कभी कभी प्रकृति
अजीब से सवालों में उलझा
देती है,
सोच में डाल देती है...
जैसे आँगन की दीवार पर चिपक
कर
चढ़ने वाली वो बेल
क्या उस खुरदुरी सूखी दीवार
से
मोहब्बत करती होगी ?
या बिना उसके सहारे चढ़ जो
नहीं सकती
आश्रित है उस पर
इसलिए उससे मोहब्बत का स्वांग
रचती है ??
काश के सच्चे प्यार को
पहचानना
इस कदर मुश्किल न होता.....
-अनु
देखने में जो दीवार आपको खुरदुरी ,सूखी दिख रही है ...बेल को तो मिल ही रहा है वो सब कुछ जो वो चाहती है ,तभी तो कितना खूबसूरत हरा रंग है उसका देखिये ....खिल रही है ...न ..?यही तो सच्चा प्यार है ...!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...!!
अनुपमा जी आपकी सकारात्मकता को नमन.....
Deleteऐसे लोग कम होते हैं...
:-)
जो अपने अँदर है, वही बाहर दिखाई पड़ता है!
Deleteखिल रही है ...न ..?यही तो सच्चा प्यार है ...!!May Be
Deleteक्या प्यार निष्काम भी होता है...?
ReplyDeleteI remember, this poem I have read on ur old blog;;;
ReplyDeletenice poem;;
प्रेम की परिभाषाएँ ,रंग ,रूप अनगिनत हैं ..ना जाने कौन सा रंग प्रेम को और गहरा बना देता है ...ये तो वो जाने जो प्रेम के उस रूप में रंगे हैं ......अच्छी लगी कविता !
ReplyDeleteकभी प्रेम,कभी सहारा लेने की मजबूरी,कभी सिर्फ स्वांग - कहाँ समझ पाता है मन
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत कविता |
ReplyDeleteअनु जी प्रेम का दूसरा नाम ही दर्द है
ReplyDeletemujhe lagta hai mohabbat aur mohabbat ke swang me jayda antar nahi:)
ReplyDeletedono dil se hi hota hai:)
behtareen!
sachmuch mohabbat itni aasan kahan ?
ReplyDeleteसच्चे प्यार ही क्यों, प्यार को ही पहचानना मुश्किल होता है अनु जी.
ReplyDeleteछद्म वेशधारी सभी जगह है. इस मायावी दुनिया से कोई बच सके तो वही चमत्कार होगा.
इस भावपूर्ण कविता के लिए आभार !
सच्चे प्यार ही क्यों, प्यार को ही पहचानना मुश्किल होता है अनु जी.
ReplyDeleteछद्म वेशधारी सभी जगह है. इस मायावी दुनिया से कोई बच सके तो वही चमत्कार होगा.
इस भावपूर्ण कविता के लिए आभार !
खूबसूरत......
ReplyDeleteप्रश्न उठना स्वभाविक है...
ReplyDeleteपर स्वांग रचने के लिए भी मुहब्बत तो करनी पड़गी नः)
सस्नेह
सच है :-)
Deleteवाह ... बेहतरीन अभिव्यक्ति आभार आपका
ReplyDeleteओह. बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
बहुत ही खूबसूरत कविता अनु जी
ReplyDeleteप्रेम बाहरी सुन्दरता नहीं देखता ये तो एक रिश्ता है आत्मा से आत्मा का देखिये न इस बेल और उस खुरदुरी दीवार का रिश्ता दोनों मिलकर कितने खुश हैं... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति अनुजी
ReplyDeleteकल 21/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत बहुत शुक्रिया यशवंत.
Delete:-)
mam,
ReplyDeleteआप आपने आस - पास ही कविता को ढूंढ लेती हैं , वाकई काबिल-ए-तारीफ़ |
-आकाश
वक्त कहाँ है किसी दूर के सफर का..
Deleteआस-पास ही एहसासों ने उलझा सा रखा है....
:-)
sach me anu ji yah swang hai ya majburi parantu prem sirf sundarta nahi dekhta , bel yadi khurduri jameen ko tham kar badhti hai to to wahan wah majbuti bhi hoti hai jo kabhi bhi girne nahi deti ..... majbuti se tham kar aage badhne deti hai ...
