कभी कभी कोई रिश्ता ऐसे टूटता है मानों मुट्ठी से रेत फिसलती जाती हो.........लाख सम्हाले नहीं सम्हालता....और सारा कसूर इस दिल का होता है,जो प्यार करता है तो टूट कर और नफरत करता है तो भी पूरी शिद्दत से.....तभी दिल के ज़ख्म कभी भरते नहीं शायद.......
दिल में हो रंजिश अगर तो
दिल में हो रंजिश अगर तो
दूरियां बढ़ जाती हैं,
कैसे थामे हाथ उनके
मुट्ठियाँ कस जाती हैं......
हो खलिश बाकी कोई तो
कुछ न बाकी फिर रहा,
एक तिनके की चुभन भी
आँख नम कर जाती है......
तेरे कूचे से जो लौटे
दस्तक दोबारा दी नहीं,
गर उठायें फिर कदम तो
बेड़ियाँ डल जाती हैं.........
चोट खायी एक दफा तो
ज़ख्म फिर भरते नहीं
वक्त कितना भी गुज़रता
इक कसक रह जाती है........
हों जुदा हम तुमसे या के
राहें तुम ही मोड़ लो,
टूटे जो रिश्ते अगर तो,
चाहतें मर जातीं हैं.......
-अनु
टूटे जो रिश्ते अगर तो,
चाहतें मर जातीं हैं.......
-अनु
बहुत सुंदर अनु...दिल में उतर गई यह रचना...वाकई बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteहों जुदा हम तुमसे या के
ReplyDeleteराहें तुम ही मोड़ लो,
टूटे जो रिश्ते अगर तो,
चाहतें मर जातीं हैं.......
वाह ..वाह बहुत अच्छी ...सच कहती हूँ अनु जी आप बहुत अच्छा लिखती है ...बधाई
एक तिनके की चुभन भी
ReplyDeleteआँख नम कर जाती है......
शक से दूर कही गयी एक बानगी.....
जिसे सुन हर बार जाने क्यूँ आँखें नाम हुई जाती हैं......
हों जुदा हम तुमसे या के
ReplyDeleteराहें तुम ही मोड़ लो,
टूटे जो रिश्ते अगर तो,
चाहतें मर जातीं हैं.......
बहुत बढ़िया ग़ज़ल अश आर भी एक से बढ़के एक .
चाहत मर भी जाए ,पर रिश्ता न टूटे !
ReplyDeleteकुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो चाहत से भी परे होते हैं,पर यह सब कर पाना आसान नहीं है !
हों जुदा हम तुमसे या के
ReplyDeleteराहें तुम ही मोड़ लो,
टूटे जो रिश्ते अगर तो,
चाहतें मर जातीं हैं.......
बहुत दर्द देता है, रिश्तों का टूटना...खूबसूरत रचना
Waah!! Awesome :)
ReplyDeleteतेरे कूचे से जो लौटे
ReplyDeleteदस्तक दोबारा दी नहीं,
गर उठायें फिर कदम तो
बेड़ियाँ डल जाती हैं.........
मोहब्बत का यही दस्तूर होता है ।
बढ़िया रचना ।
दिल से निकल कर भाव शब्द बन गए ।
ReplyDeleteखुबसूरत अंदाज ।।
"चोट खायी एक दफा तो
ReplyDeleteज़ख्म फिर भरते नहीं
वक्त कितना भी गुज़रता
इक कसक रह जाती है.."
..मर्मस्पर्शी रचना अनु जी..
बहुत सुन्दर !
ReplyDelete-------------
मेरा रीसेंट पोस्ट
भिखारी का धर्मसंकट
जुदाई से उत्पन्न दिल की कसक . निभाई शिद्दत से दुश्मनी , पर ना गई प्यार की महक . सुँदर है जी
ReplyDeleteकभी कभी ऐसा भी होता है।
ReplyDeleteचोट खायी एक दफा तो
ReplyDeleteज़ख्म फिर भरते नहीं
वक्त कितना भी गुज़रता
इक कसक रह जाती है........
सच कहा है अनु. यह कसक आसानी से साथ नहीं छोडती.
जिन्दा हो तो रंजिश होना लाज़मी है...
ReplyDeleteकिसी रंजिश को हवा दो की मै जिंदा हूँ अभी...
मुझको एहसास दिला दो की मै जिंदा हूँ अभी...
very true
ReplyDeleteBahut khubsoorat.
ReplyDeleteचोट खायी एक दफा तो
ReplyDeleteज़ख्म फिर भरते नहीं
वक्त कितना भी गुज़रता
इक कसक रह जाती है......
ये सच है जख्मो के निशान रह जाते अहिं ... चोट लगने पे कसक रह जाती है ... बहुत खूब ...
बहुत खूब,
ReplyDeleteएकदम सच..
हो खलिश बाकी कोई तो
ReplyDeleteकुछ न बाकी फिर रहा,
एक तिनके की चुभन भी
आँख नम कर जाती है......
और इस नमी में एक ख़ामोशी सिमट आती है
सुंदर रचना, !
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
हो खलिश बाकी कोई तो
ReplyDeleteकुछ न बाकी फिर रहाए
एक तिनके की चुभन भी
आँख नम कर जाती है
कोमल भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति।
इसलिए बुजुर्ग कंवारों को सलाह देते हैं कि वे यह जान लें कि जिसे वह प्रेम समझ रहे हैं,वह सिर्फ आकर्षण तो नहीं है। और विवाहितों को यह कि जल्दबाज़ी में कोई ऐसा निर्णय न लें जिस पर भविष्य में कोई पछतावा हो।
ReplyDeleteयह भी है एक रंग, मानव संवेदनाओं का और आपकी कविता में यह और भी उभर कर सामने आया है!! बहुत ही भावभीनी रचना!!
ReplyDeleteसच, ज़ख्म नहीं भरते...!
ReplyDeleteसुन्दर कविता!
जुदाई पीडादायक तो होती है, पर क्या करें ऐसा भी होता ही है।
ReplyDeleteजुदाई बहुत दुःख:दायी होती है!...भावों को बहुत सुन्दर शब्दों में ढाला है आपने!...आभार!
ReplyDeletebahut sundar kavita...
ReplyDeleteहो खलिश बाकी कोई तो
ReplyDeleteकुछ न बाकी फिर रहाए
एक तिनके की चुभन भी
आँख नम कर जाती है
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...आभार ।
बहुत कुछ सिखाती समझाती हुई ये लाज़वाब पंक्तियाँ हैं.. :)
ReplyDeletekitna pyaara likha hai aapne, Anu, iski koi baraabri nahi ho sakti!
ReplyDeleteदिल में हो रंजिश अगर तो
ReplyDeleteदूरियां बढ़ जाती हैं,
कैसे थामे हाथ उनके
मुट्ठियाँ कस जाती हैं......
बहुत ही सुन्दर अनुजी ...हर शेर छीलता हुआ .....दर्द से सराबोर !!!! हर शेर लाजवाब
हो खलिश बाकी कोई तो
ReplyDeleteकुछ न बाकी फिर रहा,
वाह !!!!!!
शून्य ही बाकी रहा फिर
जोड़ना क्या, क्या घटाना
एक कोरा पृष्ठ बन कर
जिंदगी रह जाती है.
ranjish hee jad hai sabki
ReplyDeleteनिशब्द ......बस और कुछ नहीं .
ReplyDeleteओह क्या बात
ReplyDeleteबहुत सुंदर