कल रात
चाँद यूँ ठहरा
मेरे पहलु में आकर
जैसे आया हो
कभी न जाने के लिए...
मैं
चाँद
और मोहब्बत...
बंद कर लिए किवाड़ हमने
कभी न खोलने के लिए....
कसमें खायीं
चाँद ने मेरी,
मैंने चाँद की
मोहब्बत ने
मेरी और चाँद की भी.
कसमें..
कभी न तोड़ने के लिए...
आखिर दिल क्या चाहता है ?
सच्चा इश्क ? ?
याने-
चाँद रात
नर्म लहजा
जज़्बात
करीबियां
और चंद झूठी कसमें !!
-अनु
चाँद यूँ ठहरा
मेरे पहलु में आकर
जैसे आया हो
कभी न जाने के लिए...
मैं
चाँद
और मोहब्बत...
बंद कर लिए किवाड़ हमने
कभी न खोलने के लिए....
कसमें खायीं
चाँद ने मेरी,
मैंने चाँद की
मोहब्बत ने
मेरी और चाँद की भी.
कसमें..
कभी न तोड़ने के लिए...
आखिर दिल क्या चाहता है ?
सच्चा इश्क ? ?
याने-
चाँद रात
नर्म लहजा
जज़्बात
करीबियां
और चंद झूठी कसमें !!
-अनु
चाँद रात
ReplyDeleteनर्म लहजा
जज़्बात
करीबियां
और चंद झूठी कसमें......
ताकि भ्रांति बनी रहे ..
वाह सुन्दर !
Wow!!! Beautiful...<3
ReplyDeleteतुम्हारी तमन्ना को पूरी कर देता ये चाँद ,
ReplyDeleteपर उसने जो वादा अमावस से कर रखा था !
बेतरीन भावपूर्ण रचना!
बहुत अच्छा ........
ReplyDeleteचाँद रात
ReplyDeleteनर्म लहजा
जज़्बात
करीबियां
और चंद झूठी कसमें.
वाह ... बहुत खूब।
Hmmm.. chand jhoonthi kasamein bhi behad zaruri.. muhabbat ki khuraak sa kaam deti hain
ReplyDeleteअगर कसमें झूठी हैं, तो प्यार सच्चा कैसे हो गया?... :)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteदिल भरमाया रहता है गायत्री जी.क्या सच क्या झूठ ,कौन जाने..
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteझूठी कसमें क्यों ? वैसे ज़िंदगी भ्रम में ही गुज़र जाती है ...
ReplyDeletedil ko kitna behlate hai ham... behatreen :-)
ReplyDelete
ReplyDeleteऔर चंद झूठी कसमें......
आन्नद तो उसमें भी है ....
कौन सब कसमें सच्चे ही होते हैं ...........
बेचारा चाँद ..किस किसको संभाले, धरती पर देखे या चांदनी को निहारे :).
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है.
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .
ReplyDeleteझूठा चंदा खा रहा, जहाँ व्यर्थ सी कौल ।
ReplyDeleteवहीँ चांदनी दे जमा, वहीँ पीठ पर धौल ।
वहीँ पीठ पर धौल, छला था नारि गौतमी ।
कभी नहीं बन सका, शकल से सही आदमी ।
छुपते छुपे छुपाय, छकाये छली अनूठा ।
धीरे शकल दिखाय, बनाए बातें झूठा ।।
बहुत सुन्दर रविकर जी...
Deleteआभार आपका.
मैं
ReplyDeleteचाँद
और मोहब्बत...
बंद कर लिए किवाड़ हमने
कभी न खोलने के लिए....
yah khyaal hi rumani hai ....bhrm hai zindagi fir bhi jeena hai bahut behtreen
चाँद रात
ReplyDeleteनर्म लहजा
जज़्बात
करीबियां
और चंद झूठी कसमें
Bahut hi sundar Anu di... <3
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण कविता पढ़ने को मिली |आभार
ReplyDeleteBeautiful
ReplyDeleteRecommend to use BLOG INDEX
बहुत प्यारी रचना...
