"मेरी प्रिय लेखिका मन्नू भंडारी जी पर लिखा मेरा ये आलेख आधी आबादी पत्रिका के ताज़ा अंक में प्रकाशित"
उपन्यास :- आपका बंटी, महाभोज, स्वामी, एक इंच मुस्कान और कलवा, एक कहानी यह भी
पटकथाएँ :- रजनी, निर्मला, स्वामी, दर्पण।
नाटक :- बिना दीवारों का घर।
जन्म- 3 अप्रैल 1931
“एक कहानी यह भी” के पन्ने
पलटते-पलटते मैं डूबती जा रही थी हिन्दी की एक बेहद लोकप्रिय कथाकार महेंद्र
कुमारी - ”मन्नू भंडारी” की जीवन सरिता में | मन्नू जी की यह आत्मकथा पढ़ते हुए
मैंने जाना कि एक मीठे पानी की नदी सा मालूम पड़ने वाला उनका जीवन दरअसल तटबंध किये
हुए खारे सागर के जैसा था मगर मन्नू के भीतर अथाह क्षमता थी,डूब कर मोती खोज लाने
की | एक बेहद ईमानदार व्यक्तित्व और उतनी ही सच्ची,बेबाक और स्पष्ट लेखन शैली वाली
लेखिका,जिनके करीब जाने पर आप एक बेहद आम सी औरत को पायेंगे जो स्वंय को हीनता
ग्रंथि से ग्रस्त मानती हैं पर उनके भीतर झांकते ही या उनकी रचनाएं पढ़ते ही एहसास
होता है कि कितनी विनम्र , निर्मल हृदया और गंभीर लेखिका हैं मन्नू भंडारी |
मन्नू जी के लिए लेखन एक अनवरत यात्रा है जिसका न कोई अंत है न मंज़िल| बस,निरंतर चलते जाना ही जिसकी अनिवार्यता है,शायद नियति भी | इसीलिये पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों का बखूबी निर्वाह करते हुए भी उनकी लेखनी चलती रही अनवरत और फलस्वरूप हमें मिला उच्च कोटि का साहित्य | आपका बंटी और महाभोज इसके प्रमाण हैं |
मध्यप्रदेश के भानपुरा में जन्मीं मन्नू ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया | 1964 से 1991 तक उन्होंने प्रतिष्ठित मिरांडा कॉलेज में अध्यापन का कार्य किया | और ये नौकरी उनके जीवनयापन के लिए आवश्यक भी थी क्यूंकि उनके पति स्वर्गीय राजेन्द्र यादव जो स्वयं एक ख्यातिप्राप्त लेखक और संपादक थे, अपनी साहित्यिक गतिविधियों के चलते घर गृहस्थी में अपना योगदान नहीं दे पाते थे | राजेन्द्र जी से अपने रिश्तों के और उनसे अपने वैचारिक मतभेदों के विषय में भी मन्नू जी ने बड़े खुले शब्दों में बात की है | वे पति-पत्नी बने भी तो लेखन की वजह से ही थे मगर मन्नू को एहसास हुआ कि उनके लेखकीय व्यक्तित्व को तो राजेन्द्र जी ने बहुत सराहा और प्रोत्साहित किया मगर उनके भीतर की स्त्री सदा आहत रही | राजेन्द्र जी ने “सामानांतर ज़िन्दगी” का हवाला देकर उनसे भावनात्मक दूरी बनाये रखी जिसे वे कभी सहन नहीं कर पायीं और इसी संदर्भ में उनकी स्वयं के कटुभाषी होने की स्वीकारोक्ति उनके ईमानदार व्यक्तित्व का एक और प्रमाण है | एक बात और कि उन्होंने अपनी बिटिया "रचना" की ख़ातिर सहनशक्ति की सीमाओं तक जाकर अपने दाम्पत्य का निर्वाह किया और रचना को "बंटी" बनने से बचाए रखा | इसे मैं उनके भीतर की लेखिका और एक पत्नी के ऊपर उनके मातृत्व की विजय कहूंगी |
