इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Monday, April 22, 2013

डायरी का मुड़ा पन्ना ....

मेरी डायरी का एक पन्ना....
माय शेटर्ड ड्रीम्स एंड .....टेटर्ड एक्सप्रेशंस

उसकी याद
मेरी डायरी का एक पन्ना है
वो पन्ना,
जिसे मोड़ रखा था  मैंने
किनारे से..
ताकि खो न जाय.
जब किसी रात यकायक चौंक कर उठती
तब खुद-ब-ख़ुद खुल जाता वो पन्ना...
और लफ्ज़ तैरने लगते सूने कमरे में
स्मृतियाँ पन्ने से निकल कर उड़ने लगती !
सख्त यादें आपस में टकराती,
बड़ा शोर करती हैं.
मधुर शब्द भी अक्सर
जब याद बन जाते है तो बड़े कर्कश हो जाते हैं...
करवटों में गुज़रती एक रात...

उस रोज़ अचानक,यादों के शोर में 
सोने की जद्दोजहद में
खीज कर मैंने कोई स्विच दबाया और
सारे लफ्ज़ उड़ गए
एक्जॉस्ट फैन से बाहर...
अहा ! खाली पन्ना....
सन्नाटा !!!
सुकून!!!
सोचा, नो मोर स्लीपलेस नाइट्स....
(अपनी ही पीठ थपथपाई मैंने.)

मगर फिर
करवट बदलती एक और रात....

अब भी !!
अक्सर सोचती हूँ तुम्हें
उस खाली मुड़े पन्ने को देखते हुए .....

"यादें कहाँ लफ़्ज़ों की मोहताज होती हैं."

~अनु ~

44 comments:

  1. सच ही कहा 'यादें कहाँ लफ्जों की मोहताज होती हैं'.....वो तो जेहन में चलती रहती है ...

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  2. बहतरीन ....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...अनु ..!!

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  3. "यादें कहाँ लफ़्ज़ों की मोहताज होती हैं."
    तभी तो खामोशियाँ खामोशियों से बात करती हैं ...
    बेहतरीन पोस्‍ट
    सादर

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  4. यादें कहाँ लफ़्ज़ों की मोहताज होती हैं."
    यादें गुज़रे लम्हों की सरताज होती हैं .....

    यादों के बगैर जिन्दगी का सफ़र अधुरा है !
    शुभकामनायें!

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  5. लफ्ज़ गम हो जाते हैं ,पन्ना कहीं शून्य में खो जाता है पर ये यादें कहाँ जाती हैं हमें छोड़ कर ...आखरी सांस तक पीछा करती हैं ....बहुत सुन्दर कविता ....
    सादर
    अपर्णा

    http://boseaparna.blogspot.in/

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  6. thanks so much for liking my post on facebook.have sent you a friend request.please accept.
    thanks and regards
    aparna

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  7. सच है यादें तो दिल की ताज होती हैं .....शुभकामनायें!

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  8. Sahi kaha aapne ''yaaden kahan lafjon ki mohtaj hoti hai..'' inhen aana hota hai aankhon ki nmi ke sahare...bite hue kal ke sahare...kuchh zindgion ke sahare...

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  9. पर कब तक खाली रहेगा वो पन्ना , लफ्ज़ लौट लौट आयेंगे
    सुन्दर रचना

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  10. आदरणीया अनुलता जी बहुत सुन्दर ..जितना सुन्दर मूल भाव ..उतने सुन्दर शब्दों का चयन और गठन ..सीखने को मिला ..अनुपम काव्य ....अभिवादन

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  11. वाह सुन्दर एहसास. यादें सच ही मोहताज़ नहीं होती किसी की.

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  12. यादों के बगैर कुछ भी तो नहीं ....
    बेहतरीन ..अनुपम पोस्ट

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  13. लफ्ज हों या न हों ...रात करवटें बदलती ही बीतती है :):) खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  14. Waah ma'am,, brilliant.,.,bahut dino baad kuch achha padhne ko mila

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  15. सच है "यादें कहाँ लफ़्ज़ों की मोहताज होती हैं."
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....शुभकामनायें

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  16. "यादें तो ब्रेल लिपि में होती हैं" । उन पर उंगलियाँ फिराते रहो बस ,सब जीवंत होने लगता है ।

    बहुत सुन्दर लिखा है आपने ।

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  17. बहुत सुन्दर रचना!

