इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Friday, June 22, 2012

सन्नाटा....

सूना रास्ता ये
जाने  किधर को जाता है...
सीधी  सड़क है
आसान  सी राह दिखती है..
मगर कोई राहगीर नहीं!!
सन्नाटा सा पसरा है...
अक्सर कुछ उदास चेहरे
वहाँ से आते दिखते,
खाली हाथ
आँखों में लाल डोरे
शायद राख से सने हाथ...
कहते थे,
विदा  कर आये किसी को...
फिर ना जाने क्यों 
लोग कहते हैं
कि ये सड़क कहीं नहीं जाती??


-अनु 

50 comments:

  1. फिर ना जाने क्यों
    लोग कहते हैं
    कि ये सड़क कहीं नहीं जाती??

    गहन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट लेखन ... आभार

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  2. अनुजी, बहुत उदास कर देनेवाली रचना.

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  3. बहुत ही गहन कविता।


    सादर

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  4. खूबसूरत प्रस्तुति ।

    बधाई अनु जी ।।

    सन्नाटा काटे खड़ा, जड़ा-पड़ा इंसान ।

    क्षिति-जल पावक बाँट ले, गगन समीर सयान ।

    गगन समीर सयान, ध्यान देने की बातें ।

    अपनापन अज्ञान, सिसकते रिश्ते नाते ।

    अंतिम घाट शरीर, पीर ना कोई बांटा ।

    रखिये मन में धीर, तोडिये मत सन्नाटा ।।

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  5. बहुत मार्मिक गहन भाव समेटे हुए शब्द बढ़िया प्रस्तुति अनु जी

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  6. अंतिम यात्रा भी एक यात्रा होती है .
    जब यात्री चुप और दुनिया रोती है .

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  7. राह में चलता चले,मिल जायेंगे मनमीत भी,
    पीछे मुड़े ना ,देख आगे, आ जायेंगे वो कभी ||

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  8. उस सड़क पर कभी वापस नहीं आने के लिए जाना है...दिल को छूती रचना!

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  9. ये सन्नाटा बहुत बेधता है ........

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  10. अनुपम भाव...सुन्दर रचना..

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  11. इस सड़क से वापिस आना नहीं होता...बहुत गहन और मार्मिक प्रस्तुति....

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  12. इस सन्नाटे में भी गूंजता है कुछ, तभी तो जन्म लेती है ऐसी कविता...!
    मार्मिक!

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  13. नदी किनारे धुआं उठत है, मै जानू कुछ होय.
    जिसके कारन मै जली ,वही न जलता होय

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  14. भावो की सुंदर अभिव्यक्ति ....

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  15. ओह..इतना सन्नाटा क्यों ?
    कविता गहन अर्थ लिए है.

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  16. गहन सन्नाटा बिखेर दिया आपने तो
    ......
    ????

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  17. गहन सन्नाटा लिए मार्मिक रचना.. अनु सस्नेह..

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  18. गहन भाव लिए
    बेहतरीन रचना...
    :-)

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  19. रिक्तता रिस गयी गहरी ....आकुल व्यकुल मन ....पसरा है सन्नाट सा सन्नाटा ....ये प्रभु तेरी कैसी लीला है ....सब कुछ पा कर सब कुछ लुटाना क्यों पड़ता है ...??????
    गहन अभिव्यक्ति ....!!

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  20. सचमुच बहुत लम्बे सफ़र पर ले जाती है यह राह फिर भी लोग कहते है कहीं नहीं जाती ये सड़क... गहन भाव

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  21. गहरा सन्नाटा
    सीधी सड़क
    पर
    नहीं जाना चाहता
    खुद कोई भी
    लोग कर आते हैं विदा
    अलविदा कह कर
    पर फिर भी
    सच है कि
    सड़क कहीं जाती नहीं

    बहुत गहन अभिव्यक्ति

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  22. सबको जाना है उस मंजिल तक, जिसके आगे राह नहीं है...

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  23. शायद राख से सने हाथ...
    कहते थे,
    विदा कर आये किसी को...

    मन को उदास करती रचना,,,,

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  24. यही राह तो कहती है -
    तेरा मेला पीछे छूटा रही चल अकेला...........

    सन्नाटा ही सन्नाटा , किंतु हृदय है शोर
    कैसे साधूँ कैसे बाधूँ ,मैं श्वासों की डोर ||

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  25. bahut hi dard bhari rachna.....acchi nahi bahut acchi lagi...

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    उम्दा लेखन, बेहतरीन अभिव्यक्ति


    चलिए
    हिडिम्बा टेकरी



    ♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥

    ♥ पहली बारिश में गंजो के लिए खुशखबरी" ♥


    ♥सप्ताहांत की शुभकामनाएं♥

    ब्लॉ.ललित शर्मा
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  27. कल 24/06/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  28. ये रास्ते तो निगल जाते हैं यादें सारी | बहुत मार्मिक प्रस्तुति |

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  29. सच कहा अंतिम यात्रा भी तो यात्रा ही है ...किसी के लिए दुःख किसी के लिए सुख ...

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  30. Anu this one poem is enough to make me follow your blog-it was what should i say-rongte khare ho gaye.

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  31. विदा कर आये किसी को...
    फिर ना जाने क्यों
    लोग कहते हैं
    कि ये सड़क कहीं नहीं जाती??

    मन भीग गया...बहुत संवेदनशील रचना ...

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  32. लोग कहते हैं
    कि ये सड़क कहीं नहीं जाती??
    samvedna ke sath sawal puchhti kavita !

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  33. बेशक बेहद आकर्षक लेखन
    उम्दा अभिव्यक्ति और और बहुत कुछ
    वाह बधाई

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  34. zindagi kabhi to sannate ko chir kar baahar niklegi....bahut sundar....

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  35. किसीसे मिलने पर जितनी खुशी होती है उससे ज्यादा बिछुडने का दुःख.

    सुंदर मार्मिक प्रस्तुति.

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  36. बहुत सुन्दर रचना ... कई बार लगता है जैसे ये रास्ते थम गए है !

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  37. विदा कर आये किसी को...
    फिर ना जाने क्यों
    लोग कहते हैं
    कि ये सड़क कहीं नहीं जाती??

    अनु जी गहन अभिव्यक्ति यही तो है जीवन जाने वाला चुप परम शांत ...दुनिया रोती और न जाने क्या क्या ..आभार
    भ्रमर ५

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  38. ये सड़क कहीं नहीं जाती.....हम इंसान ही चल पड़ते हैं, उस ठहरी सड़क पर! वो तो सिर्फ़ एक गवाह है....हमारी असली मंज़िल की !
    अनु जी, एक सिहरन सी दौड़ गयी....कहीं भीतर ही भीतर ! एक कड़वा सच !

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  39. Anu ji aaj hi koi purana dost tha usko fuk kar aaya hoon . Jab tak shamshan ke gate tak rahte hain sab kuch begana lagta hai or bahar niklte hi sab kuch chopat....ho jata hai...

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  40. ...अंत ....या एक नई शुरुआत ....!
    .....वाह अनुजी !!! बहुत ही सुन्दर ..!!!!!!!!!!!!!

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  41. ye bahut achhi lagi mujhe

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