त्योहारों की आमद पर पुराना कबाड तलाशते अकसर कुछ ऐसा हाथ लग जाता है जो खुशियों पर एक गहरा साया सा डाल देता है....जाने हम ऐसा कबाड सहेजते क्यूँ हैं? क्यूँ पुरानी डायरियां सम्हाली जाती हैं जबकि उनमें सिवा दर्द के आपने कुछ उकेरा नहीं होता.....क्या हम खुद ही अपने ज़ख्मों को कुरेदना चाहते हैं??? या शायद उम्मीद होती है दिल को कि इस कड़वी ,आंसुओं से भीगी यादों के पन्नों से चिपका कोई और ऐसा लम्हा भी चला आये जो कुछ पल को महका दे आपका धूल भरा कमरा.......
आज सोचती हूँ कोई एक याद ऐसी खोज निकालूँ जो मरहम सी लगे...ठंडी हवा की बयार सी छुए....मीठे पानी सा हलक में उतरे....हरसिंगार सा मेरे बदन को छू के झरे.....जूही की कलि सा मेरा आँचल महकाए......
कहो ??? कोई याद होगी क्या ऐसी.....कहीं डायरी के पन्नों में दबी सी....
हाँ है तो सही...एक दबी हुई गज़ल......दिल गुनगुना तो रहा है...
हवाओं में तेरे एहसासों की छुअन पायी है
ये बयार क्या तेरे शहर से आयी है ?
एक सुरीली सी धुन कानों ने सुनी
क्या बांसुरी तेरे शहर ने बजाई है ?
एक मधुर संगीत से झूमा सा है मन
कोई धुन क्या तेरे शहर ने गुनगुनाई है ?
महका सा है आँगन,और रूह भी है महकी
क्या जूही की कलियाँ तेरे शहर ने झरायीं हैं ?
पानी के एक घूँट से बेताबी और बढ़ी
मेरे गाँव की नदी क्या तेरे शहर से बह आयी है ?
अनु
आज सोचती हूँ कोई एक याद ऐसी खोज निकालूँ जो मरहम सी लगे...ठंडी हवा की बयार सी छुए....मीठे पानी सा हलक में उतरे....हरसिंगार सा मेरे बदन को छू के झरे.....जूही की कलि सा मेरा आँचल महकाए......
कहो ??? कोई याद होगी क्या ऐसी.....कहीं डायरी के पन्नों में दबी सी....
हाँ है तो सही...एक दबी हुई गज़ल......दिल गुनगुना तो रहा है...
हवाओं में तेरे एहसासों की छुअन पायी है
ये बयार क्या तेरे शहर से आयी है ?
एक सुरीली सी धुन कानों ने सुनी
क्या बांसुरी तेरे शहर ने बजाई है ?
एक मधुर संगीत से झूमा सा है मन
कोई धुन क्या तेरे शहर ने गुनगुनाई है ?
महका सा है आँगन,और रूह भी है महकी
क्या जूही की कलियाँ तेरे शहर ने झरायीं हैं ?
पानी के एक घूँट से बेताबी और बढ़ी
मेरे गाँव की नदी क्या तेरे शहर से बह आयी है ?
अनु
हवाओं में तेरे लम्स की छुअन पायी है
ReplyDeleteये बयार क्या तेरे शहर से आयी है ?
बहुत सुन्दर भाव रचे है अनु आपने , वाकई ...
कल मैंने भी पुरानी पत्रिकाएं फेंकने के लिए निकाल रही थी तो
एक दस साल पहले लिखी रचना मिल गई थी ..वही लगाई है ब्लॉग पर !
पता नहीं कब कोई याद ताजा हो कह नहीं सकते !
bahut sundar anu ji .......maine bhi apni dairy saath me rakhi hai kai kitabe band hai purani hawa ka jhokha kabhi bhi pawan sang aa jata hai :) bachpan ke sundar madhur pal samaye panne nahi chut pate , :) mai bhi lagaungi ek panna kabhi blog par :) yahan aana ek khushboo ke saman hai
Deleteपुरानी पर उत्कृष्ट प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई आदरेया ||
पुरानी डायरी अपने साथ बहुत कुछ समेटे रहती है. कभी उसे पढ़कर आँखें भर आती हैं, कभी एक मुस्कुराहट सी होठों पर तैर जाती है, कभी कुछ मीठी सी यादें गुदगुदाकर कर चली जाती हैं.
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी लगीं ये पंक्तियाँ, ताजी हवा के झोंके सी :)
ये डायरियां इस्लिये सहेजी जाती हैं शायद कि जब अव्साद भरे दिनों में इन्हें पढा जाये तो खुद को बताया जा सके कि ऐसा दौर पहले भी आया था जब लगा था कि अब जी पाना मुमकिन नहीं और फिर वो गुज़र भी गया था, हमें थोडा समझदार बना कर.. और खुद को तसल्ली दी जा सके कि ये भी गुज़र जायेगा, फक़त एक दौर ही तो है...
