नर्म लहज़े में
शफ़क ने कहा
उठो
दिन तुम्हारे इंतज़ार में है
और मोहब्बत है तुमसे
इस नारंगी सूरज को....
इसका गुनगुना लम्स
तुम्हें देगा जीने की एक वजह
सिर्फ तुम्हारे अपने लिए...
सुनो न ! किरणों की पाजेब
कैसे खनक रही है
तुम्हारे आँगन में.
मानों मना रही हो कमल को
खिल जाने के लिए
सिर्फ तुम्हारे लिए.....
चहक रहा है गुलमोहर
बिखेर कर सुर्ख फूल
तुम्हारे क़दमों के लिए....
जानती हो
ये मोगरा भी महका है
तुम्हारी साँसों में बस जाने को...
सारी कायनात इंतज़ार में है
तुम्हारी आँखें खुलने के...
जिंदगी बाहें पसारे खड़ी है
तुम्हें आलिंगन में भरने को....
उठो न तुम...
और कहो कुछ, इंतज़ार करती इस सुबह से....
जवाब दो मेरे सवालों का...
सीली आँखें लेकर सोने वाले क्या उठते नहीं?
बातों का ज़हर भी क्या जानलेवा होता है ??
भावनाओं में यूँ बहा जाता है क्या ???
कितनी गहरी नींद में हो तुम लड़की ????
जिंदगी के दिये इन सुन्दर प्रलोभनों के सामने
कहीं मौत का दिया
मुक्ति का प्रलोभन भारी तो नहीं पड़ गया !!!
-अनु
१४/दिसम्बर/२०१२
शफ़क ने कहा
उठो
दिन तुम्हारे इंतज़ार में है
और मोहब्बत है तुमसे
इस नारंगी सूरज को....
इसका गुनगुना लम्स
तुम्हें देगा जीने की एक वजह
सिर्फ तुम्हारे अपने लिए...
सुनो न ! किरणों की पाजेब
कैसे खनक रही है
तुम्हारे आँगन में.
मानों मना रही हो कमल को
खिल जाने के लिए
सिर्फ तुम्हारे लिए.....
चहक रहा है गुलमोहर
बिखेर कर सुर्ख फूल
तुम्हारे क़दमों के लिए....
जानती हो
ये मोगरा भी महका है
तुम्हारी साँसों में बस जाने को...
सारी कायनात इंतज़ार में है
तुम्हारी आँखें खुलने के...
जिंदगी बाहें पसारे खड़ी है
तुम्हें आलिंगन में भरने को....
उठो न तुम...
और कहो कुछ, इंतज़ार करती इस सुबह से....
जवाब दो मेरे सवालों का...
सीली आँखें लेकर सोने वाले क्या उठते नहीं?
बातों का ज़हर भी क्या जानलेवा होता है ??
भावनाओं में यूँ बहा जाता है क्या ???
कितनी गहरी नींद में हो तुम लड़की ????
जिंदगी के दिये इन सुन्दर प्रलोभनों के सामने
कहीं मौत का दिया
मुक्ति का प्रलोभन भारी तो नहीं पड़ गया !!!
-अनु
१४/दिसम्बर/२०१२
जिंदगी के दिये इन सुन्दर प्रलोभनों के सामने
ReplyDeleteकहीं मौत का दिया
मुक्ति का प्रलोभन भारी तो नहीं पड़ गया !!!
वाह ... !!!
अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्यक्ति में
आभार सहित
सादर
जिंदगी के दिये इन सुन्दर प्रलोभनों के सामने
ReplyDeleteकहीं मौत का दिया
मुक्ति का प्रलोभन भारी तो नहीं पड़ गया !!!
क्या सवाल है| बेहतरीन अभिव्यक्ति|
bahut sundar bhav..........anu ji vo ladki nind se jaru jagegi kyoki vo ladki hai aur use jina auron ke liye bhi......
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteवाह, कमाल की कविता
ReplyDeleteबहुत ही अनुपम भाव संजोया है..खुबसूरत रचना...अनु..
ReplyDeleteसीली आँखें लेकर सोने वाले क्या उठते नहीं?
ReplyDeleteबातों का ज़हर भी क्या जानलेवा होता है ??
भावनाओं में यूँ बहा जाता है क्या ???
कितनी गहरी नींद में हो तुम लड़की ????
