गहरा रही है उदासी
थकन हद से ज्यादा
जी है उकताया सा
पलकें नींद से बोझिल....
अब बस सो जाना चाहती हूँ...
एक लंबी सी नींद.
तुम जगा देना मुझे
गर बीत जाय ये पतझर
और फूटें गुलाबी कोंपलें इन ठूँठों पर....
तुम जगा देना मुझे
जब समंदर खारा न रहे
और बुझा लूँ मैं प्यास,मोती खोजते खोजते....
तुम जगा देना मुझे
जिस रोज आसमां कुछ नीचा हो जाय
और चूम सकूँ मैं चाँद का चेहरा....
तुम जगा देना मुझे
गर मैं छू सकूँ तारे, बस हाथ बढ़ा कर
और तोड़ कर सारे बिखरा दूँ आँगन में अपने..
जाने क्यूँ इन दिनों हरसिंगार भी झरता नहीं.....
जगा देना मुझे
इस युग के बीतते ही.....
-अनु
"मधुरिमा" दैनिक भास्कर में प्रकाशित16/१/२०१३
http://epaper.bhaskar.com/magazine/madhurima/213/16012013/mpcg/1/
थकन हद से ज्यादा
जी है उकताया सा
पलकें नींद से बोझिल....
अब बस सो जाना चाहती हूँ...
एक लंबी सी नींद.
तुम जगा देना मुझे
गर बीत जाय ये पतझर
और फूटें गुलाबी कोंपलें इन ठूँठों पर....
तुम जगा देना मुझे
जब समंदर खारा न रहे
और बुझा लूँ मैं प्यास,मोती खोजते खोजते....
तुम जगा देना मुझे
जिस रोज आसमां कुछ नीचा हो जाय
और चूम सकूँ मैं चाँद का चेहरा....
तुम जगा देना मुझे
गर मैं छू सकूँ तारे, बस हाथ बढ़ा कर
और तोड़ कर सारे बिखरा दूँ आँगन में अपने..
जाने क्यूँ इन दिनों हरसिंगार भी झरता नहीं.....
जगा देना मुझे
इस युग के बीतते ही.....
-अनु
"मधुरिमा" दैनिक भास्कर में प्रकाशित16/१/२०१३
http://epaper.bhaskar.com/magazine/madhurima/213/16012013/mpcg/1/
कोई जरुरत नहीं है सोने की ..जागो...जागो कि आसमान बस आने ही वाला है मुट्ठी में :).
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है..
jahan pr jhil me dhoya tha chehra, vhan pani abhi tak gunguna hai,panktion ke sath aapki samvednaon ka swagat,bahut accha, तुम जगा देना मुझे
ReplyDeleteजब समंदर खारा न रहे
और बुझा लूँ मैं प्यास,मोती खोजते खोजते....
तुम जगा देना मुझे
जिस रोज आसमां कुछ नीचा हो जाय
और चूम सकूँ मैं चाँद का चेहरा....
तुम जगा देना मुझे
गर मैं छू सकूँ तारे, बस हाथ बढ़ा कर
और तोड़ कर सारे बिखरा दूँ आँगन में अपने..
जाने क्यूँ इन दिनों हरसिंगार भी झरता नहीं.....
जय माँ |
ReplyDeleteशुभकामनायें ||
अनु सिर्फ मुस्कुरा दो ...हर तरफ जैसा आलम चाहती हो ......बन जायेगा ....सच्ची !!!!
ReplyDeleteबस इतनी सी माँग है :)
Delete:-)
Deleteअनु दी,, सरस जी ठीक कह रही है...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना..
मन के भावो की कोमल अभिव्यक्ति..
:-)
जैसी कामना है वह पूरी होने ही वाली है.
ReplyDeleteकहीं पलकें न झपक जाएँ
:)
सस्नेह
यह युग ही अपना होगा ....
ReplyDeleteचलो बसंत लायें
एक फूल लगायें
एक नदी बनायें
सबके मन में आशा के दीप जलाएं ......... सोना मत
जहाँ चाह वहाँ राह. सोने से पहले ये सारे कम निपटा लीजिये .
ReplyDeletewaah bahut acchi chahat ....jarur puri hogi ....
ReplyDelete
ReplyDeleteक्या अनु आप भी .........
अभी तो मस्ती के दिन बस ,शुरू ही होने वाले हैं !!
सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteवैसे ये जगाने का काम किसे सौंपा है ? :):)
ReplyDeleteखूबसूरत खयाल
सारे सोये पड़े हैं दी......
Deleteऊपर वाला ही सुलाता है वही जगायेगा :-)
Bahut sundar rachna Anu ji.
ReplyDeleteबहुत उम्दा है यह रचना !
ReplyDeleteजाग दर्द -ए -इश्क जाग
ReplyDeleteदिल को बेकरार कर
छेड़ दे खुशियों का राग :)
तुम जगा देना मुझे
ReplyDeleteगर मैं छू सकूँ तारे, बस हाथ बढ़ा कर
और तोड़ कर सारे बिखरा दूँ आँगन में अपने..
