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कभी कभी मन बड़ा व्यथित होता है.............तब डायरी के पन्ने अकसर लिख कर फाड़ दिये जाते हैं..........शायद हम सब कुछ संजो कर रखना नहीं चाहते.........जो दर्द दे उस पल को क्या संजोना........
हां मन के किसी कोने में दबा ज़रूर रह जाता है दर्द..................
आज कुछ महका सा नहीं......दहका सा लिखने को जी चाहा......
एक उलझा सा ख़याल..................कभी सोचा है आपने कि कोई अपने ऊपर लगे इल्ज़ामों की सफाई ना दे पाए तो???? या देना ही नहीं चाहे शायद !!!!!
क्यूँकि सच बड़ा स्वाभिमानी होता है....वो चीख चीख कर अपनी सत्यता प्रमाणित नहीं करता...
जबकी झूठ बड़ा चालबाज़ है- वो सारे प्रपंच करता है खुद को सच साबित करने के....
सत्य निर्विकार होता है.....उसे अपना भी पक्ष लेने की आदत नहीं होती....
कहते हैं,
कभी कभी मन बड़ा व्यथित होता है.............तब डायरी के पन्ने अकसर लिख कर फाड़ दिये जाते हैं..........शायद हम सब कुछ संजो कर रखना नहीं चाहते.........जो दर्द दे उस पल को क्या संजोना........
हां मन के किसी कोने में दबा ज़रूर रह जाता है दर्द..................
आज कुछ महका सा नहीं......दहका सा लिखने को जी चाहा......
एक उलझा सा ख़याल..................कभी सोचा है आपने कि कोई अपने ऊपर लगे इल्ज़ामों की सफाई ना दे पाए तो???? या देना ही नहीं चाहे शायद !!!!!
क्यूँकि सच बड़ा स्वाभिमानी होता है....वो चीख चीख कर अपनी सत्यता प्रमाणित नहीं करता...
जबकी झूठ बड़ा चालबाज़ है- वो सारे प्रपंच करता है खुद को सच साबित करने के....
सत्य निर्विकार होता है.....उसे अपना भी पक्ष लेने की आदत नहीं होती....
कहते हैं,
झूठ की पुनुरावृत्ति
झूठ को अक्सर
सच बना दिया करती है...
बार बार कही
असत्य बात
कभी कभी
सच को झुठला जाती है.
मगर क्या
मान लेने से
वास्तविकता बदल जाती है??
चोर चोर कह कर
किसी को
गुनेहगार साबित कर देते हो..
पर क्या उसके भीतर का
ईमान तुम मार पाते हो??
अपमान और वेदना के
बियाबान में
भटकता,ठोकरें खाता
सच्चे का स्वाभिमान
जल जल कर
निरंतर प्रकाश उत्सर्जित करता है.....
उसका अंतर्मन
सदा उज्जवल ही रहता है......
और वो आजीवन
सच्चे को सच्चा
और अच्छे को अच्छा रखता है.
झूठ की सूली पर
चढ कर
सत्य अपना शरीर त्याग देता है,
मगर सच की आत्मा
अमर होती है...
सच कभी मरता नहीं.
-अनु
झूठ को अक्सर
सच बना दिया करती है...
बार बार कही
असत्य बात
कभी कभी
सच को झुठला जाती है.
मगर क्या
मान लेने से
वास्तविकता बदल जाती है??
चोर चोर कह कर
किसी को
गुनेहगार साबित कर देते हो..
पर क्या उसके भीतर का
ईमान तुम मार पाते हो??
अपमान और वेदना के
बियाबान में
भटकता,ठोकरें खाता
सच्चे का स्वाभिमान
जल जल कर
निरंतर प्रकाश उत्सर्जित करता है.....
उसका अंतर्मन
सदा उज्जवल ही रहता है......
और वो आजीवन
सच्चे को सच्चा
और अच्छे को अच्छा रखता है.
झूठ की सूली पर
चढ कर
सत्य अपना शरीर त्याग देता है,
मगर सच की आत्मा
अमर होती है...
सच कभी मरता नहीं.
-अनु
sarthak lekha hae .jivan men sabhi tarah ke anubhavon ka nirdishtha sthan hota hae ,samay ki kasoti par sbhi ko aana hota hae or khud hi parikshak hona hota hae, aabhar.
ReplyDeleteसही बात..
ReplyDeleteजो सच है, उसे प्रमाण की क्या आवश्यकता, वह तो स्वतः प्रमाणित हो जाएगा...!
मगर सच की आत्मा
ReplyDeleteअमर होती है...
सच कभी मरता नहीं.