ReplyDeleteये जो ज़रा ज़रा सा खुमार है...
ReplyDeleteक्या तेरे शहर में फैला बुखार है... ;) ~ ये बुखार 'प्यार का बुखार' है !
बहुत सुंदर...गुनगुनाती हुई रचना अनु !:-))
:-)
Deleteहवाओं में तेरे लम्स की छुअन पायी है
ReplyDeleteये बयार क्या तेरे शहर से आयी है ?
वाह ... क्या बात है
लाजवाब करती पंक्तियां ... आभार इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिये
purani dairy me kuchh aise ehsas mil jana tazzub ki baat hai to lijiye mera ek comment bhi usi shahar se aa gaya hai :-)
ReplyDeleteडायरी का पन्ना हँसा गया
ReplyDeleteयह क्या तेरे शहर से उड़ती आई हैः)
बहुत सुंदर रचना अनु!
सस्नेह
tazgi liye shabdo ne aap ka fan bana diya
ReplyDeletetazgi liye shabdo ne aap ka fan bana diya
ReplyDeleteपोस्ट दिल को छू गयी.बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति .,,
ReplyDeleteवाह! बहुत सुँदर , काश मेरे पास भी ऐसी डायरी होती.
ReplyDeleteमहका सा है आँगन,और रूह भी है महकी
ReplyDeleteक्या जूही की कलियाँ तेरे शहर ने झरायीं हैं ?
बहुत खूब !!
अनु जी .... मुझे भी क्यूँ लगा .....
ये सवाल मैं आपसे करूँ .... :)
एक सुरीली सी धुन कानों ने सुनी
ReplyDeleteक्या बांसुरी तेरे शहर ने बजाई है ?
bahut sundar..:-)
शायद वो खुद आया हो अपने शहर से :).
ReplyDeleteएक सुरीली सी धुन कानों ने सुनी
ReplyDeleteक्या बांसुरी तेरे शहर ने बजाई है ?
....बहुत सुन्दर...ठंडी हवा की तरह मन को आह्लादित करती रचना..
बहुत ही सुन्दर, प्यारी-प्यारी , फ्रेश - फ्रेश करती रचना...
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteपानी के एक घूँट से बेताबी और बढ़ी
मेरे गाँव की नदी क्या तेरे शहर से बह आयी है ?..... अपने गांव की महक,उसका स्वाद - बहुत ही बढ़िया
हाँ ये तेरे दिल के शहर से आई है..खुबसूरत सुरीली धुन सी.. शुभकामनाएं..अनु
ReplyDelete
ReplyDeleteएक मधुर संगीत से झूमा सा है मन
कोई धुन क्या तेरे शहर ने गुनगुनाई है ?waah meethi meethi byaar si sundar rachna ..bahut sundar likha hai anu aapne ...
बेहतरीन रचना !
ReplyDeleteहम निकले थे भटकते हुए तेरे कूचे से ,
फिर मुझको ही होश न रहा मेरे खुद का
http://vyakhyaa.blogspot.in/2012/10/blog-post_18.html
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया रश्मि दी..
Deleteखूबसूरत अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद....एक कली आज मुस्काई है :-))
ReplyDeleteखुश रहें!
Khubsoorat aur behethereen rachna.
ReplyDelete...कितनी मोटी है यह डायरी :-)
ReplyDeletedairy to mere pass bhi hai, par usme copy paste material hai, kabhi pahle apne soch ko sahejne ki koshish hi nahi ki:)
ReplyDeleteaapke abhivyakti ka jabab hi nahi hota mere pass:)
डायरी के पन्नों में भी संगीत छुपा रहता है.
ReplyDeleteआपका बहुत आभार रविकर जी.
ReplyDeleteअच्छा लगा दर्द का सिलसिला टूटा आपकी कविताओं में.. यह अभिव्यक्ति भी गज़ल के रूप में अच्छी लगी!!
ReplyDeletevery soft n subtle...loving it !
ReplyDeleteपुरानी यादों में ताज़गी कि खुशबु भरती एक प्यारी सी गज़ल.... बहुत खूब!
ReplyDeleteक्या खूब दिवानगी है... खुदा खैर करे... जिन्दगी की शामत आने वाली है। सुंदर अभिव्यक्ति प्रेम भावना के प्रदर्शित करती।
ReplyDeleteहरसिंगार के फूल सी महकती रचना, बधाई.
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
ReplyDeleteसीधे मन के कोने तक जाती हुई पंक्यियाँ...बहुत खूब |
ReplyDeleteसादर |
महका सा है आँगन,और रूह भी है महकी
ReplyDeleteक्या जूही की कलियाँ तेरे शहर ने झरायीं हैं ?....
