भास्कर भूमि में प्रकाशित http://bhaskarbhumi.com/epaper/index.php?d=2012-06-11&id=8&city=Rajnandgaon
रात मैंने ख्वाब में
सूरज को देखा था.
जल उठा था मेरा ख्वाब,
मेरी बंद आँखों में...
मेरे आंसुओं की नमी भी
बचा न सकी उसे जलने से....
अब कैसे बीनूं वो अधजले टुकड़े!!
कैसे सृजन करूँ एक नये ख्वाब का,
जिससे देख सकूँ
एक चाँद अबकी बार....
एक पूरा चाँद....
जो भर दे शीतलता
मेरी धधकती आँखों में,
शांत कर दे उस आग को
जो जला गया सूरज, मेरे सीने में...
इसके पहले कि
इस धुएँ से मेरा दम घुट जाए...
जी जाऊं मैं
ReplyDeleteमेरे ख़्वाबों में......
बहुत ही बढि़या प्रस्तुति ...आभार
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..अनु । मै तो यही कहुँगी... नित नया सृजन करो ..ख्वाब का
ReplyDeleteकाश!! मुझे नींद आ जाये....
ReplyDeleteऔर आ जाये चाँद
मेरे ख़्वाबों में..
मन मोहक सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
acchi abhiwayakti .......
ReplyDeleteओह सूरज की रौशनी जला गयी ख़्वाबों को ...
ReplyDeleteजीवन में अति भी दुखदायी होती है ...
मन को छू गयी ये तड़प ....!!
बहुत सार्थक बात कही है ...अनु ...
:) :)
ReplyDeleteनित नए ख्वाब बुनो नित नया चाँद..
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति.
:-)
ReplyDeleteकाश!! मुझे नींद आ जाये....
ReplyDeleteऔर आ जाये चाँद
मेरे ख़्वाबों में..
जी जाऊं मैं
मेरे ख़्वाबों में......
....बहुत खूब! लाज़वाब अहसास और उनकी प्रभावी अभिव्यक्ति..बधाई !
आ जाए चाँद ख्वाबों में ही सही ...
ReplyDeleteजी लू कुछ पल नींदों में ही सही ...
बहुत बढ़िया !
behad khoobsurat rachna..... hridaysparshi!
ReplyDeleteआपका बहुत शुक्रिया शास्त्री जी.
ReplyDeleteइसे पढ़ते हुए
ReplyDeleteदेखने लगा मैं भी
एक ख्वाब
कि ख्वाब मे
एक और ख्वाब को
सहेज लिया है मैंने :)
बहुत ही अच्छा लिखा आपने।
सादर
काश!! मुझे नींद आ जाये....
ReplyDeleteऔर आ जाये चाँद
मेरे ख़्वाबों में..
जी जाऊं मैं...!!
बस इससे ज्यादा कुछ नहीं....!!
शीतलता लेकर चाँद आये सृजन हो नए ख्वाब का... बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteऊर्जा सूरज से और शीतलता चाँद से
ReplyDeleteक्या बात है ... ख्वाब तो उभरेंगे ही
बड़ी प्यारी सी कविता है...
ReplyDeletebahut bahut badhiya prastuti-----
ReplyDeletechand ki shitalta aapke spno ko apni chandni se nahla de
inhi shubh kamnaon ke saath
poonam
अनुजी मैं तो चाहूंगी ...हर रात एक नया चाँद आपके ख्वाबों में आये .......जिसकी छिटकी चान्दिनी ....अपनी सारी शीतलता उड़ेल दे आपके जीवन में ......और धत्ता बता दे सूरज को .....!!!!!!
ReplyDeleteचाँद की शीतलता, ह्रदय की उद्धिग्नता से पार पा ही लेगी .भाव प्रवणता को को एक आयाम देती रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावों से रची गई कविता का भाव अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteअब कैसे बीनूं वो अधजले टुकड़े!!... और कैसे फिर से सपने देखने का साहस करूँ
ReplyDeleteहर बार की तरह शानदार प्रस्तुति
ReplyDeletevery soft n sweet creation...
ReplyDeleteअधजले टुकड़े समेट फिर से ख्वाब देखने का साहस करना
ReplyDeleteएसे साहस को सलामः)
इसके पहले कि
ReplyDeleteइस धुएँ से मेरा दम घुट जाए...
काश!! मुझे नींद आ जाये....
और आ जाये चाँद
मेरे ख़्वाबों में..
जी जाऊं मैं
मेरे ख़्वाबों में......
बहूत .बहूत सुंदर पंक्तीया..
बहूत सुंदर रचना...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.. ..
ReplyDeleteहमेशा की तरह मृदु भावों की सहज अभिव्यक्ति
ReplyDeleteख्यालो और एहसासों की कहानी की बहुत ही . हर पंक्ति खुद में अर्थ समेटे है.......
ReplyDeleteसूरज की तपिश जलाती ही नहीं अपितु जीवन भी तो देती है अनु जी।...
ReplyDeleteऔर चाँद तो एक छलावा है। कभी पूरा वृत्त लिए- लोक लुभावन रूप में, कभी संतरे की फांक सी और कभी लुप्त।.......
सुन्दर रचना।
awesome! जल उठा था मेरा ख्वाब....कैसे सृजन करूँ एक नये ख्वाब का....
ReplyDeleteख़्वाबों और ख्यालों में बनते बिगड़ते सपने ..सूरज की तपिश , आंसूओं की नमी और चाँद की शीतलता .....सब कुछ प्रासंगिक है ...अब नींद आ जायेगी ,,,,!
ReplyDeleteएक पूरा चाँद....
ReplyDeleteजो भर दे शीतलता
मेरी धधकती आँखों में,
शांत कर दे उस आग को
बहुत सुंदर भावनाएं लिये अर्थपूर्ण कविता.
बधाई.
मेरे आंसुओं की नमी भी
ReplyDeleteबचा न सकी उसे जलने से....
अब कैसे बीनूं वो अधजले टुकड़े!!
कैसे सृजन करूँ एक नये ख्वाब का,
जिससे देख सकूँ
एक चाँद अबकी बार....
VAKAI BAHUT HI SUNDAR AUR ANTARMAN KO CHHOONE WALI ABHIVYKTI LAGI .......ANU JI BADHAI SWEEKAREN
seedhi dil se nikli huyi shandaar kavita....
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDelete(अरुन =arunsblog.in)
Exquisite and charming poem.
ReplyDeleteअब कैसे बीनूं वो अधजले टुकड़े!!
ReplyDeleteकैसे सृजन करूँ एक नये ख्वाब का,
jiwan ke bahu aayami tukade aur in tukadon men jite hum .
kabhi naw bailgarhi par to kabhi baigarhi naw par ,sukh dukh ka
yahi sang sath ,dubate utarate prashna aur usike sath hum aage pichhe,
jiwan ki aapa dhapi ...........
सुंदर आत्ममुग्धता
ReplyDeleteक्या बात है...
ReplyDeleteसुंदर ,सरल मन की चाह
ReplyDeleteसूरज या कि चांद-जो भी है,भीतर ही है!
ReplyDeleteसुन्दर कल्पना । कोमल चाह ।
ReplyDeleteअदभुत....अदभुत......!!
ReplyDeleteसुंदर चाह ..बहुत सुंदर..बधाई..
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