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हर दिल की तरह मेरा दिल भी ये चाहता था कि गर उसे मुझसे मोहब्बत नहीं तो किसी और से भी न हो ........वो चला जाए बेशक मुझे छोड़ कर...मगर किसी और के पहलू में नहीं........
जी लूंगी बिना उसके मगर वो न जी पाए मेरे बगैर......
बड़ा स्वार्थी होता है दिल.....या मोहब्बत बना देती है उसे तंगदिल ???
मगर क्या करें...जब तक कस के न पकडें मोहब्बत ठहरती ही नहीं......और पकड़ पक्की हो तो जाकर भी लौट आती है....
उसके जाने और लौट के आने के बीच न जाने कौन कौन से ख़याल आये और गुज़र गए.....
कुछ ख़याल यूँ ही ठहर गए मेरी डायरी के पन्नों में............
तनहा थी इस कदर
साँसे भी सुन लेती अपनी
जाने क्यूँ जुदा हुए थे हम
यूँ अक्सर मिलते-मिलते
पतझड़ आकर ठहर गया
रंग भी फीके पड़ गए
जीवन बगिया यूँ सूखी
मुरझायी खिलते-खिलते
थामा हाथ गैरों का
यूँ हुए थे तुम पराये
ख़ाक हुआ था दिल मेरा
डाह से जलते-जलते
मोहब्बत मेरी पाते कहाँ
मुझसे दूर जाते कहाँ
जानती थी थक जाओगे एक दिन
तुम मुझको छलते-छलते
अब कितना सुकून मिला है
तेरे साये को करीब पाकर
थक गयी थी धूप में मैं
लड़खड़ाते चलते-चलते...........
-अनु
हर दिल की तरह मेरा दिल भी ये चाहता था कि गर उसे मुझसे मोहब्बत नहीं तो किसी और से भी न हो ........वो चला जाए बेशक मुझे छोड़ कर...मगर किसी और के पहलू में नहीं........
जी लूंगी बिना उसके मगर वो न जी पाए मेरे बगैर......
बड़ा स्वार्थी होता है दिल.....या मोहब्बत बना देती है उसे तंगदिल ???
मगर क्या करें...जब तक कस के न पकडें मोहब्बत ठहरती ही नहीं......और पकड़ पक्की हो तो जाकर भी लौट आती है....
उसके जाने और लौट के आने के बीच न जाने कौन कौन से ख़याल आये और गुज़र गए.....
कुछ ख़याल यूँ ही ठहर गए मेरी डायरी के पन्नों में............
तनहा थी इस कदर
साँसे भी सुन लेती अपनी
जाने क्यूँ जुदा हुए थे हम
यूँ अक्सर मिलते-मिलते
पतझड़ आकर ठहर गया
रंग भी फीके पड़ गए
जीवन बगिया यूँ सूखी
मुरझायी खिलते-खिलते
थामा हाथ गैरों का
यूँ हुए थे तुम पराये
ख़ाक हुआ था दिल मेरा
डाह से जलते-जलते
मोहब्बत मेरी पाते कहाँ
मुझसे दूर जाते कहाँ
जानती थी थक जाओगे एक दिन
तुम मुझको छलते-छलते
अब कितना सुकून मिला है
तेरे साये को करीब पाकर
थक गयी थी धूप में मैं
लड़खड़ाते चलते-चलते...........
-अनु
भावनात्मक
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत
ReplyDelete(अरुन =arunsblog.in)
भावमय करते शब्दों का संगम ... बहुत बढिया प्रस्तुति ... आभार
ReplyDeleteअब कितना सुकून मिला है
ReplyDeleteतेरे साये को करीब पाकर
थक गयी थी धूप में मैं
लड़खड़ाते चलते-चलते...........
बहुत सुंदर
अच्छी रचना
जी बहुत खुबसूरत...
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत
ReplyDeleteसादर
दिल को छु लेनेवाले भाव...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
बेहतरीन रचना...
:-)
बेहद खूबसूरत...
ReplyDeleteथामा हाथ गैरों का
यूँ हुए थे तुम पराये
ख़ाक हुआ था दिल मेरा
डाह से जलते-जलते
ः))
सस्नेह
तेरे जाने और आने के बीच
ReplyDeleteफासला इतना बढ़ गया है,
चाहकर भी हम दूर हैं
बस,तू यादों में रच-बस गया है !
