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उस रोज़-
एक कांच का ख्वाब
पत्थर दिल से टकराकर
हुआ लहुलुहान
कतरा कतरा...
उस रोज़-
एक फूल सी उम्मीद
डाल से टूटी
बिखर गयी
पंखुरी पंखुरी...
उस रोज़-
एक नर्म सी ख्वाहिश
किसी सख्त बिस्तर की
सलवटों पर थी
दम तोड़ती ....
उस रोज़-
एक महका सा एहसास
पनाह की खोज में
भटकता रहा
सड़ता रहा.....
ऐ लड़की ! वो ख्वाब, वो उम्मीद, वो ख्वाहिश,वो एहसास
कहीं तू ही तो नहीं???
अनु
नहीं
ReplyDeleteउस रोज
फूल ने बस
काँच से
इतना ही कहा
लिकाल पाँच रुपिये
क्विकफिक्स
है ना
:))
सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबधाई ।।
उस रोज़-
ReplyDeleteएक नर्म सी ख्वाहिश...
..............................................
वाकई बेहतरीन ....
ऐ लड़की ! वो ख्वाब, वो उम्मीद, वो ख्वाहिश,वो एहसास
ReplyDeleteकहीं तू ही तो नहीं???
बहुत मर्मस्पर्शी .....
हर बार टूटती है उम्मीद
फिर भी ख़्वाहिश
मरती नहीं
एहसासों के बीच
हर पल नयी ख़्वाहिश
जन्म लेती है ।
उस रोज़-
ReplyDeleteएक नर्म सी ख्वाहिश
किसी सख्त बिस्तर की
सलवटों पर थी
दम तोड़ती ....waah ..bahut sundar panktiyaan ...sawaal yah aksar tu hi to nahi ..dil ko puch ke lout jaata hai aur fir shbdon mei dhal jaata hai ..sundar abhiwykati anu ..:)
ऐसे ख्वाब भी आना अब सुकून देते हैं ।
ReplyDeleteदिल को छू लिया !
ReplyDelete~जाने कितने अश्कों को पनाह मिली इन आँखों में...
सितारे यूँ ही नहीं चमकते...पलकों पे मेरी....~ :)
बेहतरीन उम्दा बेहद सुन्दर
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम ... बहुत ही बढिया प्रस्तुति।
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeleteउस रोज़.. कलम ने एक प्यारी सी रचना भी लिख डाली ..जो बहुत खुबसूरत सी है.. शुभकामनाएं ..अनु.
ReplyDeleteहजारों ख्वाहिशे ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले .
ReplyDeleteभटकन एहसासों की .........
ReplyDeleteएहसासों को मंजिल मिले !
शुभकामनाएँ!
Behtareen peshkash, shuruat se hi mujhe choo gayee :)
ReplyDeletesahi may di....har bar khwab khwaishay aise hi tutay hain....aur fir jud jate hain...fir hum dekhte ek naya khwab naya din...nayi ummidain.....bahut ehsaso say bhari komal rachna...
ReplyDelete
ReplyDeleteऐ लड़की ! वो ख्वाब, वो उम्मीद, वो ख्वाहिश,वो एहसास
कहीं तू ही तो नहीं???... लगता तो है
ऐ लड़की ! वो ख्वाब, वो उम्मीद, वो ख्वाहिश,वो एहसास
ReplyDeleteकहीं तू ही तो नहीं???,,,,,,,,,शब्दों का बेहतरीन संयोजन,,,,बधाई अनु जी,,,
RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी
वो ख्वाब, वो उम्मीद, वो ख्वाहिश,वो एहसास....शायद हर रोज...इनमें से किसी ना किसी एक को बिखर जाना पड़ता है |
ReplyDeleteकहीं वो ही तो नहीं --- इसी उधेड़बुन में जिंदगी गुजर जाती है . :)
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम..
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
उस रोज़-
ReplyDeleteएक नर्म सी ख्वाहिश
किसी सख्त बिस्तर की
सलवटों पर थी
दम तोड़ती ....
....लाज़वाब अभिव्यक्ति...बहुत प्यारी रचना..
