इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Tuesday, December 11, 2012

शिकायत परिंदों से.....

मेरे हाथ से छिटक कर
प्रेम बिखर गया है
सारे आकाश में..
देखो सिंदूरी हो गयी है शाम
तेरी  यादों ने फिर दस्तक दी है
हर शाम का सिलसिला है ये अब तो....
कमल ने समेट लिया
पागल भौरे को अपने आगोश में
आँगन  में फूलता नीबू
अपने फूलों की महक से पागल किये दे रहा है
उफ़ ! बिलकुल तुम्हारे कोलोन जैसी खुशबू....
पंछी  शोर मचाते लौट रहे हैं
अपने घोसलों की ओर.
उनका  हर शाम यूँ चहचहाते हुए लौटना
मुझे उदास कर देता है.
देखो बुरा न मानना....
मुझे शिकायत तुमसे नहीं
इन परिंदों  से है...
ये हर शाम
अनजाने ही सही
तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर देते हैं.....

-अनु 


72 comments:

  1. ओह.....ये पंछी भी ना,बड़े नादान हैं !
    .
    .निखार आ रहा है कबिताई में....।

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  2. sundar prastuti,'gr gagan me ye panchi n udte ,to mohabbt kahani adhuri hi hoti, ye kavita n hoti ye kahani n hoti, उनका हर शाम यूँ चहचहाते हुए लौटना
    मुझे उदास कर देता है.
    देखो बुरा न मानना....
    मुझे शिकायत तुमसे नहीं
    इन परिंदों से है...
    ये हर शाम
    अनजाने ही सही
    तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर देते हैं.....

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  3. मोरा रे अंगनवा चंदनवा की गछिया, ताहि चढ़ी कुरुरे काग रे
    सोने चोंच देवायस तोहे , मोरे पिया जो आवत आज रे

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  4. ये हर शाम
    अनजाने ही सही
    तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर देते हैं.....
    बहुत सुन्दर उकेरा है विरह को अनु ...:)

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  5. एक झोंका खुशबू का आ के छेड गया है ,
    मुझे यकीं है ,
    कुछ दिन में तुम आने वाली हो |

    हमेशा की तरह बहुत सुन्दर |
    सादर

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  6. वाह ... बहुत खूब
    अनुपम भावों का संगम लिये अंतिम पंक्तियां

    आभार

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  7. चलिए इस बार थोडा पहले आ गए हैं तो कुछ तो कह सकते हैं इस नज़्म के बारे में...

    मेरे हाथ से छिटक कर
    प्रेम बिखर गया है
    सारे आकाश में..
    देखो सिंदूरी हो गयी है शाम

    बिखर जाने दीजिये, इस दुनिया को प्यार के इस सिन्दूरी रंग की बहुत ज़रुरत है...
    तेरी यादों ने फिर दस्तक दी है
    हर शाम का सिलसिला है ये अब तो....

    यादों का क्या है, यूँ ही वक़्त-बेवक्त चली आती हैं...
    कमल ने समेट लिया
    पागल भौरे को अपने आगोश में..

    कितना वात्सल्य है न उस कैद में भी...
    आँगन में फूलता नीबू
    अपने फूलों की महक से पागल किये दे रहा है
    उफ़ ! बिलकुल तुम्हारे कोलोन जैसी खुशबू....

    प्यार भी अजीब चीज होती है न, सारी खुशबु जैसे आस-पास घिर जाती हैं इस ज़िन्दगी के...
    पंछी शोर मचाते लौट रहे हैं
    अपने घोसलों की ओर.
    उनका हर शाम यूँ चहचहाते हुए लौटना
    मुझे उदास कर देता है.
    देखो बुरा न मानना....
    मुझे शिकायत तुमसे नहीं
    इन परिंदों से है...
    ये हर शाम
    अनजाने ही सही
    तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर देते हैं...

    उनका लौट आने का इंतज़ार बेकार नहीं हो सकता, वो भी लौट आयेंगे कभी-न-कभी इस प्यार भरी छावं-बसेरे की तलाश में....

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  8. मुझे शिकायत तुमसे नहीं
    इन परिंदों से है... :(((
    ये हर शाम
    अनजाने ही सही
    तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर देते हैं..... :(((

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  9. यादें जैसे सिमट कर एक वजूद बना देती हैं .... लगता है हर खूशबू में बस उसिकी की महक बसी है ... सुंदर रचना ।

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  10. देखो बुरा न मानना....
    मुझे शिकायत तुमसे नहीं
    इन परिंदों से है...
    ये हर शाम
    अनजाने ही सही
    तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर देते हैं.....

    उफ़ !!!!! दर्द का रिश्ता भी कितना अजीब होता है ना

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  11. बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना .बहुत बधाई आपको

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  12. ...बहुत सुन्दर शब्दों में व्यक्त...विरह वेदना!