सच्ची रचना... सुन्दर भाव... आभार
सच्चे का स्वाभिमान
ReplyDeleteजल जल कर
निरंतर प्रकाश उत्सर्जित करता है.....
उसका अंतर्मन
सदा उज्जवल ही रहता है......
बिलकुल सटीक भाव .... सच कभी नहीं मरता
jo rista such ke pramanit hone par hi tike , us riste ka sach ? Vo jhoota hi hai !
ReplyDeletejo rista such ke pramanit hone par hi tike , us riste ka sach ? Vo jhoota hi hai !
ReplyDeleteझूठ कितनी भी कोशिश क्यों न कर ले , सच को दबा नहीं सकता . यही विश्वास सच को अडिग बनाये रखता है .
ReplyDeleteविधाता ने सारे हिसाब बराबर कर रखे हैं... सच्चा इंसान अपने सच पर इसलिए कायम रहता है कि उसे पता है कि सच में ही आनंद है.. शायद इसी परमानंद की प्राप्ति के हउसे आरम्भ में कठिनाई का सामना करना पड़ता है.. ईसा, गांधी या सुकरात सब इसी श्रेणी में आते हैं..
ReplyDeleteझूठ कितना भी सुख भोग ले, कितनी ही क्षणिक जीत प्राप्त कर ले.. अंत कभी आनंद में नहीं होता!!
बहुत अच्छी कविता!!
झूठ की सूली पर
ReplyDeleteचढ कर
सत्य अपना शरीर त्याग देता है,
मगर सच की आत्मा
अमर होती है...
सच कभी मरता नहीं.
सार्थकता लिए हुए सटीक लेखन ..आभार ।
सच अमर होता है लेकिन सच को संघर्ष भी बहुत करना होता है |
ReplyDeleteसच को कब प्रमाण की आवश्यकता हुई है ...बहुत भावपूर्ण और सटीक रचना.
ReplyDeleteकहा तो गया है सांच को आंच कहाँ . उद्वेलित करती कविता . आभार .
ReplyDeleteसच कभी नहीं मरता ..!
ReplyDeleteझूठ की सूली पर
ReplyDeleteचढ कर
सत्य अपना शरीर त्याग देता है,
मगर सच की आत्मा
अमर होती है...
सच कभी मरता नहीं.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना,....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
सत्य केवल सत्य हैं जो अमर हैं .......
ReplyDeleteसत्य सूर्य की तरह सार्वभौमिक होता है,किसी को बादल की ओट में सूर्य का होना नहीं दिखता तो क्या वह नहीं है ?
ReplyDeleteसच्ची रचना
ReplyDeleteसुन्दर भाव
satya vachan.....sach ko jhuthlaya nahi jaa sakta....aur jhuth ko sach banaya nahi jaa sakta...fir bhi log koshish karte rahte hai aur muh ki khate hai kyoki sachhai samne aakar hi rahti hai.....bahut sunder kavita..aabhar.
ReplyDeleteआभार -
ReplyDeleteसत्य और केवल सत्य ।।
सच की आत्मा
ReplyDeleteअमर होती है...
सच कभी मरता नहीं.
एकदम सटीक बात!
सादर
झूठ की सूली पर
ReplyDeleteचढ कर
सत्य अपना शरीर त्याग देता है,
मगर सच की आत्मा
अमर होती है...
सच कभी मरता नहीं.......और यह जन्म जन्मान्तर से होता आया है ....साश्वत सच ....!!!!! बहुत सुन्दर अनुजी
क्या
ReplyDeleteमान लेने से
वास्तविकता बदल जाती है??
चोर चोर कह कर
किसी को
गुनेहगार साबित कर देते हो..
पर क्या उसके भीतर का
ईमान तुम मार पाते हो??... सत्य चीखता नहीं है, पर आरोपी उसकी आँखों से घबराता है .
सशक्त और प्रभावशाली प्रस्तुती....
ReplyDeleteचाहे लाख झूठ अपना दाव आजमा ले, जीत अंत में सत्य की ही होती है।
ReplyDeleteइसीलिए कहते हैं कि सच के पांव होते हैं। वह अपनी राह खुद बनाता है।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
ReplyDeleteचर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
इक ऐसी अदालत है, जो रूह परखती है...
ReplyDeleteमहदूद नहीं रहती वो सिर्फ बयानों तक...
कोई अपने सच से कैसे और कहाँ तक भाग सकता है...
अपमान भुलाया नहीं जा सकता ....
ReplyDeleteयह रचना दर्द भरी है ...
शुभकामनायें अनु !
बहुत सही कहा आपने ..