मन्नू जी के लिए लेखन एक अनवरत यात्रा है जिसका न कोई अंत है न मंज़िल| बस,निरंतर चलते जाना ही जिसकी अनिवार्यता है,शायद नियति भी | इसीलिये पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों का बखूबी निर्वाह करते हुए भी उनकी लेखनी चलती रही अनवरत और फलस्वरूप हमें मिला उच्च कोटि का साहित्य | आपका बंटी और महाभोज इसके प्रमाण हैं |
मध्यप्रदेश के भानपुरा में जन्मीं मन्नू ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया | 1964 से 1991 तक उन्होंने प्रतिष्ठित मिरांडा कॉलेज में अध्यापन का कार्य किया | और ये नौकरी उनके जीवनयापन के लिए आवश्यक भी थी क्यूंकि उनके पति स्वर्गीय राजेन्द्र यादव जो स्वयं एक ख्यातिप्राप्त लेखक और संपादक थे, अपनी साहित्यिक गतिविधियों के चलते घर गृहस्थी में अपना योगदान नहीं दे पाते थे | राजेन्द्र जी से अपने रिश्तों के और उनसे अपने वैचारिक मतभेदों के विषय में भी मन्नू जी ने बड़े खुले शब्दों में बात की है | वे पति-पत्नी बने भी तो लेखन की वजह से ही थे मगर मन्नू को एहसास हुआ कि उनके लेखकीय व्यक्तित्व को तो राजेन्द्र जी ने बहुत सराहा और प्रोत्साहित किया मगर उनके भीतर की स्त्री सदा आहत रही | राजेन्द्र जी ने “सामानांतर ज़िन्दगी” का हवाला देकर उनसे भावनात्मक दूरी बनाये रखी जिसे वे कभी सहन नहीं कर पायीं और इसी संदर्भ में उनकी स्वयं के कटुभाषी होने की स्वीकारोक्ति उनके ईमानदार व्यक्तित्व का एक और प्रमाण है | एक बात और कि उन्होंने अपनी बिटिया "रचना" की ख़ातिर सहनशक्ति की सीमाओं तक जाकर अपने दाम्पत्य का निर्वाह किया और रचना को "बंटी" बनने से बचाए रखा | इसे मैं उनके भीतर की लेखिका और एक पत्नी के ऊपर उनके मातृत्व की विजय कहूंगी |
मन्नू जी को पढ़ना कुछ यूँ
है जैसे आप स्वयं को पढ़ रहे हों | ख़ास तौर पर एक स्त्री के मन को उन्होंने बहुत
गहराई से पढ़ा और उतनी ही संवेदना के साथ पन्नों पर उतारा | जैसे उनकी कहानी “त्रिशंकु”
जो उन्हें भी बहुत प्रिय है, में उन्होंने ऐसे चरित्र का निर्माण किया है जो आज के
समाज में एक त्रिशंकु की तरह लटका है ,यानि एक ओर तो वो आधुनिक होने का प्रयास
करती है वहीं अपने संस्कारों को तोड़ने का साहस नहीं कर पाती | क्या हम आप भी इसी
रस्साकशी के शिकार नहीं हैं ? वहीं “आपका बंटी” की “शकुन” जो मातृत्व और स्त्रीत्व
के द्वंद्व के त्रास को झेलती है |
मन्नू भंडारी की कहानियां
भावनाप्रधान हैं क्यूंकि उन्होंने ज़िन्दगी को नंगी आँखों से देखा है और खुले दिल
से स्वीकारा भी है मगर लेखिका मन्नू कभी उनके भीतर की स्त्री को परास्त नहीं कर
पायी | शायद तभी वे अपने पिता की गरिमा,उनकी करुणा और उनके बहुआयामी व्यक्तित्व से
प्रभावित होकर भी कभी उन पर लिख नहीं पायीं क्यूंकि अपनी माँ के प्रति उनके दोयम
दर्ज़े के व्यवहार से वे सदा आहत रहीं और उनका विरोध करती रहीं | इसलिए उनकी पिता
