डायरियां बड़ी चुगलखोर होतीं हैं................
जब आप लिखते हैं तो भावनाओं का ज्वार उठा होता है........और आप लिख डालते हैं वो सब कुछ जो शायद आप किसी से कह नहीं सकते......बस कलम चलती जाती हैं और दिल का खाका खिचता जाता है कोरे कागज़ पर.......
बड़ा आनंद आता है किसी पुरानी डायरी को पढ़ने में........फिर चाहे वो हमारी अपनी हो या हमारे किसी अपने की या फिर किसी अनजाने की/किसी पराये की.........
जैसे कि आप पढते हैं मेरी डायरी के पन्ने.......जबकि जानते नहीं मुझे.....पहचानते भी नहीं.......और शायद जानना चाहते भी नहीं....मगर पढ़ तो लेते ही हैं.......मैंने भी पढ़ी हैं डायरियां चोरी से........जब जिसकी हाथ लगी........बड़े राज़ खोलते है ये पन्ने.....
कोई पराया शायद चाहता हो आपको दिलो जान से........या आपका कोई करीबी आपकी सूरत भी ना देखना चाहता हो......बड़ा रिस्क है डायरी पढ़ने में.
डायरियां समेटे रहतीं हैं
प्यार के पल/तकरार के पल...
पहली मुलाक़ात
या जुदाई की रात....
मोहब्ब्त के रंग
और नफरत के ढंग....
इनमे होता है
मनुहार/इकरार
करार/इंकार
या कभी
स्वीकार और अंगीकार.....
या फिर कुछ नहीं.....
सब फरार........
डायरी होती है
गिरगिट की तरह.....
रंग बदलती...
स्वांग रचती....
कभी ख्वाब बुनती
कभी किरचें चुनती.......
हर सफहा
होता है दिल का आईना....
हर लफ्ज़
रूह की फरियाद..........
-अनु
नोट- कभी किसी चाहने वाले की डायरी न पढ़ना......क्या पता कोई भरम ही टूट जाये.
जब आप लिखते हैं तो भावनाओं का ज्वार उठा होता है........और आप लिख डालते हैं वो सब कुछ जो शायद आप किसी से कह नहीं सकते......बस कलम चलती जाती हैं और दिल का खाका खिचता जाता है कोरे कागज़ पर.......
बड़ा आनंद आता है किसी पुरानी डायरी को पढ़ने में........फिर चाहे वो हमारी अपनी हो या हमारे किसी अपने की या फिर किसी अनजाने की/किसी पराये की.........
जैसे कि आप पढते हैं मेरी डायरी के पन्ने.......जबकि जानते नहीं मुझे.....पहचानते भी नहीं.......और शायद जानना चाहते भी नहीं....मगर पढ़ तो लेते ही हैं.......मैंने भी पढ़ी हैं डायरियां चोरी से........जब जिसकी हाथ लगी........बड़े राज़ खोलते है ये पन्ने.....
कोई पराया शायद चाहता हो आपको दिलो जान से........या आपका कोई करीबी आपकी सूरत भी ना देखना चाहता हो......बड़ा रिस्क है डायरी पढ़ने में.
डायरियां समेटे रहतीं हैं
प्यार के पल/तकरार के पल...
पहली मुलाक़ात
या जुदाई की रात....
मोहब्ब्त के रंग
और नफरत के ढंग....
इनमे होता है
मनुहार/इकरार
करार/इंकार
या कभी
स्वीकार और अंगीकार.....
या फिर कुछ नहीं.....
सब फरार........
डायरी होती है
गिरगिट की तरह.....
रंग बदलती...
स्वांग रचती....
कभी ख्वाब बुनती
कभी किरचें चुनती.......
हर सफहा
होता है दिल का आईना....
हर लफ्ज़
रूह की फरियाद..........
-अनु
नोट- कभी किसी चाहने वाले की डायरी न पढ़ना......क्या पता कोई भरम ही टूट जाये.
डायरी अर्थात् मन की तस्वीर....
ReplyDeleteवह सहेजती है सब कुछ...
तोड़ती कुछ भ्रम भी...
बहुत सुंदर प्रस्तुति अनु जी
सप्रेम
aekdam shi lokha hae aapne .bdhai.
ReplyDeleteये अंत में बड़ी प्यारी सलाह दे गयी आपकी नोट:)
ReplyDeleteकुछ भ्रम बने रहे यही अच्छा होता है!
डायरी होती है,सच्चा आइना !
ReplyDeleteनोट- कभी किसी चाहने वाले की डायरी न पढ़ना......क्या पता कोई भरम ही टूट जाये.
ReplyDeleteशायद इसीलिए शिष्ठाचार वश कहते होंगे किसी की डायरी नहीं पढना !
अच्छी लगी रचना !
हर लफ्ज़
ReplyDeleteरूह की फरियाद.........
बिल्कुल सच
हम्म डायरी मित्र भी है और चुगलखोर भी :).
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.
हर सफहा
ReplyDeleteहोता है दिल का आईना....
हर लफ्ज़
रूह की फरियाद..........
....बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियां ....बेहतरीन रचना...
इसीलिए मैंने डायरी लिखना बन्द कर दिया ...
ReplyDeletekyaa baat hai Anu...kitna kuchh kah dala hai aapne in chand lines mein...'reference' ne to bas kamaal hi kar diya...