प्रेम का एहसास!
ReplyDeleteमोहब्बत मेरी पाते कहाँ
ReplyDeleteमुझसे दूर जाते कहाँ
जानती थी थक जाओगे एक दिन
तुम मुझको छलते-छलते
....बहुत सुन्दर भावमयी रचना....
तस्वीर बहुत कुछ कह रही है ! सुन्दर कविता !
ReplyDeleteant bhala to sab bhala .....ek doosre ke binaa guzaara bhi to nahi
ReplyDeleteतस्वीर बहुत कुछ कह रही है ! सुन्दर कविता !
ReplyDeleteवाह,,,, बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,बेहतरीन रचना,,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,
वाह...बहुत सुंदर भाव....awesome awesome !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर ||
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबहुत खूब!
अच्छी भावाभिव्यक्ति है।
कितना दर्द और कितनी गम्भीरता है ...रचना मे ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...
फोटो लगा दी बहुत अच्छा किया :)...
सस्नेह शुभकामनायें...
सुबह का भूला , शाम को घर आया .
ReplyDeleteमन भर आया . अति सुन्दर .
प्रेममयी , भावमयी...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव संजोए है ...फोटो बहुत सुन्दर है मासूम लग रही हो.....सस्नेह
ReplyDeleteउसके जाने और आने के बीच के एहसास बखूबी उकेरे हैं ...
ReplyDeleteमोहब्बत मेरी पाते कहाँ
मुझसे दूर जाते कहाँ
जानती थी थक जाओगे एक दिन
तुम मुझको छलते-छलते
बहुत सुंदर
सच और सपनो के बीच का फासला ही है उनके जाने और आने के बीच . कभी वो और उनकी तन्हाई बात करती है तो वो कभी हमसे मुखातिब होते है . और हम गुनगुनाते है , ये नजर लौट के फिर आएगी . जारी रखिये स्वप्निल सा सफ़र . आमीन.
ReplyDelete:)
ReplyDeleteआपकी कविताए एकदम से दिल को छु जाती है
ReplyDeleteहिन्दी दुनिया ब्लॉग (नया ब्लॉग)
वाह ! क्या बात है...
ReplyDeleteश्याम है मोहब्बत में इक यही मुकम्मिल सा सवाल,
जियें तो किस के लिए,मरें किस पर मोहब्बत के सिवा |
-------एक यक्ष-प्रश्न यह भी है कि महिलाओं की रचनाओं में सदा प्यार-मुहब्बत का भीगा-भीगा समां या दिल-चाहत का रोना-धोना या फिर खाना-रसोई का ही वर्णन क्यों होता है...
ReplyDeleteवाह अनुजी ...आपने इस मर्म को जान लिया तो सब कुछ पा लिया ...
ReplyDeleteIf you love someone... set him free
If he comes back.....he is yours
If he doesn't ..he never was !!!!
तुम किसी और को चाहो .... मुश्किल होगी
ReplyDeleteवाह ! क्या बात है.
ReplyDeleteभावनाएं ठुकराएँ नहीं जाती....
ReplyDeleteबहुत सुंदर एहसास....
ReplyDeletechalo ji dil jalane k baad wapis laut to aaya....magar un pyar me jalne walon se poochho jo kas k pakadne par bhi haath chhuda gaye.
ReplyDeletebahut hi badhiya man ke antardvando ki bhav -bhini abhivyakti
ReplyDeletebadhiya prastuti
aabhaar
poonam
सीधे दिल तक
ReplyDeleteमानो,धूप भी किसी छाए की ही तलाश में था!
ReplyDeleteभावपूर्ण...
ReplyDeleteभावमयी प्रवाहमयी कविता बहुत अच्छी लगी.
ReplyDeleteM speechless again.....
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत लिखा है..
ReplyDelete...दिल की बात कहे दिल वाला ---सीढ़ी सी बात न मिर्च मसाला.....यह गीत याद आ गया मुझे.बहुत फ्रेंक रचना.
ReplyDeletebahoot khoob
ReplyDeleteजानती थी थक जाओगे एक दिन
ReplyDeleteतुम मुझको छलते-छलते
very true for everyone...