हे प्रभु!
मुक्त करो मुझे
मेरे अहंकार से.
दे दो कष्ट अनेक
मुक्त करो मुझे
मेरे अहंकार से.
दे दो कष्ट अनेक
जिससे बह जाये
अहं मेरा
अश्रुओं की धार से....
मुक्ति दो मुझे
जीवन की आपधापी से
बावला कर दो मुझे
बिसरा दूँ सबको...
सूझे ना कुछ मुझे..
सिवा तेरे..
डाल दो बेडियाँ
मेरे पांव में..
कुछ अवरोध लगे
इस द्रुतगामी जीवन पर..
और दे दो मुझे तुम पंख...
कि मैं उड़ कर
पहुँच सकूँ तुम तक...
शांत करो ये अनबुझ क्षुधा
ये लालसा,मोह माया..
छीन लो सब
जो 'मेरा' है
आँखों को स्वप्न से रीता कर दो..
जिससे मैं भर लूँ
तुम्हें अपने नैनों में
धर लूँ ह्रदय में..
हे प्रभु!
मन चैतन्य कर दो..
मुझे अपने होने का
बोध करा दो..
मुझे मुक्त करा दो....
-अनु
अहं मेरा
अश्रुओं की धार से....
मुक्ति दो मुझे
जीवन की आपधापी से
बावला कर दो मुझे
बिसरा दूँ सबको...
सूझे ना कुछ मुझे..
सिवा तेरे..
डाल दो बेडियाँ
मेरे पांव में..
कुछ अवरोध लगे
इस द्रुतगामी जीवन पर..
और दे दो मुझे तुम पंख...
कि मैं उड़ कर
पहुँच सकूँ तुम तक...
शांत करो ये अनबुझ क्षुधा
ये लालसा,मोह माया..
छीन लो सब
जो 'मेरा' है
आँखों को स्वप्न से रीता कर दो..
जिससे मैं भर लूँ
तुम्हें अपने नैनों में
धर लूँ ह्रदय में..
हे प्रभु!
मन चैतन्य कर दो..
मुझे अपने होने का
बोध करा दो..
मुझे मुक्त करा दो....
-अनु
हे प्रभु!
ReplyDeleteमन चैतन्य कर दो..
मुझे अपने होने का
बोध करा दो..
मुझे मुक्त करा दो....
भावमय शब्द संयोजन .. .बहुत बढिया
सुन्दर भावमयी अर्चना....
ReplyDeleteआज भक्तिरस ..अच्छा लगा यह भी.
ReplyDeleteहे प्रभु!
ReplyDeleteमन चैतन्य कर दो..
मुझे अपने होने का
बोध करा दो..
मुझे मुक्त करा दो....
बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,बेहतरीन भावपूर्ण प्रार्थना ,,,,,
...या तो बेडियाँ मांग लो
ReplyDeleteया फिर पंख लगवा लो...
प्रभु को असमंजस में काहे डालती हो बालिके ...?
बालिके को नसीहतें देने वाले -
Deleteहे स्वामी -
पैर से तैरना है क्या ?
उड़ना है तो पंख से ही उड़ लेगी बालिका ||
सादर वंदना
महाप्रभु की ||
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
आंसुओं की धार से उद्धार चाहे, इक्स्प्रेषन गजब ।
ReplyDeleteयाद हरदम आपकी सुधबुध भुलाए, इक्स्प्रेषन गजब ।
पैर में हों बेड़ियाँ अवरोध आये तेज गति में-
दो पंख दे दो ताकि तेरे पास आयें , इक्स्प्रेषन गजब ।।
लालसा यह मोह माया भूख सारी छीन लो
रीते नयन में ताकि तुमको बसायें, इक्स्प्रेषन गजब।।
शुक्रिया रविकर जी ,
Deleteमोह माया के जाल से मुक्त योगी या भुक्त भोगी--- हर काम की एक उम्र होती है .
ReplyDeleteवर्ना सब नित्यानंद बन जायेंगे .
रचना सुन्दर भावयुक्त है.
Nice poem and beautiful image of gateway to heaven !
ReplyDelete--भाव व ग्यान सौन्दर्यमय काव्य...
ReplyDelete------सत्य ही अहन्कार व जीवन की आपाधापी, अति-भौतिकता से मुक्त होकर ही मन चैतन्य होता है और हदय मे प्रभु का बास होपाता है....
सुंदर भाव...
ReplyDeleteप्रभु के प्रति अगाध आस्था...
भक्तिमय रचना अनु...बहुत पसंद आई|
सस्नेह
aaj pahli bar aapke blog par dastak di. sachmuch ek se badhakar ek rachanayen hain...
