कभी कभी मन अशांत रहता है तो उसे फिर कुछ नहीं
भाता...मन निर्मोही तो जाता है...ये जग मिथ्या लगने लगता है.... और वो भगोड़ा बन जाता है.....(मगर कहाँ आसान है भाग
जाना....) आहत ह्रदय एकांत खोजने लगता है......कहता है भीड़ में तन्हा हो जाने से बेहतर है
कहीं अकेले ही रहा जाय...
कुछ ऐसे ही दुर्बल पलों में
लिखा गया कुछ अपनी डायरी से चुरा लायी हूँ.....(क्या पता कोई ऐसा पल कभी आपने भी
जिया हो....)
दे दो मुझको
भूला भटका
कुछ सूना सूना
बस मेरा अपना
वो नभ का कोना...
भूला भटका
कुछ सूना सूना
बस मेरा अपना
वो नभ का कोना...
न कोई संगी
न कोई साथी
मीलों मीलों
कुछ न होना
वो नभ का कोना....
न कोई साथी
मीलों मीलों
कुछ न होना
वो नभ का कोना....
न कुछ लेना
न ही देना
न इसका उसका
कोई आना जाना
वो नभ का कोना....
न ही देना
न इसका उसका
कोई आना जाना
वो नभ का कोना....
कोई फूल ना पंछी
न चाँद न तारे
न सूरज का फेरा
बस तम हो घना
वो नभ का कोना...
न सूरज का फेरा
बस तम हो घना
वो नभ का कोना...
न दुःख कोई
न खुशियों का डेरा
जब तक हों साँसें
न खुशियों का डेरा
जब तक हों साँसें
है तन्हा जीना
वो नभ का कोना....
वो नभ का कोना....
बस मेरा अपना..नभ का कोना.....
-अनु
दुर्बल पल भी बहुत कुछ दे जाते है ..जैसे ये सुन्दर रचना.
ReplyDeleteन कुछ लेना
Deleteन ही देना
न इसका उसका
कोई आना जाना
वो नभ का कोना...
वाह अनु जी खुबसूरत बेहतरीन रचना
ReplyDeleteन दुःख कोई
न खुशियों का डेरा
जब तक हों साँसें
है तन्हा जीना
वो नभ का कोना....
न दुःख कोई
ReplyDeleteन खुशियों का डेरा
जब तक हों साँसें
है तन्हा जीना
वो नभ का कोना....
कभी२ मन आशांत होने पर ऐसा ही लगता है,,,,
RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
बस मेरा अपना..नभ का कोना.....bahut sahi ..chahiye hota hai ek pal kabhi kabhi sirf apne liye .khubsurt abhiwykti
ReplyDeleteसच है..कभी कभी हम सभी को चाहिए होता है नभ का वो एक कोना. जहाँ शान्ति एकांत और सकून होता है..
ReplyDeleteभीड़ भरी तन्हाई नहीं रोचती-
ReplyDeleteएकांतवास चाहिए-
शुभकामनायें अनु जी ||
कई बार इस तरह के वक़्त से वास्ता पड़ा है...बड़े ही ख़ूबसूरत और रूहानी पल होते हैं ये..सुन्दर रचना...
ReplyDeleteमिलेगा ..जरुर मिलेगा नभ का कोना ही नहीं पूरा नभ :)
ReplyDeleteसुन्दर .
न दुःख कोई
ReplyDeleteन खुशियों का डेरा
जब तक हों साँसें
है तन्हा जीना
वो नभ का कोना.... बहुत सुन्दर
न दुःख कोई
ReplyDeleteन खुशियों का डेरा
जब तक हों साँसें
है तन्हा जीना
वो नभ का कोना....
.................................
वो नभ का कोना...
अनंत...असीमित.. जहाँ सब कुछ है....
बेहतरीन...
विस्तृत नभ का कोई कोना ...
ReplyDeleteमेरा न कभी अपना होना ....
महादेवी वर्मा जी की ये पंक्तियाँ याद आयीं ...
ऐसे ही कुछ एहसास जागे ...
बहुत सुंदर रचना ....
अनु ...
fabulous write
ReplyDeleteनभ का कोना होता नहीं,
नभ में कोना मिलता नहीं
जीना तन्हा होता नहीं
बस...
कोई खुद से ज्यादा अपना होता नहीं
fabulous write
ReplyDeleteनभ का कोना होता नहीं,
नभ में कोना मिलता नहीं
जीना तन्हा होता नहीं
बस...
