मैंने बोया था उस रोज़
कुछ,
बहुत गहरे, मिट्टी में
तुम्हारे प्रेम का बीज समझ कर.
और सींचा था अपने प्रेम से
जतन से पाला था.
देखो !
उग आयी है एक नागफनी...
कहो!तुम्हें कुछ कहना है क्या??
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~``
परेशां हूँ
जाने कहाँ खो सी गयी हूँ...
खोजती हूँ खुद को
यहाँ/वहां/खुद में/तुम में
हैरां हूँ..
तुम्हारे भीतर भी नहीं हूँ?
रात तुम्हारी नींद को भी टटोला....
नहीं !!!
तुम्हारे ख़्वाबों में भी नहीं
आखिर कहाँ गुम हुई मैं, तुम्हें पाने के बाद...
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अंधेरे को मैंने
कस कर लपेट लिया
आगोश में
भींच लिया सीने से इस कदर
कि उसकी सूरत दिखलाई न पड़े.
पीछे खडी
कसमसाई सी रौशनी
तकती थी मुझे
अँधेरे से जल गयी लगती है रोशनी !!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अनु
आखिर कहाँ गुम हुई मैं ......
ReplyDelete----------------------------
प्रेम की तलाश में ...जहाँ अँधेरा है ...
बहुत ही खुबसूरत ....
बहुत ही सुंदर .....
ReplyDeletebahut khoob anu ji , itne dino se blog ko miss kiya , yah net bebafa koi site hi open nahi kar raha tha , sukun mila dil ko padh kar aaj blog a, sundar abhivu=yakti
Deleteकभी कभी प्रेम में फूल के बदले नागफनी भी मिलते है,बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना है
ReplyDeleteक्या कहने
अँधेरे से जल गयी लगती है रोशनी !!
ReplyDeleteबहुत खूब
सादर
आखिर कहाँ गुम हुई मैं, तुम्हें पाने के बाद...
ReplyDeleteयही जबाब तो नहीं मिलता....सुन्दर क्षणिकाएं
प्रेम में अक्सर महसूस होते हैं नागफनी जैसे दंश लेकिन न भूलो कि नागफनी पर भी फूल खिलते हैं .....जब पा ही लिया है उसको तो कहाँ रहा तुम्हारा खुद का वजूद ? खोना तो था ही .... और जलन न हो यह तो हो नहीं सकता .... अंधेरे को इतना करीब लाओगी तो रोशनी जल ही तो उठेगी :):) बहुत गहरे एहसास ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अनु... दिल को छू गयी.....
ReplyDelete<3
itni khoobsurat panktiyan....! vakai bahut sundar hain, khaaskar dusra bhaag, gazab....hai, man kar raha hai inhe bhej dun unhe, jinhe paane k baad kho gayi mai bhi jane kahan??????????
ReplyDeletepichhla comment delete ho gaya shayad, fir se usi baat ko dusre shabdon me likh rahi hun, ki aap ki kavitaon me apni bhavnaon ka aksha dikhayi de raha hai..............!!
ReplyDeletemujhe to teeni bhi bahut bahut sundar lagi yah rachnaaye ..kalpna hi kmaal ki hai ..bahut badhiya abhiwyakti
ReplyDeleteयहाँ/वहां/खुद में/तुम में
ReplyDeleteहैरां हूँ..
तुम्हारे भीतर भी नहीं हूँ?
jb khud men nahi to kahin nahin .....very touching
तुझे पा कर खुद को खोना...
ReplyDeleteबस यही तो
सुन्दर .
सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteअँधेरे से जल गयी लगती है रोशनी !!
ReplyDeleteesa likhana har ek ki bas ki baat nhi hoti.
mere man me aapki badi ijjat hain ..jab bhi mouka milta hai aapka blog padhane baith jata hun .. bas bada achcha lagta hain.
salute to you.
पधारिये : किसान और सियासत
काँटों में भी फूल खिलते हैं... तीनो क्षणिकाएं बहुत सुन्दर हैं...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएं।
ReplyDeleteअहसासों की सुन्दर अभिव्यक्ति।
वाह अनु जी- !!! पहली रचना में मस्ती/तेवर/शिकायत है.....दूसरी में दहशत.....और तीसरी-में मेजिक रियालिज़म.... क्या बात है...!!!
ReplyDeleteतीनो क्षणिकाएं बहुत सुन्दर हैं...
ReplyDelete:-)
आपका बहुत बहुत शुक्रिया शास्त्री जी.
ReplyDeleteIt has a lot of depth, beautiful writing.
