सूना रास्ता ये
हर रचना है मेरे दिल की किताब का एक पन्ना .... धीरे धीरे सारी किताब पढ़ लेंगे...तब जान भी जायेंगे मुझे....कभी चाहेगे...कभी नकारेंगे... यही तो जिंदगी है...!!!
इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........
Friday, June 22, 2012
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नए पुराने मौसम
मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...
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मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...
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दुनिया में सबसे सुन्दर रिश्ता माँ और उसके बच्चे के बीच होता है......इस रिश्ते की वजह से जीवन में कई खट्टे मीठे अनुभव होते हैं.....सुनिए...
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इन दिनों, सांझ ढले,आसमान से परिंदों का जाना और तारों का आना अच्छा नहीं लगता गति से स्थिर हो जाना सा अच्छा नहीं लगता..... ~~~~~~~~~~~...
फिर ना जाने क्यों
ReplyDeleteलोग कहते हैं
कि ये सड़क कहीं नहीं जाती??
गहन भाव लिए उत्कृष्ट लेखन ... आभार
अनुजी, बहुत उदास कर देनेवाली रचना.
ReplyDeletepoignant!!!
ReplyDeleteबहुत ही गहन कविता।
ReplyDeleteसादर
खूबसूरत प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबधाई अनु जी ।।
सन्नाटा काटे खड़ा, जड़ा-पड़ा इंसान ।
क्षिति-जल पावक बाँट ले, गगन समीर सयान ।
गगन समीर सयान, ध्यान देने की बातें ।
अपनापन अज्ञान, सिसकते रिश्ते नाते ।
अंतिम घाट शरीर, पीर ना कोई बांटा ।
रखिये मन में धीर, तोडिये मत सन्नाटा ।।
बहुत मार्मिक गहन भाव समेटे हुए शब्द बढ़िया प्रस्तुति अनु जी
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteअंतिम यात्रा भी एक यात्रा होती है .
ReplyDeleteजब यात्री चुप और दुनिया रोती है .
राह में चलता चले,मिल जायेंगे मनमीत भी,
ReplyDeleteपीछे मुड़े ना ,देख आगे, आ जायेंगे वो कभी ||
चलता चले=चलते चलो
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या बात
उस सड़क पर कभी वापस नहीं आने के लिए जाना है...दिल को छूती रचना!
ReplyDeleteये सन्नाटा बहुत बेधता है ........
ReplyDeleteअनुपम भाव...सुन्दर रचना..
ReplyDeleteइस सड़क से वापिस आना नहीं होता...बहुत गहन और मार्मिक प्रस्तुति....
ReplyDeleteइस सन्नाटे में भी गूंजता है कुछ, तभी तो जन्म लेती है ऐसी कविता...!
ReplyDeleteमार्मिक!
नदी किनारे धुआं उठत है, मै जानू कुछ होय.
ReplyDeleteजिसके कारन मै जली ,वही न जलता होय
भावो की सुंदर अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteओह..इतना सन्नाटा क्यों ?
ReplyDeleteकविता गहन अर्थ लिए है.
गहन सन्नाटा बिखेर दिया आपने तो
ReplyDelete......
????
गहन सन्नाटा लिए मार्मिक रचना.. अनु सस्नेह..
ReplyDeleteगहन भाव लिए
ReplyDeleteबेहतरीन रचना...
:-)
रिक्तता रिस गयी गहरी ....आकुल व्यकुल मन ....पसरा है सन्नाट सा सन्नाटा ....ये प्रभु तेरी कैसी लीला है ....सब कुछ पा कर सब कुछ लुटाना क्यों पड़ता है ...??????
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति ....!!
Gahari Abhivykti...
