("रूबरू दुनिया" के नवंबर अंक में प्रकाशित )
नन्ही सी मुनिया ने
नन्ही सी मुनिया ने
करवट यूँ बदली थी....
उसने अलसाए
ख़्वाबों में
देखी एक झलकी थी...
वो महलों में पलती
नन्ही एक रानी थी..
गहनों के ढेर लगे
दासी चांवर झलती थीं..
ढेरों उसकी सखियाँ
स्नेह बड़ा वे करती थीं
पर भीतर उससे जलती थीं..
यूँ सुखमय सा जीवन उसका
वो फूलों पर चलती थी......
-ये मीठा उसका स्वप्न ही था..
जो देख वो
खुद को छलती थी ,
अलसाए ख्वाब की
छोटी सी ये झलकी थी.
टूटी सी खटिया पर वो
बैठी आँखें मलती थी..
कहाँ की रानी...
कैसा महल !!!!!
मुनिया तो
अपनी माँ की
पाँचवी अभागी लड़की थी,
दिन भर खटती,
गढ़री पर सोती और
टुकड़ों पे पलती थी..
-अनु
९/११/२०११
उसने अलसाए
ख़्वाबों में
देखी एक झलकी थी...
वो महलों में पलती
नन्ही एक रानी थी..
गहनों के ढेर लगे
दासी चांवर झलती थीं..
ढेरों उसकी सखियाँ
स्नेह बड़ा वे करती थीं
पर भीतर उससे जलती थीं..
यूँ सुखमय सा जीवन उसका
वो फूलों पर चलती थी......
-ये मीठा उसका स्वप्न ही था..
जो देख वो
खुद को छलती थी ,
अलसाए ख्वाब की
छोटी सी ये झलकी थी.
टूटी सी खटिया पर वो
बैठी आँखें मलती थी..
कहाँ की रानी...
कैसा महल !!!!!
मुनिया तो
अपनी माँ की
पाँचवी अभागी लड़की थी,
दिन भर खटती,
गढ़री पर सोती और
टुकड़ों पे पलती थी..
-अनु
९/११/२०११
मुनिया की आँखों में ख्वाब जरुरी है ताकि जिंदगी की तल्खियों में भी मुस्कुरा सके !
ReplyDeleteकटु सत्य...हम आसपास ऐसी कितनी ही मुनियाओं को देखते हैं
ReplyDeleteमन व्यथित भी होता है पर चाहकर भी कुछ कर नहीं पाते
जरूरत पड़ने पर ये मुनिया हमारे घर भी बरतन माँजती नजर आती है
सस्नेह
ओह! मुनिया अपने स्वप्नों के उड़ान को हकीक़त में पा जाए .. इसके लिए हम सभी को प्रयासरत रहना चाहिए ..
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक पंक्तियाँ दीदी।
सादर
मधुरेश
बेहद मार्मिक पोस्ट ..पड़ते ही एक रुआंस सा फुट पड़ा .... मुनिया ने जो ख़्वाब देखे काश वो सच्च हो जाये.
ReplyDeleteआभार!!
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/11/3.html
काश मुनिया के सपने सच हो जायें । सुंदर रचना ।
ReplyDeleteह्रदय को भीतर तक झकझोरती है आपकी ये सुन्दर रचना
ReplyDeleteअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ....अनु
ReplyDeleteगहराइ भरी सार्थक रचना .....
शुभकामनायें।
yahi hai sach...khwab tho bas khwab hi hai...kitne bacche aise hi jeete hain....kash sab baccho kay khwab sach ho jaye....jo footpath par din raat kam karte hain
ReplyDeleteएक सत्य जो सबसे कटु है ..... अगर वो महलों में जन्मी होती तब भी रहती तो लड़की ही ....
ReplyDeleteइस मानसिकता से कब उबरेंगें पता नहीं ......
आभार आपका कि आपने महसूस किया ।
एक सत्य जो सबसे कटु है ..... अगर वो महलों में जन्मी होती तब भी रहती तो लड़की ही ....
ReplyDeleteइस मानसिकता से कब उबरेंगें पता नहीं ......
आभार आपका कि आपने महसूस किया ।
कहाँ की रानी...
ReplyDeleteकैसा महल !!!!!
मुनिया तो
अपनी माँ की
पाँचवी अभागी लड़की थी,
दिन भर खटती,
गढ़री पर सोती और
टुकड़ों पे पलती थी..
कटु सत्य को उजागर करती मार्मिक रचना
बहुत ही अच्छी कविता बधाई |समय मिले तो मेरे ब्लॉग सुनहरी कलम पर हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ पढने का कष्ट करें |
ReplyDeletewww.sunaharikalamse.blogspot.com
ग़रीबों के हंसी ख्वाब .गरीबी की स्वादिष्ट ख़ुराक...शुक्र है ! इस पे किसी का कॉपी-राइट नहीं !
ReplyDeleteबेहतरीन एहसास !
मुबारक हो !
क्षणिक ही सही ...यह भुलावे भी सहारा बन जाते हैं जीवन से जूझने के लिए ....
