बड़े बुसूक से दुनिया फरेब देती है....बड़े ख़ुलूस से हम ऐतबार करते हैं.......
क्यूँ आसान है किसी पर यकीं करना...
क्यूँ आसान है किसी को फरेब देना...
क्यूँ आसान नहीं किसी फरेब को सह जाना?????
जाने क्यूँ मिल जाते है फरेबी आसानी से..
जाने क्यूँ मिल जाते हैं हम फरेबियों को....
जाने क्यूँ नहीं मिलते सच्चे लोग सच्चों को?????
उसने अपनी
दोनों बंद मुट्ठियाँ
मेरे आगे रख दीं ...
कि चुन लूँ मैं
कोई एक.
मैंने एक पर हाथ रखा..
उसमें थी
एक तितली...
जो मुट्ठी खुलते ही उड़ गयी...
खो देने के एहसास से घबरा कर
मैंने जिद्द की,
और दूसरी मुट्ठी भी मांग ली.
पर उसमें तो रेत निकली..
जो फिसल गई ...
कुछ हाथ ना आया मेरे.....
तब समझी,
कुछ देने की
नियत जो नहीं थी
उस फरेबी की ...
-अनु
क्यूँ आसान है किसी पर यकीं करना...
क्यूँ आसान है किसी को फरेब देना...
क्यूँ आसान नहीं किसी फरेब को सह जाना?????
जाने क्यूँ मिल जाते है फरेबी आसानी से..
जाने क्यूँ मिल जाते हैं हम फरेबियों को....
जाने क्यूँ नहीं मिलते सच्चे लोग सच्चों को?????
उसने अपनी
दोनों बंद मुट्ठियाँ
मेरे आगे रख दीं ...
कि चुन लूँ मैं
कोई एक.
मैंने एक पर हाथ रखा..
उसमें थी
एक तितली...
जो मुट्ठी खुलते ही उड़ गयी...
खो देने के एहसास से घबरा कर
मैंने जिद्द की,
और दूसरी मुट्ठी भी मांग ली.
पर उसमें तो रेत निकली..
जो फिसल गई ...
कुछ हाथ ना आया मेरे.....
तब समझी,
कुछ देने की
नियत जो नहीं थी
उस फरेबी की ...
-अनु
सच कहा आपने फरेबी तो अक्सर मिल जाते है पर अच्छे लोग खोजने पर भी नहीं मिलते हैं |
ReplyDeleteक्यूँ आसान है किसी पर यकीं करना...
ReplyDeleteक्यूँ आसान है किसी को फरेब देना...
क्यूँ आसान नहीं किसी फरेब को सह जाना?????...
आसान हो न हो , फरेब सह ही जाते हैं ....
एक बात कहूँ , कभी कभी रेत ही ज़िन्दगी होती है.... मुट्ठी से फिसलती रेत दृढ़ मनोबल दे जाती है , फुर्र से उड़ गई तितली आकाश तक पहुँचने का संकेत
जाने क्यूँ नहीं मिलते सच्चे लोग सच्चों को?????
ReplyDeleteमेरा मानना है की सच्चे लोग आपके आस पास ही होते हैं ,
वो ढेर में नहीं गिने चुने होते हैं ..बस हम उन्हें पहचानना भूल जाते हैं ..
ये दुनिया ही फरेबी है..जरा सम्भल कर..अनु.. ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गहन अभिव्यक्ति अनुजी
ReplyDeleteउस फरेबी के झांसे में फंसना भी तो बड़ा भाता है..अच्छा लिखा है..
ReplyDeleteबहुत ही बढिया प्रस्तुति।
ReplyDeleteक्यूँ आसान है किसी पर यकीं करना...
ReplyDeleteक्यूँ आसान है किसी को फरेब देना...
क्यूँ आसान नहीं किसी फरेब को सह जाना?????
हर बार मिला फरेब फिर भी यकीन करते रहे
ज़िंदगी भर बस यूं ही हम चलते रहे ....
मुट्ठी मे कम से कम तितली और दूसरी में रेत तो थी ... कितनी बार तो खाली मुट्ठी भी होती है ...