से कभी बनी नहीं और उन्हें लगता रहा कि उनकी लेखनी पिता के व्यक्तित्व के साथ
न्याय नहीं कर पायेगी |
लेखिका की अधिकतर कहानियां
और उनके भीतर की घटनाएं व पात्र उनके अजमेर के ब्रह्मपुरी मोहल्ले से जुडी हुई हैं
और ये सहज और स्वाभाविक ही है कि लेखक अपने जीवन के इर्द-गिर्द घुमते लोगों को और
किस्सों को कहानियों का ताना बाना देता है | यहाँ कुछ कहानियों का उल्लेख करना ठीक
होगा जैसे- “अकेली” ,जिससे मन्नू जी को खूब ख्याति मिली और इस पर दूरदर्शन ने
टेलीफिल्म भी बनाई| ये एक परित्यक्ता औरत की कहानी है जो अकेलेपन के साथ पति के
द्वारा छोड़े जाने के अपमान का दंश भी भोग रही है और साथ ही उपेक्षा भी |
मन्नू की कहानियाँ सीधी,सहज और पारदर्शी हैं और पाठकों के मन से सीधा सम्बन्ध बनाती हैं | उनकी एक कहानी जो ग्राम्य और शहरी जीवन के बीच तुलनात्मक तौर पर लिखी है और इस पर बासु चटर्जी ने “जीना यहाँ” नाम से फ़ीचर फ़िल्म भी बनाई |
मन्नू की कहानियाँ सीधी,सहज और पारदर्शी हैं और पाठकों के मन से सीधा सम्बन्ध बनाती हैं | उनकी एक कहानी जो ग्राम्य और शहरी जीवन के बीच तुलनात्मक तौर पर लिखी है और इस पर बासु चटर्जी ने “जीना यहाँ” नाम से फ़ीचर फ़िल्म भी बनाई |
मन्नू की कहानियों में
सर्वाधिक चर्चित रही – यही सच है ! और इस पर फ़िल्म बनी “रजनीगंधा” | जिसे
सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म (1974) का पुरस्कार प्राप्त हुआ | ये उनकी एकमात्र कहानी है जो
डायरी फॉर्म में लिखी गयी है,उन्हें लगा कि नायिका के अंतर्द्वंद्व को इस तरह
बेहतर तरीके से उजागर किया जा सकता है |
मन्नू का ज़िक्र हो और “आपका
बंटी” की बात न हो ये संभव नहीं | ये उनकी कालजयी रचना है जिसमें उन्होंने विवाह
विच्छेद की त्रासदी में पिस रहे एक बच्चे को केंद्र में रख कर कहानी बुनी है | बाल
मनोविज्ञान की गहरी समझ-बूझ के लिए चर्चित और प्रशंसित इस उपन्यास का हर पृष्ठ
मर्मस्पर्शी और विचारोत्तेजक है | हिन्दी कथा साहित्य के लिए मन्नू की ये अनमोल
भेंट है |
ये कहानी “धर्मयुग” में धारावाहिक के रूप में प्रकाशित हुई थी और इसके बाद लेखिका के पास ढेरों प्रशंसा पत्र आये मगर कुछ पत्र धिक्कार भरी भर्त्सना के भी थे जिसमें उन्हें शकुन जैसी औरत के पात्र की रचना करने पर उलाहने दिए गए | याने हमारे संस्कारों की जड़ें इतनी गहरी हैं कि त्याग,सेवा,और परिवार के लिए खुद को होम कर देना ही स्त्री के गुण और उनकी महानता की कसौटी समझे जाते हैं | स्त्री की महत्त्वाकांक्षा और आत्मनिर्भरता की चाह पुरुष के लिए चुनौती बन जाते हैं |