कोई खुद से ज्यादा अपना होता नहीं
नभ के ऐसे कोने की तलाश मुझे भी है :) बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteखुबसूरत बेहतरीन रचना .
ReplyDeleteबक्त की रफ़्तार का कुछ भी भरोसा है नहीं
कल तलक था जो सुहाना कल बही विकराल हो ...
अब तो हमें खुद ही खुशियों का एक कोना ढूँढ़ना पड़ता है !
ReplyDeleteकमजोर पल में लिखी गई पुष्ट रचना . सबके जीवन में ऐसे क्षण आते ही है , आपने उनको कलमबद्ध किया , बहुत सुँदर.
ReplyDeleteबहुत ही प्यारा सा कोना है आपका ब्लॉग...यहाँ आकर मन को सुकून मिलता है
ReplyDeleteसारी ज़िन्दगी हम अपने नभ के कोने के लिए जद्दोजहद में लगे रहते हैं और उसकी ख़्वाइश को आपने इस रचना में बेहतरीन अभिव्यक्ति दी है।
ReplyDeleteyakinan vistrit nabh se wah kona sb maangate hain
ReplyDeleteबेहतरीन कविता |
ReplyDeleteवहुत सुन्दर प्रस्तुति! शुभ संध्या!
ReplyDeleteUdas bhare man ko agar kuch pal khd k liye mil jaye to baat hi kya ho....
ReplyDeleteन दुःख कोई
ReplyDeleteन खुशियों का डेरा
जब तक हों साँसें
है तन्हा जीना
वो नभ का कोना....
bahut sundar
दिल की अनोखी सी चाहत... सुंदर अनु..!
ReplyDeleteशायद...हर किसी को चाहत है उस एक कोने की....
वाह अनु जी ...........वो नभ का कोना.... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवो नभ का कोना...जिसकी तलाश इस मन को भी है...|
ReplyDeleteन दुःख कोई
ReplyDeleteन खुशियों का डेरा
जब तक हों साँसें
है तन्हा जीना
वो नभ का कोना....
यही असम्प्रज्ञात समाधि की अवस्था है।
di...durbal palon nay kya khoob tohfa diya hai apko.....is kavita kay roop main......hum sab kabhi na kabhi aisi sthiti say gujarte hi hain
ReplyDeletesundar prastuti
ReplyDeleteएकान्तता की पराकाष्ठा |
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ९/१०/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया राजेश जी.
Deleteअकेलापन - एक अनोखा सुख,ज्ञान का अदभुत स्रोत
ReplyDeleteखिड़की के अंदर से देखते हुए हम आकाश के एक कोने को ही सारा आकाश समझ लेते हैं.. लेकिन आकाश उसके बाहर है.. एक सम्पूर्ण विस्तार लिए.. सबकुछ समेटे.. कितने रंग, कितने रूप धरता है वो.. ये सब मिलकर ही तो बनती है आसमान की सुंदरता..
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना!!
बाऊ जी , मेरी इतनी तारीफ करने के लिए बहुत बहुत आभार :)
Deleteसादर प्रणाम |
दिल को छू हर एक पंक्ति...
ReplyDeleteसच है ...
ReplyDeleteभीड़ में तनहा होने से अच्छा अकेले रहना है !
शुभकामनायें आपको !
दे दो मुझको
ReplyDeleteभूला भटका
कुछ सूना सूना
बस मेरा अपना
वो नभ का कोना...
beautiful Mini Aunty....<3
sach me kabhi-kabhi man bhagoda ho jaata hai...
बहुत ही खूबसूरत कविता
ReplyDeleteसादर
छोटी छोटी पंक्तियाँ..... दिल तक दस्तक देती हुई ....बढ़िया हैं
ReplyDeleteदे दो मुझको
ReplyDeleteभूला भटका
कुछ सूना सूना
बस मेरा अपना
वो नभ का कोना...
बहुत बढ़िया भावाभिव्यक्ति एक टुकड़ा आसामान ही हो ,कौना एक नभ का हो ,.....कुछ तो हो ....
दे दो मुझको
भूला भटका
कुछ सूना सूना
बस मेरा अपना
वो नभ का कोना...
बहुत बढ़िया भावाभिव्यक्ति एक टुकड़ा आसामान ही हो ,कौना एक नभ का हो ,.....कुछ तो हो ....
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012
प्रौद्योगिकी का सेहत के मामलों में बढ़ता दखल (समापन किस्त )
I won't comment anything in appreciation except that I resonate and connect very well with your poem, Anu!
