नदी
मांग रही है मुझ से
मेरे आँसू
कि वो समंदर होना चाहती है
बिना समंदर से मिले.
नदी एक स्त्री है
हर स्त्री की तरह घायल
अपने जख्म खुद चाटती हुई...
जानती है जुटा लेगी
पर्याप्त खारापन
कई और स्त्रियों के साथ मिल कर,
जो बहा रहीं हैं अपने स्वेद और अश्रु
बाहरी आवरण के भीतर
सब की सब स्त्रियाँ खारी हैं
कि सबके दुःख और दर्द एक से है !!
निष्कंप बहती रही नदी
जब स्त्रियाँ डूबी नदी में,
और तट पर लगे वृक्ष कांप उठे
पुष्प वर्षा हुई!!
~अनु ~
मांग रही है मुझ से
मेरे आँसू
कि वो समंदर होना चाहती है
बिना समंदर से मिले.
नदी एक स्त्री है
हर स्त्री की तरह घायल
अपने जख्म खुद चाटती हुई...
जानती है जुटा लेगी
पर्याप्त खारापन
कई और स्त्रियों के साथ मिल कर,
जो बहा रहीं हैं अपने स्वेद और अश्रु
बाहरी आवरण के भीतर
सब की सब स्त्रियाँ खारी हैं
कि सबके दुःख और दर्द एक से है !!
निष्कंप बहती रही नदी
जब स्त्रियाँ डूबी नदी में,
और तट पर लगे वृक्ष कांप उठे
पुष्प वर्षा हुई!!
~अनु ~
bahut khoob ,dard ka bira safar
ReplyDeleteवाह..अद्भुत परिकल्पना ...नदी को आंसुओं की चाहत ...सागर से खारेपन के लिए ...बहुत खूब .
ReplyDeleteकई बार पढ़ने के बाद भी कमेंट करने के लिए मेरे शब्द मन मुताबिक नहीं मिल रहे .......
ReplyDeleteबाहरी आवरण के भीतर
ReplyDeleteसब की सब स्त्रियाँ खारी हैं
कि सबके दुःख और दर्द एक से है !! waaki men ..par wo aurten jiski manzil ak jaisee ho warna kuchh aurton ki wajah se kai bar sharmshar hona padta hai anu jee.....
sach hi tho hai.....sabke dukh dard ek jaise...last kuch lines tho bas keher dha rahi hain....aur kuch likh nahi paa rahi....
ReplyDeleteबेहतरीन भाव सुंदर प्रस्तुति ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : बेटियाँ,
बहुत सुन्दर दमदार प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ...
ReplyDeleteसुन्दर भाव बढ़िया प्रस्तुति !
ReplyDeleteअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post: बादल तू जल्दी आना रे!
latest postअनुभूति : विविधा
बेहतरीन भाव सुंदर प्रस्तुति ,,,
ReplyDeleteबाहरी आवरण के भीतर
ReplyDeleteसब की सब स्त्रियाँ खारी हैं
कि सबके दुःख और दर्द एक से है !!
बेहद खूबसूरत बिंब लिया आपने, इस पीडा को अभिव्यक्त करने के लिये, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
निष्कंप बहती रही नदी
ReplyDeleteजब स्त्रियाँ डूबी नदी में,
और तट पर लगे वृक्ष कांप उठे
पुष्प वर्षा हुई!!……………सच्चाई प्रस्तुत करती रचना
Ah!...Beautiful..
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत ...मार्मिक
ReplyDeleteपीड़ा को छुपाये रहना नारी के ही बस की बात है।
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और गहन भाव हैं अनु ...!!
ReplyDeleteनदी
ReplyDeleteमांग रही है मुझ से
मेरे आँसू
कि वो समंदर होना चाहती है
बिना समंदर से मिले.
अप्रतिम......
सादर
बहुत सुंदर
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण।
ReplyDeleteनारी सशक्तिकरण की आवश्यकता है।
सब की सब स्त्रियाँ खारी हैं
ReplyDeleteकि सबके दुःख और दर्द एक से है !!
स्त्रियों का दर्द सब जगह एक सा है. सुंदर भाव लिये सुंदर कविता.