ReplyDeleteप्यार है बस एक सुविधा से जीने की ललक ..एक बार ऐसा ही कुछ लिखा था ..बहुत सुन्दर तरीके से तुमने लिखा है अनु
ReplyDeleteआपकी कविता भी ज़रूर पढ़वाइयेगा...
Deleteसहारा पाने के लिये प्रेम का स्वांग तो करना ही पडेगा,,,,लेकिन सच्चा प्रेम निस्वार्थ होता है,,,
ReplyDeleteRECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
आभार रविकर जी.
ReplyDeleteसिम्बायोसिस -- भले ही प्यार न हो , एक समझौता ही है , लेकिन फायदा तो दोनों को होता है . :)
ReplyDeleteकहीं इसीलिए तो आजकल लिव इन रिलेशनशिप के केस बढ़ने लगे हैं !
दीवार अगर अहंकार करे कि, मेरे कारण ही बेल सहारा पाती है
ReplyDeleteया बेल ये सोचे कि मै क्यों दीवार पर आश्रित हूँ ?
इसी भावना के चलते प्राकृतिक सौन्दर्य खो रहा है
प्रकृति में सब कुछ एक दुसरे पर आश्रित ही तो है !
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना !!
ReplyDeleteBeautiful ! Very Simple..But Deep Observation Anu !
ReplyDeleteउस बेल को सहारा चाहिए.... चाहे वो उससे ज़्यादा मज़बूत पेड़ हो, या बाँस....या फिर कोई खुरदुरी दीवार ..~इसे समझौता भी कह सकते हैं.... जीवन का समझौता.....~कभी समझौते की मोहब्बत...कभी मोहब्बत का समझौता...... :)
काश के सच्चे प्यार को पहचानना
ReplyDeleteइस कदर मुश्किल न होता.....sahi bat...
gr88 write di.....bel tho hum bhi dekhte hain , par aisa soch pana aur usay shabd dena mushkil hota hai.....
ReplyDeleteसतह खुरदरी सही
ReplyDeleteपर आसरा तो देती है
वो भी आश्रिता बनाकर नहीं
आत्मविश्वास जगाकर
यह कहते हुए कि
मैंने तुम्हारी उंगली थाम रखी है
और तुम्हारे सामने है एक विस्तृत आकाश
ये मेरा खुरदरापन वो झुर्रियाँ हैं
जो तुम्हारे सपनों को पंख देने
और तुम्हें आकाश सौंपने की उम्मीद में
उभर आयी हैं
ऐ मेरी बिटिया रानी
बढ़ा अपने हाथ
और छू ले आसमाँ!!
/
मुझे तो प्यार का यही रूप दिखा!!! या 'यह भी' रूप!!!
अपने अपने हिसाब से व्याख्या की जा सकती है , लोग कर भी रहे है. आपकी कविता के मूल भाव के इतर भी. मै मूढमति बस इतना समझा की रूखे शरीर में प्रेम भरा दिल भी तो धडकता होगा. बढ़िया है जी .
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना..
ReplyDeleteबेल ....हर उस दीवार से प्यार करती है जो उसे आसरा देती है .....
ReplyDeleteअंजु जी ये तो ट्विस्ट है कहानी में :-)
Delete"जिन खोजा तिन पाईयां गहरे पानी पैठ " ....
ReplyDeleteसहारे तो स्वांग से ही मिलते हैं |
ReplyDeleteकुछ अलग...उम्दा भाव...|
ReplyDeleteVicharniy.....
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteकल्पना की उड़ान को मानना पड़ेगा |
आशा
बहुत बढ़िया ....बिलकुल नया
ReplyDeleteप्यार घडी का भी बहुत है ,सच्चा झूंठा मत सोचा कर ,
ReplyDeleteमर जाएगा मत सोचा कर ,तनहा तनहा मत सोचा कर .
हर कोई ढूंढता है एक मुठ्ठी आसमां ,हर कोई चाहता है एक मुठ्ठी आसमा ,उस लतिका ने क्या बिगाड़ दिया ?क्या वह अमर वेळ थी ?जो आश्रय को ही नष्ट कर देती है .
