स्त्री के भीतर
उग आती हैं और एक स्त्री
या अनेक स्त्रियाँ.....
जब वो अकेली होती है
और दर्द असह्य हो जाता है |
फिर सब मिल कर बाँट लेती हैं दुःख !
औरत अपने भीतर उगा लेती है एक बच्चा
और खेलती हैं बच्चों के साथ
खिलखिलाती है,तुतलाती है
घुलमिल कर !
रूपांतरण की ये कला ईश्वर प्रदत्त है |
कभी कभी
एक पुरुष भी उग आया करता है
स्त्री के भीतर
जब बाहर के पुरुषों द्वारा
तिरस्कृत की जाती है |
तब वो सशक्त होती है उनकी तरह !
सदियों से
इस तरह कायम है
स्त्रियों का अस्तित्व !
कि उनके भीतर की उपजाऊ मिट्टी में
उम्मीद के बीज हैं बहुत
और नमी है काफी !
~अनुलता ~
उग आती हैं और एक स्त्री
या अनेक स्त्रियाँ.....
जब वो अकेली होती है
और दर्द असह्य हो जाता है |
फिर सब मिल कर बाँट लेती हैं दुःख !
औरत अपने भीतर उगा लेती है एक बच्चा
और खेलती हैं बच्चों के साथ
खिलखिलाती है,तुतलाती है
घुलमिल कर !
रूपांतरण की ये कला ईश्वर प्रदत्त है |
कभी कभी
एक पुरुष भी उग आया करता है
स्त्री के भीतर
जब बाहर के पुरुषों द्वारा
तिरस्कृत की जाती है |
तब वो सशक्त होती है उनकी तरह !
सदियों से
इस तरह कायम है
स्त्रियों का अस्तित्व !
कि उनके भीतर की उपजाऊ मिट्टी में
उम्मीद के बीज हैं बहुत
और नमी है काफी !
~अनुलता ~
cant say anything else .... just simply superb !!!
ReplyDeleteUltimate...simply awesome..स्त्री की इस उपयोगिता को समझकर ही उसे दूसरी पंक्ति से उठाकर मुख्यधारा में लाया जा सकता है। बेहतरीन रचना।।
ReplyDeleteस्त्री से मजबूर और धरी शाली कोई दूसरा नहीं होता ... अपने दर्द को आप बांटने कि क्रिया से वाकिफ होती है वो... उसे अकेले उठने कि जरूरत है बस ...
ReplyDeleteजबरदस्त रचना...
ReplyDeleteबेहतरीन ......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (28-04-2014) को "मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी" (चर्चा मंच-1596) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत आभार शास्त्री जी.
Deleteबनाये रखने को अपना वजूद स्त्रियॉं जन्म देने की प्राकृतिक क्षमता के अतिरिक्त भी कई और जन्म लेती हैं !
ReplyDeleteकभी कभी
ReplyDeleteएक पुरुष भी उग आया करता है
स्त्री के भीतर
जब बाहर के पुरुषों द्वारा
तिरस्कृत की जाती है |
तभी तो स्त्रियाँ सुदृढ़ होती हैं, !! माँ होती हैं !!
प्रकृति की सबसे सुन्दर रचना है, सृजनकर्ता है माँ है, फिर भी तिरस्कृत अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए भटकती क्योंकि स्त्री है ... सशक्त अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर भाव आदरणीया अनु जी
ReplyDelete@ कभी कभी
ReplyDeleteएक पुरुष भी उग आया करता है
स्त्री के भीतर
जब बाहर के पुरुषों द्वारा
तिरस्कृत की जाती है |
तब वो सशक्त होती है उनकी तरह !
बहुत सार्थक रचना है अनु,
स्त्री उनकी तरह सशक्त जरुर बने पर उनके जैसी बिलकुल भी न बने ! स्त्री जब उनके जैसी बनने क़ी कोशिश मे लगतीं है उसके सहज स्वाभाविक नैसर्गिक कोमल गुण नष्ट हो जाते है, इसीसे उसका अस्तित्व उपजाऊ है ! सुन्दर रचना बहुत पसन्द आयी !
बहुत सुन्दर भाव..अनु.. बधाई
ReplyDeletehar pal badalti hain roop striyaan, janchti hain har roop men striyan.
ReplyDeletebehad khoobsurat likha hai anu,
बहुत खूब ।
ReplyDeleteगज़ब... बहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति, बधाई.
ReplyDeleteये न हुई बात...
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसदियों से
ReplyDeleteइस तरह कायम है
स्त्रियों का अस्तित्व !
कि उनके भीतर की उपजाऊ मिट्टी में
उम्मीद के बीज हैं बहुत
और नमी है काफी ! ----
बहुत सुन्दर और प्रभावपूर्ण रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है----
और एक दिन
कभी कभी
ReplyDeleteएक पुरुष भी उग आया करता है
स्त्री के भीतर
जब बाहर के पुरुषों द्वारा
तिरस्कृत की जाती है |
तब वो सशक्त होती है उनकी तरह !... very strong and meaningful... ek baar phir fida
bahut hi achhi rachna, dil ko chhoo gai.
ReplyDeleteshubhkamnayen
सुंदर सुघड़ आत्मविश्वास ...!!
ReplyDeleteनारी मन वाकई सशक्त होती है
ReplyDeleteसाभार !
आपका बहुत शुक्रिया यशोदा :-)
ReplyDeleteबेहतरीन रचना , प्रस्तुति भी बेहद बेहतर , अनु जी धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत असरदार रचना.... यकीनन औरत का वजूद पुख़्ता है...
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteवाह !!!
ReplyDeleteस्त्री के भीतर
उग आती हैं और एक स्त्री
या अनेक स्त्रियाँ.....
जब वो अकेली होती है
और दर्द असह्य हो जाता है |
फिर सब मिल कर बाँट लेती हैं दुःख !,,
शुरुआत ही बेहतरीन है .. और बाकि लाजवाब
सदियों से
ReplyDeleteइस तरह कायम है
स्त्रियों का अस्तित्व !
कि उनके भीतर की उपजाऊ मिट्टी में
उम्मीद के बीज हैं बहुत
और नमी है काफी !
बहुत सुंदर रचना...नारी के असंख्य जज़्बातों और नारी चरित्रों को आप अपनी कविताओं में प्रस्तुत करती हैं वो अतुलनीय है..Just awesome :)
कि उनके भीतर की उपजाऊ मिट्टी में
ReplyDeleteउम्मीद के बीज हैं बहुत
और नमी है काफी !
स्त्री तेरे अनेकों रूप। और हर किरदार को बखूबी निभाती है स्त्री।
बहुत सुन्दर रचना। बधाई।
bahut khoon stri ka pura chitran
ReplyDeletebadhai
rachna
बिन स्त्री के संसार का कोई अस्तित्व कहाँ
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गंभीर चिंतनशील रचना
भावपूर्ण और सार्थक रचना....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@
आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया(नई रिकार्डिंग)
वाह !!! बहुत खूब !!! !!! !!!
ReplyDeleteअनेक रूपों को लिए स्त्री फिर भी एक आवरण में ढकी रहती है .
ReplyDeleteजब तक स्त्री का अस्तित्व है, तभी तक ये सृष्टि भी है! अन्यथा कुछ नहीं रहेगा।
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