वो तुम्हारे जाने का दिन था.....और सीखा मैंने खुद से प्यार करना......वरना तुम्हें प्यार करने से फुर्सत ही कहाँ थी मुझे!!!!!
तुमने तय कर लिया था मेरी जिंदगी से दूर चले जाने का,और हर फैसले लेने का अख्तियार सिर्फ तुम्हें ही तो था....इसलिए मैं मौन थी.......मानों लीन थी किसी समाधि में या शायद मौत ही तो नहीं आ गयी थी मुझे !!!!
किसी तरह खुद को संयत किया....जी चाहा कुछ सवाल-जवाब करूँ.....मगर क्या फायदा....फैसले हो जाने के बाद कहाँ गुंजाइश रहती है किसी तर्क-वितर्क की.....दिलो-दिमाग में उथल-पुथल मची थी......सोचती रही कि क्या करूंगी तुम्हारे बिना.......किस तरह जीऊँगी अधूरी होकर मैं......मुझ में कुछ भी तो ऐसा न था जिसमे तुम शामिल न थे......
मेरी साँसें तुम्हारी साँसों की रफ़्तार से चलतीं थीं....मेरी धडकनें भी शायद मोहताज थी तुम्हारे सीने के स्पंदन की......काश के मैं कुछ ऐसे करती कि तुम भी मेरे बिना अधूरा महसूस करते........मगर मैं रिश्तों में स्पेस देना चाहती थे.......ताकि तुम्हें घुटन ना हो........मगर स्पेस दूरी में बदल जाएगा ये कहाँ जानती थी......
सो तुम चले गए.....................
खुद को सम्हाला मैंने........फिर समझाया दिल को,कि जिस्म का जो हिस्सा दर्द देता है ,सड़ जाता है उसको निकाल फेंकना अच्छा........आखिर कौन सा मर्ज है जिसका इलाज नहीं.......................कोई डाल सूख जाये तो क्या पेड़ मर जाता है???? बल्कि देखभाल ठीक से की जाये तो और भी स्वस्थ शाखें फूटती हैं वहीँ से.........नये फल नये फूलों से लदी डालियाँ लेकर.........नये जीवन का संदेसा लेकर.........
मैं तुमसे कहना चाहती हूँ कि मैं हूँ अब भी...................जिंदा और खुशहाल...........और तुम कहीं नहीं हो...................सिवा डायरी के इन धूल भरे पन्नों के...........जो कभी अनचाहे ही खुल जाते हैं और कुछ पल को, फिर दम सा घुटने लगता है....
रेत पर
अपने क़दमों के
बना कर निशां
न करना ये गुमां...
कि ये देंगे सदा ,तुम्हारे होने की गवाही.
इनका वजूद तो बस
तभी तक है जब तक
उड़ा ना ले जाये इन्हें
वक्त की कोई आंधी...............
समय के साथ सब कुछ धुंधला जाता है........हर याद भी फीकी पड़ जाती है....ज़ख्म भी भर जाते हैं.........कुछ नहीं रहता सदा के लिए........कुछ भी नहीं........................
अनु
तुमने तय कर लिया था मेरी जिंदगी से दूर चले जाने का,और हर फैसले लेने का अख्तियार सिर्फ तुम्हें ही तो था....इसलिए मैं मौन थी.......मानों लीन थी किसी समाधि में या शायद मौत ही तो नहीं आ गयी थी मुझे !!!!
किसी तरह खुद को संयत किया....जी चाहा कुछ सवाल-जवाब करूँ.....मगर क्या फायदा....फैसले हो जाने के बाद कहाँ गुंजाइश रहती है किसी तर्क-वितर्क की.....दिलो-दिमाग में उथल-पुथल मची थी......सोचती रही कि क्या करूंगी तुम्हारे बिना.......किस तरह जीऊँगी अधूरी होकर मैं......मुझ में कुछ भी तो ऐसा न था जिसमे तुम शामिल न थे......
मेरी साँसें तुम्हारी साँसों की रफ़्तार से चलतीं थीं....मेरी धडकनें भी शायद मोहताज थी तुम्हारे सीने के स्पंदन की......काश के मैं कुछ ऐसे करती कि तुम भी मेरे बिना अधूरा महसूस करते........मगर मैं रिश्तों में स्पेस देना चाहती थे.......ताकि तुम्हें घुटन ना हो........मगर स्पेस दूरी में बदल जाएगा ये कहाँ जानती थी......
