कैसा मधुर स्वर था,
जलतरंग टूट के बिखरे...अश्रुओं संग बहा जल,
जब तुमने हौले से
किया था वादा..
मुझसे मिलने का.
मानों बज उठें हों,कई जलतरंग एक साथ....
मानों बज उठें हों,कई जलतरंग एक साथ....
मानों झील में खिला कोई सफ़ेद झक कमल..
मानों तारों भरा आकाश टिमटिमाने लगा हो...द्विगुणित आभा से..
मानों इन्द्रधनुषी रंगों वाला मोर नाच उठा हो , परों को फैलाये..
मानों कोई किसान लहलहाती फसल के बीच गा रहा हो कोई गीत...
कैसे महक उठी थी फ़िजा ....
कैसे महक उठी थी फ़िजा ....
फिर सुबह से सांझ और अब रात होने आई....
कहाँ हो तुम???
कहाँ हो तुम???
देखो दृश्य परिवर्तन होने लगा मेरे जीवन के रंगमंच का ...
जलतरंग टूट के बिखरे...अश्रुओं संग बहा जल,
कमल ने पंखुडियाँ समेट लीं...
पंछी घरों को लौट गए,
पंछी घरों को लौट गए,
आसमां में यकायक बादल घुमड़ आये..
रात स्याह हो चली..
रात स्याह हो चली..
किसान की फसल पर मानों पाला पड़ गया..
ये घुटन सी क्यूँ है ???
कितना बदल गया सब-
ये घुटन सी क्यूँ है ???
कितना बदल गया सब-
तेरे होने और ना होने के दरमियाँ...
ये पटाक्षेप न हो, जीवन में यूँही भीनी-भीनी प्रेम की खुशबू बनी रहे, यही कामना करता हूँ!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति अनु जी|
सादर
कितना बदल गया सब-
ReplyDeleteतेरे होने और ना होने के दरमियाँ...
बहुत स्पष्ट अन्तर बताया है आपने अनु
बहुत पसंद आई यह रचना!!
ये घुटन सी क्यूँ है ???
ReplyDeleteकितना बदल गया सब-
तेरे होने और ना होने के दरमियाँ...
तुमसे चमन में बहार ...
तुम नहीं ...चमन उजाड़ ...
सुंदर अभिव्यक्ति ...!
वाह!
ReplyDeletekitna sundar likh deti ho aap...man me hota hi nahi kuch ye sab pdne k baad....
ReplyDeleteपूर्णता जब रिक्त होती है तब यही अहसास होता है | बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteकभी किसी ऐसे ही एक महत्वपूर्ण कसम्पूर्णलाकार की अनुपस्थिति सम्पूर्ण परिदृश्य बदल देती है जीवन के नाटक का.. भावपूर्ण रचना!!
ReplyDeleteकोशिशें कामयाब होतीं हैं...वादे अक्सर टूट जाते हैं...
ReplyDeleteफिर सुबह से सांझ और अब रात होने आई....
ReplyDeleteकहाँ हो तुम???
देखो दृश्य परिवर्तन होने लगा मेरे जीवन के रंगमंच का ...
भावपूर्ण सुंदर रचना,,,अच्छी प्रस्तुति
RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
बहुत भावपूर्ण रचना ....
ReplyDeleteकितना बदल गया सब-
तेरे होने और ना होने के दरमियाँ... ... पटाक्षेप ही हो जाये तो गनीमत है ...
आपकी सुपरफास्ट ट्रेन में ६८ न० पर मेरी बोगी आरक्षित करने के लिए शुक्रिया. बाकी डब्बों का हाल पढकर बाद मै
ReplyDeleteसमय के साथ कितना कुछ बदल जाता है और हम भी !
ReplyDeleteकहाँ हो तुम???
ReplyDeleteदेखो दृश्य परिवर्तन होने लगा मेरे जीवन के रंगमंच का ... परिवर्तन का आगे अकेला होता है आदमी और पटाक्षेप करीब
जीवन में स्मृतियाँ ही मजबूत संबल होती है . आप बहुत भाव प्रवण लिखती है .
ReplyDeleteभावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति .........
ReplyDeleteपटापेक्ष भी कहाँ होता है ..
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
तुम हो तो सब है यहां
ReplyDeleteजो नहीं तो कुछ भी नहीं!
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति......अनु..
ReplyDeleteये घुटन सी क्यूँ है ???
ReplyDeleteकितना बदल गया सब-
तेरे होने और ना होने के दरमियाँ...
बिल्कुल सही ... उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ... आभार ।
यह पटाक्षेप कभी न हो
ReplyDeleteबेहतरीन ।
सादर
आपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार २२ /५/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |
ReplyDeleteआभार राजेशजी.
Deleteकितना बदल गया सब-
ReplyDeleteतेरे होने और ना होने के दरमियाँ...
शायद पटाक्षेप हुआ....
अनवरतता के लिए पटाक्षेप भी तो जरूरी है
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअरुन (arunsblog.in)
काफी दिनों से पढाई की व्यस्तता के कारण ब्लॉग पर आना न हो पाया..आज वापसी पर आपकी ये रचना पढ़कर सारे विचार फिर से सध गए..बहुत खूब लिखा है. आभार
ReplyDeleteआशा निराशा के बीच का यह फ़र्क.....एक तेरे आने की उम्मीद से सराबोर ....और दूसरा तेरे न आने से छिन्न बिन्न .....बहुत ही सुन्दर अनुजी !!!!
ReplyDeleteLoved the opening lines :) Beautiful writing, as always :)
ReplyDeleteमिलन के बाद जुदाई के अकेलेपन का ये अहसास बहुत भावपूर्ण कर देता है...
ReplyDeleteभावविभोर करती अति सुन्दर रचना:-)
दिल से निकलती है आपकी हर रचना । बहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteवाह...बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति...
ReplyDeleteजीवन बदल जाता है उनकी एक हां और ना के बीच ... उनके होने न होने के एहसास के बीच के पल ... बेहतरीन रचना ...
ReplyDeleteप्रतीक्षा का यों व्यर्थ होजाना बहुत दुख देता है अनुजी ।पता नही क्यों कोई इतना महत्त्वपूर्ण क्यों होजाता है । भाव-भरी रचना ।
ReplyDeleteअनु जी प्रतीक्षा का यों अन्त होना बहुत दुःखद होता है । बहुत ही भाव भरी रचना ।
ReplyDeleteपहली दो टिप्पणियाँ जाने क्यों नही जा पाईं ।
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट अमीर खुसरो पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा ।धन्यवाद ।
ReplyDeleteजिंदगी रूपी नाटक के एक अंश को आपने बखूबी कविता में ढाला है।
ReplyDeleteशब्दों और प्रतीकों के सुंदर प्रयोग ने कविता के मर्म को सशक्त रूप से व्याख्यायित किया है।
यही जीवन है.....
ReplyDeleteजीवन का क्षण-क्षण सपने की तरह बीत जाता है. इस दृष्टि से पटाक्षेप भी एक सपना है. बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteएक बार फिर पढ़ रही हूँ..
ReplyDeleteबहुत अच्छा..
कोमल भाव लिए भावपूर्ण रचना..
:-)