बहुत सुंदर
वाह ... बहुत खूब
ReplyDeleteसादर
जाने क्यूँ इन दिनों हरसिंगार भी झरता नहीं.. uff usne bhi neeyat kharab kar lee apne foolon par ...moh nahi chhod paa raha ...sundar anu bahut sundar
ReplyDeleteबहुत कठिन शर्तें रखी हैं जगाने की . :)
ReplyDeleteतुम जगा देना मुझे
ReplyDeleteगर मैं छू सकूँ तारे, बस हाथ बढ़ा कर
और तोड़ कर सारे बिखरा दूँ आँगन में अपने.....बहुत खुबसूरत भाव अनु..शुभकामनाएं..
जिस युग की आपने कामना की है..ईश्वर करे वह इसी क्षण आ जाए ... बहुत सुन्दर कविता!
ReplyDeleteनवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDelete---
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बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
वाह! बहुत उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteएक ऐसी ख्वाहिश जिसे नकारने को जी न चाहे, खासकर ऐसे गुजारिश की गयी हो तब तो बिलकुल ही नहीं..
ReplyDeleteअनु बहन... बहुत ही प्यारी कविता!!
वाह अनु ...
ReplyDeleteजाने क्यूँ इन दिनों हरसिंगार भी झरता नहीं.....
ReplyDeleteहरसिंगार न झरे, तो डाली पकड़ कर जोर से हिला देना चाहिए
ये तो हमारे वश में है न .............Jokes apart beautifull poem !!
तुम्ही ने सुलाया ,
ReplyDeleteतुम्ही को है जगाना ,
बंद आँखों में भी हो तुम ,
इनके खुलने पर भी ,
तुम्ही को है पाना |
नहीं सोने देंगे इतनी गहरी नींद में,
ReplyDeleteजगा देंगे थोड़े से आराम के बाद ....बहुत सुन्दर भाव अनु जी
अच्छी रचना....
ReplyDeleteबेहतरीन...बेहतरीन..बेहतरीन...
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......
ReplyDeleteतुम जगा देना मुझे
ReplyDeleteजिस रोज आसमां कुछ नीचा हो जाय
और चूम सकूँ मैं चाँद का चेहरा....
AWSOME...asalways :)
विजयदशमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं
ReplyDeleteबढिया, बहुत सुंदर
क्या बात
विजय दशमी की शुभ कामनाएं ...
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...भावपूर्ण
ReplyDeletehappy dushahra:)
Lajwab :)
ReplyDeleteतुम जगा देना मुझे
ReplyDeleteजिस रोज आसमां कुछ नीचा हो जाय
और चूम सकूँ मैं चाँद का चेहरा....
इस चाहत को क्या नाम दूं, समझ में नही आता । बहुत ही सुंदर भाव। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार है।
मुझे तो यह याद आ रहा है...
ReplyDeleteहजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमां मगर फिर भी कम निकले।
bahut khoob :)
ReplyDeleteअनुजी उदासी और थकान को मारो गोली ... बिंदास जिओ और सब कुछ अपनी आँखों से देखो की केसे समुन्दर मीठा हो रहा है और कैसे आसमां निचे आ गया है और कैसे आप तारों को तोड़ रहे हो।
ReplyDelete.. सुन्दर प्रस्तुती :)
काश ऐसा ही हो कि वह स्वर्णिम क्षण आये शीघ्र ही, और बाकी सारी पुरानी बातें बस स्वप्न सी लगे.. ऐसे कि जैसे अभी अभी ही तो जगे हैं... एक नवजीवन में, नव-अनुभूति में..
ReplyDeleteहमेशा की तरह सुन्दर गहन अभिव्यक्ति,
सादर
मधुरेश
म जगा देना मुझे
ReplyDeleteगर बीत जाय ये पतझर
और फूटें गुलाबी कोंपलें इन ठूँठों पर....
तुम जगा देना मुझे
जब समंदर खारा न रहे
और बुझा लूँ मैं प्यास,मोती खोजते खोजते....
तुम जगा देना मुझे
जिस रोज आसमां कुछ नीचा हो जाय
और चूम सकूँ मैं चाँद का चेहरा....
अत्यंत सुन्दर अभिव्यक्ति, आफरीन!!
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteतुम जगा देना मुझे
ReplyDeleteजिस रोज आसमां कुछ नीचा हो जाय
और चूम सकूँ मैं चाँद का चेहरा....
बहुत ही सुंदर भाव। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार है।
उम्मीद करता हूँ , ये नींद ज्यादा लंबी न हो |
ReplyDeleteतूने उम्र तो कुछ दिन की ही अता की और ,
ख्वाहिशों से सारा आकाश भर दिया |
सादर
आकाश
बहुत सुन्दर अभिभूत कर गई ये पंक्तियाँ
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की ११०० वीं बुलेटिन, एक और एक ग्यारह सौ - ११०० वीं बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteमत सोओ, कि कोशिश ख़ुद को करनी पड़ेगी !
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