कहते हैं हर रिश्ता मोहब्बत पर टिका होता है .....मगर कुछ रिश्तों की आदत पड़ जाती है........फिर उनमे प्यार हो न हो वे टूटते नहीं.......एक दूसरे की कोई खास ज़रूरत बेशक न हो मगर इक-दूजे बिना काम भी नहीं चलता.......बेशक ढेरों शिकायतें हो एक दूसरे से,मगर हैं संग संग.........
साथ रहने की कोई मजबूरी नहीं फिर भी साथ हैं,साथ की आदत जो है !!!!!
कहीं ये आदत ही तो प्यार नहीं????
साथ रहने की कोई मजबूरी नहीं फिर भी साथ हैं,साथ की आदत जो है !!!!!
कहीं ये आदत ही तो प्यार नहीं????
पुकारता है मुझे
मेरे नाम से
और कहता है कि
पहचानता नहीं !
जानती हूँ कि
वो जानता है मुझे,
और ये भी सच है कि
पहचानता नहीं...
तभी तो
तभी तो
बेपरवाह है मुझसे
कोई फ़िक्र नहीं मेरी...
कहती हूँ
छोड़ दे मेरा साथ...
मगर
ये बात भी मेरी
वो कमबख्त
मानता नहीं...
(भीतर ही भीतर डरती भी हूँ कि कहीं मान न ले...)
-अनु
(भीतर ही भीतर डरती भी हूँ कि कहीं मान न ले...)
-अनु
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
सचमुच ऐसा होता है, कभी -कभी कुछ रिश्तों की आदत पड़ जाती है. सुन्दर रचना
ReplyDeleteइस रचना को कई अर्थो में एन्जॉय किया जा सकता है, मैं मानता हूँ की हो नहो यह अजनबी हमारा ही एक रूप हो -क्योंकि स्वयं से अधिक अनजानापन और किस से है हमारा...? सुन्दर रचना.
ReplyDeleteये बात भी मेरी वो कमबख्त मानता नहीं...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति,,,
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
Harek cheez hai apni zagah thikane par......it feels comfy and secured , if certains things , relations stay , as and how they were ! kai dino se shikayat nahi zamane se....! :)
ReplyDeleteHarek cheez hai apni zagah thikane par......it feels comfy and secured , if certains things , relations stay , as and how they were ! kai dino se shikayat nahi zamane se....! :)
ReplyDeleteसाथ रहने की आदत पड़ चुकी है...फिर क्यूँकर मानेगा वो...
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण, हृदयस्पर्शी रचना !
ReplyDeletevery well expressed--even those close to us do not know us well.
ReplyDeletesweet expression!
ReplyDeleteऐसे रिश्ते प्यार के रिश्ते ही होते हैं ... बस हमारा ईगो मानने कों तैयार नहीं होता ...
ReplyDeleteसच के करीब है ये रचना ..
सुन्दर रचना अनु जी
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ... आभार
ReplyDeleteयह कविता ऐसे है जैसे कोई फूल की पत्तियाँ तोड़ता हुआ कह रहा हो- he loves me....he loves me not....he loves me....he....और वह सिलसिला उस पंखुड़ी पर खत्म होता है जो कह डालती है- Hold. Love is the last word.
ReplyDeleteलगता तो है की यही प्यार है...
ReplyDeleteआपकी बाते और रचना दोनों ही बहुत
प्यारी है...बहुत सुन्दर......
:-)
रिश्ते भी जिंदगी की तरह बड़े पेचीदे होते हैं .
ReplyDeleteसमझने की कोशिश भी करें तो कहाँ समझ आते हैं .
जानती हूँ कि
ReplyDeleteवो जानता है मुझे,
और ये भी सच है कि
पहचानता नहीं...
जानने और पहचानने के दरमियान कहीं कुछ तो है तभी तो 'भीतर ही भीतर डरती भी हूँ कि कहीं मान न ले'
बहुत सुन्दर भावनात्मक रचना
वाह अनामिका ।।
ReplyDeleteबधाई ।
यही नाम होगा ।।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (01-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आपका बहुत बहुत शुक्रिया शास्त्री जी.
Deleteरिश्तों की प्रमेय हल करना जटिल कार्य है . जो साथ रहते है उनमे भावनात्मक बंधन तो होता ही है भले ही वो अभिव्यक्त ना करें .शायद वो भी जानते है की आप ना जाने के लिए ही उन्हें जाने को बोलती हो .
ReplyDeleteदिल है कि मानता ही नहीं....
ReplyDeleteबेपरवाह है मुझसे
ReplyDeleteकोई फ़िक्र नहीं मेरी...
कहती हूँ
छोड़ दे मेरा साथ...
मगर
ये बात भी मेरी
वो कमबख्त
मानता नहीं...
रिश्तों की प्रमेय
अपने अपने अंदाज़ हैं ...
ReplyDeleteशुभकामनायें !
मन की कोमल .. सुंदर अभिव्यक्ति ....!!
ReplyDeleteशुभकामनायें अनु ...!
... दिल है कि मानता नही ☺
ReplyDeleteरिश्तों की अजीब कश्मकश पर बड़ी प्यारी
ReplyDeleteसुंदर भाव रचे है रचना में,
क्या कहने
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत प्यारी रचना अंतिम लाइन ने तो मन मोह लिया
ReplyDeleteयही तो अनामी रिश्तों की संजीदगी होती है।
ReplyDeleteशयद सभी की जिंदगी में ऐसा ही कोई अनाम जुड़ जाता है।
ReplyDeleteअच्छी कविता।
भीतर भीतर ही डरती हूँ कि कहीं मान न ले ... :):)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है.
ReplyDeleteआभार इस प्रस्तुति के लिए
और मेरे ब्लॉग पर आने के लिए भी.
अनु जी को सुंदर रचना के लिये बधाई....
ReplyDeleteउहापोह मन में उठे, यही प्रेम संकेत
ज्यों ज्यों मुट्ठी बाँधिये, त्यों त्यों फिसले रेत.
सुंदर रचना... वाह!
ReplyDeleteरेखाएँ सब भिन्न हैं, भिन्न सभी हैं हाथ।
जगत भले ये छोड़ दे, पर ना किस्मत साथ॥
सादर।
फिकर नहीं...आपकी यह बात अक्भी मानी नहीं जायेगी :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है.
सुन्दर भावपूर्ण कविता ...
ReplyDeleteडरता तो भीतर ही भीतर वह भी है |
ReplyDeleteबहुत भाव पूर्ण अभिवयक्ति |
ये कैसा प्यार अनु जी ?.... जानता है पर पहचानता नहीं...... परन्तु समर्पण पूरा. ....
ReplyDeleteचाहत दोनों ओर से बराबर है....... प्यार की ये अदा पसंद आई. सुन्दर ! आभार !!
भावनाओं से पूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteजटिल रिश्तों की सुंदर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteमगर
ReplyDeleteये बात भी मेरी
वो कमबख्त
मानता नहीं...
कमाल की पंक्तियाँ है.. सुन्दर अभिव्यक्ति.
wah annu ji khubsurat bhav.....badhai ho.
ReplyDeleteawsome di, beautifully told dil ki baat
ReplyDeleteयह डर ...साथ-साथ चलते हैं
ReplyDeletebahut pyaari rachna :-)
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