सुबह ब्लॉग पर आया था पर समझ नहीं आया क्या लिखें ,फेसबुक पर आ गए और यहाँ आये तो आदरणीय चाची जी की टिप्पणी उसी रचना पर तब समझ गए कि बिना लिखे काम नहीं चलना है ........बहुत ही उम्दा लिखतीं हैं आप । विचारों की पोटली कहाँ से लाती हैं ।
ReplyDeleteटिप्पणी कर पाने में असमर्थ ।
ReplyDeleteसहजता से बस इतना कह सकता हूँ "उत्कृष्ट भाव" ।
बाहरी आवरण के भीतर
ReplyDeleteसब की सब स्त्रियाँ खारी हैं ...समंदर की तरह .... इसीलिए सब समेट लेती हैं अपने अंदर ।
बाहरी आवरण के भीतर
ReplyDeleteसब की सब स्त्रियाँ खारी हैं
कि सबके दुःख और दर्द एक से है !!
बेहद गहन भाव .... उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
सादर
गहरी बातें सहज ही कह देती हैं आप शब्दों के माध्यम से ...
ReplyDeleteबहुत प्रभावी रचना है ..
अनु जी : पुन: एक बार आप ने जादू की छड़ी घुमाई है... बिग्गेस्ट माइनोरिटी पर कितना कुछ लिखा जाता रहा है—एक बार फिर एकदम तर्रोताज़ा इडियम लिए आप ने अपनी बात रखी है-------नदी एक स्त्री है
ReplyDeleteहर स्त्री की तरह घायल
अपने जख्म खुद चाटती हुई...
------- यह बहुत ही असह्य चित्र है. अधिक तो इस लिए क्यों की पुरुष होने की गिल्ट इसे ऐसे फ्रेम में प्रस्तुत करती है की देखते न बने...
आप की कलम को सलाम.
स्त्री मन की व्यथा को उजागर करने में सफल रचना |
ReplyDeleteसुन्दर रचना |
बाहरी आवरण के भीतर
ReplyDeleteसब की सब स्त्रियाँ खारी हैं
कि सबके दुःख और दर्द एक से है !!
in shabdo ke liye kya kahun...
aap behtareen ho.....
बहुत सुन्दर प्रभावी प्रस्तुति..अनु
ReplyDeleteपानी नदी समन्दर के जरिए आपने जो कविता व्यक्त की है वह अतुलनीय है। मैनें अब तक जो श्रेस्ठ कविताएँ पढी हैं निसन्देह ये उनमे से एक है। आपकी आज्ञा हो तो मैं इसे अपने संगह में रखूँ।
ReplyDeleteबहुत ही गहन भाव लिए हुए... बेहतरीन रचना अनु .
ReplyDeleteनिष्कंप बहती रही नदी
ReplyDeleteजब स्त्रियाँ डूबी नदी में,
और तट पर लगे वृक्ष कांप उठे
पुष्प वर्षा हुई!!------
वाह नदी को नदी की ही अनुभूति में डुबो दिया
गजब की रचना
सादर
...ओह नारी :-(
ReplyDelete...ओह नारी :-(
ReplyDeleteसच में समुन्दर सी खारी हैं सारी स्त्रियाँ .
ReplyDeletevery nice personification of river into a woman.....
ReplyDeleteअद्भुत प्रतीकों के प्रयोग ने रचना को आसमान की ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया है. बधाई......
ReplyDeleteबाहरी आवरण के भीतर
ReplyDeleteसब की सब स्त्रियाँ खारी हैं
कि सबके दुःख और दर्द एक से है !!
बहुत सुन्दर ....bilkul sahi kaha hai !
सभी स्त्रियाँ खारी है अपने स्वेद व अश्रुओं के साथ ...अच्छा लिखा है ।
ReplyDeleteकि सबके दुःख और दर्द एक से है !!
ReplyDelete............सुंदर भाव लिये सुंदर कविता.
Bahut Khub...
ReplyDelete'बाहरी आवरण के भीतर
ReplyDeleteसब की सब स्त्रियाँ खारी हैं
कि सबके दुःख और दर्द एक से है !!'
so true!
Beautifully written!