उनका दूसरा सबसे प्रसिद्ध लेखन है “महाभोज” जिसमें लेखिका ने गहरे व्यंग,अद्भुत बिम्बों और प्रतीकों का इस्तेमाल किया है | हालाँकि इस उपन्यास का मूल विषय सामाजिक है मगर राजनैतिक विन्यास पर लिखा गया है | इसमें सामंती व्यवस्था और किसानों की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण किया है | दरअसल ये बिहार के बेलछी ग्राम में 11 दलित किसानों को जिंदा जलाये जाने की घटना से आहत होकर लिखा गया है| इस उपन्यास का बाद में उन्होंने नाट्य-रूपांतर किया और जिसका सफल मंचन नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के रंगमंडल ने द्वारा कई बार किया गया | मन्नू जी ने ये उपन्यास शिमला के एक गेस्ट हाउस में रह कर मात्र 25 दिन में पूरा किया था | “महेश” का चरित्र भी उन्होंने मिरांडा हाउस के एक रिसर्च स्कॉलर से प्रेरित होकर लिखा था |
मन्नू जी के लेखन से यूँ लगता है मानों वे सर्वव्यापी हों ,समाज का हर पहलु, हर दृष्टिकोण से देख रही हों ,परख रही हों और समझ भी रही हों |
ये कहानी “धर्मयुग” में धारावाहिक के रूप में प्रकाशित हुई थी और इसके बाद लेखिका के पास ढेरों प्रशंसा पत्र आये मगर कुछ पत्र धिक्कार भरी भर्त्सना के भी थे जिसमें उन्हें शकुन जैसी औरत के पात्र की रचना करने पर उलाहने दिए गए | याने हमारे संस्कारों की जड़ें इतनी गहरी हैं कि त्याग,सेवा,और परिवार के लिए खुद को होम कर देना ही स्त्री के गुण और उनकी महानता की कसौटी समझे जाते हैं | स्त्री की महत्त्वाकांक्षा और आत्मनिर्भरता की चाह पुरुष के लिए चुनौती बन जाते हैं |
उनका दूसरा सबसे प्रसिद्ध लेखन है “महाभोज” जिसमें लेखिका ने गहरे व्यंग,अद्भुत बिम्बों और प्रतीकों का इस्तेमाल किया है | हालाँकि इस उपन्यास का मूल विषय सामाजिक है मगर राजनैतिक विन्यास पर लिखा गया है | इसमें सामंती व्यवस्था और किसानों की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण किया है | दरअसल ये बिहार के बेलछी ग्राम में 11 दलित किसानों को जिंदा जलाये जाने की घटना से आहत होकर लिखा गया है| इस उपन्यास का बाद में उन्होंने नाट्य-रूपांतर किया और जिसका सफल मंचन नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के रंगमंडल ने द्वारा कई बार किया गया | मन्नू जी ने ये उपन्यास शिमला के एक गेस्ट हाउस में रह कर मात्र 25 दिन में पूरा किया था | “महेश” का चरित्र भी उन्होंने मिरांडा हाउस के एक रिसर्च स्कॉलर से प्रेरित होकर लिखा था |
मन्नू जी के लेखन से यूँ लगता है मानों वे सर्वव्यापी हों ,समाज का हर पहलु, हर दृष्टिकोण से देख रही हों ,परख रही हों और समझ भी रही हों |
मन्नू अपने व्यक्तिगत जीवन
में भी उतनी ही सच्ची और निष्कपट है जितना कि उनका लेखन | यही वजह रही कि उन्हें
आरम्भ से ही दिग्गज लेखकों और क़रीबी दोस्तों का मार्गदर्शन, सहयोग और स्नेह मिलता
रहा | वक्त बेवक्त काम आने वाले दोस्तों के लिए मन्नू कहती हैं कि – बिना प्रतिदान
के भी कितना कुछ मिलता रहा है मुझे लोगों से ! दुनिया आज भी सुन्दर है....रहने
योग्य | मैं तो कहूंगी जाकि रही भावना जैसी.........
