कूद पड़ी वो
नीचे
चौथे माले से
(और ऊपर जाना शायद वश में न रहा होगा...)
लहुलुहान पड़ी काया से लिपट कर
रो पड़ा हत्यारा पिता
जानता था
उसकी महत्त्वाकांक्षाओं ने ही
धक्का दिया है उसे.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पिता ने सम्बन्ध तोड़ लिए पुत्र से
नहीं चाहता कि मुखाग्नि भी दे बेटा
कि बेटा नालायक,निकम्मा, नाकारा है
कहा नहीं मानता....
गाँव के कूएं में
लाश मिली बेटे की
बेटा नहीं चाहता
कि मुखाग्नि दे पिता को
बेटा मानता है कहा !!
~अनु ~
माता-पिता की उम्मीदों पर खरा न उतर पाने का दुःख बच्चों को होता ही है,उस पर उलाहने देकर उनकी हत्या क्यूँ करते हैं वो....एक सवाल है पालकों से....स्वयं से भी !!!
नीचे
चौथे माले से
(और ऊपर जाना शायद वश में न रहा होगा...)
लहुलुहान पड़ी काया से लिपट कर
रो पड़ा हत्यारा पिता
जानता था
उसकी महत्त्वाकांक्षाओं ने ही
धक्का दिया है उसे.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पिता ने सम्बन्ध तोड़ लिए पुत्र से
नहीं चाहता कि मुखाग्नि भी दे बेटा
कि बेटा नालायक,निकम्मा, नाकारा है
कहा नहीं मानता....
गाँव के कूएं में
लाश मिली बेटे की
बेटा नहीं चाहता
कि मुखाग्नि दे पिता को
बेटा मानता है कहा !!
~अनु ~
माता-पिता की उम्मीदों पर खरा न उतर पाने का दुःख बच्चों को होता ही है,उस पर उलाहने देकर उनकी हत्या क्यूँ करते हैं वो....एक सवाल है पालकों से....स्वयं से भी !!!
behad gambhir sawal hai
ReplyDeleteअन्तर्मन को उद्द्वेलित कर गयी तुम्हारी ये रचना अनु .. सही में माँ बाप कि महत्त्वाकांक्षाओं का मोल बच्चे अपनी जान देकर चुकाते हैं
ReplyDeleteहमारे पालकों को समझना चाहियें बच्चों की भावनाओं को,वो बस अपनी ही महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा होते देखना चाहते है.
ReplyDeleteबहुत चिंताजनक विषय चुना आपने.
धन्यवाद
But these dreams are fed by parents only. butthey should never ever force themselves on their children.
ReplyDeleteउसकी महत्त्वाकांक्षाओं ने ही
ReplyDeleteधक्का दिया है उसे.
गहन भाव लिये ... एक सच यह भी है
सादर
क्या कहा जाये? सबःई दूर ऐसी ही स्थितियां नजर आती हैं.
ReplyDeleteरामराम.
चिंतनीय ..
ReplyDeleteyah sawaal wakai bahut kathor hai .gahri abhiwaykti
ReplyDeleteसच है महत्वाकांक्षाएं कभी कभी नीचे धकेल देती हैं ....... माता पिता हमेशा बच्चों का भला ही चाहते हैं ..... जीवन से बेदखल करके भी उनकी यही कामना रहती है कि बच्चे अपने जीवन में खुश रहें ..... न जाने क्यों लोग अधिकार पर तो ध्यान देते हैं लेकिन कर्तव्य भूल जाते हैं ... यदि कर्तव्य करें तो अधिकार तो स्वयं ही मिल जाता है । अपेक्षाओं को सीमित करें तो उपेक्षाओं से बचा जा सकता है ।
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति
माँ बाप और बच्चों को एक दूसरे की भावनाओं को समझना जरूरी है ,
ReplyDeleteRecent post: ओ प्यारी लली,
संगीता स्वरुप ( गीत )May 30, 2013 at 11:44 AM
ReplyDeleteसच है महत्वाकांक्षाएं कभी कभी नीचे धकेल देती हैं ....... माता पिता हमेशा बच्चों का भला ही चाहते हैं ..... जीवन से बेदखल करके भी उनकी यही कामना रहती है कि बच्चे अपने जीवन में खुश रहें ..... न जाने क्यों लोग अधिकार पर तो ध्यान देते हैं लेकिन कर्तव्य भूल जाते हैं ... यदि कर्तव्य करें तो अधिकार तो स्वयं ही मिल जाता है । अपेक्षाओं को सीमित करें तो उपेक्षाओं से बचा जा सकता है ।
मार्मिक प्रस्तुति
puri tarah se sahamat hoon .....
बच्चे कल के भविष्य है . उन्हें अपनी रूचि के अनुसार काम करने दें
ReplyDeletelatest post बादल तु जल्दी आना रे (भाग २)
अनुभूति : विविधा -2
उसकी महत्त्वाकांक्षाओं ने ही
ReplyDeleteधक्का दिया है उसे.....सच है , अधिक महत्त्वाकांक्षा मनुष्य को ऊपर उठाने के बजाय नीचे भी गिरा देती है.. मार्मिक प्रस्तुति
dardnaak
ReplyDeletechinta hona swabhavik ....
