इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Monday, October 15, 2012

उस रोज़... या शायद हर रोज़...


~~~~~~~~~~~~~~~~~
उस रोज़-
एक कांच का ख्वाब
पत्थर दिल से टकराकर
हुआ लहुलुहान
कतरा कतरा...

उस रोज़-
एक फूल सी उम्मीद
डाल से टूटी
बिखर गयी
पंखुरी पंखुरी...

उस रोज़-
एक नर्म सी ख्वाहिश
किसी सख्त बिस्तर की
सलवटों पर थी
दम तोड़ती ....

उस  रोज़-
एक महका सा एहसास
पनाह  की खोज में
भटकता रहा
सड़ता  रहा.....


ऐ लड़की ! वो ख्वाब, वो उम्मीद, वो ख्वाहिश,वो एहसास
कहीं तू ही तो नहीं???

अनु 

52 comments:

  1. नहीं
    उस रोज
    फूल ने बस
    काँच से
    इतना ही कहा
    लिकाल पाँच रुपिये
    क्विकफिक्स
    है ना
    :))

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  2. सुन्दर प्रस्तुति ।

    बधाई ।।

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  3. उस रोज़-
    एक नर्म सी ख्वाहिश...
    ..............................................
    वाकई बेहतरीन ....

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  4. ऐ लड़की ! वो ख्वाब, वो उम्मीद, वो ख्वाहिश,वो एहसास
    कहीं तू ही तो नहीं???
    बहुत मर्मस्पर्शी .....

    हर बार टूटती है उम्मीद
    फिर भी ख़्वाहिश
    मरती नहीं
    एहसासों के बीच
    हर पल नयी ख़्वाहिश
    जन्म लेती है ।

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  5. उस रोज़-
    एक नर्म सी ख्वाहिश
    किसी सख्त बिस्तर की
    सलवटों पर थी
    दम तोड़ती ....waah ..bahut sundar panktiyaan ...sawaal yah aksar tu hi to nahi ..dil ko puch ke lout jaata hai aur fir shbdon mei dhal jaata hai ..sundar abhiwykati anu ..:)

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  6. ऐसे ख्वाब भी आना अब सुकून देते हैं ।

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  7. दिल को छू लिया !
    ~जाने कितने अश्कों को पनाह मिली इन आँखों में...
    सितारे यूँ ही नहीं चमकते...पलकों पे मेरी....~ :)

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  8. बेहतरीन उम्दा बेहद सुन्दर

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  9. भावमय करते शब्‍दों का संगम ... बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति।

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  10. हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.

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  11. उस रोज़.. कलम ने एक प्यारी सी रचना भी लिख डाली ..जो बहुत खुबसूरत सी है.. शुभकामनाएं ..अनु.

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  12. हजारों ख्वाहिशे ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले .

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  13. भटकन एहसासों की .........
    एहसासों को मंजिल मिले !
    शुभकामनाएँ!

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  14. Behtareen peshkash, shuruat se hi mujhe choo gayee :)

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  15. sahi may di....har bar khwab khwaishay aise hi tutay hain....aur fir jud jate hain...fir hum dekhte ek naya khwab naya din...nayi ummidain.....bahut ehsaso say bhari komal rachna...

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  16. ऐ लड़की ! वो ख्वाब, वो उम्मीद, वो ख्वाहिश,वो एहसास
    कहीं तू ही तो नहीं???... लगता तो है

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  17. ऐ लड़की ! वो ख्वाब, वो उम्मीद, वो ख्वाहिश,वो एहसास
    कहीं तू ही तो नहीं???,,,,,,,,,शब्दों का बेहतरीन संयोजन,,,,बधाई अनु जी,,,

    RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी

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  18. वो ख्वाब, वो उम्मीद, वो ख्वाहिश,वो एहसास....शायद हर रोज...इनमें से किसी ना किसी एक को बिखर जाना पड़ता है |

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  19. कहीं वो ही तो नहीं --- इसी उधेड़बुन में जिंदगी गुजर जाती है . :)

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  20. भावमय करते शब्दों का संगम..
    सुन्दर रचना..

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  21. उस रोज़-
    एक नर्म सी ख्वाहिश
    किसी सख्त बिस्तर की
    सलवटों पर थी
    दम तोड़ती ....

    ....लाज़वाब अभिव्यक्ति...बहुत प्यारी रचना..