बासु चटर्जी के आग्रह पर
मन्नू ने शरतचंद्र के उपन्यास “स्वामी ” का पुनर्लेखन किया और जिस पर फ़िल्म भी बनी
जिसने सिल्वर जुबली मनाई और उसका श्रेय मन्नू बासु दा के उत्कृष्ट निर्देशन के
अलावा शबाना आजमी और गिरीश कर्नाड के बेहतरीन अभिनय को देना नहीं भूलतीं | दरअसल उनकी
भाषाशैली इतनी सहज और पारदर्शी है कि आसानी से मन में घर कर लेती है| वे न तो कोई
उद्वेगकारी ढंग से लिखती हैं न तड़क-भड़क वाली भाषा का प्रयोग करती हैं ,संभवतः
इसीलिये उनकी कहानियों में अपनापन लगता है | शायद हर स्त्री को लगे कि अगर वो
लेखिका होती तो कुछ यूँ ही लिखती |
बाहरी और भीतरी दिखावे से
परे मन्नू सीधी और सरल औरत हैं मगर अपने देश और देश की परिस्थितियों पर उनके विचार
सुदृढ़ और सशक्त हैं | अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा है कि फ्रैंकफ़र्ट में एक
पुस्तक मेले में, जो भारतीय साहित्य को केंद्र में रखकर आयोजित किया गया था,
विख्यात लेखिका महाश्वेता जी मीडिया से रूबरू थीं | वे बड़े नाटकीय ढंग से भारतीय
समाज की विकृतियों को पेश कर रही थीं, मन्नू जी ने उनसे बाद में कहा कि आप हमारे
समाज की अच्छाइयों को भी तो उजागर कर सकती थीं,खासकर दूसरे देश के सामने ! अपने
देश और समाज के प्रति ये भावुकता मन्नू जी के लेखन से भी झलकती है |
देश की आज़ादी के वक्त से
लेकर,इमरजेंसी का समय,या चीनी आक्रमण के बाद का भारत हो या फिर इंदिरा गाँधी की
हत्या के बाद फैले दंगों के बाद की स्थिति, मन्नू भंडारी अपने स्तर पर समाज और देश
के लिए अपना योगदान देती रही हैं |
अपनी लेखन शैली को लेकर मन्नू
बड़ी सजग और सचेत हैं, उनका कहना है कि अपनी सीमाओं को समझते हुए वे भावभीनी
कहानियां लिखती रहीं हैं और अपनी सामर्थ्य से बाहर जाकर उन्होंने कभी कुछ अनर्गल
रचने की हिमाकत नहीं की | कुछ नया करने की चाह में उन्होंने अपनी कहानियों की शैली
में थोड़ा बदलाव करके व्यंग का पुट दिया | त्रिशंकु, तीसरा हिस्सा और स्त्री
सुबोधिनी इसी शैली की कहानियां हैं जिसे पाठकों ने स्वीकारा और भरपूर स्नेह दिया |
आखिर में “एक इंच मुस्कान” –
जो साझा लेखन है राजेन्द्र यादव और मन्नू भंडारी का | इसका पहला परिच्छेद
राजेन्द्र जी ने लिखा तो दूसरा मन्नू जी ने,ये अपनी तरह का अनूठा प्रयोग था जो
बेहद सफल रहा | ये आधुनिक लोगों की एक दुखांत प्रेम कथा है |
जहाँ इमरजेंसी के चलते मन्नू
भंडारी ने पद्मश्री सम्मान ठुकराया वहीं उन्हें हिन्दी अकादमी दिल्ली का शिखर सम्मान, बिहार सरकार, भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, व्यास सम्मान और उत्तर-प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा पुरस्कृत
किया गया, मगर उनके लिए शायद सबसे बड़ा पुरस्कार होगा पाठकों द्वारा मिला स्नेह और सम्मान
और एक अनूठी पहचान |
किसी भी वाद या
