मेरे कमरे में
दीवारें नहीं हैं.
बस खिड़कियाँ हैं,
खिड़कियाँ ही खिड़कियाँ ....
हर खिड़की एक मौसम की ओर खुलती
किसी खिड़की से आतीं बारिश की मीठी बूँदें
तो किसी से जाड़े की कच्ची धूप भीतर झांकती
या कभी भीतर आकर धुंध मेरा अंतर्मन भिगोती....
एक खिड़की पर बसंत झूला करता है
(और उसकी ओट में छिपे रहते मन के सभी ज़र्द पत्ते )
फाल्गुन की खिड़की से दहकता पलाश भीतर आता
सोख लेता मन के सीलेपन को...
सारे मौसम एक साथ होते हैं जब ,
सब खिड़कियाँ बंद होतीं हैं और
मेरे कमरे में
तुम होते हो !
अहा !!
तुम, मैं और तुम्हारा बारामासी प्रेम !!!
~अनु ~
दीवारें नहीं हैं.
बस खिड़कियाँ हैं,
खिड़कियाँ ही खिड़कियाँ ....
हर खिड़की एक मौसम की ओर खुलती
किसी खिड़की से आतीं बारिश की मीठी बूँदें
तो किसी से जाड़े की कच्ची धूप भीतर झांकती
या कभी भीतर आकर धुंध मेरा अंतर्मन भिगोती....
एक खिड़की पर बसंत झूला करता है
(और उसकी ओट में छिपे रहते मन के सभी ज़र्द पत्ते )
फाल्गुन की खिड़की से दहकता पलाश भीतर आता
सोख लेता मन के सीलेपन को...
सारे मौसम एक साथ होते हैं जब ,
सब खिड़कियाँ बंद होतीं हैं और
मेरे कमरे में
तुम होते हो !
अहा !!
तुम, मैं और तुम्हारा बारामासी प्रेम !!!
~अनु ~
फाल्गुन की खिड़की से दहकता पलाश भीतर आता
ReplyDeleteसोख लेता मन के सीलेपन को
------------------------------
अंतर्मन भिगोती नायाब पोस्ट ...
बारामासी प्रेम और सदाबहार कमरा .... :)
ReplyDelete
ReplyDeleteमौसम तो परिवर्तनशील है आते जाते है - बारामासी प्रेम के इन्तेजार में .
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
latest post परम्परा
:)... बारामासी प्रेम !!!
ReplyDeleteसारे मौसम एक साथ होते हैं जब ,
ReplyDeleteसब खिड़कियाँ बंद होतीं हैं और
मेरे कमरे में
तुम होते हो !
बहुत उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,
RECENT POST: दीदार होता है,
सारे मौसम एक साथ होते हैं जब ,
ReplyDeleteसब खिड़कियाँ बंद होतीं हैं और
मेरे कमरे में
तुम होते हो !
अहा !!
तुम, मैं और तुम्हारा बारामासी प्रेम !!!
सुंदर बहुत ही सुंदर, ऐसा तो प्रियतम (परमात्मा) के ध्यान में ही संभव है. श्रेष्ठतम रचना.
रामराम
कितने ज्ञानी मेरे ताऊ! ..जय हो। :)
Deleteवाह ....मन से निकली भावनाएं .....
ReplyDeleteअहा... बारहमासी बहार का मौसम... बहुत सुन्दर...शुभकामनायें अनुजी
ReplyDeleteसारे मौसम एक साथ होते हैं जब ,
ReplyDeleteसब खिड़कियाँ बंद होतीं हैं और
मेरे कमरे में
तुम होते हो !
वाह ... बहुत खूब अनुपम भाव संयोजन
आभार
वाह खूबसूरत अहसास
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता का सृजन.
ReplyDeleteक्या इसके बाद भी किसी और मौसम की दरकार है ...:)
ReplyDeletegazb .........no words to say ......
ReplyDeletewah di jes awesome....4 bar padha...man hi nahi bharta..... its really nice
ReplyDeleteतुम और तुम्हारा बारह मासी प्रेम जो अपने आप में सारे मौसम हैं... बहुत खूब सुंदर प्रस्तुति....!!
ReplyDeleteYou are lucky in the world
ReplyDeleteGod Bless U
जैसे भी दिल बहले......
ReplyDeleteशुभकामनायें!
वाह, कितना कोमल एहसास!
ReplyDeleteबेहतरीन कविता
ReplyDeleteसादर
बारामासी प्रेम !!! :)
ReplyDeletekya gajab ki baat kahi aapne ..
bahut khub
वाह ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर
सब मौसम एक साथ कमरे में हो और बारामासी प्रेम भी पर चाबी खोजाए ..