ReplyDeleteअँधेरे में प्रेम की तलाश ....कैसे कोई करेगा एक रौशन दिन में भी . बेहद पसंद आई मोगेम्बो को यह कविता ! बधाई अनु जी !
ReplyDeleteअँधेरे से जल गयी लगती है रोशनी..
ReplyDeletewow just beautiful expressions..
all three themes were beautiful n well crafted..
awesome read !!
बहुत गहरी उड़ान भरती हैं आप....
ReplyDeleteशुभकामनायें!
गहन अनुभूति से उपजी बहुत ही प्यारी कवितायें !
ReplyDeleteगहन अनुभूति से उपजी बहुत ही प्यारी कवितायें !
ReplyDeleteBeautiful....awsm wrd play :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक गहन प्रस्तुति!
ReplyDeleteRecent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग
उत्कृष्ट रचना ......क्या कहें । परन्तु अब आप अपने भीतर से बाहर निकालिए और हलके मन से रचना कीजिये । भारी मन को अब तिलांजलि दीजिये ।
ReplyDeleteदेखो !
ReplyDeleteउग आयी है एक नागफनी...
कहो!तुम्हें कुछ कहना है क्या??
तीनों रचनाएँ बहुत सुन्दर हैं....
मुझे कुछ कहना ही नहीं है....
आपके भाव खुद कुछ कह रहे हैं...!!
गहन भावों की अभिव्यक्ति
ReplyDeletebehad sanvedn sheel aur antr ke bhavon ki abhivuakti ki hai.
ReplyDeletepar sonch sakaratmk rkkhen.
saabhaar
''Khud ko khokar hi hum shayad kisi khas ke karib ja paate hain''
ReplyDeleteGahre bhao lie hue,sundar rachna...
Sadar.
very nice di, but i can't express my thoughts like u so nice means the best
ReplyDeleteतुम्हारे भीतर भी नहीं हूँ?
ReplyDeleteरात तुम्हारी नींद को भी टटोला....
नहीं !!!
तुम्हारे ख़्वाबों में भी नहीं
आखिर कहाँ गुम हुई मैं, तुम्हें पाने के बाद...
bilkul yatharth .....ajkal ke prem me yhi ho rha hai .....marmik rachana ke liye koti koti badhai anu ji .
वाह...रौशनी को जलाने के लिए हौसला होना चाहिए...बहुत सुंदर लिखा|
ReplyDeleteसस्नेह
बहुत खूब ... निःशब्द ...
ReplyDeleteकभी कभी बस पढ़ा ही जाता है बार बार ... लगता है कितना सही है ...
देखो !
ReplyDeleteउग आयी है एक नागफनी...
कहो!तुम्हें कुछ कहना है क्या??
:):)
kitna behtareen likhte ho aap :)
आखिर कहाँ गुम हुई मैं, तुम्हें पाने के बाद...
ReplyDelete.
.bahut bahut dil ko chhu jane wali lines...
बहुत ही उम्दा काव्य |
ReplyDeleteकिसी में विलीन हो गए तो फिर वजूद कहाँ... दोनों एक... सपनों में भी अलग नहीं... बहुत भावपूर्ण रचनाएं, बधाई.
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्तियाँ अनु दी .. तीनो ही - प्रेम, तलाश और अँधेरा ..
ReplyDeleteसादर शुभकामनाएं,
मधुरेश
बेहद खूबसूरत रचनाएं। अंधेरे से जल गई रोशनी, बहुत पसंद आया ये बिंब ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविताएं।
ReplyDeleteपरेशां हूँ
ReplyDeleteजाने कहाँ खो सी गयी हूँ...
खोजती हूँ खुद को
यहाँ/वहां/खुद में/तुम में
हैरां हूँ..
तुम्हारे भीतर भी नहीं हूँ?
रात तुम्हारी नींद को भी टटोला....
नहीं !!!
तुम्हारे ख़्वाबों में भी नहीं
आखिर कहाँ गुम हुई मैं, तुम्हें पाने के बाद...
शायद नागफनी में .....:))
पाने के बाद खोने की अच्छी कही !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
क्या लिखते हो आप अनु..सीधा दिल में उतर जाता है ... और निशब्द कर जाता है ..लाजवाब्!
ReplyDeleteदेखो !
ReplyDeleteउग आयी है एक नागफनी...
कहो!तुम्हें कुछ कहना है क्या??
WAAAH !!!!!!!!!!!!!!!
WAHH SAMVEDNAPUSN AVIVYAKTI :-)
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