इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Monday, March 19, 2012

यात्रा...

दिन भर की 
भाग दौड के बाद
घर लौटा .... 

तकरीबन
सब कुछ

व्यवस्थित सा था...
रात  बेहद सर्द थी 

मगर
बिस्तर नर्म
और कमरा गर्म था.....
फिर भी
सारी रात
करवटों में गुज़री
जाने क्यूँ
नींद नहीं आई
शायद यात्रा की 


थकन ज्यादा थी...

माँ को बहुत दूर
वृद्धाश्रम
जो छोड़ आया था....

43 comments:

  1. थकान होना लाज़मी है..

    ReplyDelete
  2. बेहद टचिंग...मानसिक थकान से ज्यादा...कोई थकान हो सकती है भला...

    ReplyDelete
  3. थकन ज्यादा थी...
    माँ को बहुत दूर
    वृद्धाश्रम
    जो छोड़ आया था....
    we should respect our mother and father
    we shuld not leave them alone .
    FIR KAHAN NEEND AAYEGI.

    ReplyDelete
  4. मार्मिक प्रस्तुति ... थकान महसूस तो की ॥वर्ण आज कल लोग उन्मुक्तता महसूस करते हैं ,,,जैसे कोई बोझ उतार दिया हो ... संवेदनशील रचना

    ReplyDelete
  5. आत्मीय रिश्तों की जमीन छोड रहा है । यों इन्सान खुद को तनाव और अकेलेपन की ओर मोड रहा है ।

    ReplyDelete
  6. उफ!पढ़कर मन भावुक हो गया...जिनकी गोद थकान मिटाती है उसी गोद को कहीं और छोड़ आने पर थकान ही होनी थी|

    ReplyDelete
  7. ...तब तो सुकून से सो जाना चाहिए था,
    क्योंकि आत्मा को तो पहले ही सुला चुके थे !

    ReplyDelete
  8. तीर्थ यात्रा न सही, सही यात्रा पीर ।

    काशी में क्या त्यागना, बूढ़ा व्यर्थ शरीर ।

    बूढा व्यर्थ शरीर, काम न किसी काज का ।

    बढे दवा का खर्च, शत्रू फल अनाज का ।

    मैया मथुरा माय, मरे मेहरा मेहरारू ।

    वृद्धाश्रम भेज, सनक सुत *साला दारू।।

    *घर / शाळा

    ReplyDelete
  9. इस यात्रा की थकन उतरना मुश्किल है....

    You (Mom) are always considered to be the weaker sex, but I understand your strength,for you bore me in your womb for 9-months and did almost all the daily routines and your man (father) only watched and helped a bit, which was his best. You bled, so that I may live. Your strength is what makes me breathe today, and makes me part of the stronger sex.

    the reason is clear.... the reason of his stress....

    ReplyDelete
    Replies
    1. yes, mental stress.........
      nicely expressed meenakshi..

      Delete
  10. थकन ज्यादा थी...
    माँ को बहुत दूर
    वृद्धाश्रम
    जो छोड़ आया था

    बहुत खूब

    MY RESENT POST...
    फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
    MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...

    ReplyDelete
  11. बेहतरीन मर्मस्पर्शी सुन्दर रचना.....

    ReplyDelete
  12. शुक्रिया रविकर जी.

    ReplyDelete
  13. पता नहीं कैसी लोग होते हैं जो माँ - बाप को बोझा समझ कर वृद्धाश्रम की राह दिखा देते हैं।
    कविता बहुत इस मानसिकता पर तीखा कटाक्ष करते हुए एक अच्छा संदेश देने मे सफल है।

    सादर

    ReplyDelete
  14. जग से चाहे भाग ले .... मन तो करवटें बदलता ही है

    ReplyDelete
  15. गहरे उतरते शब्‍द ...

    ReplyDelete
  16. बड़ी तीस उठी, तिलमिला गया हूँ. माता को वृद्धाश्रम छोड़ आने की बात पर.

    ReplyDelete
  17. गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ...
    हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
  18. भाग-दौड़ के बीच कुछ टुट-फुट न हो ये उम्मीद रखनी ही होगी...
    बहुत सुन्दर लिखा है...

    ReplyDelete
  19. अंतिम पंक्तियाँ पढते ही अंदर कहीं कुछ दरकता सा...दिल बैठता सा लगा.... ये थकान हर ऐसे बेटे को महसूस होनी चाहिए....

    ReplyDelete
  20. ओह... ये थकान कभी न मिटने वाली थकान है, चैन न लेने देगी उम्र भर... कटाक्ष है वर्तमान पीढ़ी के लिए...

    ReplyDelete
  21. सच है..जग से भाग ले कोई,मन से भाग न पाये..थकान तो जरूरी था..मर्मस्पर्शी सुन्दर रचना.....

    ReplyDelete
  22. आपके पोस्ट की चर्चा यहाँ पर है...!

    http://tetalaa.nukkadh.com/2012/03/blog-post_20.html

    ReplyDelete
  23. शुक्रिया संतोष जी.

    ReplyDelete
  24. भाग-दौड़ के बीच बहुत सुन्दर लिखा है......बेहतरीन प्रस्तुति...बेहतरीन कविता

    ReplyDelete
  25. थकान तो अवश्य होगी- तन, मन और अहसासों को. बहुत मार्मिक प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  26. मैं इसे फेस बुक पर शेयर कर रहा हूँ, आशा है आपको आपत्ति नहीं होगी..

    ReplyDelete
  27. मार्मिक और दिल पर सीधी चोट करती कविता। ऐसी यात्रा के बाद तो अंतिम यात्रा की तैयारी कर लेनी चाहिए।

    ReplyDelete
  28. ऐसे लोगों को रातभर क्या जीवन भर नींद न आएगी।

    ReplyDelete
  29. bahut hi gahari anubhuti ko apne bade hi sahaj dhang se prastut kr diya ....rachana dil ko chhoo gayee..bahut bahut abhar ke sath hi badhi bhi sweekaren.

    ReplyDelete
  30. ak anurodh..... blog pr apni tashvir lagaiye ...jis se parichay ka sankat na rahe.

    ReplyDelete
  31. aise bacho ko goli maar deni chahiye..

    ReplyDelete
  32. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
    Replies
    1. i'm really sorry sushila ji....
      by mistake your comment has been removed..
      :-(
      thanks anyways.

      Delete
  33. मन हो जब बेचैन तो कैसे नींद आये....!!

    ReplyDelete
  34. पढ़कर थकान सी महसूस हो रही है... या शायद दिल बैठा जा रहा है...
    एक कलियुगी सत्य को शिद्दत से रेखांकित कर दिया आपने....
    सादर।

    ReplyDelete
  35. बहुत ही मार्मिक. आज के कलियुग का एक कड़वा सच.

    ReplyDelete
  36. बिस्तर भले ही नरम और कमरा गर्म हो ,
    लेकिन वो गोद अब नहीं है :(

    बुरा मत मानियेगा , लेकिन बहुत देर बाद आपने प्यार में छोड़कर जाने के गम के सिवा कोई बात की , बहुत अच्छा लगा , ताजा सा |(क्षमा चाहता हूँ , लेकिन मुझे ऐसा ही लगा) :)

    सादर
    -आकाश

    ReplyDelete

नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...