सो तुम चले गए.....................
खुद को सम्हाला मैंने........फिर समझाया दिल को,कि जिस्म का जो हिस्सा दर्द देता है ,सड़ जाता है उसको निकाल फेंकना अच्छा........आखिर कौन सा मर्ज है जिसका इलाज नहीं.......................कोई डाल सूख जाये तो क्या पेड़ मर जाता है???? बल्कि देखभाल ठीक से की जाये तो और भी स्वस्थ शाखें फूटती हैं वहीँ से.........नये फल नये फूलों से लदी डालियाँ लेकर.........नये जीवन का संदेसा लेकर.........
मैं तुमसे कहना चाहती हूँ कि मैं हूँ अब भी...................जिंदा और खुशहाल...........और तुम कहीं नहीं हो...................सिवा डायरी के इन धूल भरे पन्नों के...........जो कभी अनचाहे ही खुल जाते हैं और कुछ पल को, फिर दम सा घुटने लगता है....
रेत पर
अपने क़दमों के
बना कर निशां
न करना ये गुमां...
कि ये देंगे सदा ,तुम्हारे होने की गवाही.
इनका वजूद तो बस
तभी तक है जब तक
उड़ा ना ले जाये इन्हें
वक्त की कोई आंधी...............
समय के साथ सब कुछ धुंधला जाता है........हर याद भी फीकी पड़ जाती है....ज़ख्म भी भर जाते हैं.........कुछ नहीं रहता सदा के लिए........कुछ भी नहीं........................
अनु
काश के मैं कुछ ऐसे करती कि तुम भी मेरे बिना अधूरा महसूस करते........मगर मैं रिश्तों में स्पेस देना चाहती थे.......ताकि तुम्हें घुटन ना हो........मगर स्पेस दूरी में बदल जाएगा ये कहाँ जानती थी...
ReplyDeleteदिल को छू गयी >>
ऐसे खो जायेंगे हम ....
ReplyDeleteजैसे हवाओं में धुंआ ...
जैसे टूटा हुआ तारा हो याके अब्रे रवां ...
जैसे सहराओं में खो जाते हैं कदमों के निशाँ....
फिर न लौटेंगे कभी, लाख बुलाओगे हमें...
सभी कुछ नश्वर है .....?
मानने को दिल नहीं करता ....
बहुत अच्छा लिखा है ....
शुभकामनायें ...अनु.
why late ?u have yet to visit my blog......
thanks ...
सजीव कविता ||
ReplyDeleteइनका वजूद तो बस
ReplyDeleteतभी तक है जब तक
उड़ा ना ले जाये इन्हें
वक्त की कोई आंधी.......
वाह...बहुत अच्छी प्रस्तुति,....
RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
समय तो हर जख्म का मलहम है. हर रिसते हुए रिश्ते पीड़ा देते है लेकिन मनुष्य को प्रकृति ने भूलना भी सिखाया है,,पतझड़ के बाद नई शाखा और नई कोपलें भी तो आती है .
ReplyDeleteरेत पर
ReplyDeleteअपने क़दमों के
बना कर निशां
न करना ये गुमां...
कि ये देंगे सदा ,तुम्हारे होने की गवाही.
ये गुमां कहीं का नहीं रहने देते...
अभिव्यक्ति बहुत गहन !!!
क्या सच में सदा के लिए कुछ नहीं रहता या हम ऐसा वहम पाल लेते हैं की कुछ एक्सा नहीं रहता ... बदलता रहता है ...
ReplyDeleteवो यादें .. वो लम्हे क्या जिस्म का साथ छोड़ सकती हैं ...
इनका वजूद तो बस
ReplyDeleteतभी तक है जब तक
उड़ा ना ले जाये इन्हें
वक्त की कोई आंधी..
बहुत बढि़या ।
vakt har dar ke aehsaas ko kam kar sakta hae khtam nahin yah poonji to tamaam umra sath rhti hae.
ReplyDeleteसमय ही सब दर्द की दवा है..सही कहा..बहुत सुन्दर अभिव्य्क्ति ,,अनु,,सस्नेह..
ReplyDeleteयदि यह आप बीती है तो , बेहद दुखद और अत्यंत मार्मिक
ReplyDeleteयदि जग बीती है तो , बहुत करीब से समझा है विदाई के दुःख को .