बहुत अच्छी लगी कविता। प्यार के गहरे एहसास को बड़ी खूबसूरती से उकेरा है आपने।..बधाई हो।
ReplyDeleteकांच का ख़्वाब ,फूल सी उम्मीद ,नर्म सी ख्वाहिश ,महका सा एहसास ..... क्या बात बहुत ही नाज़ुक सी छुवन .... सस्नेह :)
ReplyDeleteकांच का ख़्वाब ,फूल सी उम्मीद ,नर्म सी ख्वाहिश ,महका सा एहसास ..... क्या बात बहुत ही नाज़ुक सी छुवन .... सस्नेह :)
ReplyDeleteसच में, बहुत खूबसूरत कविता है.
ReplyDeleteआँखों में कांच से ख्वाब ,फूल सी उम्मीद , महके से अहसास , नर्म से ख्वाब लिए ही तो लड़की आती है इस दुनिय में और फिर दुनिय की रवायतें, उसे इन सबकी असलियत से रूबरू करा देती हैं
ReplyDeleteएक बस वो पल...नाजुक से अहसास पल पल जैसे टूट जाते हैं.
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी ,आपका स्वागत है |
ReplyDeleteशायद पिघला था आसमान भी उस रोज़ ,
ReplyDeleteतपती धूप में गिरी थी बूँदें आसमान से |
बेहतरीन भाव..वाह ..
ReplyDeleteहर रोज़ ... हर पल ऐसा ही होता है ...
ReplyDeleteये जिंदगी इतनी कठोर क्यूँ है ???
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत और नर्म एहसास...
ReplyDeleteहश्र जो भी हो...
एहसास तो फिर भी अपने ही हैं...!
मन को छू लेने वाली रचना
ReplyDeleteक्या बात
उस रोज़-
एक फूल सी उम्मीद
डाल से टूटी
बिखर गयी
पंखुरी पंखुरी...
mujhe rulayi aa gayi.. Anu di..
ReplyDeleteऐ लड़की ! वो ख्वाब, वो उम्मीद, वो ख्वाहिश,वो एहसास
ReplyDeleteकहीं तू ही तो नहीं???
लड़की एक जिंदा एहसास ,मगर टूटा टूटा हर पल एक खाब (ख़्वाब ).....बहुत बोझिल एहसास की रचना ,अपने आस पास घटती रोज़ एक दुर्घटना .बढ़िया प्रस्तुति .
ram ram bha
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मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012
भ्रष्टों की सरकार भजमन हरी हरी ., भली करें करतार भजमन हरी हरी
कोमल भावों का ऐसा हश्र ...मार्मिक
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
हाँ ………शायद वो ही तो है :)
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनायें।
ऐसे ही न जाने कितने कोमल अहसास पलपल घुटते दम तोड़ देते हैं..... मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति!
ReplyDelete..deeply touching!
ReplyDeleteAs always most beautiful and exquisite poem !
ReplyDeleteओह्ह्ह्ह... बहुत मर्मस्पर्शी रचना, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteनक्श लायलपुरी साहब फरमाते हैं:
ReplyDelete.
खाब तो कांच से भी नाज़ुक हैं,
टूटने से इन्हें बचाना है!
मैं हूँ अपने सनम की बाहों में,
मेरे कदमों तले ज़माना है!!
.
मगर अनु बहन, यह कविता भी बहुत अच्छी है!! हाँ, "सड़ता रहा" एक कोमल सी कविता में आघात सा लगा!!
touching piece
ReplyDeleteBehad sundar.
ReplyDeleteअनु जी .... यह इतनी नाज़ुक बात है की लिखते लिखते यह टूट न जाये इस डर को आपने कैसे टेकल किया होगा....?
ReplyDeleteकभी-कभी ख्वाहिशों का टूटना दम टूटने से कहीं ज्यादा पीड़ा दाई होता है !
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति!
उस रोज़-
ReplyDeleteएक फूल सी उम्मीद
डाल से टूटी
बिखर गयी
पंखुरी पंखुरी...
उम्दा प्रस्तुती
ऐ लड़की ! वो ख्वाब, वो उम्मीद, वो ख्वाहिश,वो एहसास
ReplyDeleteकहीं तू ही तो नहीं???
lagta to hai vahi hai ....sundar rachna !
वह क्या बात है,खूबसूरत रचना ।
ReplyDeleteएक नर्म सी ख्वाहिश
ReplyDeleteकिसी सख्त बिस्तर की
सलवटों पर थी |
ये पंक्तियाँ सबसे खूबसूरत लगीं | पूरे एहसास ही अच्छे हैं |
सादर
-आकाश