पंथ से बिना जुड़े,अपने आस पास की दुनिया को पन्नों पर उतरती,बहुमुखी प्रतिभा की
धनी यह सशक्त और संयमी स्त्री लेखकों और संपादकों बीच चलती राजनीति को करीब से देख
कर भी खिन्न अवश्य हुई मगर रहीं उससे अछूती ही | सभी पाठकों और लेखकों की ओर
से मैं ईश्वर से कामना करती हूँ कि मन्नू जी स्वस्थ रहें , दीर्घायु हों और अपनी
सुन्दर लेखनी से हमारे लिए और भी अनमोल सृजन करती रहेंगी |
अनुलता राज नायर
भोपाल
प्रकाशित कृतियाँ
कहानी-संग्रह :- एक प्लेट सैलाब, मैं हार
गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच
है, त्रिशंकु, श्रेष्ठ कहानियाँ,
आँखों देखा झूठ, नायक खलनायक विदूषक।उपन्यास :- आपका बंटी, महाभोज, स्वामी, एक इंच मुस्कान और कलवा, एक कहानी यह भी
पटकथाएँ :- रजनी, निर्मला, स्वामी, दर्पण।
नाटक :- बिना दीवारों का घर।
ye kitaab maine padhi hai aur ise padhne ke baad sirf Mannu Bhandari aur Rajendra Yadav ke baare mein hi nahin unke sath us waqt ki sahityik halchal aur personalities ke baare mein bhi achhi jaankaari milti hai.
ReplyDeleteसच कहा भावना जी......उस वक्त कैसा माहौल था साहित्य जगत में ,ये बखूबी लिखा है लेखिका ने !
ReplyDeleteशुक्रिया !
Badhiya Lekh...Badhai
ReplyDeleteआमीन :)
ReplyDeleteमन्नू जी स्वस्थ रहें , दीर्घायु हों और अपनी सुन्दर लेखनी से अनमोल सृजन करती रहें ।
मन्नू जी के लिए मंगलकामनाएं अनु , आपके लिए आभार !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन मां सब जानती है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeletemaine bhi padh rakhi hai ye kitab gazab ki sahanshakti hai mannu jee . men ...kitni bhi tariph karo kam hai ......
ReplyDeleteईमानदार व्यक्तित्व से निस्सृत लेखन की सारी विशेषताएं मन्नू जी के साहित्य में विद्यमान हैं .ऐसी संवेदनशील और प्रबुद्ध लेखिका सतत क्रियाशील रहे !
ReplyDeleteis mahatvapoorn jankari ke liye abhaar. very well put
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन का आभार जिस कारण हम यहाँ तक पहुँच पाए...बहुत ही सहज भाव से आपने मन्नूजी के बारे में लिखा जिसे पाठक बिना रुके पढ़ सकता है...
ReplyDeleteसुन्दर आलेख के लिए बधाई..
ReplyDeleteसटीक आलेख के लिए बधाई अनु
ReplyDeleteमनु भण्डारी के बारे मे पूर्ण जानकारी प्राप्त कर खुश हुआ ........... मेरी फेवरिट कथाकार !!
ReplyDeleteबेहतरीन आलेख !!
बेहतरीन आलेख
ReplyDeleteक्या संयोग है ... आजकल मैं मन्नू जी की कहानियाँ पढ़ रही हूँ। 'तीसरा हिस्सा' उनकी चिर-परिचित शैली से सर्वथा भिन्न मगर बहुत सशक्त कहानी है।
ReplyDeleteबहुत बढिया आलेख ... बधाई
मन्नू जी को जानना आपकी कलम से और भी अच्छा लगा ... उनकी कहानियां तो सदा ही पढता रहा हूँ और कायल हूँ उनकी शैली का ...