ReplyDeleteसचमुच बहुत लम्बे सफ़र पर ले जाती है यह राह फिर भी लोग कहते है कहीं नहीं जाती ये सड़क... गहन भाव
ReplyDeleteगहरा सन्नाटा
ReplyDeleteसीधी सड़क
पर
नहीं जाना चाहता
खुद कोई भी
लोग कर आते हैं विदा
अलविदा कह कर
पर फिर भी
सच है कि
सड़क कहीं जाती नहीं
बहुत गहन अभिव्यक्ति
सबको जाना है उस मंजिल तक, जिसके आगे राह नहीं है...
ReplyDeleteशायद राख से सने हाथ...
ReplyDeleteकहते थे,
विदा कर आये किसी को...
मन को उदास करती रचना,,,,
यही राह तो कहती है -
ReplyDeleteतेरा मेला पीछे छूटा रही चल अकेला...........
सन्नाटा ही सन्नाटा , किंतु हृदय है शोर
कैसे साधूँ कैसे बाधूँ ,मैं श्वासों की डोर ||
bahut hi dard bhari rachna.....acchi nahi bahut acchi lagi...
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उम्दा लेखन, बेहतरीन अभिव्यक्ति
चलिए
हिडिम्बा टेकरी
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ पहली बारिश में गंजो के लिए खुशखबरी" ♥
♥सप्ताहांत की शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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आभार आपका.....
Deleteउत्तम !
ReplyDeleteकल 24/06/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
शुक्रिया यशवंत..
Deleteये रास्ते तो निगल जाते हैं यादें सारी | बहुत मार्मिक प्रस्तुति |
ReplyDeleteसच कहा अंतिम यात्रा भी तो यात्रा ही है ...किसी के लिए दुःख किसी के लिए सुख ...
ReplyDeleteAnu this one poem is enough to make me follow your blog-it was what should i say-rongte khare ho gaye.
ReplyDeleteविदा कर आये किसी को...
ReplyDeleteफिर ना जाने क्यों
लोग कहते हैं
कि ये सड़क कहीं नहीं जाती??
मन भीग गया...बहुत संवेदनशील रचना ...
लोग कहते हैं
ReplyDeleteकि ये सड़क कहीं नहीं जाती??
samvedna ke sath sawal puchhti kavita !
बेशक बेहद आकर्षक लेखन
ReplyDeleteउम्दा अभिव्यक्ति और और बहुत कुछ
वाह बधाई
बेहतरीन रचना...
ReplyDeletezindagi kabhi to sannate ko chir kar baahar niklegi....bahut sundar....
ReplyDeleteकिसीसे मिलने पर जितनी खुशी होती है उससे ज्यादा बिछुडने का दुःख.
ReplyDeleteसुंदर मार्मिक प्रस्तुति.
बहुत सुन्दर रचना ... कई बार लगता है जैसे ये रास्ते थम गए है !
ReplyDeleteविदा कर आये किसी को...
ReplyDeleteफिर ना जाने क्यों
लोग कहते हैं
कि ये सड़क कहीं नहीं जाती??
अनु जी गहन अभिव्यक्ति यही तो है जीवन जाने वाला चुप परम शांत ...दुनिया रोती और न जाने क्या क्या ..आभार
भ्रमर ५
ये सड़क कहीं नहीं जाती.....हम इंसान ही चल पड़ते हैं, उस ठहरी सड़क पर! वो तो सिर्फ़ एक गवाह है....हमारी असली मंज़िल की !
ReplyDeleteअनु जी, एक सिहरन सी दौड़ गयी....कहीं भीतर ही भीतर ! एक कड़वा सच !
Anu ji aaj hi koi purana dost tha usko fuk kar aaya hoon . Jab tak shamshan ke gate tak rahte hain sab kuch begana lagta hai or bahar niklte hi sab kuch chopat....ho jata hai...
ReplyDelete...अंत ....या एक नई शुरुआत ....!
ReplyDelete.....वाह अनुजी !!! बहुत ही सुन्दर ..!!!!!!!!!!!!!
ye bahut achhi lagi mujhe
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