एक आकाशवाणी
और बीज अंकुरित हुआ
गर्भ धारण किया माँ ने
नेह सिंचित उस बीज की
पौध हूँ मैं!
मेरी नसों की नीलाई पर
तुम्हारा अधिकार है माँ
मेरे ह्रदय का हर एक स्पंदन
तुम्हारे व्रत और अनुष्ठानों का प्रतिफल है.
तुम्हारे ओज से ही
मेरा अस्तित्व है
घने अन्धकार भरे इस संसार में...
माँ !
आभारी हूँ तुम्हारी
इस जीवन को पाकर
कृतज्ञ हूँ
वचनबद्ध हूँ सदा के लिए
कि व्यर्थ न जाए तुम्हारी एक भी आहुति ....
करबद्ध हूँ
कर्तव्यों के निर्वाह के लिए,
प्रसन्न रहने के लिए,
जीते रहने के लिए,
कि अब तुम्हारे जीवनदीप की बाती का तेल
मैं हूँ !!!
[सृष्टिकर्ता ने हमें ये हरी भरी पृथ्वी सौंपी जैसे पिता बच्चों के सुपुर्द कर जाते हैं उनकी माँ....जिससे वे चुका सकें सभी ऋण.....]
~अनु ~
और बीज अंकुरित हुआ
गर्भ धारण किया माँ ने
नेह सिंचित उस बीज की
पौध हूँ मैं!
मेरी नसों की नीलाई पर
तुम्हारा अधिकार है माँ
मेरे ह्रदय का हर एक स्पंदन
तुम्हारे व्रत और अनुष्ठानों का प्रतिफल है.
तुम्हारे ओज से ही
मेरा अस्तित्व है
घने अन्धकार भरे इस संसार में...
माँ !
आभारी हूँ तुम्हारी
इस जीवन को पाकर
कृतज्ञ हूँ
वचनबद्ध हूँ सदा के लिए
कि व्यर्थ न जाए तुम्हारी एक भी आहुति ....
करबद्ध हूँ
कर्तव्यों के निर्वाह के लिए,
प्रसन्न रहने के लिए,
जीते रहने के लिए,
कि अब तुम्हारे जीवनदीप की बाती का तेल
मैं हूँ !!!
[सृष्टिकर्ता ने हमें ये हरी भरी पृथ्वी सौंपी जैसे पिता बच्चों के सुपुर्द कर जाते हैं उनकी माँ....जिससे वे चुका सकें सभी ऋण.....]
~अनु ~
Happy environment day to u too :)
ReplyDeleteI am planning on planting a sapling today..
nice ode to mother nature !!
sundar abhivyakti ,
Deleteलाजवाब :)
ReplyDeletesimply superb. Nice one
ReplyDeleteregards Madan
सुन्दर,सार्थक,प्रेरक...
ReplyDeleteपर्यावरण दिवस पर शुभकामनाएँ !
ReplyDeletelatest post मंत्री बनू मैं
LATEST POSTअनुभूति : विविधा ३
पर्यावरण के लिये बहुत ही खूबसूरत भाव अभिव्यक्त किये हैं, बिंब भी बहुत सुंदर लगा.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसुंदर भाव
चेतना जागृत करती अच्छी रचना
सरल शब्दों में सुन्दर रचना ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर और कोमलता से आपने पर्यावरण बचाने की बात रखी है ...मन प्रसन्न हो गया
ReplyDeleteआजकल किसी ब्लॉग पर जा ही नहीं पाती। आज फेसबुक पर आपको देखकर यहां चली आई तो एक साथ चार-पांच पोस्ट पढ़ लिए :)। वैसे मैं कभी कभार लोगों के पोस्ट पढ़कर बिना टिप्पणी किए निकल लेती हूं... बाद में याद आता है कि आनंद तो ले लिया, मगर हाजिरी तो लगाई नहीं:) मगर मेरे ख्याल से हाजिरी लगने से अधिक जरूरी है पढ़ना... है न? वैसे आपकी कविताएं या यूं कहें क्षणिकाएं सीप में मोती की तरह होती हैं, सरल शब्दों में कई बार बड़े गूढ़ विचार होते हैं।
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर सोच।
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कही है।
माँ ( धरती माँ भी ) के लिये सच्ची कृतज्ञता है यह ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...गहरे उत्कृष्ट भाव अनु ...!!बहुत सुन्दर ....!!
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर सार्थक,प्रेरक रचना .... ...
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
सुन्दर,सार्थक बहुत गहरी बात कही
ReplyDeleteशानदार,सार्थक उम्दा प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )
ReplyDeleteकरबद्ध हूँ
कर्तव्यों के निर्वाह के लिए,
प्रसन्न रहने के लिए,
जीते रहने के लिए,
कि अब तुम्हारे जीवनदीप की बाती का तेल
मैं हूँ !!!--------
अदभुत अनुभूति
सादर
आग्रह है
गुलमोहर------
अनु जी : एक एसी बात जो केवल नारी ही महसूस कर सकती है शायद.
ReplyDeleteसार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति .बधाई . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
ReplyDeleteBHARTIY NARI .
एक छोटी पहल -मासिक हिंदी पत्रिका की योजना
pita jab saunp jate hain maa ko tab bachchon ki jimmedari badh jati hai maa ke liye...maa ko har khushi de dene ko jee chahta hai...sunder rachna anu...!!
ReplyDeletesasneh
मेरी ओर से >> http://corakagaz.blogspot.in/2010/12/blog-post.html
ReplyDeleteप्रकृति माँ को समर्पित यह कविता, एक माँ के चरणों में सच्ची पुष्पांजलि है!!
ReplyDeleteअपने हिस्से की कुदरत को आने वाली नस्ल के लिए बचाले आओ
ReplyDeleteमहोदया आपने मेरे प्रिय विषय पर बहुत सुंदर और प्रभावी कविता सुनाने के लिए हृदय की गहराई से धन्यवाद
Sarthak
ReplyDeleteमाँ का क़र्ज़ उतरना संभव नहीं
ReplyDeleteप्रयावरण दिवस पर एक सुंदर कविता के माध्यम से गंभीर और सार्थक सन्देश देने का सफल प्रयास.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति ..
ReplyDelete..
पूर्ण अर्थ लिए हुए कविता ...बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर और प्रेरणादायी रचना
ReplyDeleteबढ़िया सार्थक प्रस्तुति ..
ReplyDeleteबढ़िया...
ReplyDeleteInspiring!
ReplyDelete