इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Friday, October 26, 2012

कोई भी इंसा मुझे बुरा नहीं लगता.

दिल की उलझन ने जन्म दिया कुछ अटपटे और बेतरतीब  ख्यालों को....उन ख्यालों को करीने से रखा तो लगा कुछ गज़ल सी बनी......काफिया रदीफ कहाँ है पता नहीं ....हाँ,एहसास जस के तस रखें हैं.....आप भी महसूस करें...

मौसम का मिजाज़  खरा नहीं लगता
सावन भी इन दिनों हरा नहीं लगता.

एक प्यास हलक को सुखाये हुए है
पीकर दरिया  मन भरा नहीं लगता.

चमकता है सब चाँद तारे के मानिंद
सोने का ये दिल  खरा नहीं लगता.

आदत सी पड़ चुकी है हैवानों की मुझे
कि कोई भी इंसा मुझे बुरा नहीं लगता.


अपने ही घर के लोग अंजान बन गए
कोई  पहचाना एक चेहरा नहीं लगता

सुनता नहीं है वो मेरी,जाने क्यों इन दिनों
कहते  जिसे तुम खुदा,बहरा नहीं लगता.


अनु    

59 comments:

  1. एक प्यास हलक को सुखाये हुए है
    पीकर दरिया भी मन भरा नहीं लगता.

    चमकता है सब चाँद तारे के मानिंद
    सोने का ये दिल क्यूँ खरा नहीं लगता.
    वाह ... बहुत ही बढिया

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  2. आदत सी पड़ चुकी है हैवानों की मुझे
    कि कोई भी इंसा मुझे बुरा नहीं लगता.


    it was best

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    1. Awesome lines have been written by you. I liked that. (Y)

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  3. चमकता है सब चाँद तारे के मानिंद
    सोने का ये दिल क्यूँ खरा नहीं लगता...
    ..........................................................
    बेहतरीन प्रस्तुति.. हर बार की तरह

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  4. भावों का बढ़िया प्रगटीकरण |
    गजल की जरुरत क्या है पता नहीं-
    भाव और बहाव मौजूद है-
    बधाईयाँ

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  5. आदत सी पड़ चुकी है हैवानों की मुझे
    कि कोई भी इंसा मुझे बुरा नहीं लगता.

    bahut sahi kaha aapne achhi rachna .....

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  6. वाह,,,, बहुत उम्दा,,

    मै मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बगैर,
    अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो,खैर,,,,

    RECENT POST...: विजयादशमी,,,

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  7. काफिया रदीफ़ की जरूरत नहीं
    खूबसूरत एहसास ही पढ़ना अच्छा लगता हैः)
    सस्नेह

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  8. सही में ....खूबसूरत है इस दिल के एहसास

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  9. आदत सी पड़ चुकी है हैवानों की मुझे
    कि कोई भी इंसा मुझे बुरा नहीं लगता....बहुत खूब !

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  10. Wah ji...kya baat hai...har sher umda aapke vicharon sa...

    Sundar bhavabhivyakti...

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  11. आदत सी पड़ चुकी है हैवानों की मुझे
    कि कोई भी इंसा मुझे बुरा नहीं लगता
    बहुत खूब !
    कोई भी इंसा मुझे भी बुरा नहीं लगता !!

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  12. बहुत खूबसूरती से भावों को उतारा है ....

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  13. वाह:वाह: दिल से निकली आवाज़ !
    खुश रहो !

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  14. बहुत खूब शानदार ,

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  15. मौसम का मिजाज़ खरा नहीं लगता
    सावन भी इन दिनों हरा नहीं लगता.
    sach hai ...

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  16. वाह वाह वाह ………लाजवाब प्रस्तुति।

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  17. अपने ही घर के लोग अंजान बन गए
    कोई एक भी पहचाना चेहरा नहीं लगता ...
    ....
    किससे कहें अपना दर्द
    कोई दोस्त सच्चा नहीं लगता

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  18. बहन की शायरी पर दंग होकर क्या कहूँ लोगों,
    नदी जज़्बात की है ये कोई सहरा नहीं लगता!

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  19. khoobsoorat baat jajbo se bhari hui...very nice

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  20. अपने ही घर के लोग अंजान बन गए
    कोई एक भी पहचाना चेहरा नहीं लगता ....bahut khoob.

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  21. सुन्दर भाव लिए ग़ज़ल .

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  22. ग़ज़ल तो मुझे मुकम्मल लगी . अपनी बात कहने में स्पष्ट . सुन्दर

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  23. एक प्यास हलक को सुखाये हुए है
    पीकर दरिया भी मन भरा नहीं लगता.-----बहुत खूब अनु जी

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  24. सादर अभिवादन!
    --
    बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (27-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  25. भावों को व्यक्त करती सुंदर अभिव्यक्ति | बहुत खूब अनु जी |

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  26. सुन्दर भावाभिव्यक्ति |

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  27. होता है जब परेशां,
    हर आदमी मुझे
    दिखता है एक-सा
    कोई जुदा नहीं लगता!

