भागी जा रही थी मैं...
अपनी तेज रफ़्तार
जिंदगी के साथ,
पूरे जोर से,
जोशोखरोश से.
भागती चली जा रही थी
मैं और
मेरी जिंदगी !
लापरवाह ,
बेख़ौफ़,
बिना किसी रोक टोक के....
मगर
हर तेज रफ़्तार
शायद
हादसे का सबब
बनती ही है-
और बस.....
मैं भी
टकरा गयी
तुमसे-
अचानक !!!!
तब से
थम गयी हूँ मैं
और मेरी जिंदगी भी...
लहुलुहान सी
पड़ी हूँ तब से
अब तक
वहीँ....
क्षत-विक्षत
बे-इन्तहा दर्द के साथ,
शायद किसी
चारागर की आस में...........
-अनु
चारागर ही टकराया था, हम को ये मालूम न था।
ReplyDeleteहादसे ही इंसान को समझदार बनाते हैं...हर मर्ज़ का इलाज चारागर के पास नहीं होता...
ReplyDeleteअगर टकराने के बजाय मिल जाते आहिस्ता-आहिस्ता
ReplyDeleteतो न ये दर्द होता,न चारागर की तलाश होती !
चले चलते सफर में जो आहिस्ता-आहिस्ता,
ReplyDeleteन टूटता दिल ,न तलाश होती चारागर की !
हर तेज रफ़्तार का हादसा से गहारा नाता होता है.. अच्छी लगी..
ReplyDeleteजो दवा के नाम पर जहर दे अब उसी चारगार की तलाश हो ..... :)
ReplyDeleteरफ़्तार तेज हो या कम - हादसे होते ही हैं , कारण कभी तेज कभी कम !
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ।।
kai bar hadase jivan ke liy sabak ban jate hai ...sundar prastuti..Anu.
ReplyDeleteवाह ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteहर टक्कर से हादसे नहीं होते .
ReplyDeleteलेकिन हर हादसे में दर्द होता है .
यूँ ही कोई मिल गया था
ReplyDeleteसरेराह चलते चलते!!
वहीँ....
ReplyDeleteक्षत-विक्षत
बे-इन्तहा दर्द के साथ,
शायद किसी
चारागर की आस में...........
वाह!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,..
ओह्ह...प्रभावशाली अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteखूबसूरत हादसा......!!
ReplyDeleteसुंदर ...गहन .....भावाभिव्यक्ती ..... ...
ReplyDeleteशुभकामनायें ...!!
आपकी रचनाएं सदैव अच्छी लगती हैं परंतु अक्सर प्रतिक्रिया रह जाती है; अपना स्नेह और लेखन में गतिशीलता बनाए रखें!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
हर तेज रफ़्तार
ReplyDeleteशायद
हादसे का सबब
बनती ही हैं...
बड़ी प्यारी और यथार्थ को छूती पंक्ति है....पर आज भागते रहना आदमी की फितरत बन चुकी है...बड़ी प्यारी कविता है और यह दर्द कितना असह्यनीय है:
थम गयी हूँ मैं
और मेरी जिंदगी भी...
लहुलुहान सी
पड़ी हूँ तब से
अब तक
वहीँ....
क्षत-विक्षत
बे-इन्तहा दर्द के साथ,
शायद किसी
चारागर की आस में...
सादर/सप्रेम शुभकामनाएं
सारिका मुकेश
अभी तो और भी रातें सफ़र में आयेंगी ,
ReplyDeleteचरागे शब मेरे महबूब संभाल के रख .
हादसे न हों तो ज़िन्दगी ज़िन्दगी न लगे मज़ाक हो जाए .रफ्तार कुछ भी हो हादसे तो होने हैं .कृपया यहाँ भी पधारें -
बांझपन के समाधान में प्रयुक्त दवाएं बढ़ातीं हैं कैं...
veerubhai
बांझपन के समाधान में प्रयुक्त दवाएं बढ़ातीं हैं कैं... http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_3370.html
नुस्खे सेहत के
नुस्खे सेहत के नुस्खे सेहत के
jindagi hi haadson ka naam hai par jo apni himmat aur lagan se un haadson ko jeet le vahi asli jindagi hai bahut gahan abhivyakti.
ReplyDeleteहर तेज रफ़्तार
ReplyDeleteशायद
हादसे का सबब
बनती ही हैं...
और
थम गयी हूँ मैं
और मेरी जिंदगी भी...
लहुलुहान सी
पड़ी हूँ तब से
अब तक
वहीँ....
क्षत-विक्षत
बे-इन्तहा दर्द के साथ,
शायद किसी
चारागर की आस में...
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति!!
हर तेज रफ़्तार
ReplyDeleteशायद
हादसे का सबब
बनती ही हैं.....sach kaha aapne
Sach haadse bahut kuch sikhla dete hain...
bahut badiya rachna
हर तेज रफ़्तार
ReplyDeleteशायद
हादसे का सबब
बनती ही हैं...
हादसों को शायद तेज रफ़्तार गंवारा नहीं है
gahen ....dard me bheegi prastuti..
ReplyDeletehamesha hadse bure nahi hote...lekin honi ko koi tal bhi nahi sakta. kash koi acchha sa charagar mil gaya hota.
( anu ji is bar lagta hai apne meri post par comment dil se nahi diya)
ना जाने ये हादसे किस रूप में आ जाएँ...
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति!!!
ये हादसा अकसर हो ही जाता है। क्या करें?
ReplyDeleteahaa...mujhe aisi waali badi mast lagti hain..tumse takra ke tham gai..ye mast bhaav hai.
ReplyDeleteएक्सीडेंट हो गया रब्बा रब्बा ...
ReplyDeleteहाँ अनु जी तेज रफ़्तार ऐसा ही कुछ कर दिखाती है काश हम संयम से चलें और टकराने पर कुछ अद्भुत सुख मिल जाए ..सुन्दर रचना
ReplyDeleteभ्रमर ५
अक्सर इन्ही हादसों को ढोना ही ज़िन्दगी हो जाती है .... सुन्दर अनुजी !
ReplyDeleteI'm stunned Anu! A poem so beautifully written and so painfully touching!!...gahraa dard ubhar kar aataa hai...
ReplyDeleteज़िंदगी और हादसे कहाँ साथ छोडते हैं एक दूसरे का ....बहुत सुंदर रचना..
ReplyDeleteअंतिम पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं।
ReplyDeleteसादर
आपकी पीड़ा भरी दास्तां पढ़कर याद आया कि किसी शायर ने ठीक ही कहा है;
ReplyDelete"मेरे अश्कों को गिनेगा तू कहाँ तक हमदम, चश्मे पुरआब को सीधे से समंदर लिख दे."
very touching..
ReplyDeleteहादसे न हों तो ज़िंदगी वीरान हो जाये ..... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteनज़्म अपने शुद्ध स्वरुप मे...धन्यवाद हर बार दिल छु लेने के लिए..:)
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