भास्कर भूमि में प्रकाशित http://bhaskarbhumi.com/epaper/index.php?d=2012-05-13&id=8
इतनी सारी माँओं में एक ना एक माँ तुम्हारी भी होगी..........
माँ-
मेरी
तुम्हारी
उसकी
मेरे दुश्मन की
तुम्हारे दोस्त की
उसके पडोसी की
एक बछड़े की
कातिल की
कान्हा की
भिखारी की
व्याभिचारी की
इसकी-उसकी
माँ तो माँ है.
मेरी माँ
मेरी अम्मा
सीधी,सरल, सुघड,सुंदर
बिना किसी कारण खुश रहती
कोई कारण खोजती,
तो क्या खुश हो पाती??
उनकी माँ
चार संपन्न बेटों की माँ.
आस लिए
चार धाम की यात्रा के
काटती तीन-तीन माह
चारों के घर.
माँ
भोली
गंवार,घरेलू,अनपढ़.
मगर गहनों से लदी....
बस इन्तेज़ार है
बूढ़े बाप की मौत का......
माँ तो भोली है!!!
स्त्री
एक पत्नि,एक माँ
सुनती रही-
तुम्हारे बच्चे
तुम्हारा पति
तुम्हारा घर.
समझती रही-
कुछ नहीं मेरा.
हूँ बस एक ज़रूरत.
माँ
करती न्योछावर
अपना सर्वस्व,
स्वेच्छा से...
मांगती नहीं कुछ अपने लिए....
सो कुछ पाती भी नहीं.
-अनु
इतनी सारी माँओं में एक ना एक माँ तुम्हारी भी होगी..........
माँ-
मेरी
तुम्हारी
उसकी
मेरे दुश्मन की
तुम्हारे दोस्त की
उसके पडोसी की
एक बछड़े की
कातिल की
कान्हा की
भिखारी की
व्याभिचारी की
इसकी-उसकी
माँ तो माँ है.
मेरी माँ
मेरी अम्मा
सीधी,सरल, सुघड,सुंदर
बिना किसी कारण खुश रहती
कोई कारण खोजती,
तो क्या खुश हो पाती??
उनकी माँ
चार संपन्न बेटों की माँ.
आस लिए
चार धाम की यात्रा के
काटती तीन-तीन माह
चारों के घर.
माँ
भोली
गंवार,घरेलू,अनपढ़.
मगर गहनों से लदी....
बस इन्तेज़ार है
बूढ़े बाप की मौत का......
माँ तो भोली है!!!
स्त्री
एक पत्नि,एक माँ
सुनती रही-
तुम्हारे बच्चे
तुम्हारा पति
तुम्हारा घर.
समझती रही-
कुछ नहीं मेरा.
हूँ बस एक ज़रूरत.
माँ
करती न्योछावर
अपना सर्वस्व,
स्वेच्छा से...
मांगती नहीं कुछ अपने लिए....
सो कुछ पाती भी नहीं.
-अनु
माँ तो माँ है.
ReplyDeleteमाँ की पुकार में माँ होती है - हर तरफ सचेत
ReplyDeleteदुनियां की हर माँ को नमन !
ReplyDeleteमाँ सिर्फ माँ है ...सबकी !
माँ
ReplyDeleteकरती न्योछावर
अपना सर्वस्व,
स्वेच्छा से...
मांगती नहीं कुछ अपने लिए....
सो कुछ पाती भी नहीं......
दुनिया में माँ से बढ़कर दूसरा कोई हो नही सकता.////
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
माँ पूर्णत: समर्पण का नाम है..बहुत सुन्दर ..अनु..सस्नेह..
ReplyDelete' माँ ' ऐसी ही होती है ..सुन्दर लिखा है..
ReplyDeleteमाँ का रूप उकेरती सुंदर रचना ...!!
ReplyDeleteशुभकामनायें ...!!
माँ... एक लफ्ज़ नन्हा सा, विस्तार लिए हुए!
ReplyDeleteसुन्दर!
sahi nd satik abiwayakti......
ReplyDeleteMarvelous piece on "Ma". Bahut hi sundar kavitha.
ReplyDeleteसृष्टि की सबसे सुन्दर रचना--- माँ ! अच्छी अभिव्यक्ति ! अनु जी, ...... बधाई !!
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति ||
ReplyDeleteमाँ के प्यार में निस्वार्थ भाव को समेटती आपकी खुबसूरत रचना....माँ तो सिर्फ माँ होती है...... .माँ तुझे सलाम...
ReplyDeleteमाँ ..सभी माँ ओ को शत शत प्रणाम ...