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धुंधला चली निगाह, दम-ए-वापसी है अब
आ पास आ के देख लूँ, तुझ को करीब से
चहक रहा है गुलमोहर
ReplyDeleteबिखेर कर सुर्ख फूल
तुम्हारे क़दमों के लिए....
खूबसूरत एहसास
सादर
मुक्ति का प्रलोभन तो सचमुच भारी होता है, जिंदगी के सारे प्रलोभनों से ... गहन भाव... बहुत-बहुत शुक्रिया अनुजी
ReplyDeleteजिंदगी के दिये इन सुन्दर प्रलोभनों के सामने
ReplyDeleteकहीं मौत का दिया
मुक्ति का प्रलोभन भारी तो नहीं पड़ गया !!!
क्या कहा जाए...मुक्ति का प्रलोभन भारी पड़ भी सकता है!!
रचना बहुत ही सुंदर है...आस का संदेश देती
सस्नेह
बहुत ही हृदय स्पर्शी रचना ... सुन्दर बिम्ब संयोजन ...
ReplyDeleteसभार!
हलाहल पी कर सोयी हूँ
ReplyDeleteकुछ तो असर होने दो
मुक्ति नहीं है मौत भी
पर मेरी सहर होने दो ।
बस दिल में उतर गयी यह नज़्म ...
waah ! anu ji ! bahut khoobsurat racanaa...... kudos .
ReplyDeletecongra8.
{ & u r very beautifull i must say :) }
बहुत अनुपम भाव लिए..खुबसूरत रचना... बधाई।
ReplyDeleterecent post हमको रखवालो ने लूटा
कोमल भाव लिए अति उत्तम रचना..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
:-)
उम्दा रचना .......
ReplyDeleteदिल कों छू लेने वाली अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर ....
जिंदगी के दिये इन सुन्दर प्रलोभनों के सामने
ReplyDeleteकहीं मौत का दिया
मुक्ति का प्रलोभन भारी तो नहीं पड़ गया !!!
इस कविता में शब्दों का, बिम्बों का, और उपमाओं का जो प्रलोभन है कि इस सीली आंखों को खुल ही जाना चाहिए।
हृदय स्पर्शी अभिव्यक्ति ******^^^^^^******* जवाब दो मेरे सवालों का...
ReplyDeleteसीली आँखें लेकर सोने वाले क्या उठते नहीं?
बातों का ज़हर भी क्या जानलेवा होता है ??
भावनाओं में यूँ बहा जाता है क्या ???
कितनी गहरी नींद में हो तुम लड़की ????
प्यारी-सी रचना....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबेहतर..
ReplyDeletebahut sundar bhaav, bahut khoob:-)
ReplyDeleteसारी कायनात इंतज़ार में है
ReplyDeleteतुम्हारी आँखें खुलने के...
जिंदगी बाहें पसारे खड़ी है
तुम्हें आलिंगन में भरने को....
दिल से निकले उदगार मन को छू गए. सुंदर भाव्पपूर्ण प्रस्तुति.
विजय दिवस की हार्दिक बधाइयाँ - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteअनुपम भाव लिए..खुबसूरत रचना.लाजवाब
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteप्राकृति सहज ही बहुत कुछ देती है .... ओर सच कहो तो मौत भी उसी प्राकृति की दें है ... हां कई बार रास्ता खुद भी चुनना होता है ... ऐसे में मुक्ति का प्रलोभन या जीवन की चाह खुद को ही तय करनी होती है ...
ReplyDeletesunder hai
ReplyDeleteजिंदगी के दिये इन सुन्दर प्रलोभनों के सामने
ReplyDeleteकहीं मौत का दिया
मुक्ति का प्रलोभन भारी तो नहीं पड़ गया !!!
जिंदगी के दिये इन सुन्दर प्रलोभनों के सामने
ReplyDeleteकहीं मौत का दिया
मुक्ति का प्रलोभन भारी तो नहीं पड़ गया !!!
bahut hi kamaal ka likha my dear :-)
अच्छा है।
ReplyDeleteजिंदगी के दिये इन सुन्दर प्रलोभनों के सामने
ReplyDeleteकहीं मौत का दिया
मुक्ति का प्रलोभन भारी तो नहीं पड़ गया !!!
...बहुत प्रभावी और गहन अभिव्यक्ति...
Wonderful creation, has so much of layers and depth in it.