ReplyDeleteचाँद,चाँदनी, जज्बात असली है
वादे तो झूठे ही अच्छे होते हैं|
सस्नेह
हर दिन बदलने वाले चाँद की कसमों का भी क्या भरोसा.. इसीलिये हमारे यहाँ अटूट रिश्तों के लिए ध्रुव-तारे को साक्षी बनाया जाता है!!
ReplyDeleteकविता के भाव बहुत अच्छे हैं, अनु बहन!!
मोहब्बत कसमों की मोहताज़ नहीं
ReplyDeleteग़र सच्चा इश्क है तुझे मुझसे
थोडा ऐतबार रख
यूँ बेएतबार ना कर
बहुत सुन्दर...
झूठी क़समें खाने से जिस वातावरण का सृजन इस कविता में किया गया है उसमें चार चांद लग गए हैं।
ReplyDeleteआखिर दिल क्या चाहता है ?
ReplyDeleteसच्चा इश्क ? ?
ha yahi to chahta hai dil.....nadan jo thahra ...par sacche dil se chahi gai tammana puri bhi to hoti hai ....bahut accha likha hai anu jee ...
ये चाँद भी ना . कल कमरे में भी था और खीर के कटोरे में भी था , बड़ा छलिया है.:)
ReplyDeleteआखिर दिल क्या चाहता है ?
ReplyDeleteसच्चा इश्क ? ?
याने-
चाँद रात
नर्म लहजा
जज़्बात
करीबियां
और चंद झूठी कसमें !!
बहुत अच्छी और प्यारी सी पोस्ट है। पढ़ कर बहुत ही अच्छा लगा.
~~Rohit~~
sundar rachna
ReplyDeleteझूठी कसमें खाना ,फिर उन्हें तोडना , फिर उलाहना मिलना , आधी हंसी , आधे आंसू और यह सब भी चाँद रात में 'चाँद' के साथ !! क्या दृश्य पिरोया है आपने , मन मुग्ध हो गया | लाजवाब |
ReplyDeleteक्या खूबसूरत कविता है मोनिका जी..पर एक बात है मोनिका जी ये चांद भी गजब है न...बचपन में मामा बनता है..बड़े होते हैं तो मोहब्बत का गवाह...मगर मौन....पर निरपेक्ष भी....हम कसम खाते हैं..वो भी देख लेता है...हम कह देते हैं कि चांदनी जला रही है वो भी चांद चुपचाप मान लेता है....मगर शिकायत नहीं करता...पर हम उसे साक्षी बनाकर भी शिकायत कितना करते हैं मोहब्बत में...नहीं क्या?
ReplyDeleteकौन मोनिका ???
Deleteअपने कान पकड़ कर सॉरी कह रहा हूं अनू जी..
Delete:-) apology accepted .....
Deleteबहुत ही उम्दा
ReplyDeleteye chaand bada bedardee hai!
ReplyDeletekhoobsurat rachna,bahut badhiya.
ReplyDeleteकल रात
ReplyDeleteचाँद यूँ ठहरा
मेरे पहलु में आकर
जैसे आया हो
कभी न जाने के लिए...
खुबसूरत रचना.....................
प्यार को कसम का सहारा....बिलकुल नहीं !
ReplyDeleteबेहद सुन्दर रचना
ReplyDeleteचाँद रात
ReplyDeleteनर्म लहजा
जज़्बात
करीबियां
और चंद झूठी कसमें !!
दिल को छू गया आपका ये खूबसूरत अहसास....
ReplyDeleteचाँद रात
नर्म लहजा
जज़्बात
करीबियां
और चंद झूठी कसमें !!
दिल को छू गया आपका ये खूबसूरत अहसास ...
चाँद रात
ReplyDeleteनर्म लहजा
जज़्बात
करीबियां
और चंद झूठी कसमें !!