बहुत खूबसूरती से लिखा है मन के भावों को ... अभी भी मुट्ठी से रेत फिसलती देख रही हूँ
Emotional fools always get this treatment.
ReplyDeletehey blue bird.....
Deletehope u are not talking about me!!!
or its u???
:-)
कई बार इन्सान फरेबी को पहचानते हुए भी मृग मरीचिका के पीछे भागता है , जज्बात तो इसी का नाम है . अभिनव प्रयोग .
ReplyDeletebahut sundar kavita,,,,,, arthpurn!
ReplyDeleteसच्चे लोग नहीं मिलते सच्चों को...
ReplyDeleteसच है, फ़रेब हर तरफ मिल जाता है...
फिर भी, सच्चाई बनी रहती है, बस ये विश्वास कभी न टूटे!
वाह क्या बात है
ReplyDeleteअरुन (arunsblog.in)
फरेबी और फरेब ..आसान हैं इसलिए मिल जाये हैं.सचाई मुश्किल जरुर है पर नामुमकिन
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाव .
बहुत सुंदर रचना...गहन भावों को कितनी सरलता से संप्रेषित कर दिया है....
ReplyDeleteबहुत सुंदर गहन भावों की प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना
ReplyDeleteओह कितनी अर्थपूर्ण सुंदर रचना !
ReplyDeleteजिसके पास जो है वो वही दे सकता है ....उसके पास जो था ,.....उसने सब आपको दिया ....तितली भी ....रेत भी .....आपने दोनों मुट्ठी मांगीं ...उसने दोनों दे दीं......
ReplyDeleteअपेक्षाओं से भरा जीवन बड़ा कठिन है ....!!
सुंदर बात कहती कविता ....
बहुत अच्छी लगी !
Sidha saccha sach ... jiske paas jo hai , vahi to de sakta hai ! Hum neem se aam ki aasha kartey hai ....and then cry foul ! :)
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteनिःशब्द करती रचना..
बेहतरीन प्रस्तुति......
बहुत सुन्दर भाव
ReplyDeleteउड़ाते हुए तितली का एहसास तो दे ही गया वो फरेबी ...
ये फ़रेब का बाज़ार कब तक चलेगा? कब तक उनकी मुट्ठी गरम रहेगी?
ReplyDeleteye duniya hai hi tilasmi.....!
ReplyDelete☺ वाह
ReplyDeleteगर उन्हें खुशी मिलती है मुझसे फरेब कर,
ReplyDeleteतो यूं भी सही ,बस खुश रहें वे ,
इसी में खुशी मेरी |
badhiya kavita.. khoobsurat
ReplyDeleteअच्छों को अच्छे मिलें ,मिले नीच को नीच ,
ReplyDeleteपानी से पानी मिले ,मिले कीच से कीच .
बढ़िया रचना है चलो कुछ मिला ही है फरेब सही ,ये अपने नसीब की बात है .
कृपया यहाँ भी पधारें -
डिमैन्शा : राष्ट्रीय परिदृश्य ,एक विहंगावलोकन
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
सोमवार, 30 अप्रैल 2012
जल्दी तैयार हो सकती मोटापे और एनेरेक्सिया के इलाज़ में सहायक दवा
सुंदर , अति सुंदर
ReplyDeleteएहसासों से भावुकता का जन्म होता है ......
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
बहुत ही अच्छी.... जबरदस्त अभिवयक्ति.....वाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव बढ़िया रचना है .
ReplyDeleteप्रासंगिक भाव.... सचेत रहना ज़रूरी
ReplyDeleteमेरे गुरुदेव के.पी. सक्सेना कहा करते थे कि बंद मुट्ठी पर शर्त नहीं लगाते... इसमें से हमेशा वही निकलता है जिसकी हमें उम्मीद नहीं होती...इसे फरेब नहीं कहना चाहिए.. हाँ कुछ लोग जानकर भी फरेब खाते हैं.. ये एक अलग दीवानगी होती है.. बहुत ही अच्छी कविता!!
