(भास्कर भूमि में प्रकाशित) http://bhaskarbhumi.com/epaper/index.php?d=2012-05-06&id=8
मौसम भी सुहाना है..
मौसम भी सुहाना है..
तबियत के हाल भी ठीक
सुबह की लाली भी सुकून देने वाली थी...
कमल भी रोज़ की तरह खिला..
चिड़ियों ने भी वैसे ही गुन-गुनाया,शोर मचाया...
फूल पर तितलियों का मंडराना
बदस्तूर जारी है..........
फूल पर तितलियों का मंडराना
बदस्तूर जारी है..........
घर के सब काम भी यथा समय हो गए...
किसी की कोई नाराजगी भी नहीं.......
फिर भी न जाने क्यों
दिल उदास सा है.
मन अनमना सा है...
मन अनमना सा है...
एक अनजाना सा डर है या
कोई असुरक्षा के भाव ??
अजीब सी थकन है ....
शायद कोई बुरा ख्वाब देखा हो....???
नहीं !! ख्याल तो नहीं आता...
लगता है, माँ की याद आ रही है...
हाँ !!
ये सारे बहाने है मेरे,
उस तक पहुँचने के,
उसकी गर्म गोद में सर रख कर सोने के ...
ये सारे बहाने है मेरे,
उस तक पहुँचने के,
उसकी गर्म गोद में सर रख कर सोने के ...
उसके नर्म हाथों का स्पर्श पाने के.....
हाँ,शायद यही बात है....
मेरे भीतर भी
मेरे भीतर भी
एक नन्हे पंछी की तरह
यही वो भाव है जो हर मनुष्य के मन में जागता है ......इसलिए ही मनुष्य को सामाजिक प्राणी कहते हैं ....इसलिए ही समाज कि रचना भी हुई .......
ReplyDeleteहर मन कि अंतर्व्यथा कहती कोमल ....सुंदर रचना ....अनु जी ...
शुभकामनायें ....!!
ये सारे बहाने है मेरे,
ReplyDeleteउस तक पहुँचने के,
उसकी गर्म गोद में सर रख कर सोने के ...
उसके नर्म हाथों का स्पर्श पाने के....
बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति // बेहतरीन रचना //
MY RECENT POST .....फुहार....: प्रिया तुम चली आना.....
ये आस ये ख्याल कभी भी दिल से नहीं जाता, हमेशा याद आती है माँ की वो ममता भरी नरम गोद जहाँ दुनिया के सारे सुख बौने से दिखाई पड़ते हैं...कोमल रचना... शुक्रिया अनुजी
ReplyDeleteभावप्रवण रचना . माँ की याद आये तो दिल भारी और माँ से मिल आये तो पुरसुकून .
ReplyDeleteदुनिया की सबसे सुरक्षित जगह माँ की गोद और सबसे खूबसूरत दृश्य माँ की ममता भरी आँखों के दर्पण में ही दिखाई देता है!! एक चिरंतन सत्य से सजी भावपूर्ण कविता!!
ReplyDeleteWow ! What a lovely poem. Expressed exquisitely the beauties of nature and the feeling of longing for mothers love ! After reading this I am feeling so vibrant,enthusiastic & full of joy!
ReplyDeleteये सारे बहाने है मेरे,
ReplyDeleteउस तक पहुँचने के,
उसकी गर्म गोद में सर रख कर सोने के ...
उसके नर्म हाथों का स्पर्श पाने के.....
हाँ,शायद यही बात है....
मेरे भीतर भी
एक नन्हे पंछी की तरह
कुछ पल को अपने नरम घोंसले में जा छिपने की आस जगी है शायद......बेहतरीन एहसासों को बेहतरीन अंदाज में लिखा है
मेरे भीतर भी
ReplyDeleteएक नन्हे पंछी की तरह
कुछ पल को अपने नरम घोंसले में जा छिपने की आस जगी है शायद...