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  13. बहुत सुंदर रचना
    क्या कहने

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  14. सिंदूरी शाम और विरह .....बहुत खूबसूरती से उकेरी है ...
    हृदयस्पर्शी रचना ...अनु ...

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  15. बहुत कोशिश करती हूँ उन्हें भूल जाने की,
    ये याद है कि नहीं भूलती याद दिलाने की...
    बहुत सुन्दर लिखा है आपने अनुजी

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  16. दुःख का लम्हा, अज़ल आबाद लम्हा
    वो परिंदा वक़्त के पार उतर गया कब का ......
    -------------------------------------------

    सुन्दर रचना

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  17. आँखों के उपवन में खिले आंसू के फूल ,
    हर शाम डबडबाई है तेरे जाने के बाद।
    आप की कविता से चैत की शामें याद आने लगी हैं।बहुत खूब ..........

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  18. loved the imagery and the whole poem is so very heart-wrenching yet beautiful.

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  19. वाह !

    आसमां में बिखरी चांदनी में नहाकर ,
    किसी की याद में डुबकी लगाने लगा मन।
    आज फिर वो गीत हौले से लबों पे उभर आया--
    चंदा ओ चन्दा --

    बेहतरीन प्रस्तुति के लिए नमन।

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  20. wow...thumbs up for such a lovely poetry...thanks for sharing ........

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  21. बहुत सुंदर मन के भाव ...

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  22. मनभावन प्रस्तुति...सुन्दर अनु..

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  23. मुझे शिकायत तुमसे नहीं
    इन परिंदों से है...
    ये हर शाम
    अनजाने ही सही
    तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर देते हैं.....

    ....लाज़वाब पंक्तियाँ और भावों की बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति..

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  24. उफ़ क्या कहूँ शब्द नहीं हैं.....बहुत बहुत सुंदर हैं हर लब्ज़ :-)

    मुझे शिकायत तुमसे नहीं
    इन परिंदों से है...
    ये हर शाम
    अनजाने ही सही
    तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर

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  25. बहुत सुन्दर रचना

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  26. क्या कहूँ शब्द नहीं....बेहद सुंदर हर लब्ज़... :-)

    मुझे शिकायत तुमसे नहीं
    इन परिंदों से है...
    ये हर शाम
    अनजाने ही सही
    तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर....

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  27. देखो बुरा न मानना....
    मुझे शिकायत तुमसे नहीं
    इन परिंदों से है...

    ग़जब ... इन पंक्तियों का कौन क्या मुकाबला करेगा अनुजी।
    दर्द को छुपाकर आख़िरकार उसी को बयाँ करती एक बेहतरीन पोस्ट ...

    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है  बेतुकी खुशियाँ

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  28. अनूठा अंदाज ..विरह के भाव उभर कर आये हैं.

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  29. anulata ji...mujhe ap ka likha bht pasnd h... aur ye parindo se shikayat bhi bhot achi lagi.

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  30. यादों की खुशबुओं का कारवां भी खूब है ....

    सुन्दर औए नाज़ुक सी कविता ....

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  31. उनका हर शाम यूँ चहचहाते हुए लौटना
    मुझे उदास कर देता है.
    मुझे शिकायत तुमसे नहीं
    इन परिंदों से है...
    ये हर शाम
    अनजाने ही सही
    तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर....हर लफ्ज़ मानो मोती

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  32. अनु बहन!! क्या कहूँ, कहाँ से शुरू करूँ.. वत्स शेखर ने तो आज पूरी कविता छाप दी है, मेरे लिए कुछ रहा ही नहीं कहने को.. बस एक बात पर ही अपनी बात रखता हूँ:

    मेरे हाथ से छिटक कर
    प्रेम बिखर गया है
    सारे आकाश में..

    कैसे सम्भाला था इस प्रेम को, जो गिर गया और बिखर गया.. प्रेम को तो ह्रदय में सम्भाला जाता है जिससे उसका सिंदूरी रंग आत्मा तक को रंग जाता है.. इंतज़ार नहीं करना होता फिर उसका लौटते परिंदों के साथ... बल्कि उन परिंदों के गीत में स्वर मिलाकर गाने का मन होता है

    लाली मेरे लाल की, जित देखो तित लाल,
    लाली देखन मैं गयी, मैं भी हो गयी लाल!!

    खैर ये तो बड़े भाई होने का फंडा है.. थोड़ा वज़न जमाने के लिए.. कविता एकदम पेंटिंग है!!शानदार!! :) :)

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    Replies
    1. :-) आपकी तो हर बात में वज़न है दादा...