ReplyDelete-----------------------------
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
माँ के अनेक रूप . सही लिखा है.
ReplyDeleteTHE MOST PIOUS FORM OF LOVE IS MOTHER'S LOVE.
ReplyDeleteसभी रचनाएं गहन भाव समेटे, स्त्री के जीवन का सबसे बड़ा सच...
ReplyDeleteस्त्री
एक पत्नि,एक माँ
सुनती रही-
तुम्हारे बच्चे
तुम्हारा पति
तुम्हारा घर.
समझती रही-
कुछ नहीं मेरा.
हूँ बस एक ज़रूरत.
शुभकामनाएँ.
सुन्दर ,,,,बहुत सुन्दर रचना....
ReplyDeleteबहुत मधुर शब्द है --माँ !
ReplyDeleteअद्भुत कविताएँ |वाह !
ReplyDeleteसभी माँ ओ को शत शत प्रणाम ...!
ReplyDeleteकुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
माफ़ी चाहता हूँ !
माँ सब कुछ देना जानती है...लेना नहीं...मुश्किल है माँ के त्याग की थाह पाना...
ReplyDeleteमां तो आखिर उसे बच्चे ही बनाते हैं। तो यह बच्चों की जिम्मेदारी है कि वे इस बात का ख्याल रखें।
ReplyDeleteअदभुत अदभुत अदभुत......!!
ReplyDeleteA mother is indeed an incredible gift. No words are enough for describing how special she is :)
ReplyDeleteमाँ
ReplyDeleteभोली
गंवार,घरेलू,अनपढ़.
मगर गहनों से लदी....
बस इन्तेज़ार है
बूढ़े बाप की मौत का......
माँ तो भोली है!!!
मन को छू गई............
माँ
ReplyDeleteकरती न्योछावर
अपना सर्वस्व,
स्वेच्छा से...
मांगती नहीं कुछ अपने लिए....
सो कुछ पाती भी नहीं.
दुनिया का दस्तूर भी बहुत निर्दयी है...
माँ का विस्तार इतना अधिक है फिर भी एक कविता में उसे समेटने का सुंदर प्रयास.
शुभकामनायें.
माँ सिर्फ माँ होती है... निस्वार्थ प्रेम और ममता की जीती जागती मिसाल... सुन्दर रचना...
ReplyDeleteमाँ ने जिन पर कर दिया, जीवन को आहूत
ReplyDeleteकितनी माँ के भाग में , आये श्रवण सपूत
आये श्रवण सपूत , भरे क्यों वृद्धाश्रम हैं
एक दिवस माँ को अर्पित क्या यही धरम है
माँ से ज्यादा क्या दे डाला है दुनियाँ ने
इसी दिवस के लिये तुझे क्या पाला माँ ने ?
'माँ' मतलब एक गोद सुकून भरी......
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - माँ दिवस विशेषांक - ब्लॉग बुलेटिन
ReplyDeleteलाजवाब रचना, इस रचना के लिए आभार,,,
ReplyDeleteमाँ के लिए ये चार लाइन
ReplyDeleteऊपर जिसका अंत नहीं,
उसे आसमां कहते हैं,
जहाँ में जिसका अंत नहीं,
उसे माँ कहते हैं!
आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
माँ
ReplyDeleteकरती न्योछावर
अपना सर्वस्व,
स्वेच्छा से...
मांगती नहीं कुछ अपने लिए....
सो कुछ पाती भी नहीं.
बहुत सुन्दर.शुभकामनाएं
सचमुच माँ हमेँ ईश्वर की सर्वोत्तम देन है।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
इंडिया दर्पण की ओर से मातृदिवस की शुभकामनाएँ।
अनु ,
ReplyDeleteहर क्षणिका गहन भाव लिए हुये ..... एक एक क्षमिका ने अलग अलग दृश्य दिखा दिये .... सभी सच को कहने में सक्षम .... बहुत अच्छी लगीं सभी रचनाएँ ...
ओह एक माँ ..और कितने सारे भाव..बहुत ही सुन्दर.
ReplyDeleteपरिस्थितियों के अनुसार जीती माँ की तस्वीर
ReplyDeleteहर रचना सच कहती हुई..
सस्नेह
अनु जी माँ के बिभिन्न रूपों को आप ने दर्शाया बधुत सुन्दर बन पड़ी रचना .....हां माँ तो माँ ही है चाहे जिसकी ..माँ रचती रहती है काश उस रचना को लोग सम्हालें ..जय श्री राधे
ReplyDeleteभ्रमर ५
माँ तो माँ है.... बस....
ReplyDeleteलाजवाब रचना....
सादर।