ReplyDeleteबल श्रम एक धब्बा है समाज पर . सच्चाई बुनती कविता
ReplyDeleteकाश इस मुनिया के सपने भी सिंड्रेला की तरह सच हों... और कोई जादू इस मुनिया को भी अपने राजकुमार से मिला दे.. और ये ख्वाब कभी न टूटें!!
ReplyDeleteबेहद मार्मिक रचना..
ReplyDeleteइतना मीठा ख्वाब मुनिया ने देखा
जो पूरा नहीं हो पाया कितना दुःख होता है बच्चो को..
सुख अक्सर ख्वाबों में ही मिलता है।
ReplyDeleteअधिकांश की सच्चाई।
bahut sacchi acchi rachna lagi yah anu ..sundar abhiwykati
ReplyDelete
ReplyDeleteकल 03/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार आपका यशवंत...
Deleteएक कटु सत्य..बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..
ReplyDeleteएक कटु सत्य..बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..
ReplyDeleteपांचवी बेटी ...
ReplyDeleteअनु जी , पहली बार आपके ब्लॉग से रूबरू हुई हूँ सुखद अनुभूति हुई आपकी निर्मल कलम को सलाम। मेरे ब्लॉग पर आने का धन्यवाद।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी.
ReplyDeleteकहाँ की रानी...
ReplyDeleteकैसा महल !!!!!
मुनिया तो
अपनी माँ की
पाँचवी अभागी लड़की थी,
दिन भर खटती,
गढ़री पर सोती और
टुकड़ों पे पलती थी..
एक सच जो अकसर मन को झकझोर जाता है ...
आभार इस भावमय प्रस्तुति के लिये
सादर
कहीं से कोई परी मिल जाती और मुनिया के सारे सपने सच हो जाते ...... सस्नेह :)
ReplyDeleteकड़वा सच.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.
न जाने कितनी मुनिया देखता हूँ अपने आस-पास... हर रोज़, हर नुक्कड़ पर.. :(
ReplyDeleteआपके अद्भुत लेखन को नमन
ReplyDeleteबहुत सराहनीय प्रस्तुति.
बहुत सुंदर
अनुजी, बहुत ही करुण रचना-
ReplyDeleteअनु जी अन्तःकरण तक पहुच गई आपकी भावनाएं बहुत सुन्दर लिखा है बधाई
ReplyDeleteमुनिया के इस हालात पर सोचता हूँ कि 'ये साजिश है वक्त की या...लकीरों की ????
ReplyDeleteबहुत खूबशूरत करुणामयी प्रस्तुति,,,,,
ReplyDeleterecent post: बात न करो,
मुनिया जैसी न जाने कितनी बच्चियों की त्रासदी लिख दी है .... मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteसार्थक रचना !
ReplyDeleteनारी सर्वत्र पूजिते.....
ReplyDelete(ई पत्रिका "नव्या" में प्रकाशित)
दृढ़ है
अट्टालिका है
दुर्गा है
कालिका है
जिसने हिम्मत कभी ना हारी है
वो नारी है.....
सीता है
शक्ति है
मीरा है
भक्ति है
जिसने जप-तप में उम्र गुजारी है
वो नारी है......
सुकोमल है
सहृदया है
भगिनि है
संगिनी है
जो हर रिश्ते पर वारी है
वो नारी है.......
क्रुद्ध है
क्षुब्ध है
व्यथित है
बेचारी है
जो कोख में गयी मारी है
वो नारी है......
मनोहर भाव संजोये है यह रचना सत्य का अंश भी -
है कौन वह करती -
कैट वाक (वाल्क ),
"स्लिपड्रेस "का -
रॉक .
अन्तरिक्ष की पहरे दारी ,
अब तो कंडक्टर भी है नारी .
नारी सर्वत्र पूजिते.....
ReplyDelete(ई पत्रिका "नव्या" में प्रकाशित)
दृढ़ है
अट्टालिका है
दुर्गा है
कालिका है
जिसने हिम्मत कभी ना हारी है
वो नारी है.....
सीता है
शक्ति है
मीरा है
भक्ति है
जिसने जप-तप में उम्र गुजारी है
वो नारी है......
सुकोमल है
सहृदया है
भगिनि है
संगिनी है
जो हर रिश्ते पर वारी है
वो नारी है.......
क्रुद्ध है
क्षुब्ध है
व्यथित है
बेचारी है
जो कोख में गयी मारी है
वो नारी है......
मनोहर भाव संजोये है यह रचना सत्य का अंश भी -
है कौन वह करती -
कैट वाक (वाल्क ),
"स्लिपड्रेस "का -
रॉक .
अन्तरिक्ष की पहरे दारी ,
अब तो कंडक्टर भी है नारी .
स्वप्न देखने के बाद ही हकीकत बजते हैं ... निरंतर स्वप्न जरूरी हैं ...
ReplyDeleteलाजवाब शशक्त रचना ...
बचपन ..
ReplyDeleteसड़क किनारे भूखा बैठा है |
और देश प्रगति का दावा करता है |
सादर