ये अपेक्षाएं ही तो हर समस्या की जड़ हैं.
ReplyDeleteउलाहनों के बीच हम सकारात्मकता भूल जाते हैं ...
ReplyDeleteसब एक दूसरे से उम्मीदों की डोर में बंधे हैं... जब डोर टूटती है तो कुछ साँसों के तार भी टूट जाते हैं...
ReplyDeletehmm...
ReplyDeleteअपेक्षाएं बढ़ गयीं ...सहनशीलता कम हो गई ...उलाहने में छुपा प्यार दिखा नहीं ....!!
ReplyDeleteमार्मिक रचना ...!!
behad gambhir sawal hai............puri tarah se sahamat hoon .....
ReplyDeletebeautiful
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन विश्व तंबाकू निषेध दिवस - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteअत्यंत मार्मिक ..
ReplyDeleteदिल को भेदने वाला विषय उठाया ..और बस चंद शब्दों में बड़ी सरलता से वह सारा मर्म ..सारा दर्द उड़ेल दिया..जो हर पाठक के भीतर गहरे उतर गया...वाह अनु..!
ReplyDeleteअपनी महत्वकांक्षा बच्चों पर आरोपित करने के नतीजे हैं ....क्यूँ हम भूल जाते हैं कि बच्चों की अपनी भी कुछ इच्छायें हो सकती हैं ...जन्म देने भर से उन पर हमारा मालिकाना हक़ नहीं हो जाता ....बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteओह.. क्या कहूं
ReplyDeleteआदरेया आपकी यह अप्रतिम रचना 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।
ReplyDeleteकृपया http://nirjhar-times.blogspot.com पर पधारें,आपकी प्रतिक्रिया का सादर स्वागत् है।
सादर
आभारी हूँ....
Deleteआत्महत्या का एक कारण यह भी होता है । यथार्थमय प्रस्तुति..।
ReplyDeleteव्यथा का कोलाज.
ReplyDeleteओह :( :(
ReplyDeleteभावनाओं और संवेदनाओं की ऐसी परिणित बहुत करुण होती है.
ReplyDeleteसुंदर मार्मिक प्रस्तुति.
उफ्फ..बहुत मार्मिक प्रस्तुति...
ReplyDeleteहला जाती है अंदर तक ये रचना ... ये समाज की विसंगति या हमारे सोचने का ढंग ...
ReplyDeleteकौन सही कौन गलत ... क्या पता ...
निःशब्द!!!
ReplyDeletekai bar kuchh paristhitiyan bhi aisee bn jati hai ..parents ko bolna to padega hi ...par jo bhi dukhi karti hai aisee ghatnaayen ...
ReplyDeleteसंवेदनशील कविता।
ReplyDeleteआत्महत्या का कारण माता-पिता की महत्वकांक्षा हो सकती है, लेकिन महत्वकांक्षा बच्चे के जीवन से बड़ी कभी नहीं होती, शायद बच्चे उसके पीछे छिपे प्यार को देख नहीं पाते... बहुत गंभीर विषय है
ReplyDeleteअत्यंत मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
an issue which needs to be discussed more and more..
ReplyDeletesometimes bar of expectations is raised so so high that it's just beyond a normal heart to bear the failure..
jindagi ka ek bimb prastut kiya hai aapne...bahut bahut achhi abhivykti!
ReplyDeleteआँखें भर आयीं..खुद को आकलन करने को मजबूर करती रचना...
ReplyDeleteकभी कभी दूसरों की महत्वाकांक्षाएं खुद पर कितनी हावी हो जाती है
ReplyDeleteबेहतरीन
साभार!
सोचने पर मजबूर करती रचना बहुत मार्मिक प्रस्तुति !!
ReplyDeletebachcho ko kdapi dosh n dein...jab palak hi munh pher lenge to vh baki logon ka samna kaise kar payenge...
ReplyDeletesunder abhivyakti !!
sasneh
aksar dusro ki ichchhayo ko pura karne me apni ichchaye adhuri rah jati hai .
ReplyDeletesundar rachna anu ji .
Sawal Chintniya Hai.
ReplyDeleteDono Taraf Ke Samjhne Se Hi Baat Banegi,Ek-Dusre Pr Ungli Uthane Se Kabhi Nhi...
आत्म हत्या अनैतिक है.........पाप है........अपराध है............अच्छी बात उठाई आपने........मेरा निश्चित मानना है
ReplyDelete''''''''''''''''कोई आशा की किरण सम्मुख न हो ॥
दुःख भरा हो उसमें किंचित सुख न हो ॥
कितना भी हो कष्टप्रद जीवन.... युवा ,
आत्महत्या को कभी उन्मुख न हो ॥'''''''''''''''''''
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
(..............''निःशब्द ''श्रद्धांजलि.....जिया ख़ान को )
http://www.drhiralalprajapati.com/2013/06/241.html
बहुत दुखद स्थिति है -दो पीढ़ियों में संवाद की स्थिति और पारस्परिक समझ के
ReplyDeleteबिना निस्तार नहीं !