तुझ पर क्या कोई गीत लिखूँ???
संग लिखूँ या साथ लिखूँ
चुभती है जो दिल में बात लिखूं ......
बीच डगर में छोड़ गए तुम
चुभती है जो दिल में बात लिखूं ......
बीच डगर में छोड़ गए तुम
जो पा ना सकी , सौगात लिखूँ?
राग लिखूँ या गीत लिखूँ
कोई रस्म लिखूँ या रीत लिखूँ ......
कोई रस्म लिखूँ या रीत लिखूँ ......
गाये जो तुमने संग नहीं
फिर मूक सा क्या संगीत लिखूँ?
आग लिखूँ , अँगार लिखूँ
अनचाही कोई चाह लिखूं.....
अनचाही कोई चाह लिखूं.....
साँसों में है धुआं भरा हुआ
एक ठंडी सी फिर आह लिखूँ ?
मान लिखूँ अभिमान लिखूँ
तुझको सारा जहान लिखूँ......
वादा था तेरा जन्मों का
अब दो दिन का मेहमान लिखूँ ?
मान लिखूँ अभिमान लिखूँ
तुझको सारा जहान लिखूँ......
वादा था तेरा जन्मों का
अब दो दिन का मेहमान लिखूँ ?
प्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
या सहमा सा अतीत लिखूँ ......
या सहमा सा अतीत लिखूँ ......
तुम पर सब कुछ तो हार दिया
अब हार के कैसे जीत लिखूँ?
प्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
ReplyDeleteया सहमा सा अतीत लिखूँ ......
तुम पर सब कुछ तो हार दिया
अब हार के कैसे जीत लिखूँ?
wah bahut hi sundar rachana ,,,,,pranay ki har to sabase badi jeet hoti hai....sadar badhai anu ji
विचित्र स्थिति है मन की...!
ReplyDeleteभावों को सुन्दरता से पिरोया है!
मान लिखूँ अभिमान लिखूँ
ReplyDeleteतुझको सारा जहान लिखूँ......
वादा था तेरा जन्मों का
अब दो दिन का मेहमान लिखूँ ?
बहुत प्रवाह मयी और सुंदर रचना ...
प्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
ReplyDeleteया सहमा सा अतीत लिखूँ ......
तुम पर सब कुछ तो हार दिया
अब हार के कैसे जीत लिखूँ?
खुबशुरत पंक्तियाँ,बढ़िया अन्दाज में लिखी सुंदर रचना .....
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
उन्माद लिखें अवसाद लिखें ।
ReplyDeleteकुछ पहले की, कुछ बाद लिखें ।
हर पल का एक हिसाब बने ,
कुछ भूली बिसरी याद लिखें ।।
(केवल उत्कृष्ट कविता के लिए / नथिंग इल्स )
क्या बात है रविकर जी..........
Deleteआप लिखवाकर ही मानेगे.....
:-)
बहुत खूब.
सादर.
वो गीत लिखते भी हैं और कहते है ..कैसे लिखूं...?
ReplyDeleteमन की उलझन फिर भी मगर गीत बन गयी..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है ..
'कलमदान '
मान लिखूँ अभिमान लिखूँ
ReplyDeleteतुझको सारा जहान लिखूँ......
वादा था तेरा जन्मों का
अब दो दिन का मेहमान लिखूँ ?
कुछ नहीं लिखना ही श्रेयष्कर है , बहुत बढ़िया
वाह अनुजी ...कौनसे छंद की तारीफ़ लिखूं ....हर छंद दूजे से बेहतर है .....बोलो किसका गुणगान करून ......बहुत ही प्यारी ...दिल को छूती रचना !
ReplyDeleteमन के भावों को दर्शाता हुआ गीत तो आपने लिख ही दिया है,..अति सुन्दर |
ReplyDeleteअच्छी और प्रेरणादायी रचना।
ReplyDeleteसुन्दर प्रयास।
धन्यवाद।
आनन्द विश्वास।
वाह अनु!!!
ReplyDeleteक्या लिखूँ कैसे लिखूँ-कहते कहते सुंदर गीत लिख दिया आपने
बहुत प्रवाहमयी रचना!
प्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
ReplyDeleteया सहमा सा अतीत लिखूँ ......