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (05-05-2013) के चर्चा मंच 1235 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteHow Romantic !
ReplyDeleteआये हाय ये बारहमासी प्रेम ..:):)
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteसारे मौसम एक साथ होते हैं जब ,
ReplyDeleteसब खिड़कियाँ बंद होतीं हैं और
मेरे कमरे में
तुम होते हो !
अहा !!
तुम, मैं और तुम्हारा बारामासी प्रेम !!!दिल खुश किया आपने :)
सारे मौसमों का 'लव-शेक' आप यूँ ही सदा पीती रहे । बहुत खूबसूरत से भाव और पंक्तियाँ भी ।
ReplyDeleteसारे मौसम एक साथ होते हैं जब ,
ReplyDeleteसब खिड़कियाँ बंद होतीं हैं और
मेरे कमरे में
तुम होते हो !.... सही कहा आपने अनु .... सारे मौसम एक साथ.. भई वाह!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति अनु दी!
ReplyDeleteअनु जी : कुछ मेजिशियन/जाद्गर ऐसे प्रतिभाशाली होते है की रोज एक शो करे तब भी अपना मेजिक रिपीट न करे... हर बार कुछ नया...!! और दर्शको में एक अपेक्षा बांध जाए : इस बार क्या दिखायेगा..? --- आप की रचनाओं का बिलकुल वैसा है-- हर बार एक नया इडियम. एक नया विश्व.एक नया एंगल...!! इस रचना में -------मेरे कमरे में
ReplyDeleteदीवारें नहीं हैं.
बस खिड़कियाँ हैं,
खिड़कियाँ ही खिड़कियाँ ....
----- यह कह कर आप ने कितनी अदभुत संकल्पना दे दी है....!! वाह--- पाठक अपनी अकाल के अनुसार इस रचना को एन्जॉय कर सकता है...जैसी जिस की पात्रता...!! बहुत बहुत धन्यवाद----
there's a whole world inside our room..
ReplyDeleteonly the owner can feel that :)
बहुत ही सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति भी .....!!
ReplyDeleteप्यार का अहसास तमाम अपेक्षाओं से परे एक अलग दुनिया बसाता है.
ReplyDeleteमन के भावों का सटीक चित्रण इस सुंदर प्रस्तुति में. शुभकामनाएँ.
मन का मौसम -हर क्षण नूतन !
ReplyDeleteवाह ...क्या बात है अनु !!
ReplyDeleteमंगल कामनाएं !
प्रेम ..... बारह महीने .... ख़ूबसूरत .... अत्यंत ख़ूबसूरत
ReplyDeleteअद्भुत एहसास .... तुम्हारे होने से सारे मौसम एक साथ ही आ जाते हैं और बिना दीवारों के कमरे की खिड़कियाँ भी बंद हो जाती हैं :):) और बारहमासी प्रेम तो गज़ब की अनुभूति :):) बहुत सुंदर
ReplyDeletekhubsurat anubhuti..
ReplyDelete1. फाल्गुन की खिड़की से दहकता पलाश भीतर आता
ReplyDeleteसोख लेता मन के सीलेपन को...
2. अहा !!
तुम, मैं और तुम्हारा बारामासी प्रेम !!!
अच्छा इज़हार अनु जी !
अहा !!
ReplyDeleteतुम, मैं और तुम्हारा बारामासी प्रेम !!!
यह एक पंक्ति काफी है जज्बात-ए-बयां को
such a cute poem...:) tumhara baramasi prem ...indeed!!
ReplyDeletehttp://boseaparna.blogspot.in/
बहुत खूब ... इस बारामासी प्यार का मौसम हो तो दूसरे मौसम की क्या जरूरत ...
ReplyDeleteमौसम सारे मन के ही तो !
ReplyDeleteतुम् मेरे पास होते हो गोया,
ReplyDeleteजब कोई दूसरा नहीं होता!!
अब क्या कहूँ.. कुछ कहना भी इंटरफेयर करने सा लगेगा!! <3
Sundar prastuti...
ReplyDeleteख़ूबसूरत इज़हार ,अहा !!
ReplyDeleteतुम, मैं और तुम्हारा बारामासी प्रेम !!!
प्रेम की गजब अनुभूति वह भी बारहमासी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
बधाई
किसी ख़ास के साथ होने से ही साथ होते है सारे मौसम..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
AApki kavitayein padh dil prassan ho jata hai :) iss ghum mai v khusi hai.
ReplyDeleteबना रहे
ReplyDeleteघना रहे
सारे मौसम एक ही कमरे में बंद मिलें...तो क्या ही कहना!
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत रचना अनु!
<3
हमेशा की तरह निशब्द :)
ReplyDeleteसादर