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  33. विरह की बहुत उम्दा प्रस्तुति ,अनु जी,,,,बधाई
    recent post: रूप संवारा नहीं,,,

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  34. वाकई शानदार। प्रकृति के रंग खूब बिखरे हैं इस कविता में...

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  35. इन परिंदों से तो मैं भी नाराज हूँ
    हरियाली को इतना पसन्द करते हैं कि
    जख्मों को भी हरा करने लग जाते हैं
    और ये शाम को सिंदूर से क्या लेना-देना
    फ़िर भी सिंदूरी क्यों हुई जाती है ?
    शाम सिंदूरी और हरे जख्म
    क्या गज़ब का कॉम्बीनेशन
    मैं तो बिना पंखों ही परिंदा हो ली यादों में ...

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  36. बहुत सुन्दर अनु जी ...दिल कि कसक को उकेरती भावपूर्ण रचना !

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  37. अद्भुत बिम्ब से मन के दर्द को और गहराई मिली है।

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  38. इस रचना का वादा
    पुनः मुलाकात का
    शनिवारीय हलचल में
    सादर आमंत्रित हैं आप सब

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  39. रंग जब बिखरता है तब भी एक अद्भुत कलाकृति रच देता है।
    अनुभूतियों का सुंदर वर्ण-विक्षेपण।

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  40. कुछ घाव अक्सर हरे हो जाते हैं ...शुभकामनायें अनु !

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  41. मुझे शिकायत तुमसे नहीं
    इन परिंदों से है...
    ये हर शाम
    अनजाने ही सही
    तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर देते हैं.....
    vaah badhiya bhav ...

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  42. शिकायत परिंदों से बहुत सुन्दर कविता है |बधाई

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  43. लगा जैसे रातरानी खिल गयी है ,पर फूल अपनी सुगंध खोज रहे हैं ... सस्नेह :)

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  44. शिकायत तो बिलकुल वाजिब है. लेकिन यही परिंदे किसी सुदूर के लिए हवा संदेशा भी तो ले जाते हैं:) बहुत सुन्दर कृति.

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  45. ये हर शाम
    अनजाने ही सही
    तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर देते हैं....bahut sundar ...drd aane ka koi bhi bahana chukana nahi chahiye ..abhiwykti behtreen hai

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  46. प्रेमाअनुभूति के साथ आपने वीहर वियोग का सुन्दर समावेश किया है !

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  47. बड़ी प्यारी कविता है। कभी ऐसी शाम की तस्वीर खींच पाया तो इसे ले जाऊँग आपके ब्लॉग से और रख दूँगा तस्वीर के बगल में और यह भी लिख दूँगा.. तस्वीर अच्छी है पर जो बात इस शब्द चित्र में है वो तुझमे कहाँ!

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  48. बड़ी प्यारी कविता है। कभी शाम की ऐसी तस्वीर खींच पाया तो इसे ले जाऊँग आपके ब्लॉग से और रख दूँगा तस्वीर के बगल में और यह भी लिख दूँगा.. तस्वीर अच्छी है पर जो बात इस शब्द चित्र में है वो तुझमें कहाँ!

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  49. sundar ati sundar , aap ki kavita padh kar mood fresh ho jata
    hai. refreshing

    ReplyDelete
  50. मुझे शिकायत तुमसे नहीं
    इन परिंदों से है...
    ये हर शाम
    अनजाने ही सही
    तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर देते हैं...
    उनका लौट आने का इंतज़ार बेकार नहीं हो सकता, वो भी लौट आयेंगे कभी-न-कभी इस प्यार भरी छावं-बसेरे की तलाश में....

    खुबसूरत पोस्ट ..बधाई

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  51. कुछ यादे बहुत खास होती है ,
    जो हर पल ,हर घडी मेरे पास होती है ....
    बहुत खूब अनुजी .........

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  52. आपकी कविता की चर्चा यहाँ भी है...

    http://merecomment.blogspot.in/2012/12/blog-post.html

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  53. बहुत सुंदर।।।
    प्रेमपीढ़ा को परिंदो की शिकायत कर क्या खूब बयां किया है...

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  54. मुझे शिकायत तुमसे नहीं
    इन परिंदों से है...
    ये हर शाम
    अनजाने ही सही
    तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर देते हैं.bahut sundr Anu ji

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  55. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.

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  56. ye khalipan kahin bhar sa raha hai...bahut acchi!

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  57. wah didi kya batau man may halchal machati hai apki ye rachna....yaad aur sham ke bela ka bahut gehra rishta hai

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  58. बहुत सुन्दर

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  59. देखो बुरा न मानना....
    मुझे शिकायत तुमसे नहीं
    इन परिंदों से है...
    ये हर शाम
    अनजाने ही सही
    तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर देते हैं.....

    अच्छा लगा ये शिकायती लहजा...

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