अनुसार सर्वप्रथम दैवी
सम्पदा 'अभयं' ही है.जैसे जैसे
स्वयं की सच्ची जानकारी होती जाती है,
यह सम्पदा अर्जित होती जाती है.
आपके अनुपम लेखन के लिए हार्दिक आभार जी.
behtreen post!
ReplyDeleteकमी का भय है..........
ReplyDeleteपाकर खोने का नहीं????
वाह ! बेहतरीन रचना .
सादर आमंत्रित हैं --> भावाभिव्यक्ति
जीवन की विसंगतियों पर सजग दृष्टि डाईरेक्ट दिल से
ReplyDeletekya baat hai......
ReplyDeleteजीवन की आपा-धापी में
ReplyDeleteकब वक्त मिला की सोच सकूँ
जो किया कहा माना मैंने
उसमें क्या भला-बुरा...
रेस लगी है...और थकना मना है...रिवायीटल...लें...युवराज बीमार हो तो सलमान से...
आज की भागदौड़ भरे जीवन का सार्थक चित्रण. ज्यादा पाने की ख्वाहिश में हम तमाम छोटी-छोटी खुशियों को नज़र-अंदाज़ करते जा रहे हैं. सुन्दर अभिव्यक्ति, शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteवास्तव में जीवन की इस आपाधापी में हम लोग स्वयं से अपरिचित हो गए हैं ....
ReplyDeleteबाद अरसे के जो आइना देखा तो हुआ महसूस
यह कौन है ...यह मैं हूँ ?..यह मैं तो नहीं
सुन्दर रचना!
ReplyDeleteसत्य कहा.. थोड़ा जीने के लिए ठहरना तो ज़रूरी है ही! सच ही कहा है किसी ने-
...to get the most out of life, paddle slowly!
अच्छी कविता है। हम सब का जीवन ऐसी ही मूर्च्छा में बीत रहा है। जब होश आएगा,देर इतनी हो चुकी होगी कि वह भी बेमानी ही होगा।
ReplyDeleteजीवन की आपाधापी में मनुष्य सब कुछ तो पा लेता है पर
ReplyDeleteकही-न -कही वो खुद से, जीवन के कुछ अमूल्य पलों से भी दूर हो जाता है..
एकदम सटीक और बेहतरीन रचना.
बढ़िया प्रस्तुति एकदम सटीक
ReplyDeleteआज के समाज में किसी भी सूरत में ऊपर बढ़ने की अदम्य इच्छा पर आपकी ये कविता बड़े सार्थक प्रश्न करती है। अच्छा लिखा है आपने !
ReplyDeleteशायद आपने 'पियूष मिश्रा' जी का नाम सुना होगा ,
ReplyDeleteनहीं मेरे कोई रिश्तेदार नहीं है , रंगमंच और फिल्मों के बहुत बड़े कलाकार हैं |
gangs of wasseypur में मनोज बाजपेई के चचा का किरदार किया है , rockstar में ढींगरा का |
इनके अभिनय से ज्यादा खूबसूरत होते हैं इनके लिखे और गाये गीतों के बोल (आरम्भ है प्रचंड), आप गुलाल फिल्म के गाने सुनियेगा , सब एक से एक खूबसूरत , उसमे एक गाना विशेष रूप से सुनियेगा -
"ओ रात के मुसाफिर ,
तू भागना संभल के ,
पोटली में तेरी हो
आग न संभल के |"
सादर
-आकाश