खामोश रहती हूँ
पथराई लगती होंगी आँखें
मत समझना कि खफा हूँ
बस चुप हूँ मैं .....
क्योंकि कुछ कहा तो रुसवाई तुम्हारी होगी~~~~~
हँसती हूँ,खिलखिलाती हूँ
खोखलापन लगता होगा
मत करो सवाल, मान लो
बस खुश हूँ मैं .....
क्योंकि उदास रहूंगी तब भी होंगे सवाल कई~~~~~
तुम चले गए तो क्या
अकेली नहीं हूँ मैं !
कोई बेशक समझे, तुम नहीं हो-
अब "तुम" हूँ मैं.....
क्योंकि अकेले कब तक जिया जा सकता है~~~~~
यादों के दरीचों से अब
आती नहीं रौशनी या आवाज़
साया भी नहीं दिखता
वहीँ गुम हूँ मैं.....
क्योंकि भीड़ में यादें भी साथ नहीं रहतीं~~~~~
-अनु
बहुत खूबसूरत नज़्म ... पढ़ कर अपना लिखा ही एक शेर याद आ गया ---
ReplyDeleteहँस कर गुज़ार दो जो वक़्त ज़िंदगी का
असल में उसी को जीना कहते हैं
मय मैखाने में जा कर पी तो क्या पी
जो अश्कों को पी ले उसी को पीना कहते हैं ...
कोई बेशक समझे, तुम नहीं हो-
ReplyDeleteअब "तुम" हूँ मैं.....
क्योंकि अकेले कब तक जिया जा सकता है~~~~
भावपूर्ण सुंदर रचना,...
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
सबसे बड़ी बात यही है,
ReplyDeleteकि तुमने हमको मिला लिया अपने में !
भीड़ यों तो बुद्धि कुंद करती है,यहां उसका सकारात्मक प्रयोग सराहनीय है। प्रेम का उत्स वहीं है जहां प्रेमी और प्रेमिका भी न रह जाएं। रह जाए तो बस प्रेम।
ReplyDeleteकोमल ...खूबसूरत उद्गार ...मर्म तक पहुँच रहे है ....
ReplyDeleteसुंदर रचना ....
सुंदर कविता अनु जी.. भावों से भरी
ReplyDeletebahut sunder aur bhawpoorn likhti hain aap.....
ReplyDeleteमत समझना कि खफा हूँ
ReplyDeleteबस चुप हूँ मैं .....
क्योंकि कुछ कहा तो रुसवाई तुम्हारी होगी~~~~
अनुपम भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट लेखन ...आभार ।
कविता में भाव पक्ष की सशक्तता आह्लादित करती है . सहज सरस लेखनी . आभार .
ReplyDeleteखामोश रहती हूँ
ReplyDeleteपथराई लगती होंगी आँखें
मत समझना कि खफा हूँ
बस चुप हूँ मैं .....
क्योंकि कुछ कहा तो रुसवाई तुम्हारी होगी....
बेवफाई और रुसवाई से परे संजीदा और खूबसूरत रचना...
सादर....!!
बहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो से भरी सुन्दर रचना..बातो ही बातो में हाले गम भी सुना दिया अनु जी !बहुत खूब..
ReplyDeleteकाफी समय से अस्वस्थ रहने के कारण मैं आप लोगो से रू-बरू नही होसकी माफी चाहूँगी..इस बीच आप ने मुझे याद किया ,मुझे बहुत अच्छा लगा...आभार..
बहुत सुन्दर तराशा है शब्दों को आपने अनु जी
ReplyDeleteयादों के दरीचों से अब
ReplyDeleteआती नहीं रौशनी या आवाज़
साया भी नहीं दिखता
वहीँ गुम हूँ मैं.....
क्योंकि भीड़ में यादें भी साथ नहीं रहतीं
गजब की पंक्तियाँ!