इस उलझन को सुलझाने का एक ही रास्ता है...कुछ लिख ही डालिए :)
सादर
हर चौकड़े में भावों को निचोड़ के रख दिया है.."बेहद सुंदर गीत लिखा".. बधाई !!
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteबेहतरीन अनु जी .
रचना पढ़कर दिल खुश हो गया .
बहुत बेहतरीन। भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteतुम पर सब कुछ तो हार दिया
ReplyDeleteअब हार के कैसे जीत लिखूँ?
असमंजस ....बहुत कुछ कहने को मन बेचैन ...
सुंदर रचना ...
गज़ब की कविता! पशोपेश में भी ये हाल है... लिखने का ठान ही लेतीं तो मुमकिन है कोई खंड काव्य रचा जाता!!
ReplyDeletepyar ko pyar hi rahne do koi geet n do ............
ReplyDeleteshandar abhivyakti !
तुम पर सब कुछ तो हार दिया
ReplyDeleteअब हार के कैसे जीत लिखूँ?
मैं तुम पर कैसे कोई गीत लिखूँ........
क्या बात है ... बहुत ही बढिया।
आपका आभार रविकर जी.
ReplyDeleteकैसे लिखूँ................?प्रेरणादायी प्रस्तुति |आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना अनु जी,
ReplyDeleteसुंदर गीत के लिये बधाई !
उपसंहार कहूं या उन्वान लिखूं ?
ReplyDeleteशाद्वल कहूं या निर्झर की मधुर तान लिखूं ?
उलझनों में उलझकर बहुत ही
ReplyDeleteअच्छी गीत का निर्माण किया है....
बहुत ही सुन्दर लिखा है...
जो लिख न सके वो गीत लिखो
ReplyDeleteजो हार में भी हो वो जीत लिखो
बहुत सुन्दर...
राग लिखूँ या गीत लिखूँ
ReplyDeleteकोई रस्म लिखूँ या रीत लिखूँ ......
गाये जो तुमने संग नहीं
फिर मूक सा क्या संगीत लिखूँ?
गहरी अनुभूतियाँ भले लिखी नहीं जा सकती किंतु अधरों पर गीत बन कर आ ही जाती हैं, अति सुंदर.......
बहुत खूब...
ReplyDeleteआपकी इस रचना ने बहुत प्रभावित किया ....
ReplyDeleteशुभकामनायें !
बहुत खूब !
ReplyDeletebahut khoobsurat !
ReplyDeleteवाह: अनु ! बहुत सुन्दर..लिखते चलो..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteYour poetry is beautiful :)
ReplyDeleteप्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
ReplyDeleteया सहमा सा अतीत लिखूँ ......
तुम पर सब कुछ तो हार दिया
अब हार के कैसे जीत लिखूँ?
कुछ अनकही अनुभूतियाँ गीत के रूप में पेश कर दी.
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
वादा था तेरा जन्मों का
ReplyDeleteअब दो दिन का मेहमान लिखूँ ?
अनु अच्छा लगा तुम्हे पढ़ना ..बधाई स्वीकारो अच्छे एक्सप्रेशन के लिए
तुम पर सब कुछ तो हार दिया
ReplyDeleteअब हार के कैसे जीत लिखूँ?waah....bahut ....acchi expression direct dil tak pahuch jate hain.....badhai...
बहुत ही अच्छी लगी आपकी ये कविता. अब ये साथ बना रहे इसलिए हम भी आपके जीवन का हिस्सा बन गए..हे हे :P :P
ReplyDeleteप्रेम की गहरी अनुभूति, जहां हर्ष का अतिरेक और विषाद का गहरापन। प्रेम की प्रतीति और प्रस्फुटन से लेकर विरह और विग्रह तक। कहा कुछ भी नहीं और बचा कुछ भी नहीं। कमाल है।
ReplyDelete"प्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
ReplyDeleteया सहमा सा अतीत लिखूँ ......
तुम पर सब कुछ तो हार दिया
अब हार के कैसे जीत लिखूँ?"
प्रीत में यही हार तो जीत है ! बहुत सुंदर रचना ! बधाई
प्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
ReplyDeleteया सहमा सा अतीत लिखूँ ......
तुम पर सब कुछ तो हार दिया
अब हार के कैसे जीत लिखूँ?
lovely.... <3
mesmerising and awesome:)
ReplyDelete