ReplyDeleteसारी कायनात इंतज़ार में है
ReplyDeleteतुम्हारी आँखें खुलने के...
जिंदगी बाहें पसारे खड़ी है
तुम्हें आलिंगन में भरने को....
उठो न तुम...
और कहो कुछ, इंतज़ार करती इस सुबह से....
जवाब दो मेरे सवालों का...
सीली आँखें लेकर सोने वाले क्या उठते नहीं?
बातों का ज़हर भी क्या जानलेवा होता है ??
भावनाओं में यूँ बहा जाता है क्या ???
कितनी गहरी नींद में हो तुम लड़की ????
प्यारी-सी अभिव्यक्ति
very appealing
ReplyDeleteजीवन और मृत्यु का अनोखा सम्बन्ध।
ReplyDeleteउच्च, उम्दा रचना।
वाह antithesis.
ReplyDeleteगहरे भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी ....बहुत गहन अभिव्यक्ति अनु....
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है ....
जिंदगी के दिये इन सुन्दर प्रलोभनों के सामने
ReplyDeleteकहीं मौत का दिया
मुक्ति का प्रलोभन भारी तो नहीं पड़ गया !!!
मार्मिक ....गहन अभिव्यक्ति
दिल को छु लेने वाली सुन्दर रचना अनु .बेहद सुन्दर भाव लगे इस रचना के spe yah जवाब दो मेरे सवालों का...
ReplyDeleteसीली आँखें लेकर सोने वाले क्या उठते नहीं?
बातों का ज़हर भी क्या जानलेवा होता है ??
भावनाओं में यूँ बहा जाता है क्या ???
कितनी गहरी नींद में हो तुम लड़की ????
वाह!बहुत सराहनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से अपनी बात कही है.. सुबह की लाली से मौत के अँधेरे की आशंका तक, सब कह डाला.. हर बार की तरह प्रभावित करती है यह कविता!!
ReplyDeletesundar
ReplyDeletesundar
ReplyDelete'मुक्त' होना तो सदा ही प्रलोभनकारी लगता है |
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना अनु !
ReplyDeleteसीली आँखों पर मुक्ति का प्रलोभन... भारी पड़ भी सकता है, इसमें कोई शक़ नहीं...
सिर्फ एक आह !
ReplyDeleteमार्मिक!
khubsurat swagat karti jindagi me maut kahan se aayee??
ReplyDeleteबातों का ज़हर भी क्या जानलेवा होता है ??
ReplyDeleteApaki lekhani prerak va saarthak bani rahe , shubhakana !
mere blog par upasthiti darj kar samman badhane ke liye abhar sahit ... Shubh Diwas !
JAY HIND !
Bahut hi sundar Kavita. Merry Christmas & Happy New Year !
ReplyDeleteनर्म लहज़े में
ReplyDeleteशफ़क ने कहा
उठो
दिन तुम्हारे इंतज़ार में है
और मोहब्बत है तुमसे
इस नारंगी सूरज को....
इसका गुनगुना लम्स
तुम्हें देगा जीने की एक वजह
सिर्फ तुम्हारे अपने लिए...
सुनो न ! किरणों की पाजेब
कैसे खनक रही है
तुम्हारे आँगन में.
मानों मना रही हो कमल को
खिल जाने के लिए
सिर्फ तुम्हारे लिए.....
अनु जी बहुत ही सुन्दर और अलग ढंग की कविता |अच्छी कविता के लिए बधाई |
बहुत बढ़िया लगी |
ReplyDeleteजिंदगी के दिये इन सुन्दर प्रलोभनों के सामने
ReplyDeleteकहीं मौत का दिया
मुक्ति का प्रलोभन भारी तो नहीं पड़ गया !!!
बेहद सुंदर।।।
बहुत खूबसूरती से विचार रखे है. प्रकृति का मानवीकरण अच्छा प्रयोग रहा.
ReplyDeleteबधाई.
बहुत खूब, मुक्ति और जिन्दगी के खुबसूरत प्रलोभनों के बीच कशमकश को दिखाती सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteसाभार !
हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।
ReplyDeleteप्रभावी लेखन,
ReplyDeleteजारी रहें,
बधाई !!
प्रभावी लेखन,
ReplyDeleteजारी रहें,
बधाई !!
इतनी कोमल मौत का जिक्र पहली बार देखा |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
सादर