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  22. बहुत अच्छी लगी कविता। प्यार के गहरे एहसास को बड़ी खूबसूरती से उकेरा है आपने।..बधाई हो।

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  23. कांच का ख़्वाब ,फूल सी उम्मीद ,नर्म सी ख्वाहिश ,महका सा एहसास ..... क्या बात बहुत ही नाज़ुक सी छुवन .... सस्नेह :)

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  24. कांच का ख़्वाब ,फूल सी उम्मीद ,नर्म सी ख्वाहिश ,महका सा एहसास ..... क्या बात बहुत ही नाज़ुक सी छुवन .... सस्नेह :)

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  25. सच में, बहुत खूबसूरत कविता है.

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  26. आँखों में कांच से ख्वाब ,फूल सी उम्मीद , महके से अहसास , नर्म से ख्वाब लिए ही तो लड़की आती है इस दुनिय में और फिर दुनिय की रवायतें, उसे इन सबकी असलियत से रूबरू करा देती हैं

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  27. एक बस वो पल...नाजुक से अहसास पल पल जैसे टूट जाते हैं.

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  28. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी ,आपका स्वागत है |

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  29. शायद पिघला था आसमान भी उस रोज़ ,
    तपती धूप में गिरी थी बूँदें आसमान से |

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  30. बेहतरीन भाव..वाह ..

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  31. हर रोज़ ... हर पल ऐसा ही होता है ...

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  32. ये जिंदगी इतनी कठोर क्यूँ है ???

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  33. बहुत खूबसूरत और नर्म एहसास...
    हश्र जो भी हो...
    एहसास तो फिर भी अपने ही हैं...!

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  34. मन को छू लेने वाली रचना
    क्या बात

    उस रोज़-
    एक फूल सी उम्मीद
    डाल से टूटी
    बिखर गयी
    पंखुरी पंखुरी...

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  35. ऐ लड़की ! वो ख्वाब, वो उम्मीद, वो ख्वाहिश,वो एहसास
    कहीं तू ही तो नहीं???

    लड़की एक जिंदा एहसास ,मगर टूटा टूटा हर पल एक खाब (ख़्वाब ).....बहुत बोझिल एहसास की रचना ,अपने आस पास घटती रोज़ एक दुर्घटना .बढ़िया प्रस्तुति .

    ram ram bha

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    मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012
    भ्रष्टों की सरकार भजमन हरी हरी ., भली करें करतार भजमन हरी हरी

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  36. कोमल भावों का ऐसा हश्र ...मार्मिक

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  37. हाँ ………शायद वो ही तो है :)
    नवरात्रि की शुभकामनायें।

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  38. ऐसे ही न जाने कितने कोमल अहसास पलपल घुटते दम तोड़ देते हैं..... मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति!

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  39. As always most beautiful and exquisite poem !

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  40. ओह्ह्ह्ह... बहुत मर्मस्पर्शी रचना, शुभकामनाएँ.

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  41. नक्श लायलपुरी साहब फरमाते हैं:
    .
    खाब तो कांच से भी नाज़ुक हैं,
    टूटने से इन्हें बचाना है!
    मैं हूँ अपने सनम की बाहों में,
    मेरे कदमों तले ज़माना है!!
    .
    मगर अनु बहन, यह कविता भी बहुत अच्छी है!! हाँ, "सड़ता रहा" एक कोमल सी कविता में आघात सा लगा!!

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  42. अनु जी .... यह इतनी नाज़ुक बात है की लिखते लिखते यह टूट न जाये इस डर को आपने कैसे टेकल किया होगा....?

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  43. कभी-कभी ख्वाहिशों का टूटना दम टूटने से कहीं ज्यादा पीड़ा दाई होता है !

    सुंदर अभिव्यक्ति!

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  44. उस रोज़-
    एक फूल सी उम्मीद
    डाल से टूटी
    बिखर गयी
    पंखुरी पंखुरी...

    उम्दा प्रस्तुती

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  45. ऐ लड़की ! वो ख्वाब, वो उम्मीद, वो ख्वाहिश,वो एहसास
    कहीं तू ही तो नहीं???
    lagta to hai vahi hai ....sundar rachna !

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  46. वह क्या बात है,खूबसूरत रचना ।

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  47. एक नर्म सी ख्वाहिश
    किसी सख्त बिस्तर की
    सलवटों पर थी |

    ये पंक्तियाँ सबसे खूबसूरत लगीं | पूरे एहसास ही अच्छे हैं |

    सादर
    -आकाश

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