है आशाएं
मेरी लाडली की...
कोमल और चंचल ...
रंगबिरंगी
विस्तृत नभ में ऊँचा उड़ती
इन्द्रधनुषी रंगों से
अपना जीवन
रंग देने को छटपटाती सी...
थाम रखी है,
उसकी डोर मैंने
कस कर !
समाज के पेंचो से
बचाती फिर रही हूँ..
कभी ढील देती ,
कभी तानती हुई ...
काँच के महीन टुकड़ों से
मांजा बनाती हूँ...
कभी खुद लहुलुहान होकर भी
घिसती हूँ डोर पर,
कि कहीं
पड़ कर कमज़ोर
कट ना जाये
पतंग ...
हौले से
थामे रहती हूँ छोर,
कि कहीं टूट ना जाये
उसकी आस की डोर...........
happy daughter s day on 2 5 th september//
ReplyDeletenice one .
वाह, बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteसच में !
ReplyDeleteमगर आशंका और भय आजकल बेटे और बेटी , दोनों के प्रति ही समान है !
beautiful and deep composition....!
ReplyDeleteसच कहा!
ReplyDeleteएक माँ ही बेटी को अधिक जानती है और समझती भी है.
gahan abhivyakti"kahi toot n jaye aas ki dor.....
ReplyDeleteचीलों कौवों से भरा, यह सारा आकाश |
ReplyDeleteपंख जटायू के कटे, खुश रावण के दास |
खुश रावण के दास, खींचिए लक्ष्मण रेखा |
खुद पर हो विश्वास, कीजिए अपना देखा |
अनुभव से दो सीख, अभी तो उड़ना मीलों |
आत्म-शक्ति भरपूर, दूर हट जाओ चीलों ||
काँच के महीन टुकड़ों से
ReplyDeleteमांजा बनाती हूँ...
कभी खुद लहुलुहान होकर भी
घिसती हूँ डोर पर,
कि कहीं
पड़ कर कमज़ोर
कट ना जाये
पतंग ...
हौले से
थामे रहती हूँ छोर,
कि कहीं टूट ना जाये
उसकी आस की डोर...........
गहन भाव लिए उत्कृष्ट लेखन ...आभार
काँच के महीन टुकड़ों से
ReplyDeleteमांजा बनाती हूँ...
कभी खुद लहुलुहान होकर भी
घिसती हूँ डोर पर.....
.............................................................
बेटियाँ भले ही अपने होने का पता बाप का देती है...पर रहती हैं माँ के दिल में..... ताउम्र...
और माँ के दिल से निकली इन्द्रधनुषी रंगों की मासूम वेदना.....
बहुत सुन्दर अनुजी....हमें आपसे काफी उम्मीदें हैं....
आशा और प्रयास रहेगा कि पाठकों को नाउमीद न करूँ कभी.
Deleteशुक्रिया राहुल.
कभी कभी ही ऐसी रचनाएं पढने को मिलती हैं
ReplyDeleteबहुत सुंदर
वाह: बहुत गहन बात..अनु..
ReplyDeleteगहन चिंतन लिए हुये है आपकी आज की यह कविता ... आभार !
ReplyDeleteमुझ से मत जलो - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !
आभार शिवम जी.
Deleteसच बहुत कठिन परिस्थिति होती है और हर बेटी की माँ इस दौर से गुजरती है .... सुंदर रचना
ReplyDeleteएक माँ की चेतना और अंतर्द्वंद की खुबसूरत अभिव्यक्ति !!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दीदी
ReplyDeleteसादर
एक और बेहतरीन रचना के लिए बधाइयाँ !
ReplyDeleteकाँच के महीन टुकड़ों से
ReplyDeleteमांजा बनाती हूँ...
कभी खुद लहुलुहान होकर भी
घिसती हूँ डोर पर,
कि कहीं
पड़ कर कमज़ोर
कट ना जाये
पतंग ...
बेहतरीन रचना
बात तो सही है। पर बेटे को भी मां समझती है। भले ही बेटे कहते रहें कि मां आपको समझ नहीं आता। आप नहीं समझोगी.....वगैरह वगैरह..
ReplyDeleteकोमल, नाज़ुक कली को काँटों से बचाकर रखना... सचमुच बहुत कठिन है बिटिया की माँ होना... ममता से भरे सुन्दर अहसास
ReplyDeleteमाँ का दायित्व दोनों के लिए समान है ... बढ़ती आयु में जितना मित्रवात साथ और सुरक्षा बेटियों को चाहिए, उतनी ही बेटों को
ReplyDeleteमाँ जितनी ही गहरी आपकी कविता ! बधाई स्वीकारें !!
ReplyDeleteबेटी की माँ की सर्वथा उपयुक्त अभिव्यक्ति . सटीक शब्द चित्र ,
ReplyDeletemaa-beti ka pyar.. behatreen..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
काँच के महीन टुकड़ों से
ReplyDeleteमांजा बनाती हूँ...