सादर
bahut khoob anu
ReplyDeletenice poem
यादों के दरीचों से अब
ReplyDeleteआती नहीं रौशनी या आवाज़
साया भी नहीं दिखता
वहीँ गुम हूँ मैं.....
क्योंकि भीड़ में यादें भी साथ नहीं रहतीं~~~~~
ek had ke baad sab kuchh thahar jaata hai yaa yoon kahe beasar sa ho jaata hai ,bemisaal
बहुत बहुत शुक्रिया यशवंत...
ReplyDeleteदिल को छू जाने वाली ये रचना.... मनन की गहराईयों को टटोल रही है...
ReplyDeletewaah kya khoob likha hai anu jee very touching.
ReplyDeleteबहुत ही नाजुक ,,सुन्दर,भाव अभिव्यक्ति...
ReplyDeletebehtaer rachna..
ReplyDeleteकोई बेखो गई पूर्णशक समझे, तुम नहीं हो-
ReplyDeleteअब "तुम" हूँ मैं.....
मैं की मय को भूल कर, तुम में खो गई पूर्ण
तुम भी हो गये पूर्ण अब, मैं भी हो गई पूर्ण.
सुंदर भाव, वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
अब "तुम" हूँ मैं.....
ReplyDeleteक्योंकि अकेले कब तक जिया जा सकता है~~~~~
बहुत खूब..!
यादों के दरीचों से अब
ReplyDeleteआती नहीं रौशनी या आवाज़
साया भी नहीं दिखता
वहीँ गुम हूँ मैं.....
क्योंकि भीड़ में यादें भी साथ नहीं रहतीं~~~~~
bahutu khoob
rachana
यादों के दरीचों से अब
ReplyDeleteआती नहीं रौशनी या आवाज़
साया भी नहीं दिखता
वहीँ गुम हूँ मैं.....
क्योंकि भीड़ में यादें भी साथ नहीं रहतीं~~~~~
अच्छी अभिव्यंजना .दिल से आवाज़ दो. दरीचा बे सदा कोई नहीं है .
बेशक वफादारी में कोई कमी नहीं है .यही बारहा एक राष्ट्रीय रोबोट बोले है :.'आजमा के देख लो.'
ReplyDeleteबस चुप हूँ मैं .....
ReplyDeleteक्योंकि कुछ कहा तो रुसवाई तुम्हारी होगी~~~~~
...एक ऐसा दर्द जो साझा भी नहीं किया जा सकता ....मर्म को छूती रचना !
अब "तुम" हूँ मैं.....
ReplyDeleteक्योंकि अकेले कब तक जिया जा सकता है...
दिल की छूती हुई अभिवयक्ति .
बहुत खूब
Anu Ji
ReplyDeleteBeautiful poem well expressed. Thanks for visiting my blog and leaving nice comments.
Warm Regards
खामोश रहती हूँ
ReplyDeleteपथराई लगती होंगी आँखें
मत समझना कि खफा हूँ
बस चुप हूँ मैं .....
क्योंकि कुछ कहा तो रुसवाई तुम्हारी होगी~~~
..bahut badiya ..kabhi kabhi chup rahne mein hi sabki bhalai nihit rahti hai..
sundar prastuti..
सुन्दर.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
यादों के दरीचों से अब
ReplyDeleteआती नहीं रौशनी या आवाज़
साया भी नहीं दिखता
वहीँ गुम हूँ मैं.....
क्योंकि भीड़ में यादें भी साथ नहीं रहतीं~~~~~
....बहुत भावमयी प्रस्तुति...
बेहद खूबसूरत एवं भावपूर्ण रचना ! मन में एक टीस सी जगा गयी !
ReplyDeletemasha-allah Anu ji you write so beautiful
ReplyDeleteपोस्ट के साथ लगाई गयी फोटो बहुत सुन्दर है |
ReplyDelete:)
सादर
आकाश
bahut achha Likhti hai , Aap.. Badhai
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