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट ..!!
itna gahra vichaar aur itni sunder vyaakhya...stunning Anu!
ReplyDeletelazabab.....
ReplyDeletesach humesh sach hi rahta hai kisi ke saamne ghutne nahi tekta kyunki sach bada swabhimaani hota hai.bahut hi achcha likha hai aapne.badhaai aapko.
ReplyDeleteTook me time to reach till the end, but was totally worth a read :)
ReplyDeleteसॉरी अनु ...
ReplyDeleteगूगल की गलती से कमेन्ट बंद थे, अब कमेन्ट खुले हैं...
शुभकामनायें !
कमाल की रचना .... इश्वर सत्य है ....सत्य ही शिव है .. शिव ही सुंदर है ... :)
ReplyDeleteसच तो सच है और सच सच ही रहेगा ,
ReplyDeleteपर जब कभी 'सच' सामने वाले की आँखों में 'मुच' बन जाए तब ज्यादा अच्छा लगता है |
चिरकालिक सार्वत्रिक सार्वदेशिक सच .झूठ का मुह काला ,झूठे का एक दिन निकले दिवाला .
ReplyDeleteरविवार, 22 अप्रैल 2012
कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग तीन
कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग तीन
डॉ. दाराल और शेखर जी के बीच का संवाद बड़ा ही रोचक बन पड़ा है, अतः मुझे यही उचित लगा कि इस संवाद श्रंखला को भाग --तीन के रूप में " ज्यों की त्यों धरी दीन्हीं चदरिया " वाले अंदाज़ में प्रस्तुत कर दू जिससे अन्य गुणी जन भी लाभान्वित हो सकेंगे |
वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई )
http://veerubhai1947.blogspot.in/
Very nice post.
ReplyDeleteaabhar aapka..
बेहतरीन रचना .... सच तो सच ही रहेगा ,यक़ीनन
ReplyDeleteअपमान और वेदना के
ReplyDeleteबियाबान में
भटकता,ठोकरें खाता
सच्चे का स्वाभिमान
जल जल कर
निरंतर प्रकाश उत्सर्जित करता है.....
कोई दे शुभकामना ,प्रकट करे या खेद
असली-नकली फूल में सदा रहेगा भेद.
"कोई दे शुभकामना ,प्रकट करे या खेद
ReplyDeleteअसली-नकली फूल में सदा रहेगा भेद."
वाह...
शुक्रिया अरुण जी.
सच और झूँठ की रस्साकशी को बहुत सुन्दर से अभिव्यक्त
ReplyDeleteकिया है आपने.सच को झूँठ से ढका तो जा सकता है
पर सच का कभी अभाव नहीं होता.
मेरे ब्लॉग पर आपके आने का आभार.
khoobsoorat sansmaran!
ReplyDeletekavita ke madhyam se sachhi baat uker di aapne anu ji...
ReplyDeletebahut sundar rachna..
झूठ का कोई चेहरा नहीं होता .झूठ आत्मा का बोझ है ,सच उसकी उड़ान ,मुस्कान .
ReplyDeletebahut sundar kavita hai, magar kavita se sundar uski bhoomika likhi gayi hai,,,,, khud par ghatit hoti lagti hai!!
ReplyDeleteबार बार कही
ReplyDeleteअसत्य बात
कभी कभी
सच को झुठला जाती है.
ऐसा क्यों होता है?....इसका जवाब शायद किसी के पास नहीं है!....सुन्दर अभिव्यक्ति!
एकदम सही लिखा है आपने - सच कभी मरता नहीं
ReplyDeleteझूठ की सूली पर
ReplyDeleteचढ कर
सत्य अपना शरीर त्याग देता है,
मगर सच की आत्मा
अमर होती है...
सच कभी मरता नहीं.
....बिलकुल सच....बहुत सार्थक अभिव्यक्ति...
"झूठ की सूली पर
ReplyDeleteचढ कर
सत्य अपना शरीर त्याग देता है,
मगर सच की आत्मा
अमर होती है...
सच कभी मरता नहीं."
सहमत हूँ आपसे ! सत्य दब सकता है, छुप सकता है पर मर नहीं सकता!
और वो आजीवन
ReplyDeleteसच्चे को सच्चा
और अच्छे को अच्छा रखता है.
मगर सच की आत्मा
अमर होती है.......
सच कभी मरता नहीं .
अनुपम ...... अविस्मरणीय......
झूठ की सूली पर
ReplyDeleteचढ़ कर
सत्य अपना शरीर त्याग देता है
मगर सच की आत्मा
अमर होती है ......
सच कभी मरता नहीं .
अविस्मरणीय...... अव्दितीय .....