चुप थे तुम
जब पूछा था लोगों ने
मेरा तुम्हारा रिश्ता...
चुप लगा जाते हैं लोग
अक्सर यूँ ही
कि वो एक सुरक्षा कवच है उनका !
गूंगी हो जाती है रात
जब चीखती है कोई बेबस..
चुप रहता है समाज
सिसकियाँ सुन कर भी !
बादलों के फट जाने पर
सवाल करती हैं लाशें...
और मौन रहता है आसमान |
खामोश रहते वृक्ष
पत्तों को तजने के बाद,
अनसुना करते हैं
चरमराते,सरसराते सूखे पत्तों की चीख |
रिश्तों पर लगी घुन है
ख़ामोशी |
चुप्पी लील जाती है
मन का विश्वास !
चुप रह जाता है प्रेम...
जब वो प्रेम नहीं रहता !!
~अनुलता ~
जब पूछा था लोगों ने
मेरा तुम्हारा रिश्ता...
चुप लगा जाते हैं लोग
अक्सर यूँ ही
कि वो एक सुरक्षा कवच है उनका !
गूंगी हो जाती है रात
जब चीखती है कोई बेबस..
चुप रहता है समाज
सिसकियाँ सुन कर भी !
बादलों के फट जाने पर
सवाल करती हैं लाशें...
और मौन रहता है आसमान |
खामोश रहते वृक्ष
पत्तों को तजने के बाद,
अनसुना करते हैं
चरमराते,सरसराते सूखे पत्तों की चीख |
रिश्तों पर लगी घुन है
ख़ामोशी |
चुप्पी लील जाती है
मन का विश्वास !
चुप रह जाता है प्रेम...
जब वो प्रेम नहीं रहता !!
~अनुलता ~
चुप्पी, खामोशी, मौन .......... शांति नीरवता ........ अंदर से झकझोर देती है ......... कोलाहल ला देती है !!
ReplyDeleteरिश्तों पर लगी घुन है
Deleteख़ामोशी |
चुप्पी लील जाती है
मन का विश्वास !
चुप रह जाता है प्रेम...
जब वो प्रेम नहीं रहता !!.. bahut sundar
चुप्पी वाकई खतरनाक हो जाती है
ReplyDeleteजब भी कभी खामोशी में सो जाती है :)
लाजवाब ।
सच है .....चुप्पी लील जाती है
ReplyDeleteमन का विश्वास !, ....बहुत सुन्दर..अनु..
मौन नहीं होता श्रेयकर हमेशा....
ReplyDeleteचुप्पी के न जाने कितने मतलब हैं... मगर चुप्पी हर समय निगेटिव नहीं होती... और प्रेम में तो अक्सर चुप्पी को प्रेम का इज़हार माना गया है. वो बातें जो ज़ुबान से बयान नहीं हुईं, उन्हें चुप्पियों में बयान होते देखा गया है... एक मुहावरा भी है कि मौन स्वीकृति का लक्षण है..
ReplyDeleteमौन का निगेटिव पक्ष तब शुरू होता है, जब बोलना आवश्यक हो और तब न बोला जाए!
जब आपकी कविता शुरु होती है तो ये अनुमान लगाना मुश्किल होता है कि ये किस कथ्य पर पहुंचकर समाप्त होगी...लेकिन अचानक अपनी समस्त कही हुई बातों को आप बड़ी ही सुंदरता से बेहतरीन गंतव्य पर ले जाकर ख़त्म करती हैं और पूरी कविता पढ़ने के बाद वो लिंक कर कही गई बातें भी अद्भुत अर्थ प्रदान करती है वो कमाल है अनुजी...हमेशा की तरह बहुत ही सुंदर कविता।।।
ReplyDeleteसुंदर ......
ReplyDeleteमौन कायरता का भी प्रतीक है और प्रेम की गहराई का भी । यह परिस्थिति व दृष्टिकोण पर निर्भर होता है । सदा की तरह एक अच्छी रचना ।
ReplyDeleteचुप में कई विरोधाभासी अर्थ छिपे होते हैं , इकरार और इनकार दोनों के ही ! कुछ रिश्ते चुप में ही बेहतर होते हैं तो कुछ में बोल देना आवश्यक होता है।
ReplyDeleteइस कविता की जरुरत कहन ही रही !
बहुत ही लाजवाब भाव, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत अच्छा लिख रही ही अनु , मंगलकामनाएं !!
ReplyDeleteमौनम् स्वीकृति लक्षणम...प्यार कोई बोल नहीं...प्यार आवाज़ नहीं...बोलेंगे तो गहराई खुल जायेगी...
ReplyDeleteसच अच्छा पर उसके जुलू मे ज़हर का एक प्याला भी
ReplyDeleteपागल हो, क्यूँ नाहक को सुकरात बनो, खामोश रहो
इब्ने इंशा
ऐसा ही तो होता है..
ReplyDeleteजरा ठहर जाओ संवाद.... मेरे मौन को कुछ कहने दो....
ReplyDeleteशब्दों में न कहा जा सके भले, पर मौन की भंगिमा बहुत कुछ कह जाती है !
ReplyDeleteचुप लील जाता है मन का विश्वास .... और कभी मौन ही सब कुछ कह देता है .... गहन भाव .
ReplyDeleteबादलों के फट जाने पर ,सवाल करती हैं लाशें..और मौन रहता है आसमान ........................
ReplyDelete.....................वाह .......सच............है................
''तिल-ख़ुशी से आस्मां सा दूर हूँ II
ताड़-ग़म सीने में ढो-ढो चूर हूँ II
पूछ मत मेरी मियादे ज़िन्दगी ,
यूँ समझ ले इक खुला काफ़ूर हूँ II''
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
[http://www.drhiralalprajapati.com/2014/04/524.html]
रिश्तों पर लगी घुन है
ReplyDeleteख़ामोशी |
चुप्पी लील जाती है
मन का विश्वास !
बहुत बढ़िया .... सटीक अभिव्यक्ति
वाह...बहुत बढ़िया !! Soo True !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर और मार्मिक रचना
ReplyDeleteबधाई
चुप के रूप अनेक, हाँ भी और ना भी, स्वीकृति और नकार दोनों ...
ReplyDeleteचुप रह जाता है प्रेम...
ReplyDeleteजब वो प्रेम नहीं रहता !!
और प्रेम कि त्रासदी देखिया ... उसे अक्सर ही चुप रहना पड़ता है ...