बहुत सुन्दर अनु :)
महक जाती हैं हवाएं गुजर कर उनसे ,
ReplyDeleteउन हवाओं में हम अपना बसर करते हैं |
mast....एक सुरीली सी धुन कानों ने सुनी
ReplyDeleteक्या बांसुरी तेरे शहर ने बजाई है ? :) :)
Bahut khoobsoorat gazal. Anu ji.
ReplyDeleteपुरानी डायरियां दर्द ही देती हो तो उन्हें सहेजना क्यों ...बात तो ठीक है !
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल!
lyrical...beautiful lines :)
ReplyDeleteपानी के एक घूँट से बेताबी और बढ़ी
ReplyDeleteमेरे गाँव की नदी क्या तेरे शहर से बह आयी है ?
बहुत खूबसूरत , कोमल भावों से लिखी रचना ।
एहसासों की छुअन से महकती बहुत सुन्दर रचना... वाकई आपकी डायरी बड़ी खूबसूरत है अनु जी
ReplyDeletebahut sundar!
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है | भावों से भरी बेहतरीन रचना |
ReplyDeleteनई पोस्ट:- जवाब नहीं मिलता
सच कभी-कभी कबाड़ से भी कोई दिल को अच्छी लगने वाली या बुरी लगने वाली यकायक सामने आती है तो जाने कितने ही अच्छे-बुरे खयालात मन को खुश/उदास कर जाती है ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
नवरात्रि की शुभकामनाओं सहित
sundar shabd...
Deleteपानी के एक घूँट से बेताबी और बढ़ी
ReplyDeleteमेरे गाँव की नदी क्या तेरे शहर से बह आयी है ?खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |
बहुत नाजुक कोमल एहसास में लिपटे शब्द बहुत सुकून मिला पढ़कर
ReplyDeleteआSहा मन को कुछ गुदगुदा गई ये गज़ल । सब कुछ जो जो मन को अचछा लगे हमारे चाहने वाले की तरफ से ही आता है । बेहद सुंदर ।
ReplyDeletesimply wowwwww...lovelly poem..:)
ReplyDeleteमहका सा है आँगन,और रूह भी है महकी
ReplyDeleteक्या जूही की कलियाँ तेरे शहर ने झरायीं हैं ?बहुत खूब
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteकभी कभी ही ऐसी रचनाएं पढ़ने को मिलती हैं
एक मधुर संगीत से झूमा सा है मन
कोई धुन क्या तेरे शहर ने गुनगुनाई है ?
महका सा है आँगन,और रूह भी है महकी
क्या जूही की कलियाँ तेरे शहर ने झरायीं हैं ?
बहुत मीठी सी ग़ज़ल
ReplyDeleteप्रेम में ऐसा ही जादू है..बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अनु जी ,बहुत रोमांटिक. अगर रदीफ-काफिया के चक्कर में न पड़े तो मनभावन.
ReplyDeleteबह्र ओ रदीफ काफिया कुछ भी निभा नहीं
Deleteअंतस कि लय निभाई मुझ को गिला नहीं
:-)
(शेर Ashvani Sharma ji)
हवाओं में तेरे एहसासों की छुअन पायी है
ReplyDeleteये बयार क्या तेरे शहर से आयी है ?.........
नवरात्रि की शुभकामनाओं सहित बेहतरीन.....बेहतरीन......,.प्रस्तुति
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteमुझे याद करने का शुक्रिया यशवंत....
ReplyDeleteहवाओं में तेरे एहसासों की छुअन पायी है
ReplyDeleteये बयार क्या तेरे शहर से आयी है ?----
वाह क्या बात है -एक कोमल एहसास
सुंदर... कभी महमान बनकर आना... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com
ReplyDeleteपानी के एक घूँट से बेताबी और बढ़ी
ReplyDeleteमेरे गाँव की नदी क्या तेरे शहर से बह आयी है ?
बहुत सुन्दर !
माही दा शहर भी माही वरगा!
ReplyDeleteखूबसूरत!
ढ़
--
ए फीलिंग कॉल्ड.....
प्रकृति-पोषण हेतु मां के समक्ष की गई यह प्रार्थना फलीभूत हो।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल ,उम्दा पंक्तियाँ ..
ReplyDeleteहृदय से निकले भाव।
ReplyDeleteगजल अच्छी है लेकिन ईमानदारी से कहूँ तो उसकी तैयार की हुई रूपरेखा बहुत ही ज्यादा अच्छी है |
ReplyDeleteएक बरस बाद अभी , मीठा सा इक गम पाया
दीवाली की रौनक में , तेरा खत कुछ नम पाया |
सादर
-आकाश