ReplyDeleteGlad to know there are fellow species on this planet:)
नभ का कोना सब से अपना
ReplyDeleteवहाँ संजोते प्यारा सपना
न कोई दखल न कोई रुकावट
वह अपना सा नभ का कोना
सस्नेह
दे दो मुझको
ReplyDeleteभूला भटका
कुछ सूना सूना
बस मेरा अपना
वो नभ का कोना...
ये वो कोना है जहां ख्वाब कोई सलोना है ... बहुत खूब
आभार इस बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए
बस मेरा अपना, नभ का कोना ।
ReplyDeleteकल्पनाओँ का सुन्दर प्रवाह....
न कोई फूल ना पंछी
ReplyDeleteन चाँद न तारे
न सूरज का फेरा
बस तम हो घना
वो नभ का कोना...
इन पंक्तियों में तम का जो विस्तार है, विस्मित कर देता है कि रोशनी की तलाश में भटक रही दुनिया में कोई अपने लिए चाह रहा है अंधेरा, लेकिन फिर वहीं आँखें बंद कर देखो कि अंधेरा तुम्हें कितना अपना लगता है और जागती आँखों से दुनिया अपनी परायी हो जाती है।
बहुत अच्छी कविता.....
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
दे दो मुझको
ReplyDeleteभूला भटका
कुछ सूना सूना
बस मेरा अपना
वो नभ का कोना...
ये वो कोना है जहां ख्वाब कोई सलोना है ...
बहुत खूब ...!!
बहुत ही गहरी व मार्मिक रचना ।
ReplyDeleteप्यारी रचना...सबको ही चाहिए..एक अपना कोना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर,,बेहतरीन रचना...
ReplyDelete:-)
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteकोना ही क्यों
सारा लो ना
उड़ना है तो
आकाश लो ना !
न दुःख कोई
ReplyDeleteन खुशियों का डेरा
जब तक हों साँसें
है तन्हा जीना
वो नभ का कोना....
sundar rachna ...
नभ का एक कोना भर हो..
ReplyDeleteपर अपना हो..
मन की बेचैनी को परिलक्षित करती सुन्दर पंक्तियाँ..
मेरी तेरी..सबकी बात...:)
A very beautiful poem Anu ji.
ReplyDeleteन कुछ लेना
ReplyDeleteन ही देना
न इसका उसका
कोई आना जाना
वो नभ का कोना....!
मैं भी खोजूं
तुम भी खोजो
मन में ऐसा
नभ का कोना....!!(***पूनम***)
बहुत सुन्दर...
कभी ऐसे ही ख्यालों में, जब कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था.. मैंने भी आग्रह किया था.. 'ओ तन्हाई, मुझसे बातें कर'.. आपके शब्दों नें उन लम्हों को जीवंत कर दिया फिर से..
ReplyDeleteसुन्दर रचना अनु दी..
सादर
मधुरेश
Lovely creation...
ReplyDeleteवाह बेहद खूबसूरत बन पड़ा ये सिर्फ तेरा और बस तेरा नभ का कोना | सुन्दर रचना |
ReplyDeleteकाश आपको कोई कृष्ण विवर नसीब हो गया होता :-) अच्छा हुआ वे पल अब बीत चले! :-)
ReplyDeleteबड़ा प्यारा स अहसास है इस रचना में ! बधाई आपको !
ReplyDeleteबिलकुल...बिलकुल जिया है ऐसे पल...इसलिए तो कविता एकदम अपनी सी लगी मुझे!!
ReplyDeleteअमृताजी---जिनकी सर्व प्रथम कमेन्ट है --- उस के साथ मेरे भी दस्तखत-
ReplyDeleteसच कहूँ तो मुझे मुक्त छंद वाली कविताओं से ज्यादा , तुकबंदी वाली कविता पसंद आती हैं |
ReplyDeleteलेकिन आपके ब्लॉग पर मैं एहसास खोजने आता था , छंद नहीं |
फिर भी तुकबंदी में लिखी हुई आपकी ये कविता कहीं से भी एहसास में उन पहले वाली कविताओं से कमतर नहीं है |
बधाई
सादर
beautiful di, delicately woven words,its like cool breeze to read ur thoughts
ReplyDeleteबस मेरा अपना वो नभ का कोना .....ह्ह्ह !!जहां तुम ही तुम हो ...ना कोई भी भ्रम हो / .... लहरों की इक नैया हो ...तेरी चितवन बनी खवैया हो..../....ना ठौर हो ना कोई ठिकाना ...बस बहते ही जाना हो...// (अनन्या )
ReplyDelete