"अहा ! ज़िन्दगी" के जुलाई माह के अंक में मेरी ये चिट्ठी प्रकाशित हुई है.....आप सभी को पढाना चाहती हूँ....बिटिया को विदा करके पिता क्या सोचते हैं...क्या उम्मीद रखते हैं...क्या समझाइश करते हैं.....
(ये मेरी अब तक की सबसे लंबी पोस्ट है...ज़रा धीरज से पढियेगा :-)
प्रिय अनु,
(ये मेरी अब तक की सबसे लंबी पोस्ट है...ज़रा धीरज से पढियेगा :-)
प्रिय अनु,
तुम्हारे विवाह के बाद ये मेरा पहला पत्र है. यकीं ही नहीं हो रहा अब तक कि हमारी छोटी सी,शरारती,चुलबुली बिटिया अब बड़ी हो गयी और ब्याह कर हमसे दूर हो गयी है(दिल से नहीं.)
बेटियों को विदा करके अकसर मां-बाप थोडा फ़िक्र मंद होते हैं उनके भविष्य को लेकर.हम भी हैं...पत्र तुम्हें इसी आशय से लिख रहा हूँ .
वैसे आमतौर पर माएं ये फ़र्ज़ अदा करतीं हैं मगर बचपन से तुम भावनात्मक तौर पर मुझसे ही ज्यादा करीब रहीं .
जब कभी तुम व्यथित होतीं, अपनी भीगीं पलकें पोंछने को मां का आँचल नहीं मेरा कंधा खोजा करती थी.....सो तुम्हारी मां का आग्रह था कि ये पत्र तुम्हे मैं ही लिखूँ.
बेटा मुझे तुम्हारी समझदारी पर कोई शंका नहीं है मगर फिर भी कुछ बातें तुमसे कहना चाहता हूँ....जैसा तुम अकसर कहती हो कि"जल्दी मुद्दे पर आइये " मैं भी शुरु करता हूँ अपनी बात, बिंदुवार....
साथ फेरे के साथ सात वचन लेकर तुम ब्याहता कहलायीं.अब मेरी ये सात बातें गाँठ बाँध कर सुखी जीवन व्यतीत करो ये कामना है मेरी.
पहली बात- तुम ससुराल में हो और अब वही तुम्हारा घर है.
मगर ये बात ध्यान रखना कि जिस घर में तुम पली बढ़ी हो,तुम्हारा मायेका,वो भी सदा तुम्हारा रहेगा....तुम्हारा संबल बनेगा.
बिटिया हमने तुम्हें पराये घर भेजा है,पराया नहीं किया है.
दूसरी बात- ससुराल में सभी का उचित मान-सम्मान करना.बड़ों को शिकायत का कोई मौका न देना.
मगर बिटिया कोई तुम्हारा अपमान करे तो संयम और विनम्रता से अपना विरोध दर्ज़ कराना.अपमान सहना किसी भी सूरत में उचित नहीं है.
तीसरी बात-सबको अपना समझना. तुम्हारी हर चीज़ पर उनका भी हक़ है.और वैसे ही तुम्हें भी अधिकार है ससुराल की हर चीज़ को अपना समझने का.कोई इच्छा मन में दबा कर न रखना,तुम्हें पूरी उम्र वहाँ गुजारनी है.कुंठित होकर जीने से ह्रदय में स्नेह नहीं रहता.
चौथी बात- पति को अपना मित्र समझना.तुम्हारी ओर से प्रेम और सम्मान में कोई कमी ना रहे...और व्यवहार संतुलित हो.तभी तुम भी पाओगी भरपूर प्रेम और मान.
हो सकता है उनके ह्रदय में स्थान बनाने में तुम्हें वक्त लगे,परन्तु अपने प्रयासों में कमी ना होने देना.रिश्ते मुट्ठी में बंद रेत की तरह होते हैं.....मुट्ठी हौले से बांधना....ज्यादा कसने से रेत फिसल जाती हैं और रह जाते हैं खाली हाथ.