ReplyDeleteबढ़िया पन्ने-
ReplyDeleteबधाई ||
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति, बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteकभी किसी चाहने वाले की डायरी न पढ़ना.........बिल्कुल सच
Diary is the best way to express our self... bohot aacha topic post kia...loved it...
ReplyDeleteमेरी डायरी ...किसी के हाँथ पड़ गई थी ...सब कह दिया उसने बस तबसे लिखा ही नहीं
ReplyDeleteहर सफहा
ReplyDeleteहोता है दिल का आईना....
हर लफ्ज़
रूह की फरियाद..........
डायरी मन का पन्ना होती है,
अति सुंदर भाव पुर्ण अभिव्यक्ति ,...
अब तो ब्लॉग को ही डायरी बना डाला है हमने....Smiles...
ReplyDeleteअगर किसी के हाथ न लगे तो डायरी से अच्छा मित्र कोई नहीं।
ReplyDeleteबहुत बढि़या कविता।
डायरी तो आईना है ..
ReplyDeleteयथारूप दिखाने की आदत है इसको शायद
चुगलखोर डायरी किसी को रिझाती है तो किसी को खिझाती है . आपकी सलाह एकदम खरे सोने की तरह .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा ।धन्यवाद ।
ReplyDeletebhaut hi khubsurat alfaazo me apne dayari ki baat kah di....
ReplyDeleteबहुत रिस्की है डायरी .....:)
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति ....!!
शुभकामनायें .
हर सफहा होता है दिल का आईना,
ReplyDeleteहर लफ्ज़ रूह की फरियाद!
चुगलखोर कहाँ? सखी है वो, सबसे ख़ास... जिसे सबकुछ बता सकते हैं :)
बहुत सुन्दर अनु जी,
सादर|
डायरियों को पढ़ने का अपना ही आनंद होता है
ReplyDeleteकभी ख्वाब बुनती
ReplyDeleteकभी किरचें चुनती.......
वाह कितनी खूबसूरत बात कही है अनुजी ........जब दूसरे के मन का सच उजागर होता है ......तो कुछ ऐसा ही अहसास होता है ....!!!!!
लेकिन फिर भी डायरियां सच बोलती हैं....
ReplyDeleteबेहतरीन कविता और अंत मे आपने अच्छा सुझाव दिया है।
ReplyDeleteसादर
सचमुच डायरी दिल का दस्तावेज होती है । बहुत सुन्दर कविता ।
ReplyDeleteडायरी लेखन एक कला है |अच्छी रचना |
ReplyDeleteआशा
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअनकहे,अज्ञात के प्रति मनुष्य सदा से जिज्ञासु रहा है। औरों की डायरी के प्रति आकर्षण इसी का सहज परिणाम है। मैं इसीलिए लिखता ही नहीं। जानते रहो!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDelete:-)
डायरी होती है
ReplyDeleteगिरगिट की तरह.....
रंग बदलती...
स्वांग रचती....
कभी ख्वाब बुनती
कभी किरचें चुनती.......
हर सफहा
होता है दिल का आईना....
हर लफ्ज़
रूह की फरियाद..........
एकदम सच बात कही....
न जाने कितनी बार लिख के काटा था ,मिटाया था नाम उनका ,डायरी पे | नाम लिखते थे ,फिर उनपे उंगलियाँ फेरते थे | नाम से भी प्यार सा हो गया था ,उनके | एक बार डायरी लग गई उन्हीं के हाथ ,पर अफ़सोस वो उन कटे नामों को पढ़ न सके और मेरी ज़िन्दगी की डायरी में वो नाम कटा ही रह गया |
ReplyDeleteवाह अमित जी............
Deleteक्या एहसास हैं...........बहुत सुंदर और कोमल...
सादर
डायरी का फायदा ये है...कि कभी भविष्य में आत्मकथा लिखने में मदद मिल जाएगी...हर जिंदगी की अपनी अलग कहानी है...
ReplyDeletesundar !
ReplyDeleteइस चुगलखोर से कभी नाता नहीं जोड़ा .... हाँ किसी की डायरी पढ़ी ज़रूर थी .... सच ही जीवन के अनछुए पहलू खोल देती है डायरी ....
ReplyDeleteनोट- कभी किसी चाहने वाले की डायरी न पढ़ना......क्या पता कोई भरम ही टूट जाये.
यह सलाह गांठ बांध ली है :):) वैसे अब भ्रम को बचा ही क्या है :):)
एक सच्ची धरोहर 'डायरी'............
ReplyDeleteराज राज ही रहे...
ReplyDeleteसुंदर रचना... सचेत भी करती हुई....
सादर।
Beautifully written ode to diary. The note loads the poem with further meaning, nearly insidious in intent!
ReplyDeleteसबसे गूढ़ बात तो आपने आखिरी में बताई...कभी किसी चाहने वाले की डायरी न पढ़ना......क्या पता कोई भरम ही टूट जाये..
ReplyDeleteKuch mithaas aur kuch ahsaas :)
ReplyDeleteबड़ी प्यारी पोस्ट. दूसरे की डायरी पढना अच्छी बात नहीं है.
ReplyDeleteआपके लिखने का अंदाज़ मुझे अच्छा लगा
ReplyDeleteऔर लिखिए हम और पढेंगे आपकी open diary को
sach hai ....
ReplyDelete