इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Friday, March 9, 2012

रफ़्तार..............जीवन की.

क्यूँ  तेज भाग  रहे हो तुम ??
इतनी रफ्तार  क्यूँ?
हार का भय है............
गिरने का भय नहीं ???


कितना बटोर रहे हो तुम ??
इतना लोभ क्यूँ?
कमी का भय है..........
पाकर खोने का नहीं????


कितना बड़ा बनना है तुम्हें ??
इतनी तृष्णा क्यूँ?
विपन्नता  का भय है...........
नीचता का नहीं ???


कितना ऊंचा उठना है तुम्हें ??
इतनी उड़ान क्यूँ?
ज़मीन से भय है...........
मिट्टी में मिल जाने का  नहीं???


कितना आगे जाना है तुम्हें??
इतनी प्रतिस्पर्धा क्यूँ?
पीछे रह जाने का भय है.......
खुद से बिछड़ जाने का  नहीं????
बस करो !!!! ठहरो ज़रा !!!!! थोडा जी भी लो...............

24 comments:

  1. आगे आने के लिए प्रतिस्पर्धा जरूरी है,...
    बहुत सुंदर रचना, बेहतरीन प्रस्तुति.......

    MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...

    ReplyDelete
  2. आपकी इस कविता सहित पाँच रचनाएं देख लीं । लगा कि कुछ उम्दा पढने मिला । जो बहुत कम मिलता है ।

    ReplyDelete
  3. आपकी इस कविता सहित पाँच रचनाएं देख लीं । लगा कि कुछ उम्दा पढने मिला । जो बहुत कम मिलता है ।

    ReplyDelete
  4. कई सटीक सवाल छोड़े हैं आपने अपनी रचना के ज़रिये.पढ़कर अच्छा लगा.लिखते रहें यूँ ही.

    ReplyDelete
  5. हार का भय है............
    गिरने का भय नहीं ???

    वाह कितनी गहरी बात कह दी ....
    अच्छा है हम चादर देख कर पैर फैलाएं ....

    बहुत खूब ....

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर..
    आपका ब्लॉग फोल्लो कर रही हूँ..
    kalamdaan.blogspot.in

    ReplyDelete
  7. अब आगे से नहीं दौडूंगा,
    मगर इस मन का क्या करूँ जो मुझसे आगे-आगे चलता है ??

    ReplyDelete
  8. भागमभाग मेन आज सच ही कोई जी नहीं रहा बस दौड़ रहा है ...सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  9. जीवन के कई अनसुलझे सवाल प्रभावी तरीके से रखें हैं ...
    जीवन की सच्चाई ...

    ReplyDelete
  10. बस खुद से खुद का मिल जाने का भय ........क्यूँ कि हम खुद को सबसे अच्छे से समझते हैं और वही भय ..हमको जीने नहीं देता ....

    ReplyDelete
  11. आप तो सचमुच आप ही हैं.
    'Vidya' या अनु क्या फर्क पड़ता है.
    आपका लेखन पढकर मन मुग्ध हो जाता है.
    भगवद्गीता अनुसार सर्वप्रथम दैवी
    सम्पदा 'अभयं' ही है.जैसे जैसे
    स्वयं की सच्ची जानकारी होती जाती है,
    यह सम्पदा अर्जित होती जाती है.

    आपके अनुपम लेखन के लिए हार्दिक आभार जी.

    ReplyDelete
  12. कमी का भय है..........
    पाकर खोने का नहीं????

    वाह ! बेहतरीन रचना .


    सादर आमंत्रित हैं --> भावाभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  13. जीवन की विसंगतियों पर सजग दृष्टि डाईरेक्ट दिल से

    ReplyDelete
  14. जीवन की आपा-धापी में
    कब वक्त मिला की सोच सकूँ
    जो किया कहा माना मैंने
    उसमें क्या भला-बुरा...

    रेस लगी है...और थकना मना है...रिवायीटल...लें...युवराज बीमार हो तो सलमान से...

    ReplyDelete
  15. आज की भागदौड़ भरे जीवन का सार्थक चित्रण. ज्यादा पाने की ख्वाहिश में हम तमाम छोटी-छोटी खुशियों को नज़र-अंदाज़ करते जा रहे हैं. सुन्दर अभिव्यक्ति, शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  16. वास्तव में जीवन की इस आपाधापी में हम लोग स्वयं से अपरिचित हो गए हैं ....
    बाद अरसे के जो आइना देखा तो हुआ महसूस
    यह कौन है ...यह मैं हूँ ?..यह मैं तो नहीं

    ReplyDelete
  17. सुन्दर रचना!
    सत्य कहा.. थोड़ा जीने के लिए ठहरना तो ज़रूरी है ही! सच ही कहा है किसी ने-
    ...to get the most out of life, paddle slowly!

    ReplyDelete
  18. अच्छी कविता है। हम सब का जीवन ऐसी ही मूर्च्छा में बीत रहा है। जब होश आएगा,देर इतनी हो चुकी होगी कि वह भी बेमानी ही होगा।

    ReplyDelete
  19. जीवन की आपाधापी में मनुष्य सब कुछ तो पा लेता है पर
    कही-न -कही वो खुद से, जीवन के कुछ अमूल्य पलों से भी दूर हो जाता है..
    एकदम सटीक और बेहतरीन रचना.

    ReplyDelete
  20. बढ़िया प्रस्तुति एकदम सटीक

    ReplyDelete
  21. आज के समाज में किसी भी सूरत में ऊपर बढ़ने की अदम्य इच्छा पर आपकी ये कविता बड़े सार्थक प्रश्न करती है। अच्छा लिखा है आपने !

    ReplyDelete
  22. शायद आपने 'पियूष मिश्रा' जी का नाम सुना होगा ,
    नहीं मेरे कोई रिश्तेदार नहीं है , रंगमंच और फिल्मों के बहुत बड़े कलाकार हैं |
    gangs of wasseypur में मनोज बाजपेई के चचा का किरदार किया है , rockstar में ढींगरा का |
    इनके अभिनय से ज्यादा खूबसूरत होते हैं इनके लिखे और गाये गीतों के बोल (आरम्भ है प्रचंड), आप गुलाल फिल्म के गाने सुनियेगा , सब एक से एक खूबसूरत , उसमे एक गाना विशेष रूप से सुनियेगा -
    "ओ रात के मुसाफिर ,
    तू भागना संभल के ,
    पोटली में तेरी हो
    आग न संभल के |"

    सादर
    -आकाश

    ReplyDelete

नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...