ReplyDeleteयथार्थ के बेहद निकट लगता है मन्नू जी का लेखन। मैं भी प्रशंसक हूँ उनकी।
ReplyDeleteआपकी कलम का जादू .... अपना असर दिखाने में पूरी तरह कामयाब हो गया है ....
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
शानदार, यूँ ही आगे बढ़ो
ReplyDeleteNamskar,
ReplyDeletekafi samy pashchat aap ka blog padha- pehle jaisi he santushti mili.
मनु भण्डारी की कलम की बारीकी को आप जैसी लेखिका की कलम से ही समझा जा सकता है.........
ReplyDeleteमनु भण्डारी के बारे मे पूर्ण जानकारी .....सुन्दर आलेख के लिए बधाई..अनु दी
ReplyDeleteबेहतरीन लेख....
ReplyDeleteमन्नू जी के लेखन ने हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है ....
बहुत सुन्दर आलेख अनु ...
ReplyDeleteबहुत प्रभावशाली तरीके से मन्नू भंडारी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला है अपने. मनु जी की लेखनी अद्वितीय है.
ReplyDeleteआपको बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteईमानदारी लेखन का प्रमुख तत्व है, जिसके लिए मनु जी प्रसिद्ध हैं।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है।
मन्नू भंडारी जैसी सजग और व्यक्तित्व संपन्न लेखिका के जीवन-पृष्ठों के साथ ताल-मेल बैठाते उनके लेखन का विश्लेषण पढ़ कर मन ही मन उनकी कृतियों का पुनरावलोकन कर लिया .
ReplyDeleteअभी उनसे बहुत आशाएँ हैं वे स्वस्थ और समर्थ रहें:
आपका आभार !
Dil se likhi baat dil tak pahuchti hai aur yahi baat hai jiske karan hum kisi ke bahut kareeb khud ko paate hai.Mannuji ki kahaniya hame unse bandhe rakhti hai mano hum unse jud gaye ho....Anulataji aapko dher sari badhai aur dhanaywad....
ReplyDeleteबहुत सुंदर ,विस्तृत न्यासंगत विश्लेषण मन्नू भंडारी जी जैसी महान शख्सियत के लेखन सफ़र का,बहुत- बहुत बधाई आपको अनु जी
ReplyDeleteमन कर रहा था ..लेख ख़त्म ही न हो.....उनके बारे में कुछ और जानूँ.......बहोत सुंदर ...सधा ...सच्चा लेख .....शुक्रिया अनु ...उन्हें और करीब से मिलाने का ...
ReplyDeleteमन्नू भंडारी के नाम से कौन परिचित न होगा। उनकी रचनाओं और उसमे रचे बसे चरित्रों का अपरिचय भी मिटता रहा आपके माध्यम से !
ReplyDeleteमन्नू भंडारी मेरी प्रिय लेखिका है...बहुत सुन्दर आलेख अनु ...बहुत- बहुत बधाई
ReplyDeleteमन्नू भंडारी जी पर लिखा लेख बहुत अच्छा लगा। उनका उपन्यास 'आपका बंटी ' मैंने धर्मयुग में ही पढ़ा था। उनका बेबाक और यथार्थ को चित्रित करने वाली कहानियां आज भी उतनी ही प्रिय है। आपका बंटी जब उन्होंने लिखा था तब ये चर्चा बना था क्योंकि उस समय ये कथानक समाज में इतना सहज नहीं लिया जा सका था।
ReplyDeleteआपका बंटी व महाभोज मेरी भी पसंदीदा रचनाएँ रही हैं। शुक्रिया उनके बारे में इतनी अहम जानकारी को यहाँ सँजोने के लिए !
ReplyDeleteमन्नू भंडारी जी की आत्म कथा मैंने भी पढ़ी है ... उनके विषय में बहुत शानदार लेख .
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 03 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDelete