भास्कर भूमि में प्रकाशित http://bhaskarbhumi.com/ epaper/index.php?d=2012-07-06& id=8&city=Rajnandgaon
सोचती हूँ...
किसकी ज्यादा दीवानी हूँ मैं??
कौन अधिक प्रिय है मुझे????
मेरी कवितायें या तुम ???
शायद तुम!!!
तुमसे बेपनाह मोहब्बत जो है मुझे...
या नहीं!!!
मेरी कवितायें...
जिनमें तुम हो....
तुम.........जिससे बेपनाह मोहब्बत है मुझे...
मेरी कवितायें मेरी जिंदगी हैं....
ये मुझे छलती तो हैं ,
मगर कहती हैं कि
तुम्हें भी मोहब्बत है मुझसे...
-अनु
सोचती हूँ...
किसकी ज्यादा दीवानी हूँ मैं??
कौन अधिक प्रिय है मुझे????
मेरी कवितायें या तुम ???
शायद तुम!!!
तुमसे बेपनाह मोहब्बत जो है मुझे...
या नहीं!!!
मेरी कवितायें...
जिनमें तुम हो....
तुम.........जिससे बेपनाह मोहब्बत है मुझे...
मेरी कवितायें मेरी जिंदगी हैं....
ये मुझे छलती तो हैं ,
मगर कहती हैं कि
तुम्हें भी मोहब्बत है मुझसे...
-अनु
मेरी कविताएं तुम सुन्दर रचना है अल्प शब्दो में दिल की भावना स्पष्ट रूप से व्यक्त की है आपके ब्लाग को ज्वाईन कर लिया है आप भी करे तो खुशी होगी
ReplyDeleteयूनिक तकनीकी ब्लाग
bahut hee sundar..
ReplyDeleteबहुत खूब अनु जी ||
ReplyDeleteछलिया को पहचान के, होते क्यूँ मजबूर ?
शंका की गुंजाइशें, है भैया भरपूर |
है भैया भरपूर, लगे रचना निज प्यारी |
किन्तु हकीकत क्रूर, विरह में रचती सारी |
ले सुकून की सांस, ढूँढ़ते गोकुल गलियां |
मिल जाता वो काश, वही तो असली छलिया ||
शुक्रिया रविकर् जी
Deleteवाह ... बहुत खूब ।
ReplyDeletepoem will only say what your heart says-take care!
ReplyDeleteज़िन्दगी, कविता और 'तुम': सब आपस में एक दूसरे के पर्याय ही प्रतीत होते हैं...!
ReplyDeleteसुन्दर:)
वाह: अनु बहुत खूब ..कविता जीवन और तुम तीनों ही एक दूसरे के पूरक हैं..एक दूसरे के विना सब अधूरे हैं..
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आकर चर्चामंच की शोभा बढायें
ReplyDeleteशुक्रिया राजेश जी , आभार
DeleteAbsolutely beautiful, Anu:)
ReplyDeleteAnu,
ReplyDeleteI want your consent for inclusion in a research like post by a fine fellow blogger and friend on 'Evolution of Hindi poetry bloggers etc..'
I need to mail you the details if you please provide me your ID. Kindly contact me ASAP. Regards...amit
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,बहुत खूब अनु जी ,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST...:चाय....
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या कहने
मेरी कवितायें मेरी जिंदगी हैं....
ये मुझे छलती तो हैं ,
मगर कहती हैं कि
तुम्हें भी मोहब्बत है मुझसे...
वाह अनु जी बहुत खूब
ReplyDeleteसच्ची हैं आपकी कवितायें..
ReplyDeleteमेरी कवितायें मेरी जिंदगी हैं....
ReplyDeleteये मुझे छलती तो हैं ,
मगर कहती हैं कि
तुम्हें भी मोहब्बत है मुझसे...
तुम कविता और मैं .... सुंदर प्रस्तुति
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
क्या बात है अनु जी..... प्रेम की कशमकश का सुन्दर इज़हार!
ReplyDeleteप्यारा सा छल...बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteसमबाहु त्रिकोण है जी .तो समकोण भी तो होगा , तो आप, आपकी कविता और वो , हम तो तीनो को एक दुसरे के पूरक की तरह देख रहे है
ReplyDeleteये भ्रम क्यों? प्रीत का स्थाई भाव किसके प्रति? समर्पण किसके प्रति?...... प्रिय के प्रति या कविता के?