पांचवी बात-अपने स्वभाव में ठहराव लाना.अब तुम्हारे ऊपर एक परिवार का दायित्व है.मगर अपने विचारों में कभी ठहराव न लाना.अपनी कल्पनाशीलता को मत बांधना....अपने व्यक्तित्व की बाढ़ को मत रोकना,इसे निखरने देना दिन-प्रतिदिन.
छटवीं बात- सभी की आज्ञा का पालन करना तुम्हारा कर्त्तव्य होना चाहिए.मगर ध्यान रहे समाज के प्रति भी तुम्हारे कुछ कर्त्तव्य हैं.जैसे, जब तुम गर्भवती हो तब किसी के भी कहने से लिंग जांच न कराना.यदि कन्या जन्म ले तो भी उसका स्वागत करना,और उसको अपनी तरह दृढ़ और सुशील बनाना...ससुराल में पल रही किसी भी कुप्रथा को न मानने का तुम्हें पूरा अधिकार है.
सातवीं बात-नया घर,नये लोग,नया परिवेश.....कभी ना कभी अकेलापन लगेगा,घबराहट भी होगी,उदासी भी घेरेगी.ईश्वर पर विश्वास रखना...और उससे ज्यादा ज़रूरी है कि खुद पर यकीं रखना.जैसे मुझे यकीन है तुम पर और अपने दिये संस्कारों पर.
सदा खुश रहो
सस्नेह
तुम्हारा पिता.
anu papa ki ye sikh har beti ke aanchal mein bandh jaaye to duniyaa badal jaaye waise duniyaa badal rahi hai... papa sach mein bahut pyaare hote hai
ReplyDeleteकाश भारत का हर पिता अपनी बेटी को ऐसी ही चिट्ठी लिखे और बेटी उसे गाँठ बाँध ले..तो शायद फिर कोई घर कभी न टूटे.
ReplyDeleteबहुत ही सारगर्भित पत्र!
ReplyDeleteसचमुच बहुत अच्छी सीख दी है आपके पापा ने, मुझे माँ याद आ गई. शुभकामनायें...
ReplyDeleteआठवीं बात: चिट्ठी लिखते रहना ।
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट
ReplyDeletemarmsparshi rachna
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सटीक सीख .... अहा ! ज़िंदगी मे प्रकाशित होने के लिए बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeletewaah dil khush ho gaya sabhi betion ke liye upyogi....
ReplyDeleteज्यादातर समस्याएं व्यवहार से पैदा होती है...सो बहुत उपयोगी पोस्ट.बधाई
ReplyDeleteइस प्रकाशित पत्र के लिये बहुत बहुत बधाई !
ReplyDeleteआजकल एक ऐसे ही स्नेही पिता की जरुरत है बेटी के लिये ....
vese har mata aur pita apni bitiya ke liye yahi bhav rakhta he,par use vyakt karna badha mushkil ho jata he,is mukhar abhivyakti ke liye badhayee.keepitup
ReplyDeletedil ko chune wali rachna.....
ReplyDeletevese sabhi mata aur pita apni bitiya ke liye yahi bhav apne man me rakhate hen,par unhe vyakt karna aasan nahi hota he,jaisa aapne ise aasan bana diya he,badhaaee ho..
ReplyDeleteव्यावहारिक पत्र
ReplyDeleteसुन्दर
सुंदर, सटीक सीख ....बधाई
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी चिट्ठी लिखी है।
ReplyDeleteशिखा जी ने सही बात कही।
आहा जिंदगी मे प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई!
सादर
एक पिता की सीख सभी के लिए -
ReplyDeleteWah
ReplyDeleteWah... Bha gayi.. Bahut achchi rachna hai <3
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम ...मन को छूती प्रस्तुति .. प्रकाशन के लिए बधाई सहित शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteयह चिट्ठी अनुकरणीय है ... समझदारी यही होती है - तालमेल
ReplyDeleteसंभाल के रख ली है ये पोस्ट ... ये चिट्ठी ... काम आने वाली है ...
