इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Sunday, May 20, 2012

पटाक्षेप एक नाटक का

कैसा मधुर स्वर था,
जब तुमने हौले से
किया था वादा..
मुझसे मिलने का.
मानों बज उठें हों,कई जलतरंग एक साथ....
मानों झील में खिला कोई सफ़ेद झक कमल..
मानों  तारों भरा आकाश टिमटिमाने लगा हो...द्विगुणित आभा से..
मानों इन्द्रधनुषी रंगों वाला मोर नाच उठा हो , परों को फैलाये..
मानों कोई किसान लहलहाती फसल के बीच  गा रहा हो कोई गीत...
कैसे महक उठी थी फ़िजा ....

फिर सुबह से सांझ और अब रात होने आई....
कहाँ हो तुम???
देखो दृश्य परिवर्तन होने लगा मेरे जीवन के रंगमंच का ...


जलतरंग टूट के बिखरे...अश्रुओं संग बहा  जल, 
कमल ने  पंखुडियाँ समेट लीं...
पंछी घरों को लौट गए,
आसमां में यकायक बादल घुमड़ आये..
रात स्याह हो चली..
किसान की  फसल पर मानों पाला पड़ गया..
ये घुटन सी क्यूँ है ???
कितना बदल गया सब-
तेरे होने और ना होने के दरमियाँ...


शायद पटाक्षेप हुआ.... 


अनु 

38 comments:

  1. ये पटाक्षेप न हो, जीवन में यूँही भीनी-भीनी प्रेम की खुशबू बनी रहे, यही कामना करता हूँ!
    सुन्दर अभिव्यक्ति अनु जी|
    सादर

    ReplyDelete
  2. कितना बदल गया सब-
    तेरे होने और ना होने के दरमियाँ...

    बहुत स्पष्ट अन्तर बताया है आपने अनु
    बहुत पसंद आई यह रचना!!

    ReplyDelete
  3. ये घुटन सी क्यूँ है ???
    कितना बदल गया सब-
    तेरे होने और ना होने के दरमियाँ...

    तुमसे चमन में बहार ...
    तुम नहीं ...चमन उजाड़ ...
    सुंदर अभिव्यक्ति ...!

    ReplyDelete
  4. kitna sundar likh deti ho aap...man me hota hi nahi kuch ye sab pdne k baad....

    ReplyDelete
  5. पूर्णता जब रिक्त होती है तब यही अहसास होता है | बहुत सुन्दर |

    ReplyDelete
  6. कभी किसी ऐसे ही एक महत्वपूर्ण कसम्पूर्णलाकार की अनुपस्थिति सम्पूर्ण परिदृश्य बदल देती है जीवन के नाटक का.. भावपूर्ण रचना!!

    ReplyDelete
  7. कोशिशें कामयाब होतीं हैं...वादे अक्सर टूट जाते हैं...

    ReplyDelete
  8. फिर सुबह से सांझ और अब रात होने आई....
    कहाँ हो तुम???
    देखो दृश्य परिवर्तन होने लगा मेरे जीवन के रंगमंच का ...

    भावपूर्ण सुंदर रचना,,,अच्छी प्रस्तुति

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....

    ReplyDelete
  9. बहुत भावपूर्ण रचना ....

    कितना बदल गया सब-
    तेरे होने और ना होने के दरमियाँ... ... पटाक्षेप ही हो जाये तो गनीमत है ...

    ReplyDelete
  10. आपकी सुपरफास्ट ट्रेन में ६८ न० पर मेरी बोगी आरक्षित करने के लिए शुक्रिया. बाकी डब्बों का हाल पढकर बाद मै

    ReplyDelete
  11. समय के साथ कितना कुछ बदल जाता है और हम भी !

    ReplyDelete
  12. कहाँ हो तुम???
    देखो दृश्य परिवर्तन होने लगा मेरे जीवन के रंगमंच का ... परिवर्तन का आगे अकेला होता है आदमी और पटाक्षेप करीब

    ReplyDelete
  13. जीवन में स्मृतियाँ ही मजबूत संबल होती है . आप बहुत भाव प्रवण लिखती है .

    ReplyDelete
  14. भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति .........

    ReplyDelete
  15. पटापेक्ष भी कहाँ होता है ..
    बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  16. तुम हो तो सब है यहां
    जो नहीं तो कुछ भी नहीं!

    ReplyDelete
  17. बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति......अनु..

    ReplyDelete
  18. ये घुटन सी क्यूँ है ???
    कितना बदल गया सब-
    तेरे होने और ना होने के दरमियाँ...

    बिल्‍कुल सही ... उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ... आभार ।

    ReplyDelete
  19. यह पटाक्षेप कभी न हो

    बेहतरीन ।


    सादर

    ReplyDelete
  20. आपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार २२ /५/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |

    ReplyDelete
  21. कितना बदल गया सब-
    तेरे होने और ना होने के दरमियाँ...


    शायद पटाक्षेप हुआ....

    अनवरतता के लिए पटाक्षेप भी तो जरूरी है

    ReplyDelete
  22. बहुत सुन्दर
    अरुन (arunsblog.in)

    ReplyDelete
  23. काफी दिनों से पढाई की व्यस्तता के कारण ब्लॉग पर आना न हो पाया..आज वापसी पर आपकी ये रचना पढ़कर सारे विचार फिर से सध गए..बहुत खूब लिखा है. आभार

    ReplyDelete
  24. आशा निराशा के बीच का यह फ़र्क.....एक तेरे आने की उम्मीद से सराबोर ....और दूसरा तेरे न आने से छिन्न बिन्न .....बहुत ही सुन्दर अनुजी !!!!

    ReplyDelete
  25. Loved the opening lines :) Beautiful writing, as always :)

    ReplyDelete
  26. मिलन के बाद जुदाई के अकेलेपन का ये अहसास बहुत भावपूर्ण कर देता है...
    भावविभोर करती अति सुन्दर रचना:-)

    ReplyDelete
  27. दिल से निकलती है आपकी हर रचना । बहुत बढ़िया ।

    ReplyDelete
  28. वाह...बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  29. जीवन बदल जाता है उनकी एक हां और ना के बीच ... उनके होने न होने के एहसास के बीच के पल ... बेहतरीन रचना ...

    ReplyDelete
  30. प्रतीक्षा का यों व्यर्थ होजाना बहुत दुख देता है अनुजी ।पता नही क्यों कोई इतना महत्त्वपूर्ण क्यों होजाता है । भाव-भरी रचना ।

    ReplyDelete
  31. अनु जी प्रतीक्षा का यों अन्त होना बहुत दुःखद होता है । बहुत ही भाव भरी रचना ।
    पहली दो टिप्पणियाँ जाने क्यों नही जा पाईं ।

    ReplyDelete
  32. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट अमीर खुसरो पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा ।धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  33. जिंदगी रूपी नाटक के एक अंश को आपने बखूबी कविता में ढाला है।
    शब्दों और प्रतीकों के सुंदर प्रयोग ने कविता के मर्म को सशक्त रूप से व्याख्यायित किया है।

    ReplyDelete
  34. यही जीवन है.....

    ReplyDelete
  35. जीवन का क्षण-क्षण सपने की तरह बीत जाता है. इस दृष्टि से पटाक्षेप भी एक सपना है. बहुत सुंदर रचना.

    ReplyDelete
  36. एक बार फिर पढ़ रही हूँ..
    बहुत अच्छा..
    कोमल भाव लिए भावपूर्ण रचना..
    :-)

    ReplyDelete

नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...