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  28. आहा ||||
    क्या खूब गजल लिखा है...
    लाजवाब...
    :-)

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  29. आदत सी पड़ चुकी है हैवानों की मुझे
    कि कोई भी इंसा मुझे बुरा नहीं लगता.

    सब अपने है, फिर भी कोई अपना नहीं लगता!!

    गहराई से भरी है ये रचना !!

    पोस्ट
    चार दिन ज़िन्दगी के .........
    बस यूँ ही चलते जाना है !!!

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  30. बेहतरीन ग़ज़ल.....समसामयिक माहौल की बानगी सी लगी आपकी रचना

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  31. अपने ही घर के लोग अंजान बन गए
    कोई एक भी पहचाना चेहरा नहीं लगता

    सुनता नहीं है वो मेरी,जाने क्यों इन दिनों
    कहते हो जिसे तुम खुदा,बहरा नहीं लगता...

    लाजवाब उम्दा .... इसी पर एक शेर लिख रहा हूँ पढियेगा ...

    तुम मिले नही की तुम्हारे आगे खो गया मैं कहीं "रोहित"
    फ़र्से ख़ाक पर खो जाऊं तो ये सदमा गहरा नहीं लगता.

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  32. आदत सी पड़ चुकी है हैवानों की मुझे
    कि कोई भी इंसा मुझे बुरा नहीं लगता.
    गज़ब लिखा है !

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  33. आदत सी पड़ चुकी है हैवानों की मुझे
    कि कोई भी इंसा मुझे बुरा नहीं लगता.waah bahut khub anu ..bahut sundar gajal

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  34. आदत सी पड़ चुकी है हैवानों की मुझे
    कि कोई भी इंसा मुझे बुरा नहीं लगता.
    wah kya kahane Anu ji bahut hi sundar gajal ,,.... sadar abhar

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  35. आदत सी पड़ चुकी है हैवानों की मुझे
    कि कोई भी इंसा मुझे बुरा नहीं लगता.......... bahut khoob

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  36. मन के अप्रतिम भावों को दर्शाती आपकी यह कविता अच्छी लगी। मेरी कामना है कि आप सर्वदा सृजनरत रहें। धन्यवाद।

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  37. ye aaj kay zamane ka sach hai na di......aisa hi lagta hai....apno kay beech bhi anjan....

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  38. अपने ही घर के लोग अंजान बन गए
    कोई एक भी पहचाना चेहरा नहीं लगता

    सुनता नहीं है वो मेरी,जाने क्यों इन दिनों
    कहते हो जिसे तुम खुदा,बहरा नहीं लगता...

    खुबसूरत ग़ज़ल....एक शेर अर्ज़ है...

    आइना देख के तसल्ली हुई
    मुझको इस घर में जानता है कोई...

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  39. आदत सी पड़ चुकी है हैवानों की मुझे
    कि कोई भी इंसा मुझे बुरा नहीं लगता....बहुत खूब बहुत सुन्दर भाव अनु.

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  40. सुनता नहीं है वो मेरी,जाने क्यों इन दिनों
    कहते हो जिसे तुम खुदा,बहरा नहीं लगता.
    - वाह !

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  41. खूबसूरत... उनवान वाला शेर गज़ब..!!

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  42. मौसम का मिजाज़ खरा नहीं लगता
    सावन भी इन दिनों हरा नहीं लगता.badi sunder pangtiyan.....

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  43. लाजवाब!
    इस सुंदर प्रस्तुति के लिए आभार!

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  44. बेहतरीन ग़ज़ल अनु जी. एक पर एक शेर हैं सारे. सच में ज़िन्दगी के कुछ प्यास ऐसे हैं जो अनबुझे ही रहते हैं.

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  45. पूरी कविता पढ्ने के बाद भी,
    ना जाने क्यों मन भरा नहीं लगता... :)

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  46. bahut badhiya koshish hai ji...kafiya,radeef ko kya karna jab dil ki baat seedhi dil se connect ho jaye to.

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  47. खूबसूरत गज़ल । अनु जी आपकी रचनाएं बहुत दिल से लिखीं जातीं हैं ।

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  48. पुनः आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 31/10/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  49. शुक्रिया यशोदा.

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  50. आदत सी पड़ चुकी है हैवानों की मुझे
    कि कोई भी इंसा मुझे बुरा नहीं लगता.

    सही कहा खूब कहा ।

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  51. खूबसूरत गज़ल ।

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