बस और क्या.....!!
आखिर में 'चंद झूठी कसमें' लिखने के दो असर हुए -
ReplyDelete१. पूरी कविता का रुख ही बदल गया
२. कविता और खूबसूरत हो गयी |
रात को चादर में
मैं और चाँद साथ थे ,
न जाने कब आँख लगी ,
न जाने कब सहर हुई ,
मैं सोता रहा ,
वो उठकर चला गया |
सादर
-आकाश
आखिर दिल क्या चाहता है ?
ReplyDeleteसच्चा इश्क ? ?
याने-
चाँद रात
नर्म लहजा
जज़्बात
करीबियां
और चंद झूठी कसमें !!...सच सी बात
चाँद रात
ReplyDeleteनर्म लहजा
जज़्बात
करीबियां
और चंद झूठी कसमें !!
Issi pe to duniya chal rahi hai Mini aunty... :)
Bahut sundar kavita <3 <3
Kyaa baat hai "करीबियां
ReplyDeleteऔर चंद झूठी कसमें !!" ...loved it !!
ReplyDeleteचाँद रात
नर्म लहजा
जज़्बात
करीबियां
और चंद झूठी कसमें !!
ये जानते हुए भी कि कसमें झूठी हैं....पर दिल चाहता जरूर है।।:)
ख़ूबसूरत कविता
जीवन के अनुभव....धूप छाँव ...अच्छे अच्छों को कठोर बना देते हैं ...या यूँ कहो की मज़बूत बनाते हैं.....:))))))
ReplyDeleteझूठी नहीं ...सच्ची कसमें ...:)))))
ReplyDeleteबहुत आशिकाना !
ReplyDeleteक्षमाप्रार्थी हूं अनू जी .... जबरदस्त गलती हो गई थी..पर सुधार नहीं पाया था....एप्रूवल वाली प्राब्लम के कारण.....होनी नहीं चाहिए थी..आज तक नहीं हुई थी....उम्मीद करता हूं गलती क्षमा कर देंगी।
ReplyDeleteअरे रोहिताश जी....ये कोई गलती नहीं..हम सभी से होती हैं ऐसी गडबडी..
Deleteआप परेशान न हों...
:-)
शुभकामनाएं.
आखिर दिल क्या चाहता है ?
ReplyDeleteसच्चा इश्क ? ?
याने-
चाँद रात
नर्म लहजा
जज़्बात
करीबियां
और चंद झूठी कसमें !.......... speechless
और चंद झूठी कसमें...इश्क की ये ही रवायत तो सारी नेमतों पर भारी है...
ReplyDeletekhamosh bs khamosh,sab hadon se guzar gyee,bahut khoob
ReplyDeleteबहुत नर्म से अहसासात हैं इस डूबकर लिखी गई इस नज़्म में । एक चांद प्रेमी है, एक नायिका और उनका प्रेम। और फिर वही अफसाना जो दीवानावार जगाता है रातों को, जिसकी बुनियाद में कोई बेवफाई कोई झूठ और फरेब होता है शायद। बहुत खूबसूरती से लिखी गई रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteकोमल एहसासों से सजी सुंदर रचना |
ReplyDeleteचंद झूठी कसमें..
ReplyDeleteकल रात
ReplyDeleteचाँद यूँ ठहरा
मेरे पहलु में आकर
जैसे आया हो
कभी न जाने के लिए...
bahut khubsurat rachna....gahare jajbaat liye hue
सुन्दर एहसास
ReplyDeleteकसमें तो पहले सभी सच्ची ही खाते हैं पर झूठी कब हो जाती है पता ही नहीं चलता..शुभकामनाएं अनु...बहुत सुन्दर अहसास
ReplyDeleteकल रात
ReplyDeleteचाँद यूँ ठहरा
मेरे पहलु में आकर
जैसे आया हो
कभी न जाने के लिए...