हर रचना है मेरे दिल की किताब का एक पन्ना .... धीरे धीरे सारी किताब पढ़ लेंगे...तब जान भी जायेंगे मुझे....कभी चाहेगे...कभी नकारेंगे... यही तो जिंदगी है...!!!
इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........
Sunday, April 8, 2012
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नए पुराने मौसम
मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...
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मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...
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दुनिया में सबसे सुन्दर रिश्ता माँ और उसके बच्चे के बीच होता है......इस रिश्ते की वजह से जीवन में कई खट्टे मीठे अनुभव होते हैं.....सुनिए...
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इन दिनों, सांझ ढले,आसमान से परिंदों का जाना और तारों का आना अच्छा नहीं लगता गति से स्थिर हो जाना सा अच्छा नहीं लगता..... ~~~~~~~~~~~...
मन मस्त मगन अकेले में....
ReplyDeleteसही बात है,खुद को पाने के लिए यही ठीक है.
मत भाग रे मन इस रेले में....
ReplyDeleteबेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,सुन्दर रचना...
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
किसी कवि ने सही कहा है;
ReplyDelete"मन के जीते जीत है मन के हारे हार."
आप भी भावपूर्ण शब्दों में यही तो बयां करना चाहती है शायद ? आभार !!
मन बड़ा चंचल होता है और मन के द्वारा ही हम भरपूर जी लेते है
ReplyDeleteसुन्दर शब्द चयन-
ReplyDeleteगतिमान पाठ ||
मन कहाँ रुकता है ...
ReplyDeleteतो क्यू न रहे अकेले में
ReplyDeleteमन मस्त मगन अकेले में....
man ko samjhane ka trika bda accha lga.
बेहद सुन्दर आत्म-मंथन अनु जी !
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति...पर किसी ने ये भी फ़रमाया था...
ReplyDeleteमन का कहना मत टालो...
मन को पिंजरे में ना डालो...
मन तो है इक उड़ता पंछी...
जितना उड़े उड़ा लो...
इस रंग बिरंगे रेले में,
ReplyDeleteइन चक्कर खाते झूले में..
जब खोना तय इस मेले में...
तो क्यूँ पड़ विकट झमेले में...
रे चंचल मन,तू क्यूँ भागे....
बड़ी चक्कर वाली दुनियाँ है .... सुंदर प्रस्तुति ...
man rey tu kahe na dhir dhre...sunder bahv...
ReplyDeleteमन पर नियंत्रण के लिए एक नुख्सा .सूरदास की गोपियाँ बोलती है .
ReplyDeleteमन न भये दस बीस
एक हुतो सो गए श्याम संग
अब को अराधे इश .
मन की भटकन केवल इश्वर में रम कर ही नियंत्रित की जा सकती है . सुन्दर अभिव्यक्ति .
bahut hee sundar abhivyakti
ReplyDeleteबहुत मंथन करके लिखा है आपने.. पुरानी रचना है लेकिन हर समय प्रासंगिक..
ReplyDeleteमन जब भागता है तो ऐसे ही उलझ जाता है जैसा पहले चित्र में पटरियां उलझी हुई हैं.. ;)
ReplyDeleteसुन्दर कविता :)
बहुत खूब ! मन तो भागा जा रहा
ReplyDeleteLearnings: पथ मेरा आलोकित कर दो !
इस रंग बिरंगे रेले में,
ReplyDeleteइन चक्कर खाते झूले में..
जब खोना तय इस मेले में...
तो क्यूँ पड़ विकट झमेले में...
रे चंचल मन,तू क्यूँ भागे....//bahut sunder geet anu ji , sach ki sattik chitran
badhai.aapko
इस झिलमिल करती दुनिया में,
ReplyDeleteजब आँखें तेरी चुंधियाती हैं
दृष्टी भी धुंधला जाती है...
जब मन तेरा बैरागी है
तो क्यू न रहे अकेले में
मन मस्त मगन अकेले में.............वाह: अनु बहुत सुन्दर ..लाजवाब..
वाह..
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा अनुजी..
कितनी भी दृष्टी चुधियाए..चलता रहेगा रेला.बस कोशिश करो न रहे कोई अकेला..
मन सर्वश्रेष्ठ धावक है जी .
ReplyDeleteजी, शायद तभी ललचाता है स्वर्ण पदक के लिए.........
ReplyDelete:-)
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteइस झिलमिल करती दुनिया में,
ReplyDeleteजब आँखें तेरी चुंधियाती हैं
दृष्टी भी धुंधला जाती है...
जीवन के महत्वपूर्ण पक्षों को उजागर करती और मानव को सचेत करती आपकी यह रचना महत्वपूर्ण है .....!
अकेले हैं तो क्या ग़म है ...
ReplyDeleteमन कब किसके कहने में आया है ....कब कहाँ भला वह रुक पाया है ...एक वही तो है जो उड़ सकता ....सूरज का गोला छू सकता ....या छिटकी शीतल चान्दिनी को, ओक लगाकर पी सकता ....मन कहाँ भला रुकने वाला .....
ReplyDeleteमत भाग रे मन इस रेले में.............
ReplyDeleteमन कब माना है भला ..
जब खोना तय इस मेले में...
ReplyDeleteतो क्यूँ पड़ विकट झमेले में...
खोना भी तय है.. फिर भी मन की धरा नहीं रूकती.... उसकी छह बढती ही जाती है
nice one.... loved it... :)
मन क्यूँ भागे ...तू क्यूँ भागे ? :-) Bahut sundar dhang se man ki chanchalta ko abhivyakt kiya hia....nice!
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