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  18. अनु, बहुत अच्छा लिखती हैं आप...सचमुच.

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    1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २३ /४/१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।

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    2. बहुत बहुत शुक्रिया राजेश जी.

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  19. यादें तो जेहन में उमडती घुमडती रहती हैं. बहुत सुंदर रचना.

    रामराम.

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  20. "यादें कहाँ लफ़्ज़ों की मोहताज होती हैं."........ क्या बात कही है अनु जी ...वाह!

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  21. बहुत सुन्दर रचना!

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  22. ओह ...जैसे सब कुछ मेरे आसपास ही हुआ, कितना सजीव चित्रण किया है आपके शब्दों ने आपके भावों का...

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  23. Wahhh!!!.....achi rachna hai.....par ek do jagah aapne jo theth hindi ke words use kiye hai wo mujhe kuch khale...jaise 'मधुर' and 'कर्कश'....baki to deadlyy hai :)

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    1. ठेठ हिन्दी के शब्द खले क्यूँ भला???? शुक्र करिए कि पूरी कविता ही ठेठ हिन्दी में नहीं लिखी :-)

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  24. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
    --
    शस्य श्यामला धरा बनाओ।
    भूमि में पौधे उपजाओ!
    अपनी प्यारी धरा बचाओ!
    --
    पृथ्वी दिवस की बधाई हो...!

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  25. very touching no words to say ....anything .....

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  26. "यादें कहाँ लफ़्ज़ों की मोहताज होती हैं."
    इस पर एक शेर याद आया

    कितनी बातें है मावरा-ए-सुख़न
    कितने ना-दीदा हर्फ़ है पसे-हर्फ़
    ~सरशार सिद्दीकी

    बहुत सुंदर लिखा है आपने !!


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  27. Behtareen...
    Very lively, pure and full of love...Superb expression:-)

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  28. अनु जी : ----मधुर शब्द भी अक्सर
    जब याद बन जाते है तो बड़े कर्कश हो जाते हैं...
    ----- !! हर बार की तरह यह रचना भी एक नायब नंग है. यादें कविओं का चहेता उपमान रहा है. अलग कोण. अभिनंदन.

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  29. यादें कहाँ लफ़्ज़ों की मोहताज होती हैं.. यादें तो वैसे भी बेजुबान होती हैं.. और यादों की भाषा भी कहाँ होती हैं... इसलिए बहुत ही खूबसूरत एहसास को इस कविता में ढाला है!! एक कोरे कागज़ की तरह!!

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  30. ye to mere diary ka panna lag raha hai :) :)
    मेरी डायरी का एक पन्ना....
    माय शेटर्ड ड्रीम्स एंड .....टेटर्ड एक्सप्रेशंस :)

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  31. "यादें कहाँ लफ़्ज़ों की मोहताज होती हैं."
    ...सच है, यादें न लफ़्ज़ों की मोहताज़ होती हैं न समय की...कभी साथ नहीं छोड़तीं..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  32. जब किसी रात यकायक चौंक कर उठती
    तब खुद-ब-ख़ुद खुल जाता वो पन्ना...
    और लफ्ज़ तैरने लगते सूने कमरे में
    स्मृतियाँ पन्ने से निकल कर उड़ने लगती !------
    अदभुत कल्पना
    प्रेम का कोमल महीन अहसास
    गजब
    बधाई

    आग्रह है की मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

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  33. lauta ??
    laut ke aayee uski yaad...
    fir se saheja naye shabdo ke saath dairy me ??
    uprokt prashno ka uttar den :D

    wah.. kya likhte ho aap

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  34. मधुर शब्द भी अक्सर
    जब याद बन जाते है तो बड़े कर्कश हो जाते हैं...
    लाजवाब अनुजी।।।

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  35. सुन्दर....
    सच्ची...यादें कहाँ लफ़्ज़ों की मोहताज़ होती हैं

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  36. आखिरी पंक्ति , लाजवाब |

    सादर

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  37. यादें कहाँ लफ़्ज़ों की मोहताज होती हैं, true....

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