ReplyDeleteबहुत खूब...देने वाले की नियत ही सही नहीं थी...तो मिलता क्या...ऊपर वाला भी कुछ ऐसे ही फरेब खेलता है...
ReplyDeleteबहुत ही सारगर्भित रचना । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteफ़रेबी तो मिलेंगे ही...
ReplyDeleteआवश्यकता है फ़रेब को समझ कर उनसे बचने की...
नेकी पर चलें और बदी से बचें...
रचना भाव को संप्रेषित करने में सफल है!!!
गहरी बात, आभार!
ReplyDeleteकुछ देने की नियत ही नहीं थी , वरना मुट्ठियाँ बंद क्यूँ थी !
ReplyDeleteवाह !
:) अच्छी लगी कविता!!
ReplyDeleteBahut badhiya, Anu ji! Sach kaha aapne, kuch logo ki fitrat hi aisi hoti hai -- dhokha aur fareb karna...
ReplyDeletehar galat cheej asaan hoti hai ..aur har achhi cheej kathin yaa kathinta se uplabdh hoti hai.. makan banaane me jindagi khatam ho jaati hai ..todne vala minute nahi lagaata ... aapki rachna ke ye bhaav behtreen ..umda
ReplyDeleteजाने क्यूँ मिल जाते है फरेबी आसानी से..
ReplyDeleteजाने क्यूँ मिल जाते हैं हम फरेबियों को....
जाने क्यूँ नहीं मिलते सच्चे लोग सच्चों को?????
पता नहीं उस फरेबी की देने की नियत नहीं थी .... या किसी के सहेजने की नियत नहीं थी ...
दिल के जज्बातों कों शब्द दिये हैं ...
अनु जी पहले तो क्षमा की व्यस्तता के चलते अपने blog 'उद्गम' पर की गयी आपकी सराहना का उत्तर बहुत देर से दे रहा हूँ और आपके इस बेशकीमती blog पर भी बहुत दिनों बाद आना हो पाया !!
ReplyDeleteऔर अब आके लग रहा है ऐसी भी क्या व्यस्तता -- अगर मैं कुछ और देर करता तो ऐसी कई बेहेतरीन कृतियाँ छूट जातीं मुझसे |
निरंतर ऐसे ही विस्मित करते रहिये...बधाइयाँ...!!
गज़ब......
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
:):):)
ReplyDeletetoo good
ReplyDeleteन थाम सके हाथ ...न पकड़ सके दामन
बड़े करीब से उठकर कोई चला गया..
आज 11/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
ReplyDeletenicee lines di.....sach hai farebi jaldi milte hai....
ReplyDeleteपानी भी बह गया
ReplyDeleteरेत भी झड़ गई
और फिर एक
कविता बन गई
सादर
jina isi ka nam hai !
ReplyDeletesundar abhivyakti anu ji
यही तो है जिंदगी..प्रान तत्व तितली सा उड़ जाता है, रेत ही रेत शेष रहता है। कोई किसी को धोखा नहीं देता बस हम धोखे खाते रहते हैं।
ReplyDeleteयही तो है जिंदगी..प्रान तत्व तितली सा उड़ जाता है, रेत ही रेत शेष रहता है। कोई किसी को धोखा नहीं देता बस हम धोखे खाते रहते हैं।
ReplyDeleteसही बात, नियत होनी चाहिए ... बहुत सुन्दर !
ReplyDelete...अच्छा होता कि कुछ लेने की ही उम्मीद न की जाती...।
ReplyDeleteमृगतृष्णा कह लो या मृगमारीचिका ,यही जीवन है ...... सस्नेह :)
ReplyDeleteएक फरेबी का धोखा ...जिंदगी और मजबूती देता है .....एक नया संकल्प कुछ कर दिखाने का
ReplyDeletekash ye jindagi ret ya titli ke badle kuchh "hari dub" jaisee hoti. ek halka ahsaas to de jaaati sukoon ke saath:)
ReplyDeleteजिंदगी हमें बिना मांगे बहुत कुछ देती है हम कभी डाटा का शुक्रिया अदा नहीं करते, याचक बने रहते हैं. दोष दाता को देते हैं.
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