लेकिन अंत में बहुत सार्थक और आत्म विश्वास से भरी बात कही है .
क्षणिका तो ग़ज़ब लिखी है जी .
sach hai ki samay ke sath dhudhla jata hai har yaad, har baten fikipad jati hai...par kasak dil ki jyun ki tyun bani rahti hai ,tabhi to baton ko bhul nahi pate..yadon se munh nahi mod pate.. ... ..
ReplyDelete...पर प्यार जो होता है
ReplyDeleteवह रह जाता है अंदर कहीं
जाता नहीं बस तड़पाता है बार-बार
अपने वजूद को देखता है
तुममें ही सिर्फ तुममें !
कुछ भी नहीं रहता सदा के लिए फिर भी हमारा वजूद बन कर हममें ही समा जाता है..
ReplyDeleteरहेंगे ये पन्ने ... बस जब तक मैं हूँ ....
ReplyDeleteआदि....
ReplyDelete"वो तुम्हारे जाने का दिन था.....और सीखा मैंने खुद से प्यार करना......वरना तुम्हें प्यार करने से फुर्सत ही कहाँ थी मुझे!!!!!"
अंत॥....
"मैं तुमसे कहना चाहती हूँ कि मैं हूँ अब भी...................जिंदा और खुशहाल...........और तुम कहीं नहीं हो...................सिवा डायरी के इन धूल भरे पन्नों के...........जो कभी अनचाहे ही खुल जाते हैं और कुछ पल को, फिर दम सा घुटने लगता है...."
Moral of the Life......
"समय के साथ सब कुछ धुंधला जाता है........हर याद भी फीकी पड़ जाती है....ज़ख्म भी भर जाते हैं.........कुछ नहीं रहता सदा के लिए........कुछ भी नहीं.................."
समय के साथ सब कुछ धुंधला जाता है........हर याद भी फीकी पड़ जाती है....ज़ख्म भी भर जाते हैं.........कुछ नहीं रहता सदा के लिए........कुछ भी नहीं..........
ReplyDeletein jakhmon ko yun risne bhi mat dijiye ......marmik panktiyaan ...
इनका वजूद तो बस
ReplyDeleteतभी तक है जब तक
उड़ा ना ले जाये इन्हें
वक्त की कोई आंधी..
बहुत बढि़या ।
bahut hi sarthak baat likhi aapne --------dhanyvaad
bahut hi marmik prastuti......anu jee...
ReplyDeleteBhaavon se puri tarah bheengee hui... Khubsurat prastuti hai...
ReplyDeleteउफ़ ....
ReplyDeleteईश्वर यह दिन न दिखाए ...
शायद कोई और यही लिख लिख कर पन्ने फाड़ रहा होगा ...
मानव अहम् की तुष्टि छोटे से जीवन को नरक बना देती हैं ...
फिर उस अहम् तुष्टि में ही सुख ढूंढते रहते हैं ...
एक दूसरे को नीचा दिखाने में ...
पता नहीं कौन गलत है ??
शायद ईश्वर भी नहीं जानता ...
बेबस हैं हम नियति के सामने ...
शुभकामनायें अनु !
इनका वजूद तो बस
ReplyDeleteतभी तक है जब तक
उड़ा ना ले जाये इन्हें
वक्त की कोई आंधी...............
ज़िंदगी अपनी रफ्तार से चलती जाती है .... कुछ यादें वक़्त की गार्ड में छुप जाती हैं .... जीवन अनवरत चलता रहता है ॥इस तथ्य को कहती सुंदर प्रस्तुति
behad bhawpoorn......sunder.
ReplyDeleteवक़्त के सितम, वक़्त का मरहम ...
ReplyDeleteसमय के साथ सब कुछ धुंधला जाता है........हर याद भी फीकी पड़ जाती है....ज़ख्म भी भर जाते हैं.........कुछ नहीं रहता सदा के लिए........कुछ भी नहीं........................
ReplyDeleteYes, It happens! and we need to be strong...very strong....
.
कुछ यादे हमेशा साथ चलती है जी ...
ReplyDeleteI was deeply involved when i was reading... too good..and i guess.. ese logo ko bhula dena hi thik he.. qki unki yaadein taqlif k aalawa aur kuch nahi hoti :(
ReplyDeleteKhuda ki di hui sabse badi niyamat.....? Ye ki hum bhuulte bhi hai !
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