आँगन में देखो
जाने कहाँ से उग आई है
ये नागफनी....
मैंने तो बोया था
तुम्हारी यादों का
हरसिंगार....
और रोपे थे
तुम्हारे स्नेह के
गुलमोहर.....
डाले थे बीज
तुम्हारी खुशबु वाले
केवड़े के.....
कलमें लगाई थीं
तुम्हारी बातों से
महके मोगरे की.......
मगर तुम्हारे नेह के बदरा जो नहीं बरसे.....
बंजर हुई मैं......
नागफनी हुई मैं.....
देखो मुझ में काटें निकल आये हैं....
चुभती हूँ मैं भी.....
मानों भरा हो भीतर कोई विष .....
आओ ना ,
आलिंगन करो मेरा.....
भिगो दो मुझे,
करो स्नेह की अमृत वर्षा...
सो अंकुर फूटें
पनप जाऊं मैं
और लिपट जाऊं तुमसे....
महकती ,फूलती
जूही की बेल की तरह...
आओ ना...
और मेरे तन के काँटों को
फूल कर दो.....
-अनु
जाने कहाँ से उग आई है
ये नागफनी....
मैंने तो बोया था
तुम्हारी यादों का
हरसिंगार....
और रोपे थे
तुम्हारे स्नेह के
गुलमोहर.....
डाले थे बीज
तुम्हारी खुशबु वाले
केवड़े के.....
कलमें लगाई थीं
तुम्हारी बातों से
महके मोगरे की.......
मगर तुम्हारे नेह के बदरा जो नहीं बरसे.....
बंजर हुई मैं......
नागफनी हुई मैं.....
देखो मुझ में काटें निकल आये हैं....
चुभती हूँ मैं भी.....
मानों भरा हो भीतर कोई विष .....
आओ ना ,
आलिंगन करो मेरा.....
भिगो दो मुझे,
करो स्नेह की अमृत वर्षा...
सो अंकुर फूटें
पनप जाऊं मैं
और लिपट जाऊं तुमसे....
महकती ,फूलती
जूही की बेल की तरह...
आओ ना...
और मेरे तन के काँटों को
फूल कर दो.....
-अनु
अनुपम भाव संयोजन ...लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबेहतरीन एहसास !
ReplyDeleteसादर
बढ़िया प्रस्तुतीकरण |
ReplyDeleteआभार |
नेह की बारिश खिला दे अंतर्मन!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति!
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
जीवन की सच्चाई के साथ एक रोमांटिक कविता
ReplyDeleteमगर तुम्हारे नेह के बदरा जो नहीं बरसे.....
ReplyDeleteबंजर हुई मैं......
नागफनी हुई मैं.....
देखो मुझ में काटें निकल आये हैं....
चुभती हूँ मैं भी.....
मानों भरा हो भीतर कोई विष .....
मब के अह्सासो की भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति,..
my recent post....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
गज़ब गज़ब गज़ब ..बेहतरीन प्रस्तुति मनोभावों की और सच्ची भी.
ReplyDeleteवाह! बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......
ReplyDeleteयह रचना स्नेह से हमें भी भिगो गयी अनु जी...... क्या उपमा दी है आपने ? वाह ! मौलिक और दिलकश रचना के लिए आभार !
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteदेखो मुझ में काटें निकल आये हैं....
ReplyDeleteचुभती हूँ मैं भी.....
मानों भरा हो भीतर कोई विष
Anu ji bahut hi sundar bhaon ke sath prabhavshali rachana likhi hai apne ...saprem abhar.
नागफनी के दंश नहीं जाते ...
ReplyDeleteआओ ना...
ReplyDeleteऔर मेरे तन के काँटों को
फूल कर दो.....
Waah.... Behtreen Khayal
नागफणी ऐसा पौधा है जो जल विहीन जगह की विशेषता लिए रहता है। नेह की बूंद बरसे तो ऐसे पौधों से छुटकारा मिले।
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति अनु...
ReplyDeleteशुभकामनायें !
मगर तुम्हारे नेह के बदरा जो नहीं बरसे.....
ReplyDeleteबंजर हुई मैं......
नागफनी हुई मैं.....
खूबसूरती से लिखे एहसास ....
क्या बात है !!!
ReplyDeleteइसे पढ़कर नागफनी के काँटे झड़ जाएँगे...
जूही का सुगंध आपके जीवन में फैले अनु...
शुभकामनाएँ !!!
Another gem of a poem from you !
ReplyDeleteवाह... बहुत खूबसूरती से मनोभावों को व्यक्त किया है... सुन्दर रचना... शुभकामनाएं
ReplyDeletebahut sundar anu.... naagfani mein bhi fool khilte hai
ReplyDeleteविपरीत परिस्थितयों में भी फूल खिलाती है नागफनी .
ReplyDeleteआखिर उसने भी जीना सीख लिया है .
सुन्दर भावपूर्ण रचना .
बहुत ही प्यारी भाव पूर्ण रचना नेह की वर्षा के बिना नागफनी ही उगेगी और क्या अति सुन्दर
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन है .......
कैक्टस और नागफनी की खासियत है...बंजर इलाके में भी जम जाता है...यही इसकी जिजीविषा है...कैक्टस में फूल भी लगते हैं...पर शायद रात में...कोई देख नहीं पाता...
ReplyDeletedear sister...i wanted you to give your personal email id. i personally think that you have realised the real face of life and it is to suffer. you are ready to evolve and know the things that you dont know now.and hence i wanted to share some teachings with you.
ReplyDeleteआदरणीय बंधु
Deletethanks for ur concern, but u just don't worry about my "condition"...i'm having a perfect life full of happiness......these are my poems/writings which i pick from my surroundings.....
so chill..........
regards
anu
बहुत ही खूबसूरत कविता |अनु जी बधाई और शुभकामनायें |
ReplyDeleteकितनी टीस भरी है हर पंक्ति में ! बहुत ही प्यारी रचना है अनु जी ! बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteनेह बिना सब सूना सूना...सुंदर !
ReplyDeleteमैंने तो बोया था
ReplyDeleteतुम्हारी यादों का
हरसिंगार....
अनु जी अनुपम रचना है ये
बहुत सुन्दर भाव...सुन्दर अभिव्यक्ति!....आभार!
ReplyDeleteबहुत सुंदर शब्दयोजन .....
ReplyDeleteसुंदर रचना !
प्रेम पाकर सृष्टि भी पल्लवित होती है। प्रेमिल मन का का तो कहना ही क्या!
ReplyDeleteबिना प्रेम के कांटे है जीवन ...
ReplyDeleteसच लिखा है ...!!
कल 012/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत..सुन्दर अहसास ..अनु..
ReplyDeleteवाह क्या कहें इस रचना की तारीफ में ...
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति ...
bahut sundar kavita
ReplyDeleteशयद वो इमानदारी न थी उनकी यादों में ... नेह की कमी थी ...
ReplyDeleteबहुत गहरे एहसास लिए रचना ...
सुन्दर भाव.. अति सुन्दर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeletewaah ati sundar...
ReplyDeleteBahut bahut sunder rachnayein. Aapko hardik badhai mitravar. Ishvar aapki lekhni ko yash dein...yahi kamna hai.
ReplyDeleteSundar....har baar ki tarah.... :)
ReplyDeleteजूही की सुगंध और नागफनी के काँटे .... क्या बात !!!
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