ReplyDeleteitna hi kahna chahunga ki sachmuch blog ka sheershak hi aapke bare me poori jankari de deta hai...
dil ki gaharaiyon se nikali in rachanaon ko padhakar ajeeb si anubhuti hoti hai'''
कहा न -
ReplyDeleteनहीं हो सकते मुक्त
जब तक हो खामोश
जीतने की प्रखरता हो
और हो हार स्वीकार
.... नहीं हो सकते मुक्त
सत्य असत्य का फर्क मालूम है
पर हों जुबां पर ताले
नहीं हो सकते मुक्त
बहुत सुंदर !!!!!
ReplyDeleteप्रभू से हो कोई जुगाड़ अगर
मेरे को भी मुक्त करवाना
पैसे की चिंता मत करना
पचास प्रतिशत मेरे नाम
पर खर्च कर ले जाना ।
कैसे हों मुक्त
ReplyDeleteहमने
खुद ही डाल रखी है
माया - मोह की बेड़ियाँ
करना होगा
खुद से खुद को मुक्त
मुक्ति की राह यहीं कहीं है ..
ReplyDeleteआपका प्यारा सा चिट्ठा
ReplyDelete"ब्लॉगोदय" एग्रीगेटर मे जोड़ दिया गया है, शुभकामनाएं।।
मुक्ति के लिए इश्वर से अनोखे अंदाज में प्रार्थना प्रशंसनीय लगी . अनुपम अगोचर शुभ परात्पर इश्वर अव्यक्त है वो ., जरुर सुनेंगे
ReplyDeleteहे प्रभु!
ReplyDeleteमन चैतन्य कर दो..
मुझे अपने होने का
बोध करा दो..
मुझे मुक्त करा दो.... इस छटपटाहट से मुक्ति कहा ???????
bhawpoorn.....
ReplyDelete..आमीन।
ReplyDelete.सुंदर भाव हैं इस कविता में।
जीवन की ऊहापोह और मुक्त होने की आकांक्षा ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव पिरोए आज की रचना मे ....!!
हे प्रभु!
ReplyDeleteमुक्त करो मुझे
मेरे अहंकार से.
दे दो कष्ट अनेक
जिससे बह जाये
अहं मेरा
अश्रुओं की धार से...
यह अश्रु भी बहुत है अहंकार को बहाने के लिये !
आज बिलकुल भक्ति रस में डूबी रचना लग रही है
सुंदर रचना !
हे प्रभु!
ReplyDeleteमुक्त करो मुझे
मेरे अहंकार से.
दे दो कष्ट अनेक
जिससे बह जाये
अहं मेरा
अश्रुओं की धार से....
awesome...
.
हे प्रभु!
ReplyDeleteमुक्त करो मुझे
मेरे अहंकार से.
दे दो कष्ट अनेक
जिससे बह जाये
अहं मेरा
अश्रुओं की धार से....
.........................
I have no Words to say... Speechless...
खुद के अहंकार को ख़त्म करने की अनोखी गुज़ारिश.... अक्सर मैं बिना कमेन्ट किया चला जाता हूँ लेकिन आज नहीं जा सका.... बेहतरीन....
सुंदर प्रार्थना! शुभकामनायें!
ReplyDeleteaapne bahut hi rachna likhi hai .
ReplyDeletepar is maya -jaal se chhotkaara to tabhi milega jab prabhu chahenge.
kyon ye jivan unhone hame jeene ke liye hi diya na ki unse bhagne ke liye----
bahut hi badhiyapost
badhai
poonam
बहोत अच्छी रचना है.
ReplyDelete:) (:
धन्यवाद
माया-मोह भी प्रभु की ही सृष्टि का एक अंग है, फिर उससे पलायन कैसा ?
ReplyDeleteकविता के आध्यात्मिक भाव मन को प्रभावित करते हैं।
इस सुंदर रचना के लिए बधाई।
स्वयं से परिचित होने और स्वयं में ही ठहर जाने की इच्छा सनातन है. बहुत सुंदर कविता.
ReplyDeleteApki har post mujhe sochne pe majbur kar deti h....gehri rachna anu ji.....
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना ...आभार
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रार्थना के लिए बधाई..
ReplyDeleteअनु जी,अलग विषय.अलग तराह. सुन्दर अनुभूति.
ReplyDeleteitna moh bhang achcha nahin..maaya me bhi reh lo praani....
ReplyDeleteकुछ कुछ ऐसी ही प्रार्थना मेरी भी है!
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