कभी खुद लहुलुहान होकर भी
घिसती हूँ डोर पर,
कि कहीं
पड़ कर कमज़ोर
कट ना जाये
पतंग ...
har maa ki chinta....har ladki ka dar.....you so beautifully expressed...loved it anu ji :)
Beautiful, deep and touchy :)
ReplyDeleteWaah,Bahoot badhiya lekhan aur sundar prastuti:)
ReplyDeleteअच्छी लगी यह कविता।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ममत्व के
ReplyDeleteकोमल अहसास अपनी बच्चियों के लिए..
बेहतरीन रचना..
:-)
गहन चिंतन लिए हुये कविता ,आभार !!
ReplyDeleteसुन्दर सुकोमल अहसास .
ReplyDeleteबढ़िया रचना .
sahi kaha...meri mammi bhi aksar yahi kehti he...
ReplyDeleteबहुत सटीक बात कही है...बेटे-बेटी दोनों के लिए फिट...बेटियों के लिए ज्यादाः)
ReplyDeleteसस्नेह
बहुत सुन्दर पोस्ट ,काबिले तारीफ ।
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट - "क्या आप इंटरनेट पर मशहूर होना चाहते है?" को अवश्य पढ़े ।धन्यवाद ।
मेरा ब्लॉग पता है - harshprachar.blogspot.com
beti umang hai , tarang hai , jivan ki sabse khubsurat rang hai
ReplyDeleteVery beautiful Anu ji :)
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया गहन प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteRECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,
गहन, विचारनीय, संग्रहनीय... एक बहुत ही उम्दा रचना अनु जी.
ReplyDeleteविशेष आभार इस पाठन के लिए..
सादर
मधुरेश
गहन सम्वेदना से सजी एक अच्छी कविता |
ReplyDeletegambheer baat kahati ...sundar rachna ...
ReplyDeleteहौले से
ReplyDeleteथामे रहती हूँ छोर,
कि कहीं टूट ना जाये
उसकी आस की डोर.
सुन्दर अहसास ....
एक मां के भावों को बहुत गहनता से पिरोया है।
ReplyDeleteआजकल पिता जी भी बहुत संवेदनशील हो गए हैं !
ReplyDeleteमै भी एक प्यारी बिटिया की माँ हूँ
ReplyDeleteकुछ कुछ ऐसे ही भाव रखती हूँ लेकिन हम दोनों माँ बेटी कम,
मित्र ज्यादा है !सुंदर रचना अनु,आभार टिप्पणी के लिये...आपकी रचनाओं को पढना
हमेशा सुखद लगता है समय अभाव के कारण कई बार आपकी पोस्ट पर
नहीं पहुँच पाती हूँ कुछ मत समझना प्लीज !
बहुत सुन्दर... बहुत सुन्दर ... बहुत सुन्दर......
ReplyDeletei must say.. this the best poen written by you...
loved it sooo much.... <3 <3 <3
regards
काँच के महीन टुकड़ों से
ReplyDeleteमांजा बनाती हूँ...
कभी खुद लहुलुहान होकर भी
घिसती हूँ डोर पर,
कि कहीं
पड़ कर कमज़ोर
कट ना जाये
पतंग ...
सही में इतना आसान नहीं बेटी की माँ होना....
di....sach may maa ka dil aisa hi hota hai.....apne is rishtay ko dor aur patang may aise dhala hai ki kya batau......
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अनु जी ।
ReplyDeleteबहुत खूब..
ReplyDeleteयहीं तो जिंदगी है..पतंग रूपी आज़ादी साथ मे जिम्मेदारी भी लाती है |
सादर |
काँच के महीन टुकड़ों से
ReplyDeleteमांजा बनाती हूँ...
कभी खुद लहुलुहान होकर भी
घिसती हूँ डोर पर,
कि कहीं
पड़ कर कमज़ोर
कट ना जाये
पतंग ...
MARMIK RACHANA HETU ABHAR ANU JI
mujhe to bete ki maa hona kathin lagta hai.....
ReplyDeleteमाँ ...बेटी की हो या बेटे की ....डगर कठिन हैं दोनों के लिए ही
ReplyDeleteसोच सोच का अन्तर है इस मुश्किल दौर में
समाज के पेंचो से
ReplyDeleteबचाती फिर रही हूँ..
कभी ढील देती ,
कभी तानती हुई ...
बहुत बहुत ख़ूबसूरत कविता..
sach hai bada mushkil hai betiyon ki maa hona....
ReplyDeleteबेटियाँ तो ऐसा नाज़ुक सा एहसास हैं जैसे मासूम सी तितली फूल पर बैठी हो .... यही आपकी सोच के बारे में भी कहना है ..... सस्नेह -:)
ReplyDelete"समाज के पेंचो से
ReplyDeleteबचाती फिर रही हूँ..
कभी ढील देती ,
कभी तानती हुई ..."
सचमुच! कठिन है बेटियों कि माँ होना ...
आप ज्यादा अच्छे से समझ सकती हैं , लेकिन मैं भी महसूस कर पाया आपकी बात |
ReplyDeleteसादर