ReplyDeleteकविता कभी छल नहीं कर सकती। परन्तु प्रिय ........
इस सुन्दर रचना के लिए आभार !!
कविता नहीं छलती मगर रचनाकार छल कर सकता है आत्मसंतुष्टि के लिए....खुद को भुलावा देने के लिए....
Deleteकविता अपनी है सो समर्पण भी उसके प्रति ही होगा....
अच्छी रचना है मोहब्बत .है एक मानसी सृष्टि .
ReplyDeleteअच्छी रचना है मोहब्बत .है एक मानसी सृष्टि .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
रविवार, 1 जुलाई 2012
कैसे होय भीति में प्रसव गोसाईं ?
डरा सो मरा
http://veerubhai1947.blogspot.de/
ऐसी कविताएं आप रचती रहें जिसमें वह “तुम” हो और यह “मुहब्बत”!
ReplyDeleteprem ki sundar kashmakash....sach bahut khub...
ReplyDeleteमेरी कवितायें मेरी जिंदगी हैं....
ReplyDeleteये मुझे छलती तो हैं ,
मगर कहती हैं कि
तुम्हें भी मोहब्बत है मुझसे...
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति .... !!
बहुत सुंदर भाव ....मन हिलोर लेता रहता है ....प्रेम और छल के बीच और ढूंढ लाता है अनमोल मोती ...!!यही खोज बनी रहे ....!!
ReplyDeleteशुभकामनायें अनु जी .
बहुत सुन्दर ...हमारी कवितायेँ वह सब कहती हैं....जो हम सुनना चाहते हैं...वह सब दिखाती हैं, जो देखना चाहते हैं........और मोहब्बत ....वहींसे तो उद्गम होता है उसका
ReplyDeleteवाह बहुत खूबसूरत एहसास हैं। शुभकामनायें
ReplyDeleteBohot sundar aur saral shabdo me keh diya... really touching :)
ReplyDeleteyou have a nice pen, Anu!
ReplyDeleteतुम न होते तो किस सत्य के मै गीत गाती.......
ReplyDeleteइसलिए पूरक है एकदूसरे के सुंदर रचना !
बहुत कोमल अहसास..बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeletewow...must say ...beautiful poetry!!!
ReplyDeleteकविताओं में प्रेम है उसके लिए , इसलिए कवितायेँ उससे भी ज्यादा प्रिय होनी ही हैं !
ReplyDeleteतुम हो तभी कवितायेँ हैं तुम्हारी.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अनु जी ! बहुत खूबसूरती के साथ भ्रम की सृष्टि की है ! भ्रम की यह स्थति मन को कहीं न कहीं बड़ा सुकून बड़ी आत्मसंतुष्टि दे जाती है ! बहुत ही प्यारी रचना ! बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeletekavitayein chhalti nahi saty kahati hain...bahut sundar anu ji....
ReplyDeletelovely creation..
ReplyDeleteमेरे विचार से कविताओं में ही 'तुम' का एहसास भी छुपा होता है
ReplyDeleteयह तो वही बात है कि सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी।
ReplyDelete......बहुत खूबसूरत एहसास ...बेहतरीन रचना
ReplyDeletedil se nikli hui baat hi dil tak pahunchati hai. bahut sundar bhav. aap sachmuch apne dil mein rahti hain.
ReplyDelete**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
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उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार
प्रवरसेन की नगरी प्रवरपुर की कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ पहली फ़ूहार और रुकी हुई जिंदगी" ♥
♥शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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क्योंकि इन कविताओं कों आप खुद ही तो बुनती हैं ... जो चाहो कहलवा लो ...
ReplyDeleteलाजवाब कविता है ..
चंद पंक्तिया और बेहतरीन अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteतुम हो तो सब है...!
ReplyDeleteबहुत खूब...!
adrniy anu g nmskr ,aapke dil ki kavyatmak prastuti hain apki sari kavitayen jo kaisa hai meri ek ghazal ki in panktiyon sa bahut kuchh hai .........washington london dimaag se /dil se nai dilli lagti hai........
ReplyDeleteमुझमें तू है , तुझमें मैं हूँ ,
ReplyDeleteभेद रहा न कोय |
कुछ इसी तरह की .
सादर