आपका ये सवाल पढ़कर ज़हन से बस एक ही अल्फाज़ निकला - 'आह' ... काश हम जान पाते!! .. बहुत अच्छा लगा अनु दी!
ReplyDeleteसादर
मधुरेश
प्यार तो एक ऐसी पहेली है ...की कोई नहीं समझ पाया है ...क्यों लहरें आ आकर बार बार साहिल पर सर पटकती है ...उसे घायल करने के लिए ...या उस पर मर मिटने के लिए .....वैसे अनुजी..कहाँ से खोज कर लातीं हैं यह ख्याल...बहुत ही सुन्दर ..!
ReplyDeleteSo off beat! Awesome indeed!!
ReplyDeleteप्यार तो एक ऐसी पहेली है ...की कोई नहीं समझ पाया है ...क्यों लहरें आ आकर बार बार साहिल पर सर पटकती है ...उसे घायल करने के लिए ...या उस पर मर मिटने के लिए .....वैसे अनुजी..कहाँ से खोज कर लातीं हैं यह ख्याल...बहुत ही सुन्दर हैं ..!
ReplyDeleteबेजोड़ प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सराहनीय प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !
सच्चे प्यार को पहचानना मुश्किल है, तभी तो उसकी कीमत है..नहीं क्यूँ मारे-मारे फिरते लोग सच्चे प्यार की तलाश में...बहुत ही सुन्दर रचना..
ReplyDeleteअति सुन्दर अनु जी..प्यार सच्चा है या स्वांग है..ये पहचानना इतना आसान थोड़े है..आसान होता तो फिर प्यार को लेके इतनी कवितायेँ ही क्यों बनती..
ReplyDeleteसच्चे प्यार को अनुभूत करना वो भी इस युग में कठिन ही नहीं काफी कठिन होता है ..
ReplyDeleteखुरदरी दीवार के आलंबन में पल्लवित होती बेल का प्रेम निष्काम तो नहीं किन्तु सकाम तो
है ही जिसे भी आज के परिवेश में पाना दुष्कर है....आभार श्रेष्ठ रचना के लिए....
बहुत सुन्दर अनु दी...
ReplyDeleteदिल को छु लेनेवाली रचना...
काश सच्चे प्यार को पहचानना मुश्किल ना होता..
और जिससे प्यार हो जाये..
उसे भी हमसे सच्चा प्यार हो जाता.
काश|
Love often needs such coarse and hard support to flourish!
ReplyDeleteबेहतरीन सार्थक रचना !
ReplyDeleteआभार !
बेहतरीन पोस्ट बधाई
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर कई रचनाएँ पढ़ीं. बहुत सहज और भावपूर्ण लिखती हैं आप.
ReplyDeleteशायद आज प्यार एक जीने का सहारा है...बहुत सार्थक चिंतन...सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteKaash, nature teaches so much. loving without reason or not finding reasons to love...Very profound!
ReplyDeleteअसली मुश्किल है- जब भी प्यार को पहचानने की कोशिश।
ReplyDeletewhat you have written is an explosive..
ReplyDeleteshort and beautifully dangerous... Great work
regards
Sniel
प्यार का काम ही ...किसी पे आश्रित होना है ..??
ReplyDeleteखुश रहो !
बहुत सुन्दर प्रभावशाली रचना!
ReplyDeleteपूरा संसार इसी नियम से चल रहा है सब को एक दुसरे का सहारा मिलता रहे. बिना सहारे के भी जीवन मुमकिन नहीं.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना .अहसासों के परिन्दें कहाँ तक उड़ान भर सकते है .....उसकी कोई थाह नहीं ......यह आपकी रचना से विदित होता है अनु .....
ReplyDeleteबहुत खूब रचना अनु जी।
ReplyDeleteप्रतीक संचेती
Nice one!:)
ReplyDeletepyar ko duniya ki najron se nahi
ReplyDeletepremi ki najar se dekho....
Ye sawal jawab to bemani hai..
Pyaar to bas mahshhos hota hai..
Or failta jata hai khushboo ki tarah.
Ye pyar hai ya kuch aur hai,na tujhe pata na mujhe pata......Wah Anulataji aapka jawab nahi.Man ki dharti par kitne tane bane bun leti hai....Aap
ReplyDelete