पिंजरे के पंछी
तू कितना बेबस लगता है..
जाने कैसे तू ,
यूँ घुट घुट के जीता है ??
कहाँ वो नीला आकाश
वो अनंत विस्तार...
कहाँ ये नन्हा सा पिंजरा,
बेशक सोने का बना है..
जहाँ तू अपने पंख तक नहीं पसार सकता..
बाध्य है एकाकी जीवन जीने को.
तेरी मीठी बोली
जिस पर सब रीझे जाते हैं...
मुझे क्रंदन सी लगती है,
मानों तू आंदोलन कर रहा हो...
स्वतंत्रता के लिए..
तेरे पर कटे नहीं है..
इसलिए तू और भी दुखी लगता
है..
क्यूंकि तू आश्रित नहीं
है...
बंधक है .
तू पंख विहीन होता
तो शायद कुछ सुकून पाता...
नियति को स्वीकार करता
और कुछ कम छटपटाता............
-अनु
६५ सालों से आस-पास बिखरे इतने सारे परिंदों को हम देख रहे हैं..पिंजड़े की अलग-अलग सलाखों से सिर मारते हुए.. और अब तो कई परिंदों ने इसे ही अपना घर मान लिया है..
ReplyDeleteआपकी यह कविता समाज के विभिन्न पहलुओं को एक साथ छूती है. एक छिपा हुआ विस्तार है इसमें...
पराधीन सपनेहुँ सुख नाहिं...पर पास में है पर उड़ने की मनाहीः(
ReplyDeleteसस्नेह
तू पंख विहीन होता
ReplyDeleteतो शायद कुछ सुकून पाता...
नियति को स्वीकार करता
और कुछ कम छटपटाता.........
बहुत ही सच्ची बात!
सादर
बहुत ही उम्दा कविता |
ReplyDeleteजाने कैसे तू ,
ReplyDeleteयूँ घुट-घुट के जीता है ??
कहाँ वो नीला आकाश
वो अनंत विस्तार...
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वाह.... गहरे भाव
ek acchi prastuti,samvednao se paripurn,"Abhi hai haushla eska salamt, parinda es kadar ghayal nahi hai.....(seri)
ReplyDeleteकाश! हम आज़ादी कि कीमत समझ पाते ???
ReplyDeleteशुभकामनायें!
बहुत ही गहरे भाव .............नियति को स्वीकार करता
ReplyDeletesahi kaha di apne....ye hum par bhi lagu hota hai...samjhe agar tho bahut gehri baat kahi apne panchi kay madhyam say...
ReplyDeleteतू पंख विहीन होता
ReplyDeleteतो शायद कुछ सुकून पाता...
नियति को स्वीकार करता
और कुछ कम छटपटाता ati sundr bhaav
Anuji
ReplyDeleteBeautiful poem from the little birds point of view. Brilliantly expressed.
Have a great day Ram
आज हमारे देश की जनता का भी यही हाल है अपने ही घर में बेबस बंधक की तरह से जीने को मजबूर... गहन भाव
ReplyDeleteउए जो पंछी जिसका चित्र आपने खींचा है इस कविता में वह अपने पर होते हुए भी इस क़ैद को जीने की विवशता पाले हुए है। उसे आज़ाद होना ही चाहिए।
ReplyDeleteवाह बहुत सुँदर . क्रंदन से आन्दोलन , अच्छी रचना.
ReplyDeleteगाँधी जयंती क अवसर पर आज़ादी का महत्त्व कुछ और बढ़ जाता है...सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसच है नियति को स्वीकारना सरल है बन्धनों को नहीं
ReplyDeleteपिजरें के पंछी रे तेरा दरद (दर्द) न जाने कोय,,,,,बहुत सुंदर भाव ,,,,,
ReplyDeleteRECECNT POST: हम देख न सके,,,
सारी संभावनाएं पर फिर भी बेबस लाचार यही है जीवन की विडंबना जहाँ कैद है पंछी , पंख तो है फिर भी बिन पंख के से अहसास ... बहुत खूबसूरत हकीकत से रूबरू एक सुन्दर रचना |
ReplyDeleteवो अनंत विस्तार...
ReplyDeleteकहाँ ये नन्हा सा पिंजरा,
बेशक सोने का बना है..
जहाँ तू अपने पंख तक नहीं पसार सकता..
बाध्य है एकाकी जीवन जीने को
बहुत भावनात्मक मिनी आंटी
और अंत में बहुत सही कहा...
तू पंख विहीन होता
तो शायद कुछ सुकून पाता...
नियति को स्वीकार करता
और कुछ कम छटपटाता............
शायद पंख नहीं होते उसके तो इतनी कुंठा न होती मन में....
beautiful n very touchy poem...
Regars with loads of love
बहुत गहनता से जीवन की वेदना व्यक्त की ...बहुत सुंदर रचना ...!!