ReplyDeleteस्नेहिल. संबल देती और सीख देती पाती . हर पुत्री के लिए पिता जी ऐसी सीख गांठ बांध लेने लायक होती है . बधाई .
ReplyDeleteबहुत ही सही लिखा है आपने !!
ReplyDeleteएक पिता की सोच और सीख को बखूबी आपने सही ढंग से अपनी पोस्ट में उतारा है !!
हर ईक बिटिया को इस पोस्ट से सीख लेनी चाहिए .... बड़े काम की है :)
सुंदर सी पोस्ट के लिए बधाई !!
साभार !!
sundar!
ReplyDeleteबहुत उपयोगी और प्यारी चिट्ठी है...
ReplyDeleteदिमाग में बिठा लिया है
काम आएगी कभी...:-)
प्रकाशन के लिए बधाई...:-)
भावभीने से अधिक व्यावहारिक... बधाई। ऐसे ही लिखती रहें..
ReplyDeleteसारगर्भित पत्र!
ReplyDeleteकविता छपने की बधाई...!!बहुत सार्थक ...संग्रहणीय पत्र ....!!
ReplyDeleteशुभकामनायें.
बहुत सुन्दर और सार्थक सीख...
ReplyDeletesach pita ki sachi or achi sikh
ReplyDeleteपढ़कर मन भाव-विभोर हो गया !:)
ReplyDeleteकाश! ऐसे ही कोई पिता या माँ, अपने पुत्र को भी कुछ सीख देते और समझाते..... :))
पिता की पाती , पुत्री के नाम --संग्रहणीय पोस्ट .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया संस्कार दिए में चिट्ठी में .
पिता का पत्र पुत्री के नाम...जिसमें आशा, विश्वास, प्रेरणा, प्यार सब कुछ है...
ReplyDeleteकविता के प्रकाशन के लिए बधाई !!
सस्नेह
पिता का आशीष बहुमूल्य ही होता है...मन भावविभोर होगया ...सार्थक पोस्ट..अनु...शुभकामनाएं
ReplyDeleteआहा जिंदगी मे प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteआहा जिंदगी मे प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई!
ReplyDeletebahut sunder pita ke dvara itni sunder baten to beti ko atmvishvash to dega sath naye rishte nibhane me madadt bhi karega
ReplyDeleterachana
Thanks for your visit to my blog and lovely comment. Cheers!
ReplyDeleteek beti ko di gai pita ki yah sarthak sikh kisi bhi ghar ko swarg banaane ko pryaapt h......man khush ho gaya itni sundar aur sarthak post ko padhkar....aapki sahmati se apne pannon me ise sahejana chahungi
ReplyDeleteबहुत ही नायब चिट्ठी...
ReplyDeleteकई बार पढ़ा.....
ये मुझे भी काम आएगी......
अनु जी! बहुत भावुक कर दिया है आपने, ये चिट्ठी तो अनमोल है!!
ReplyDelete"ये मेरी अब तक की सबसे लंबी पोस्ट है"
ReplyDeleteफिर भी मुझे लंबी तो बिलकुल नहीं लगी, :)
दिल खुश हो गया पढ कर अनु जी।
ReplyDeleteअहा! जिंदगी मे प्रकाशित होने पर बधाई।
प्रतीक संचेती
.रिश्ते मुट्ठी में बंद रेत की तरह होते हैं.....मुट्ठी हौले से बांधना....ज्यादा कसने से रेत फिसल जाती हैं और रह जाते हैं खाली हाथ.
ReplyDeleteकाश मेने तुम्हारी चिट्ठी पहले पढ़ ली होती -----
सुन्दर भाव
ReplyDeleteमन बहुत भावुक हुआ पढ़कर, आपकी सभी रचनाएं प्रशंसनीय है... आपको शुभकामानएं।
ReplyDeletehttp://theparulsworld.blogspot.in
प्रेरक बातें .. जो अमित छप छोड़ जाती हैं मन पर ..
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