बहुत कोमल भाव ... मेरा तो वो नीड़ भी नहीं रहा आस भी कैसे हो ?
सुंदर प्रस्तुति
मेरी तो उड़ान ही न थी .इस घोंसलें तक .....
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
हाँ !!
ReplyDeleteये सारे बहाने है मेरे,
उस तक पहुँचने के,
उसकी गर्म गोद में सर रख कर सोने के ...
उसके नर्म हाथों का स्पर्श पाने के.....
हाँ,शायद यही बात है....
मेरे भीतर भी
मन के ये बहाने होते हैं कितने सुहाने ...
अनुपम भाव संयोजित करती ...उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ... आभार ।
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteअनुपमा त्रिपाठी जी की टिप्पणी आपकी कविता को और पुष्ट करती है।
सादर
अब ये नीड़ कहाँ ढूँढें...बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteHow do you write so well :)
ReplyDeleteबढ़िया ||
ReplyDeleteबधाई ||
कविता में भावों का समावेश अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ...
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - ज़िंदा रहना है तो चलते फिरते नज़र आओ - ब्लॉग बुलेटिन
ममता भरी गोद की याद आती ही रहती है...
ReplyDeleteबस बहाना चाहिए इसे याद करने के लिए !!!
कभी कभी मन को भी उदास होने का हक़ है जी ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अहसास प्रस्तुत किये हैं ।
एहसास और भावों ने भावविभोर कर दिया
ReplyDeleteमाँ की गोद और चिड़िया का घोसला...खूबसूरत तुलना...
ReplyDeleteकुछ क्षण ऐसे आते हैं,
ReplyDeleteगाते-गाते रोते हैं
फिर रोते -रोते गाते हैं
कुछ क्षण ऐसे आते हैं
कोमल रचना
बहुत अच्छा लगा पढकर ! मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteकल 07/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
आपका बहुत शुक्रिया यशवंत.
Deleteबेशक जब किसी से मिलने की इच्छा होती है तो हम बहाने तो खोजते ही हैं।
ReplyDeleteमाँ कि ममता और उसकी छाओं में पल गुजरने की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये हज़ार बहाने भी करने पड़े तो किये जा सकते हैं.
ReplyDeleteअनु इस प्रेममयी कविता के लिये बधाई.
बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteमेरे भीतर भी
ReplyDeleteएक नन्हे पंछी की तरह
कुछ पल को अपने नरम घोंसले में जा छिपने की आस जगी है शायद
बेहतरीन कथ्य ,
सुंदर भाव।
sundar bhav se likhi sundar rachana.....
ReplyDeletebehtarin bhav se likha hai apne anti ji....
behtarin rachana....:-)
arey to chalo chalte hain na maa k ghar....kam to sare nipta liye hain...aur han sabse pahle phone pe hi unse baate kar lete hain....shayad TABIYAT SAMBHAL JAYEGIIIIIIIIIIIII....
ReplyDeleteसुन्दर अहसास खूबसूरत भाव से सजी सुन्दर रचना |
ReplyDeleteअद्भुत भाव का संयों किया है आपने इस रचना में ...निश्चित रूप से मनुष्य का मन तरह तरह की चालबाजियां करता है ...!
ReplyDeleteमाँ की याद जहन से जाती ही कहाँ है दोस्त वो तो हर पल हमें एक मिठा सुकून देती रहती है हमें जीने की भाषा सिखाती रहती है बहुत सुन्दर रचना |
ReplyDeleteअनु जी, मन तो ऐसा ही है कभी खुश तो कभी उदास...मन को एक दिन की छुट्टी दे दें तो कैसा रहे..
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteहाँ !!
ReplyDeleteये सारे बहाने है मेरे,
उस तक पहुँचने के,
उसकी गर्म गोद में सर रख कर सोने के ...
उसके नर्म हाथों का स्पर्श पाने के.....
हाँ,शायद यही बात है....
ये बहुत ही प्यारी पंक्तियाँ है . माँ को नमन