ReplyDeleteपर पिंजरे में तो ताला लगा होगा ना :( मैंने भी एक कविता लिखी थी, जिसमें पक्षी पिंजरे से मौका पाकर उड़ जाता है, लेकिन फिर उसको उसी पिंजरे में वापस आना पड़ता है. क्योंकि वो उड़ना ही भूल चुका था और उसे बाज-चील जैसे पक्षियों से बचने का तरीका भी नहीं आता था :(
ReplyDeleteसच में, कई बार चाहकर भी नहीं उड़ पाता. पक्षी कितना बेबस होता है. हम सभी बेबस हैं.
बहुत अच्छी लगी कविता.
यह कविता पढ़ कर शिव मंगल सिंह सुमन की कविता याद आ गयी ....
ReplyDeleteहम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,
स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।
ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंचखोल
चुगते तारक-अनार के दाने।
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती सॉंसों की डोरी।
नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं, तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालों।
आभार
पंछी के पर होते हुए भी उड़ नहीं पाने की वेदना की मार्मिक प्रस्तुति !
ReplyDeleteकिसी ने कहा है
ReplyDelete'पिंजरा तो पिंजरा
सोने का या चाँदी का हो
हीरे मोतियों से जड़ा हो
पिंजरा तो पिंजरा'
जीवन में आए जीव की पी़ड़ा को कहती सुंदर रचना.
Sahi he...aksar dekha he ese pakshiyon ko...
ReplyDeleteChhatpatate...band pinjre me :(
तेरे पर कटे नहीं है..
ReplyDeleteइसलिए तू और भी दुखी लगता है..
क्यूंकि तू आश्रित नहीं है...
बंधक है .
कुछ शब्द भीग गये हैं
ना जाने क्या हुआ
उनका मौन
सुना नहीं था किसी ने ... भावमय करते शब्द आपकी अभिव्यक्ति मन को छूती हुई ...आभार
बचारे ्बेबस पंछी, करे तो क्या करे..सुन्दर प्रस्तुति..अनु..शुभकामनाएं..
ReplyDeleteआपकी रचना ह्रदय में बस गई वाह क्या बात है अनु जी उम्दा भाव पिरोये हैं
ReplyDeleteमनुष्य स्वयं गुलाम है। आज़ादी की भाषा वह ठीक से समझ नहीं सकता।
ReplyDeleteसच को बयान करती मार्मिक रचना !
ReplyDeleteअपने बुने जाल में बंद...पंछी काटे गिन-गिन के दिन चार... :(
pinjare ke kaid se to udate hue shikar hona achha. Kyunki koi malal to nahin rahega ki pankh hote hue bhi ud na paye.
ReplyDeleteudata panchhi.
pinjare ke kaid se to udate hue shikar hona achha. Kyunki koi malal to nahin rahega ki pankh hote hue bhi ud na paye.
ReplyDeleteudata panchhi.
तुलसी दास जी लिखते हैं...
ReplyDeleteजासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, सोई नृप अवसि नरक अधिकारी।
फिर आगे लिखते हैं....
कत विधि सृजि नारी जग माही। पराधीन सपनेहुँ सुख नाही।
आपकी कविता पढ़कर चिंतन न हो यह हो नहीं सकता। बहुत बढ़िया।
आखिरी पंक्तियाँ सोचने को मजबूर कर गई .
ReplyDeleteगहन भाव लिए उत्कृष्ट रचना .
"तेरे पर कटे नहीं है..
ReplyDeleteइसलिए तू और भी दुखी लगता है..
क्यूंकि तू आश्रित नहीं है...
बंधक है"
बहुत ही गहरे जज्बात...इन पक्तियों के सहारे |
पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द ना जाने कोय्…………उम्दा प्रस्तुति।
ReplyDeletesach me is pankhon wale panchhi aur ek padhi likhi sksham naari ki kahani ek samaan hai jo saksham hote hue bhi apne adhikaaron k liye aazad nahi hai.
ReplyDeleteपर होने न होने से क्या होता है,उड़ान को कोई कब तक बाँध सका है
ReplyDeleteशब् को रोज जगा देता है ,
ReplyDeleteऐसी ख्वाब सजा देता है |
मुझको बंद कमरे में कैद कर के ,
क्यूँ तू पंख लगा देता है ,
ऐसी ख्वाब सजा देता है ||
निसंदेह बहुत सुन्दर रचना |
regards
-आकाश
kitni sundarta se aapne un panchiyo ka dard ubhara hai ,kya kahu,.,.bahoot sundar
ReplyDeleteतेरे पर कटे नहीं है..
ReplyDeleteइसलिए तू और भी दुखी लगता है..
क्यूंकि तू आश्रित नहीं है...
बंधक है .
बहुत सुन्दर, आभार