एक तूफ़ान की तरह आया था तेरा इश्क
अपनी सारी हदें लांघता हुआ
डुबो डाला था मेरा सारा वजूद.
नामंजूर था मुझे खुद को खो देना
नामंजूर था मुझे तेरा नमक!
सो लौटा दिया मैंने वो तूफ़ान वापस समंदर को
बस रह गए कुछ मोती, अटके मेरी पलकों पर
जो लुढ़क आये गालों तक...
कि नाकाम इश्क की निशानियाँ भी कहीं सहेजी जाती हैं !!
~अनु ~
अपनी सारी हदें लांघता हुआ
डुबो डाला था मेरा सारा वजूद.
नामंजूर था मुझे खुद को खो देना
नामंजूर था मुझे तेरा नमक!
सो लौटा दिया मैंने वो तूफ़ान वापस समंदर को
बस रह गए कुछ मोती, अटके मेरी पलकों पर
जो लुढ़क आये गालों तक...
कि नाकाम इश्क की निशानियाँ भी कहीं सहेजी जाती हैं !!
~अनु ~
नाकाम इश्क की निशानियाँ भी कहीं सहेजी जाती हैं ,,,
ReplyDeleteRecent post: जनता सबक सिखायेगी...
wah di superb lines...
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteधन्यवाद
आभार !!!
Deleteवाह: बहुत बढ़िया.अनु..
ReplyDeleteनमकीन पानी.....
ReplyDeleteनामंजूर था मुझे तेरा नमक!
ReplyDeleteसो लौटा दिया मैंने वो तूफ़ान वापस समंदर को
बस रह गए कुछ मोती, अटके मेरी पलकों पर
जो लुढ़क आये गालों तक...
क्या बात है ..जबरदस्त भाव
कि नाकाम इश्क की निशानियाँ भी कहीं सहेजी जाती हैं !!.... waah anu ... kya baat kahi hai ... :)
ReplyDeleteबहुत बढिया अनु जी.....
ReplyDeletevaah kya baat hai !!!! nice one
ReplyDelete:(
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteनामंजूर था मुझे तेरा नमक :)
सादर
खुबसूरत रचना !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ!
ReplyDeleteकुँवर जी,
शायद हदों को पार कर जाना ही ग़लत था.....
ReplyDelete<3
वाह ... बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत खूब ... खुद को खो के इश्क पूरा नहीं हो पाता ...
ReplyDeleteअस्तित्व बना रहना चाहिए सब का ...
गहरा एहसास ...
behtreen rachna ..nakaam ishq ki nishaani ..
ReplyDeleteबहुत बढिया प्रस्तुति!!
ReplyDeleteBilkul,Palken Gawah Hai Ki Naakam Ishq Ki Nishaaniya Bhi Saheji Jaati Hai...
ReplyDeleteअच्छी रचना, बहुत सुंदर
ReplyDeleteमेरे TV स्टेशन ब्लाग पर देखें । मीडिया : सरकार के खिलाफ हल्ला बोल !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/05/blog-post_22.html?showComment=1369302547005#c4231955265852032842
उस तूफ़ान का लौटा देना ही बेहतर है समंदर को जो अपनी हद लांघ जाए ...गहरे अहसास... शुभकामनायें
ReplyDeleteनाकाम इश्क -- ! वाह बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteदिल की गहराइयों से निकली बात भिगो गई!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (24-05-2013) के गर्मी अपने पूरे यौवन पर है...चर्चा मंच-अंकः१२५४ पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नाकाम इश्क की नाकामियां ...जिन्दगी जीने का नजरिया समझा जाती हैं ....
ReplyDeleteशुभकामनायें अनु !
आभार!
सो लौटा दिया मैंने वो तूफ़ान वापस समंदर को
ReplyDeleteबस रह गए कुछ मोती, अटके मेरी पलकों पर
जो लुढ़क आये गालों तक...
जबरदस्त द्वंद है, विद्रोही तेवर के साथ ही आंखों के मोतियों का लुढकना? एक विशेषता है रचना की. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
..परन्तु यह पंक्तियाँ उस नाकाम इश्क की निशानी ही तो हैं ।
ReplyDeleteनामंजूर था मुझे खुद को खो देना
ReplyDeleteनामंजूर था मुझे तेरा नमक!bahut badhiya khud ko khone ka matlab hai sab kucchh kho dena .....aur sba kucchh khone ke bad bachta hi kya hai ?
are meri tippani kahan gai?
ReplyDeleteप्रेम में मिला दर्द कुछ ऐसा ही होता है
ReplyDeleteलाजवाब, बहुत सुन्दर
सादर!
कामयाब अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteलाजवाब रचना...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete
ReplyDeleteडुबो डाला था मेरा सारा वजूद.
नामंजूर था मुझे खुद को खो देना-----
वाकई प्रेम नमकीन पानी बनकर आंख से टपकता है
मन को भेदती रचना
बहुत सुंदर
बधाई
आग्रह हैं पढ़े
ओ मेरी सुबह--
कि नाकाम इश्क की निशानियाँ भी कहीं सहेजी जाती हैं !!
ReplyDeleteवाह क्या बात है ....बहुत बढ़िया रचना है !
बहुत सुंदर और सत्य .....नाकामयाबियाँ सहेजना छोड़ कर ही जीवन जिया जा सकता है ...अलबत्ता नाकाम मुहब्बत बहाना मजबूरी है ....आँखें अपने बस में नहीं रहतीं
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना ,
ReplyDeletelatest post: बादल तू जल्दी आना रे!
latest postअनुभूति : विविधा
कसूर पता नहीं
ReplyDeleteकिसका था
खोती कैसे,वजूद
अपना था!
जाने अनजाने सहेज ही लिया .............सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteहाँ एक निशानी सहज ली है ....दर्द कभी ना खत्म होने वाला दर्द
ReplyDeleteजो तूफ़ान की तरह आये
ReplyDeleteवो इश्क कहाँ होता है
अच्छा किया लौटा दिया .....
अच्छी है
ReplyDeleteअनुजी : कलम से कलम कर देना तो कोई आप से सीखे...!! हमेशा की तरह ला जवाब.
ReplyDeleteसंभवत नाकाम इश्क ही ज्यादा विचलित करता है।।
ReplyDeleteचाहे निशानियाँ सम्भालो या ना सम्भालो..।
नाकाम इश्क ....सहेजा ना जाता हो ...पर बहाया खूब जाता है ...सुंदर रचना ..वाह
ReplyDeletewaah ma'am,,JABARDAST,,kaise itna achha likhti hain :)
ReplyDeletesometimes these become memories.....giving pain and happiness both!!
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